Ep 16 - Lady Boss  

शशांक वहां से जाने लगा था तभी पीछे से उसे एक मीठी सी आवाज़ सुनाई दी। शशांक ने पलटकर देखा। वह प्राची थी जो अभी भी विशाल की बाहों में थी। उनसे पूछा, "क्या हुआ?"

प्राची विशाल की बाहों से अलग हुई, और उसका हाथ थाम लिया, फिर वो कंसर्न दिखाते हुए बोली, "मैं व्योला की फ्रेंड हूँ। आपने अभी-अभी उन स्टाफ को निकाला, जिन्होंने मेरे फ्रेंड की बेइज़्ज़ती की थी। मैं उनकी तरफ से आपका धन्यवाद करना चाहती हूँ।"

शशांक एक पल को फिर रुक गया और उसकी भौंहें चढ़ गईं।

"मुझे मिस व्योला के लिए यह चांस मिला। यही मेरे लिए सम्मान की बात है। मुझे उनके थैंक्यू की कोई जरूरत नहीं है।"

यह सुनते ही प्राची का चेहरा डार्क हो गया।

"व्योला... आख़िर उसमें ऐसी क्या खास बात है?"

MD उससे इतने respectfully पेश आ रहे थे, मानो वह कोई राजकुमारी हो। वह बेचैन हो गई और अपने होंठ काटने लगी।

"क्या आप मेरी दोस्त को पहले से जानते हैं? आप उनसे कब मिले?"

यह सुनते ही शशांक को प्राची का असली मक़सद समझ में आ गया।

'वह थैंक्यू कहने नहीं बल्कि इनफार्मेशन निकलवाना चाहती थी।'

उनके चेहरे पर हल्की-सी चिढ़न आ गई। उनका लहजा अब ठंडा पड़ चुका था।

"इससे आपका कोई मतलब नहीं। लेकिन, क्योंकि आप उनकी दोस्त हैं, एक सलाह देता हूँ, मिस व्योला से दूर रहिये। उनसे उलझने की कोशिश मत करिये। वो ऐसी इंसान नहीं हैं जिन्हें आप नाराज़ कर सकें। future में उनके साथ अच्छा behave करना ही आपके लिए बेहतर होगा।"

"अभी आपने कहा कि आप उनकी दोस्त हैं फिर उनके बारे में इतना तो जानती ही होंगी? है न?"

इतना कहकर शशांक वहां से चला गया।

वहीं विशाल और प्राची का चेहरा गुस्से से लाल हो गया था।

उसने दाँत भींचते हुए कहा, "बेबी, तुमने सुना न? तुम्हें क्या लगता है? व्योला को कोई शुगर डैडी मिल गया है क्या?"

विशाल का चेहरा भी सख़्त था। उसने कहा "ये पॉसिबल है।"

"लास्ट टाइम व्योला को मिस्टर ग्रेवाल ने मुझसे बचा लिया था। तो हो सकता है अभी भी वो दोनों साथ हों।"

ये बात सुनते ही प्राची का मूड और बिगड़ गया।

"चलो, आज के लिए इतना ड्रामा काफी है। अब हम कुछ खाने चलते हैं। तुमने कहा था कि तुम्हें टॉप वेस्टर्न फूड रेस्टोरेंट में जाना है?"

"खाने के बाद हम फिर से शॉपिंग कर सकते हैं। तुम्हें जो नेकलेस पसंद आया था, उसे भी खरीद लेंगे।"

यह सुनते ही प्राची का मूड थोड़ा अच्छा हो गया। क्यूंकि लड़कियों को शॉपिंग कितनी पसंद होती है ये बात तो हम सब बहुत अच्छे से जानते हैं।

उसने विशाल के हैंडसम फेस को देखा, और सोचने लगी, "तो क्या हुआ अगर व्योला किसी रईस आदमी के साथ है? वो आदमी शायद बूढ़ा हो। और बदसूरत भी। लेकिन विशाल? वो तो जवान था, अमीर था, स्मार्ट और सॉफ्ट स्पोकन भी। उस बूढ़े आदमी से उसकी तुलना ही कहाँ थी?"

वो लोग बातें कर ही रहे थे तभी दुकान के दो और स्टाफ उनके पास आए और झिझकते हुए बोले —

"माफ़ कीजिएगा, प्राची मैम एंड विशाल सर! हम हमारी दुकान का एक भी कपड़ा आपको नहीं बेच सकते। हमने विशाल के कार्ड से कोई पेमेंट नहीं लिया है। और ये लीजिये आपका कार्ड।"

विशाल चौंक गया, फिर उसकी भौंहें सिकुड़ गईं और चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसने पूछा, "और आप हमें ये कपड़े क्यों नहीं बेच सकते?"

"हमें हायर अप से यही ऑर्डर मिला है।" स्टाफ ने मासूमियत से जवाब दिया।

"अगर आपको कोई information चाहिए, तो आप हमारे मैनेजर से बात कर सकते हैं।"

ये कहते ही दूसरा स्टाफ उन कपड़ों को वापस विंडो में टाँगने लगा, जो उन्होंने कुछ समय पहले खरीदे थे।

यह देखकर प्राची का चेहरा बिलकुल उतर गया। उसे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन जब उसने विशाल को देखा तब उसकी आँखें भर आईं और वो रुंधे गले से बोली, "विशाल, क्या ये सब व्योला ने किया है? क्या ये उसकी साज़िश है हमें ऐसे बेइज़्ज़त करने की? हमने तो बस उसकी मदद करने की कोशिश की थी... फिर भी वो..."

जब प्राची ने विशाल को देखा जो बहुत गुस्से में था और उसकी नसें दिखने लगी थीं तब उसने आगे कुछ कहना सही नहीं समझा और उसने अपनी बात बीच में ही रोक ली।

दूसरी ओर —

जब व्योला उस शॉप से बाहर निकली, तब उसका मूड और भी ख़राब हो गया था।

"मैडम, क्या अब आप और शॉपिंग नहीं करेंगी?"

रमिल अंकल जो इस बार उसके साथ ही थे उन्होंने आदरपूर्वक पूछा।

व्योला ने सिर हिला दिया।

उसने सोचा, "इतनी सारी शॉप्स हैं यहाँ... और मुझे भी वही दुकान मिलनी थी जिसमें प्राची और विशाल थे?"

अब वह ना सिर्फ़ उन दोनों से चिढ़ गई थी, बल्कि वहाँ के स्टाफ से भी। उसका मूड पूरी तरह से ख़राब हो गया था।

उसी वक़्त, उसका फ़ोन बजा।

उसने देखा — कॉलर आईडी पर नाम चमक रहा था — शान्विक।

अभी कुछ ही देर पहले उसने उसका नंबर सेव किया था।

"हेलो?"

व्योला ने कॉल उठाया।

सामने से एक गहरी, कशिशभरी आवाज़ उसके कानों में गूंजी —

"अब भी शॉपिंग कर रही हो?"

"नहीं।" व्योला ने होंठ फुलाकर कहा, उसकी आवाज़ कुछ उदास लग रही थी तो शान्विक ने पूछा, "क्या तुम उदास हो?"

व्योला ने जवाब दिया, "नहीं..."

शान्विक ने अचानक कहा, "लगता है कि मॉल का MD बदल देना चाहिए। शशांक सच में बहुत ही लापरवाह है। मुझे लगता है कि अब उसे इस मॉल में काम करने की कोई ज़रूरत नहीं।"

"MD शशांक...?"

क्या वो वही शशांक था, जिसने अभी-अभी व्योला की मदद की थी?

व्योला चौंकी।

"आप प्रेसिडेंट शशांक को क्यों बदलना चाहते हैं?"

शान्विक ने शांत स्वर में कहा, "क्योंकि वो अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहा और उसने अपनी लेडी बॉस को हर्ट किया। फिर उसे रखने का क्या फ़ायदा?"

व्योला चुप हो गई। उसके गाल हल्के-से गर्म हो गए थे। खुद को calm करके कहा, "ऐसी बात नहीं है शशांक जी ने... उन्होंने सब कुछ सही से संभाल लिया। मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है।"

"फिर भी उदास क्यों हो?" फोन की दूसरी ओर से वही गहरी, सुकूनभरी आवाज़ आई।

"… शायद भूख लगी है।" व्योला ने मज़बूरी में कोई बहाना बना लिया।

शान्विक हल्के से मुस्कराया। फिर उसने कहा, "ओह। मुझे माफ़ करना, आज काम थोड़ा ज़्यादा था। लेकिन आगे से कोशिश करूंगा कि जल्दी घर आ जाया करूं... तुम्हारे साथ वक़्त बिताने के लिए।"

"खाँ... खाँ..."

यह सुनते ही व्योला बुरी तरह खांसने लगी। उसने सोचा, "मैंने ऐसा कब कहा?"

उसका इरादा वैसा बिल्कुल नहीं था!

शान्विक ने थोड़ी देर बाद कहा, "मैं आ गया हूँ,"

"मैं ऊपर आ जाऊं, या फिर…."

"मैं नीचे आ रही हूँ!" व्योला ने बात बीच में ही काट दी।

शान्विक बहुत हैंडसम था। उसे डर था कि अगर वो ऊपर आया, तो सबकी नज़रें उसी पर टिक जाएँगी।

कुछ ही देर में —

अंडरग्राउंड पार्किंग लॉट।

एक ब्लैक कलर की कार ने अपनी हेडलाइट्स ऑन कीं। जैसे ही व्योला उसके पास पहुँची, दरवाज़ा खुल गया।

कार के अंदर:

शान्विक गोद में एक स्लिम लैपटॉप लिए बैठा था। हल्के से ढीले अंदाज़ में

उनकी ठंडी, गहरी नज़रें स्क्रीन से हटीं... और सीधा व्योला पर जा टिकीं।

दोनों की नज़रें जा टकराईं। उसकी आँखें किसी गहरे कुएं जैसी थीं — जिनमें व्योला का चेहरा साफ़ दिख रहा था।

पार्किंग लॉट की लाइट डिम थी।

कार के अंदर हल्की, गरम रौशनी थी। उसमें बैठे शान्विक का चेहरा और भी सॉफ्ट, और भी मनमोहक लग रहा था। उनकी आँखों की ठंडक भी अब गर्म महसूस होने लगी थी।

व्योला का दिल ज़ोर से धड़क उठा।

"वहाँ क्यों खड़ी हो? अंदर आओ।" शान्विक ने गहरी आवाज़ में कहा।

"… ओह।"

व्योला ने गहरी साँस ली, अपना गर्म होता चेहरा छुआ और झुककर कार में बैठ गई।

दरवाज़ा बंद हुआ। एक हल्की-सी भीनी खुशबू आ रही थी।

ना तो कोई सस्ता परफ्यूम, ना ही तेज़ ऐरोमैटिक स्मैल था — बस एक शालीन-सी, सुकून देने वाली महक आ रही थी।

व्योला का दिल अब और भी तेज़ धड़क रहा था।

वो महसूस कर रही थी कि शान्विक उसे लगातार देख रहा है। जिसकी वजह से उसे घबराहट होने लगी।

वो कुछ कहने ही वाली थी कि तभी उसके कानों में वो मोहक आवाज़ गूंजी,

"तुमने कुछ नहीं लिया? अंकल रमिल से कार्ड मिल गया था न?"

"हां, मिला था।"

कार्ड की बात आते ही व्योला को याद आया — उसे वो कार्ड लौटाना था।

उसने अपने बैग से ब्लैक कार्ड निकाला और शान्विक की ओर बढ़ा दिया।

"शान्विक, मैं ये तुम्हें लौटा रही हूँ। ये बहुत क़ीमती है। मैं इसे एक्सेप्ट नहीं कर सकती।"

शान्विक का चेहरा और भी गंभीर हो गया। उसकी भौंहें और सिकुड़ गईं। उसने पूछा, "व्योला, इसका क्या मतलब है?"

उसकी आवाज़ में सख़्ती थी। इतनी कि व्योला थोड़ा कांप गई।

वो डरपोक नहीं थी। लेकिन शान्विक की मौजूदगी में कुछ था… कुछ ऐसा, जो उसके भीतर की हिम्मत भी हिला देता था। उसकी आँखों में ऐसा असर था, जो किसी को भी चुप करवा दे। व्योला ने घबराते हुए अपना स्लाइवा निगला।

"शान्विक, भले ही हम शादी करने वाले हैं... लेकिन अभी हुई नहीं है। मैं चाहती हूँ... कि तुम मुझे एक्सेप्ट करने के लिए थोड़ा समय दो।"

उसके शब्द बीच में ही कट गए। शान्विक की आवाज़ अब बर्फ़ जैसी ठंडी हो चुकी थी।

"ये कार्ड... ये तुम्हें रखना ही पड़ेगा।"

"मैं..."

"मैं इतना काम अपनी वाइफ के लिए ही करता हूँ ताकि वो मेरे पैसे बिना सोचे उड़ा सके और उसे किसी चीज़ की कमी न हो।"

"मैं ऐसा नहीं कह रही थी—"

शान्विक ने हाथ उठाकर उसे फिर से रोक दिया। उसकी आँखें अब छोटी हो चुकी थीं, और उनमें हल्का गुस्सा झलक रहा था।

"व्योला, मुझे पता है अभी तुम्हें इसकी जरूरत है। इसलिए चुपचाप इसे रख लो।"

व्योला ठिठक गई।

उसने होंठ भींच लिए और कुछ नहीं कहा। बेशक उसे अभी पैसों की बेहद जरूरत थी। इसलिए उसने आगे कुछ नहीं कहा।

ड्राइविंग सीट पर—

रमिल अंकल ने रियर-व्यू मिरर से देखा कि माहौल कुछ ठीक नहीं था, तो उन्होंने धीमे से पूछा, "सर, मैडम... कहाँ चलना है?"

व्योला ने मुँह नहीं खोला। वो डरी हुई थी। और अब थोड़ी नाराज़ भी।

जब व्योला ग़ुस्से में होती थी, तो उसका चेहरा फूल जाता था, आँखें और गोल हो जाती थीं। इसलिए उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया।

शान्विक ने उसकी ये हरकत देखी और उसकी नाराज़गी एक पल में पिघल गई।

वो हल्के से मुस्कराया, और धीरे से हाथ उसके कंधे पर रखकर उसे अपनी ओर खींचा और पूछा, "नाराज़ हो?"

व्योला ने नज़रें नीचे कीं और होंठ भींच लिए। लेकिन कुछ नहीं कहा।

शान्विक ने भौंहें ऊपर उठाईं, मुस्कराहट और गहरी हो गई। उसने कहा, "सॉरी! मुझे उस लहजे में बात नहीं करनी चाहिए थी तुमसे। क्या तुम डर गई थी?"

उसकी पलकें हौले से फड़कीं। उसने होंठों को थोड़ा और भींच लिया चेहरा अब भी नाराज़ी से फूला हुआ था। शान्विक ने उसका चेहरा देखा। अपनी उंगलियों से उसकी नाज़ुक-सी ठुड्डी को पकड़ा और हल्के से ऊपर उठाया।

अब उसकी आवाज़ धीमी हो चुकी थी, जैसे कोई मीठी पुकार, "व्योला... अब नखरे मत करो, हाँ?"

"व्योला..." ये नाम जैसे कानों में नहीं, सीधे दिल में गूंजा। व्योला का दिल काँप उठा। उसके गाल फिर से गर्म हो गए। उसे याद भी नहीं रहा कि वो ग़ुस्से में थी। उसने नज़रें उठाईं और उसकी गहरी आँखों में खो गई। उसके दिल की धड़कन बेकाबू हो गई।

यह आदमी बहुत ही ज्यादा हैंडसम था। उसकी आँखें तो जैसे समंदर थीं। जो एक बार अंदर खींच लें, तो वापस आना मुश्किल हो।

नज़रों से नज़रें जब मिलती हैं,
 

दिल की धड़कनें चुपके से कुछ कहती हैं।
 

हर लम्हा बस तुझमें ही सिमट जाए,
 

ऐसी मोहब्बत तुझसे हर रोज़ हो जाये।
 

तू जो पास हो, तो हर रूह महक जाए,
 

तेरे इश्क़ में ये दिल बेकरार हो जाए।
 

तेरे बिना अधूरी सी लगती है ज़िंदगी,
 

तेरे साथ हर पल में बसती है बंदगी।
 

तेरे मुस्कुराने से सज जाती हैं शामें,
 

तेरे आने से पूरी होगी मेरी कहानी।


तेरे ख्यालों में ही खोए रहते हैं, 

तेरी यादों से ही दिल बहलाते हैं।

 कभी तेरे ख्वाबों में खो जाते हैं,

कभी तेरी बातों में सुकून पाते हैं। 

इश्क़ क्या है किसी से पूछो ना,

हम तो बस तुझमें खुद को भुला जाते हैं।

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