निशांत रूम के अंदर सो रहा था पर कोई था जो टेरेस पर घूम रही निहारिका को गुलाबों के बगीचे की तरफ़ खींच रहा था, तभी तो निहारिका, टेरेस से निचे उतरकर बगीचे में आ गयी थी. निहारिका ने महसूस किया, उसके आते ही गुलाब और ज़्यादा खिल उठे है।  

उसने सोचा ये, उसका भ्र्म भी हो सकता है, क्योंकि छत से देखने पर गुलाब छोटे ही तो दिखेंगे न! और अब मैं पास आकर देख रही हूँ।  

निहारिका का मन गुलाबों में खो गया था। उसकी नज़रें बार-बार पंखुड़ियों पर जा रहीं थी और उनके मोहक रंग उसकी आँखों में बसते जा रहे थे। उसने एक गुलाब तोड़ा और उसको जैसे ही अपनी नाक के पास लगाया, निहारिका जैसे अपने होश खो बैठी, उसको नशा सा चढ़ने लगा।  

अचानक निहारिका को एक आइडिया आया,  

 

निहारिका -अगर मैं इन खिले हुए गुलाबों का उबटन बनाकर अपने फेस पर लगाउंगी तो मेरा चेहरा भी इन गुलाबों की तरह ही खिल उठेगा।  

 

निहारिका ने मदहोशी की हालत में इधर-उधर देखा कि कोई देख तो नहीं रहा और लगभग 2 दर्जन गुलाब के फूल तोड़कर जल्दी से विला की ओर बढ़ गयी।  

रूम में अंदर घुसते ही, उसने कमरे के अंधेरे में निशांत को गहरी नींद में सोया हुआ देखा, लेकिन निहारिका के मन में गुलाबों का खुमार छाया हुआ था। उसने जल्दी से उन गुलाबों को अपने बैग में छुपा दिया और निशांत के बगल में धीरे से लेट गई।

निशांत गहरी नींद मे था। अचानक उसकी आँखों में अँधेरा छाने लगा और उसने अपने आप को उसी विला के बाहर, गुलाबों के बगीचे में खड़ा पाया। पर अब ये बगीचा पहले जैसा नहीं था। चारों तरफ अंधेरा था और गुलाबों की पंखुड़ियाँ खून से सनी हुई थीं। हवा में अजीब सी घुटन थी। अचानक निशांत को महसूस हुआ कि वो अकेला नहीं है।

निशांत के पैर जमीन में धंसे हुए थे और वो जितनी कोशिश करता, उसके पैर उतने ही अंदर जा रहे थे। पसीने से लथपथ निशांत आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा था, लेकिन एक अजीब सी ताकत उसे अपनी तरफ़ खींच रही थी।  

अचानक निशांत के कानों में दूर से हँसने की आवाज़ सुनाई पड़ी, और निशांत डर से काँप उठा। वो आवाज़ लगातार उसके और पास  आती जा रही थी. निशांत ने अचानक महसूस किया वो आवाज़ किसी लेडी की है जो उसके आसपास घूम रही थी.  

निशांत की धड़कनें तेज हो गई थीं। उसकी सांसें अटकने लगी थीं और वो इधर-उधर देखने लगा, लेकिन कुछ नहीं दिखा। निशांत के मुँह से बस यहीं निकला,

 

निशांत – "क... कौन है वहां?"

 

अचानक उसकी नजर एक परछाई पर पड़ी। बगीचे के बीचों-बीच एक धुंधली परछाई बन रही थी। वो परछाई धीरे-धीरे आकार लेने लगी और एक औरत का रूप धारण कर लिया। उसके काले बाल हवा में बिखर रहे थे, और उसकी लाल आंखें जल रही थीं। उसके होंठों से खून बह रहा था, और उसकी हंसी निशांत के कानों में गूंज रही थी।

निशांत हिल भी नहीं पा रहा था। वो औरत उसके पास आ रही थी, उसकी आंखों में पागलपन था, वो औरत धीरे-धीरे उसके करीब आई, और उसकी हंसी और जोर से गूंजने लगी। अचानक, वो औरत झुककर निशांत के गले पर हाथ रखती है।

 

निशांत  – "न... नहीं... मुझे छोड़ दो!"

 

उसकी उंगलियां निशांत के गले को कसने लगीं। वो औरत और ज़ोर से हंसने लगी, उसकी आंखों में एक डरावना पागलपन झलक रहा था। निशांत का गला घुटने लगा। उसकी साँसें थमने लगीं, दिल की धड़कनें धीमी होती जा रही थीं। वो बुरी तरह तड़प रहा था, लेकिन उसकी आवाज़ बाहर नहीं निकल रही थी। उसे लगा, उसकी मौत का पल अब करीब है।

 

निशांत  – "न... नहीं... छोड़ो... मुझ..."

 

अचानक डर से उसकी आंखें खुली तो देखा वो अपने कमरें के अंदर है। उसकी नज़र सामने खड़ी एक लेडी पर पड़ी और वो फिर से चीख़ उठा।  

वो निहारिका थी, जिसने अपने चेहरे पर उबटन लगा रखा था. निशांत अभी-अभी एक भयानक सपने से डरकर उठा तो, उसने अपने सामने निहारिका को ऐसी हालत में देखा और  फिर से डर गया था।  

निहारिका को समझते देर नहीं लगी कि निशांत मुझे देखकर डर रहा है, इसलिए वो जल्दी से अपना मुँह धोकर आई और निशांत को शांत करने लगी.  

निशांत अभी तक पसीने से लथपथ था और उसकी सांसे बड़ी हुई थी. निशांत काफ़ी देर तक ऐसे ही बैठा रहा। निहारिका उसके पास बैठकर उसको शांत करने की कोशिश करती रही.  

 

निहारिका  – "निशांत, कुछ नहीं हुआ। हम अपने कमरे में हैं। तुमने कोई बुरा सपना देखा होगा। अब सब ठीक है।"

 

निशांत जानता था कि सब ठीक नहीं था। उसका दिल अब भी तेज़ी से धड़क रहा था, और उसके मन में कुछ और ही चल रहा था। उसने निहारिका की तरफ देखा और बिना कुछ बोले ही बिस्तर से उठ खड़ा हुआ।

 

निशांत – ये जगह ठीक नहीं है, निहारिका। हमें यहां से अभी निकलना होगा।

 

निहारिका अचानक निशांत के मुँह से जाने की बात सुनकर शॉक्ड हो गयी।  

 

निहारिका - हम जायेंगे कहां निशांत?

 

निहारिका ने पूछा तो निशांत ने अपना सामान पैक करते-करते ही कहा,

 

निशांत -  मुझे नहीं पता, लेकिन हमें यहां से जल्दी निकलना पड़ेगा, वरना हम दोनों भी आर्यन और बाकि लोगों की तरह मारे जायेंगे निहारिका।

 

इसके बाद निहारिका ने कुछ नहीं पूछा जल्दी-जल्दी अपना बैग पैक किया। निशांत ने बिना एक पल की देरी किए, निहारिका का हाथ पकड़ा और विला से बाहर निकल गया। दोनों जल्दी से कार में बैठ गए और निशांत ने तेजी से कार स्टार्ट कर दी। वो इस विला से जितनी जल्दी हो सके, दूर जाना चाहता था।  

ये सब इतनी जल्दी हो रहा था, जैसे दुनिया ख़त्म होने को हो। निशांत ने अभी कार आगे बड़ाई ही थी कि निहारिका ने कार के रियर व्यू मिरर में देखा। अजय छत पर खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा था, उसकी मुस्कान कुछ कहना चाहती थी लेकिन क्या? ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।  

निशांत और निहारिका ने बिना रुके सफर किया और 7 -8 घंटे बाद, वो आखिरकार सही सलामत दिल्ली वापस पहुँच ही गए थे। निशांत ने राहत की साँस ली और सीधा बेड पर जाकर लेट गया।  

निहारिका भी खुश थी। वो दिल्ली से जाते वक्त डरी हुई थी और अपने पापा के दुःख में डूबी थी लेकिन नौकुचियाताल से वापस आने के बाद बदली बदली थी। इस सब के बावज़ूद भी उसके दिल में एक अज़ीब सी बेचैनी थी। उसको बार-बार ऐसा लग रहा था जैसे उसका फेस जलने लगा हो।  

अचानक निहारिका को कुछ याद आया। वो तेज़ी से अपने बेग के पास गयी  और जैसे ही उसने अपना बैग खोला तो देखा, बेग के अंदर रखे गुलाब के फूल मुस्कुरा रहे थे। उनको देखते ही निहारिका के चेहरे की जलन कम होने लगी और वो फिर से मदहोश होने लगी।    

निहारिका ने बहुत प्यार से गुलाब की पंखुड़ियों को अलग-अलग करना शुरू किया तो उनकी ख़ुश्बू पूरे कमरें को महकाने लगी थी. उसने धीरे-धीरे पंखुड़ियों को पानी में भिगोया और अपनी आँखें बंद करते हुए, उनको अपने चेहरे पर रगड़ने लगी। गुलाब की भीनी-भीनी खुशबू ने पूरे बाथरूम को महका दिया था।  

निहारिका पूरी तरह से मदहोश हो चुकी थी। उसकी सांसें हल्की-हल्की हो रही थीं। उसे लग रहा था जैसे गुलाबों की इन पहाड़ियों ने उसके चेहरे की सारी जलन दूर कर दी थी।  

निहारिका: वाह… कितना अच्छा महसूस हो रहा है… ये गुलाब सच में जादू की तरह हैं।

उसने अचानक देखा, उसकी उंगलियों से ख़ून टपकने लगा। निहारिका उसकी उंगलियों में खून देखकर घबरा गयी। उसने जल्दी दे अपने हाथ धोये, खून भी धुल चुका था। निहारिका ने एक लंबी साँस ली और मुस्कुराकर बोली,  

 

निहारिका - मैं भी कितनी बुद्धू हूँ, फूलों के रस को ही ख़ून समझ बैठी।  

 

उसके हाथ अब साफ़ हो चुके थे लेकिन फिर भी फर्श पर ख़ून की बुँदे टपकती देख निहारिका हैरान हो गयी. निहारिका ने कांच में देखा और डर से चीख़ उठी लेकिन उसकी आवाज़ बाथरूम में ही घुट कर रह गयी थी।  

टप...टप.....टप की आवाज़ के साथ बाथरूम के फर्श पर निहारिका के चेहरे से ख़ून की बूंदे टपक रही थी और निहारिका अपने ही चेहरे को देखकर डर से काँप रही थी. वो गुलाब के फूलों के साथ अब निहारिका के बाथरूम तक पहुंच चुका था।  

क्या निहारिका बच पायेगी अजय के फेंके भूतिया जाल से? या फिर बनेगी उसका अगला शिकार? जानने के लिए पढ़ते रहिए।  

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