मकड़ी अपना ठिकाना बदलने के बाद भी जाल बनाना नहीं छोड़ती।यही उसकी फ़ितरत है, ठीक उसी तरह जिस तरह सौरभ जगह बदलने के बाद भी लड़कियों को लूटना नहीं छोड़ता।
रितिका के साथ सारे नाते ख़त्म करने के बाद, सौरभ अपने लिए एक नया शिकार तलाश रहा था, सिर्फ़ शिकार ही नहीं बल्कि नया नाम, नयी पहचान, नया शहर, और नया पैसा भी। सौरभ अपने काम को लेकर इतना क्लियर ज़रूर था कि वह अपना टारगेट अचीव करने के बाद, कुछ दिन का ब्रेक लेगा, दरअसल ये उसका वर्किंग पैटर्न है। सौरभ ये ब्रेक पीरियड इसलिए लेता है ताकि वह अपने आपको को एक नए किरदार में बेहतर तरीके से ढाल सके, जिसके लिए वह लोगों की हरकतों पर ग़ौर करता है, ऑनलाइन ओटीटी पर साइकोलॉजिकल थ्रिलर मूवीज़ देखता है, वैसे ही किताबें पढ़ता है। अपने फ़्लैट में अकेले शीशे के सामने खड़े होकर ऐसे बातें करता जैसे वह आइना नहीं कोई औरत हो। ऐसा करने से वह अपना करैक्टर बेहतर तरीके से अपने नए शिकार के सामने बिल्ड अप करता है। सौरभ साथ ही साथ अपने फ़रेब को असली बनाने में लग जाता है, जैसे जाली दस्तावेज़, अपने फ़र्ज़ी काम की चंद तस्वीरें और कुछ उधार में मिले ड्रामा करने वाले लड़के, जो समय-समय पर सौरभ का मोहरा बनते है।
एक दिन सौरभ काउच पर बैठकर साइकोलॉजी की किताब "गेम्स पीपल प्ले" पढ़ रहा था। इस किताब को पढ़ते वक़्त सौरभ की आँखों में गंभीरता झलक रही थी। सौरभ के बदलते भाव से ये समझ आ रहा था कि सौरभ इस बार पहले से कुछ अलग करने वाला है। वह कुछ पन्ने पलटने के बाद किताब बंद करता है और आँखें बंदकर काउच पर ही लेट जाता है और अगला किरदार कौन-सा होगा इसपर मन-मंथन करना शुरू करता है। उसे अपने लिए कोई ख़ास प्रोफेशन समझ नहीं आता। सौरभ हर दिन काम को लेकर सोचता है, मगर उसके हाथ कुछ नहीं लगता। इंजिनियर, डॉक्टर, आर्किटेक्ट, चार्टर्ड अकाउंटेंट अब उसे आम प्रोफेशन लगने लगते है।
हफ़्ते भर की मेहनत के बाद, आज सौरभ इसी फ़िराक में नरीमन पॉइंट आया हुआ हैं। वहाँ आस-पास मौजूद लोग, जिन्हें एक दूसरे से बस इतना मतलब था कि वह सुबह की सैर पर अपने लिए फ्रेश गॉसिप ढूँढ लें और साथ कुछ कपल्स भी थे, जिन्हें औरों से मतलब नहीं था। इन सब के बीच था सौरभ, जिसका असल कारण सिर्फ़ मोह था। सौरभ अपनी डिटेक्टिव वाली आँखों से अगले शिकार को तलाशने लगता है। उसी वक़्त उसे एक चहकती आवाज़ सुनाई देती है
माया (एनर्जेटिक मिजाज़) : आप देख सकते हैं, सुबह-सुबह नारेमन पॉइंट में लोग अपने हेल्थ को लेकर कैसे अवेयर हो रहे हैं। जगह-जगह ग्रुप्स में कहीं योगा तो कहीं लाफिंग एक्सरसाइज हो रही हैं। आप किस तरह से ख़ुद को फिज़िकली फिट कर रखते हैं, मुझे कमेंट में ज़रूर बताएँ और मेरा चैनल माया का मैजिक याद से लाइक, शेयर और सबस्क्राइब करें। सी यू सून!
ये हैं माया माथुर, पेशे से जर्नलिस्ट है और vlogging का शौक रखती हैं। बचपन से इन्हें बातें करना बहुत अच्छा लगता है। अपनी इसी आदत की वज़ह से माया क्लास से बाहर रहती थी। तब कौन जानता था, हमेशा क्लास से बाहर रहने वाली माया आज लाखों लोगों के बीच अपनी एक अलग पहचान बनाएगी। खैर इसमें माया का साथ उसकी मेहनत और क़िस्मत दोनों ने ही दिया है। माया, पुणे के middle class family से थी। जैसा नाम वैसा काम, माया को कभी भी एवरेज लाइफ पसंद नहीं थी। उसे अपनी ज़िन्दगी की प्लेट में हर तरह के व्यंजन चाहिए थी जिसके लिए उसने दिन रात मेहनत करनी शुरू कर दी थी। पहले अपने कॉलेज की टॉपर और अब अपने लोकल मीडिया हाउस की शो स्टॉपर, जिसके न्यूज़ रिसर्च को कभी वेरिफ़िकेशन की ज़रुरत नहीं पड़ी। माया, बचपन से ही एक बेबाक़ लड़की रही है। जिसे किसी से डरना नहीं आता, जो सबको अपनी आवाज़ से बस में करना जानती है। यहीं कारण है कि लोग हमेशा उसकी बातें सुनते हैं।
बचपन में माया से किसी ने कहा कि ये बड़ी होकर टीवी पर आएगी। तब से उसने ये बात अपने ज़ेहन से नहीं निकाली। टीवी पर आने से पहले, माया ने कई स्टेज शोज़ किये। कई नाटक किये, जर्नलिज्म की डिग्री ली। तब जाकर आज, वह पुणे के मोस्ट पोपुलर लोकल चैनल में उसने अपना नाम इतना ज़्यादा बना लिया की, सब माया माथुर की न्यूज़ का वेट करते हैं।
सौरभ माया से टकराने का वेट कर रहा था। उसने सोच लिया था कि उसका अगला शिकार माया होगी। वह तय नहीं कर पा रहा था कि वो अपने-आप को किस तरह से पेश करे। उसी वक़्त सौरभ की नज़र बुक स्टॉल्स पर पड़ी और उसने तय किया कि वह इस बार ख़ुद को बतौर हिन्दी स्कॉलर पेश करेगा। सौरभ, माया तक पहुँचने के लिए एक किताब का इस्तेमाल करता है। नारेमन पॉइंट पर दूर-दूर तक कोई किताब नहीं पढ़ रहा था, सौरभ को किताब पढ़ता देख, माया की नज़र उसपर पड़ी और वह ब्रेकिंग न्यूज़ बनकर सौरभ के पास पहुँच गई और क्यूरोसिटी के साथ पूछा...
माया (चहकते हुए) : इतनी भीड़ के बीच आप नॉवेल कैसे पढ़ पा रहें हैं आप?
सौरभ (गंभीरता से) : जैसे, इतनी भीड़ में आप विडियो बना रहीं थीं, अपने चैनल के लिए.
माया (खुश होकर) : फिर आपने मेरे चैनल को लाइक, शेयर और सब्सक्राइब किया या नहीं?
सौरभ (गंभीरता से) : मैं सोशल मीडिया से दूर रहता हूँ।
माया (उदास होकर) : मैं तो आपके साथ एक छोटा-सा इंटरव्यू करना चाहती थी... बट इट्स ओके।
सौरभ (गंभीरता से) : मैं, सोशल मीडिया की दुनिया से दूर रहता हूँ। ये अलग माया है जहाँ कोई सच्चा नहीं, सब दिखावटी... नाम, काम, रिश्ते यहाँ तक की जज़्बात भी।
माया (चहकते हुए) : No problems, my bad! Happy reading!
एस एफ़ एक्स: सूथिंग
माया अपनी बात कहने के बाद उठकर जाने लगती है, उसी वक़्त सौरभ पीछे-से आवाज़ देकर पूछता है।
सौरभ (सवाल) : आपने अपना नाम नहीं बताया?
माया (नर्मी से) : अभी थोड़ी ही देर पहले आपने मेरा नाम लिया।
सौरभ (सवाल) : मैंने? कब? मैं तो आपको जानता तक नहीं।
माया (नर्मी से) : हाँ, आप ही ने कहा ना, सब माया है। दरअसल मेरा नाम माया ही है।
सौरभ (मुस्कुराकर) : काफ़ी अच्छा नाम है और आपकी पर्सनालिटी को भी सूट करता है।
माया (नर्मी से) : थैंक यू। वैसे, क्या मैं आपका नाम जान सकती हूँ?
सौरभ (नर्मी से) : हाँ क्यों नहीं? मेरा नाम मोहित है। मोहित गांगुली ।
माया (नर्मी से) : नाईस मीटिंग यू मोहित।
सौरभ (नर्मी से) : सेम हियर
एस एफ़ एक्स: रहस्यमयी धुन
सौरभ, माया को जाता हुआ देख रहा था, उसने माया के प्रति अपनी उत्सुकता को काबू किया और अपने फ़्लैट वापस आ गया। सौरभ जब भी अपने फ़्लैट लौटता वह अपने असली रूप में होता, आँखों में डर, ज़ुबान में कड़वापन और दिल में उदासी। सौरभ अपने खोखलेपन में ख़ुद से बातें करते वक़्त बस यहीं कहता,
सौरभ (दांत पीसकर) : मुझे बताएगी कब कहाँ क्या पढ़ना है? ये औरतें समझती क्या हैं ख़ुदको? इन्हें मर्दों को क्यों बदलना होता है? ऐसे दिखाएंगी जैसे मर्द इनके हाथों की कठपुतली है, अब मैं बताऊंगा कठपुतली किसे कहते हैं?
लहरों की आवाज़ + सूथिंग
इतना कहकर, सौरभ पास में रखी हुई टेबल से पानी का ग्लास उठाता है और एक बार में पीकर ख़ुद के जज़्बात संभालता है। सौरभ लंबी गहरी सांस लेता है। किचन में जाकर अपने लिए ब्लैक कॉफ़ी बनाता है, उसमें रम मिलाता है और उसे पीते हुए, माया के चैनल के हर एक विडियो को बड़े ग़ौर से देखता है, खासकर उन वीडियोस के कमेंट सेक्शंस को। उसके बात करने का ढंग, उसका ख़ुद को प्रेजेंट करने का तरीका, अंजान लोगों से मिलकर उन्हें अपना बनाना - सब कुछ ध्यान से देखता है। सौरभ समझ चुका था कि माया, मीडिया बैकग्राउंड से है। अगर उसके साथ कोई छेड़कानी की, तो अंजाम बहुत बुरा होगा, पर सौरभ हमेशा एक बात पर बिलीव करता था, जितना ज़्यादा रिस्क, उतना ज़्यादा प्रॉफिट और ये उसने रितिका को अपने जाल में फंसाकर साबित भी कर दिया।
सौरभ की ज़िन्दगी में, अब तक जो लड़कियाँ आई, वह सौरभ के चार्म में पहले दिन से ही फंस जाती थी। सौरभ को माया में बेताबी नहीं दिखी। सौरभ समझ गया था कि माया इज़ी टू गेट लड़की नहीं थी। यहीं वज़ह भी थी कि सौरभ ने माया के लिए ख़ुद को हिन्दी स्कॉलर बनाया था। सौरभ नहीं जानता था कि उसकी अगली मुलाक़ात माया से कब और कैसे होगी? लेकिन ये जरूर जनता था कि कि उसे माया पर नज़र कैसे रखनी है। वह माया के दूसरे सोशल मीडिया एकाउंट्स स्टॉक करता है जहाँ उसे पता चलता है कि माया, मुंबई में होने वाले लिटरेचर फेस्टिवल को कवर करने आई हैं। माया का पोस्ट देखने के बाद, सौरभ को यक़ीन हो गया कि हमेशा की तरह क़िस्मत उसके साथ है। इसके बाद वहीं हुआ जो हर बार की तरह होता आया है। सौरभ, अपने शिकार की जगह पर यानी लिटरेचर फेस्ट में गंभीर चेहरा लिए पहुँच गया। ये फेस्ट मुंबई के सबसे बड़े ग्राउंड में organise किया गया था जहाँ अलग-अलग type के बुक स्टॉल्स, ड्रामा के लिए स्पेशल प्लेस, शायरी ग़ज़लों के लिए बड़ा-सा स्टेज और साहित्य को बेहतरी से समझने के लिए एकांत जगह बनाई गई थी।
सौरभ, लिटरेचर फेस्ट में आ तो जाता है। इतनी भीड़ वाली जगह पर माया को ढूँढना उसके लिए मुश्किल भी था। वह अलग-अलग दिशाओं में जाकर, माया को ढूँढता है। उसे हर खुशमिजाज़ चेहरा और हाथों में कैमरा पकड़ा शख़्स माया से मिलता जुलता लगने लगता है। माया तो सिर्फ़ एक चीज़ से मिलती है और वह है उसे पाने की तलब से। एक घंटे की जद्दोजेहद के बाद क़िस्मत ने माया को सौरभ के आगे लाकर खड़ा कर ही दिया।
माया (उर्जावान) : इस लिटरेचर फेस्टिवल में और भी मनमोहक प्रस्तुतियाँ होंगी, जो आपको देखने को मिलेगी माया माथुर के साथ, ओनली ऑन आवर चैनल पुणे मसाला। सो स्टे ट्यून्ड।
सौरभ, ये आवाज़ सुनकर, जैसे ही पलटता है, उसे एक बार फिर यक़ीन हो जाता है कि, उसके सितारे बुलंदी पर है। सौरभ, भीड़ का हिस्सा बनकर माया को लोगों से इंटरैक्ट करते देखता है। उसके एक्शंस से इमोशंस को समझने की कोशिश करता है, मगर माया इतनी स्पौनटेनियस लड़की है कि, उसकी एनर्जी से मैच करना, सौरभ के लिए मुश्किल होता जा रहा था। एक बार तो सौरभ भी, माया को देखकर उसकी वाइब में खो गया, और उसे पता ही नहीं चला की माया, वहाँ से जा चुकी है। सौरभ की बेताबी माया को लेकर बढ़ती जा रही थी और माया है कि मिलकर भी नहीं मिल रही थी। पर जिनका मिलना लिखा हो उन्हें मिलने से कौन रोक सकता है? आख़िरकार माया उसी बुक स्टॉल के पास आकर रुकी, जहाँ सौरभ पहले से ही मौजूद था। सौरभ ने उसे देखकर अनदेखा किया, किताबें उठाकर उन्हें आगे पीछे पलटकर देखने लगा। सौरभ किताबों में अपना ध्यान लगा ही रहा था कि माया ने उससे कहा...
माया (सवाल) : आप मर्दों की प्रॉब्लम क्या है जानते है?
सौरभ (सवाल) : आप मुझसे कह रहीं हैं?
माया (चिढ़ाते हुए) : यहाँ और कोई जाना पहचाना है भी नहीं?
सौरभ (हंसकर नर्मी से) : ज़ुबान पर बात, इसलिए नहीं लाइ जाती, ताकि कोई ग़लत ना समझ ले।
माया: जब आप इतनी देर से फॉलो कर रहे थे, बात करने क्यों नहीं आये?
सौरभ: आदमियों के बस का कहाँ रहा है, कभी किसी औरत से बात करना...
माया: मगर अधिकतर दिल, आदमियों ने तोड़े हैं?
सौरभ: लगता है आदमियों से ज़्याती दुश्मनी है आपकी।
दोनों के बीच, पहली ही मुलाक़ात में बातें लंबी होने लगती है, क्योंकि दोनों बुक स्टॉल के सामने होते हैं तो, माया उसे बताती है कि उसे क्राइम नोवेल्स पढ़ना बहुत पसंद है। उसी वक़्त सौरभ इस बात पर टिपण्णी करते हुए कहता है कि इश्क़ किसी जुर्म से कम नहीं, इन्सान एक बार करले, तो सज़ा ज़िन्दगी भर काटता है। माया को सौरभ की बातें, काफ़ी दिलचस्प लगने लगती हैं। धीरे-धीरे सौरभ के शब्द, माया के दिल पर घर करने लगते हैं, इसलिए जैसे ही माया को ये एहसास हुआ की, वह सौरभ को लेकर जज़्बाती हो रही है, वह किसी तरह, बातें बीच में छोड़कर जाने लगी।
इस तरह, माया की पहली कमजोरी, सौरभ की नज़र में आई। ये देखने के बाद सौरभ ने भी बातों को खीचने की कोशिश नहीं की। सौरभ, ये बात तो समझ चुका था कि माया को आज़ाद करके ही अपनी गिरफ़्त में लिया जा सकता है। जैसे ही लिटरेचर फेस्टिवल ख़त्म होता है, सौरभ भी पार्किंग की तरफ़ जाता है जहाँ उसे एक बुज़ुर्ग दिखते हैं, जिन्हें गाड़ी निकालने में तकलीफ होती है। सौरभ, जैसे ही उस बुज़ुर्ग को देखता है, उसे वैसे ही अपने ठाकुर्दा याद आते हैं। वह फ़ौरन, उनकी मदद करने चले जाता है। सौरभ, जैसे ही उनकी गाड़ी निकालता है उस बुज़ुर्ग के कांपते हाथ, सौरभ के चेहरे पर पड़ते हैं। सौरभ, कुछ नहीं कहता बस उसकी आँखें ज़रा-सी नम हो जाती है। दूर खड़ी माया जब ये सब देखती है, तो उसके मन में सौरभ के लिए इज्ज़त मुलाकातों के साथ बढ़ने लगती है। इस बार सौरभ की नज़र भी माया पर पड़ती है। तब माया अपनी आँखें हटा लेती है।
सबकी अपनी-अपनी कहानियाँ है, माया की भी। इस कहानी को जानने की उत्सुकता, इस वक़्त सबसे ज़्यादा सौरभ को थी। सौरभ, माया के जितना करीब आना चाहता था माया उससे उतनी ही दूर जाती जा रही थी। सौरभ का सब्र अब उसका इम्तेहान ले रहा था, उसी वक़्त सौरभ को माया, इवेंट के मेन गेट पर मिली और माया के साथ सौरभ को मिला मौका उसे मोह की जाल फंसाने का।
क्या माया बनेगी शिकार सौरभ की चिकनी चुपड़ी बातों का?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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