निशांत के मन में राजवीर और अन्नू का सवाल घूम रहा था। उसने अजय से अन्नू का सुसाइड नोट मिलने के बारे में पूछा। अजय ने थोड़ी देर सोचा और हल्के मुस्कुराते हुए इंकार कर दिया।
अजय : यहां तो आर्यन और अन्नू नाम से कोई नहीं आए।
अजय ने उनके सामने गेस्ट रजिस्टर खोला, जिसमें आर्यन, अन्नू, अंकित या श्रुति का कोई नाम दर्ज नहीं था। निशांत के माथे पर चिंता की लकीरें उभरने लगीं। जैसे ही उसने अपने मोबाइल से राजवीर को कॉल करने की कोशिश की, स्क्रीन पर “नो नेटवर्क” का साइन दिखाई दिया।
निशांत : अजीब है, ये नेटवर्क भी पता नहीं क्यों यहां नहीं आ रहा।
निशांत राजवीर के पास जाकर सच का पता लगाने के बारें में सोच ही रहा था, कि अचानक निहारिका तेज आवाज़ में चीख पड़ी।
निहारिका : "निशांत! जल्दी आओ!"
उसकी आवाज़ सुनकर निशांत की धड़कने बढ़ गयी और वो तेजी से घबराते हुए ऊपर की ओर भागा।
निशांत तेजी से सीढ़ियां चढ़कर फर्स्ट फ्लोर के अपने रूम में गया तो देखा, निहारिका वहां नहीं थी। उसे और घबराहट होने लगी। उसने इधर-उधर देखा, वहां कोई नहीं था, तभी निहारिका उनको विला के टेरेस पर घूमती हुई दिखाई दी. निशांत बिना समय गवाएं छत की ओर भागा।
जब निशांत छत पर पहुंचा, तो देखा कि निहारिका छत की मुंडेर पर खड़ी थी।
निशांत : निहारिका, क्या हुआ? इतनी जोर से क्यों चिल्ला रही हो?
निहारिका : वो देखो निशांत…वहां…वहां गुलाबों का बगीचा
निशांत ने निहारिका की तरफ देखा और फिर पीछे मुड़ा। जैसे ही उसकी नज़र पीछे की ओर गई, उसने देखा कि विला के पीछे गुलाबों की एक शानदार बगिया लहरा रही थी। लाल, सफेद, पीले, और गुलाबी, गुलाबों के खूबसूरत फूल हवा में लहराते हुए उन्हें अपनी ओर बुला रहे थे। उन गुलाबों की चमक में एक अजीब सी कशिश थी, मानो वो इंसान को अपनी ओर खींच रहे हों।
निशांत ने उन गुलाबों की तरफ़ देखा तो फिर बहुत देर तक देखता ही रहा। वो उनकी खूबसूरती में खो सा गया था जैसे वे उसको अपनी तरफ़ खींच रहे हो.
निहारिका -“है न निशांत ख़ूबसूरत?”
निहारिका की आवाज़ से निशांत का ध्यान गुलाबों से हटा तब उसे अचानक कुछ ध्यान आया और उसने निहारिका को डाँटकर कहा,
निशांत - "गुलाबों के लिए इतनी जोर से चिल्लाने की क्या जरूरत थी, निहारिका? मैं कितना डर गया था!"
निहारिका: मुझे लगा तुम ये देखकर हैरान हो जाओगे। ये गुलाब है ही इतनी दिलकश कि मैं अपने आप को रोक ही नहीं पाई। चलो न निशांत हम एक बार इस बगीचे के अंदर चलकर देखते है।
निशांत ने पहले निहारिका की बात को नज़रअंदाज़ करना चाहा। उसने कहा “निहारिका पहले जो काम करने यहां आए है, वो करने दो, मुझे अभी राजवीर से मिलने जाना है”, बगिया में फिर कभी चलेंगे। निहारिका ने भी उसी वक्त वहां चलने की ऐसी ज़ीद पकड़ी कि निशांत को उसकी ज़ीद के आगे झुकना पड़ा।
निशांत - ठीक है, लेकिन हम थोड़ी देर ही रुकेंगे। मुझे राजवीर से भी मिलना है।
निशांत ने नीचे उतरते हुए कहा ओर वे दोनों बगीचे की ओर चल पड़े। जैसे ही वे बगीचे के पास पहुंचे, उन गुलाबों की खूबसूरती ने उन्हें मंत्रमुग्ध कर दिया। गुलाबों के रंग और उनकी पंखुड़ियों की कशिश ही ऐसी थी, जिसे देखकर दिल एक पल को धड़कना बंद कर दे। निहारिका के चेहरे पर एक चमक थी, मानो वो इन गुलाबों की ओर खिंची चली जा रही हो।
निशांत और निहारिका को अचानक ठंडक का अहसास हुआ। वो दोनों गुलाबों को निहार रहे थे, और अचानक उन्हें हवा में अजीब सी हरकतें महसूस हुईं। गुलाबों की पंखुड़ियाँ हवा में लहराते हुए अजीब तरीके से घूम रही थीं। हवा में एक अलग की आहट थी, मानो कोई उन्हें बुला रहा हो या अपनी और खिंच रहा हों।
निशांत के मन में हलचल मच गई। उसे ऐसा लगने लगा था कि ये बगीचे कोई साधारण बगिया नहीं है। इन गुलाबों में कुछ ऐसा था, जो उसे असामान्य लग रहा था। उसने निहारिका को बगीचे से दूर चलने को कहा, लेकिन निहारिका गुलाबों को देखकर इतना खो चुकी थी कि उसने निशांत की बातों पर ध्यान ही नहीं दिया।
निशांत - ये बगीचा... इसमें कुछ तो गलत है। ये गुलाब… इनमें कुछ अजीब सा है।
निहारिका ने अचानक से एक गुलाब की ओर हाथ बढ़ाया। निशांत उसे रोकने वाला था, लेकिन निहारिका ने उसे छू लिया। जैसे ही उसने गुलाब को छुआ, वो और ज्यादा खिल उठा। उस गुलाब की पंखुड़ियाँ और चमकने लगीं।
निहारिका - देखो निशांत, ये गुलाब... कितना खूबसूरत है!
निशांत को अब एहसास होने लगा था कि ये गुलाब कोई साधारण फूल नहीं थे। उसने निहारिका का हाथ पकड़ा और तुरंत उसे बगिया से बाहर खींचा। वो समझ चुका था कि कुछ तो ऐसा था जो देवसिंह सही कह रहा था।
रात भर निशांत को नींद नहीं आई। उसके दिमाग में बगिया और अजय की कहानी घूम रही थी। वो समझ चुका था कि इस विला में और खासकर गुलाबों में ज़रूर कुछ तो है लेकिन वो उसके सामने खुलकर नहीं आ रहा था। उसे ऐसा लगने लगा था कि देवसिंह ने जो कहा था, वो सच हो सकता है।
अगली सुबह, निशांत ने निहारिका से कहा कि वे लोग नौकुचियाताल घूमने जा रहे हैं, तो निहारिका खुश हो गई थी लेकिन निशांत के माइन्ड में कुछ और ही चल रहा था। वे दोनों सीडियों से जैसे ही नीचे उतरे, सामने अजय खड़ा था, जो निहारिका को अजीब सी नज़रों से देख रहा था। निशांत ने उसकी ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और तेज़ कदमों से बाहर चलते हुए निकल गए।
वे दोनों नौकुचियाताल लेक के सामने खड़े थे जहां कुछ बोटिंग को एन्जॉय कर रहे थे। निशांत ने निहारिका से पूछा,
निशांत - निहारिका तुमने कभी बोटिंग की है?
निहारिका ने न में अपना सर हिलाया तो निशांत ने हँसते हुए कहा “कैसे-कैसे लोग रहते है इस धरती पर” और निहारिका का हाथ पकड़ कर उसको एक बोट पर बैठा दिया और उससे कहा,
निशांत - निहारिका तुम बोटिंग करो, तब-तक मैं राजवीर से मिलकर आता हूँ। मुझे बहुत ज़रुरी काम है।
इतना सुनते ही निहारिका के चेहरे का रंग बदल गया था. निहारिका खींच पड़ी ,
निहारिका - पागल हो क्या निशांत? मुझे यहां अकेले छोड़कर जाओगे? एक तो मुझे वैसे ही डर लग रहा इस बोट में।
निशांत ने बोट मेन को इशारा किया और बोट तेज़ स्पीड में पानी उड़ाते हुए चल पड़ी। निहारिका शॉक्ड रह गयी।
निशांत निहारिका को वही छोड़ कर, इंस्पेक्टर राजवीर से मिलने निकल गया. राजवीर से मिलते ही उसने अजय की कहीं बात बताकर,अन्नू के सुसाइड के बारे में फिर से पूछा। अब राजवीर थोड़ा चिढ़ सा गया था। उसने फाइलों के ढ़ेर से एक फाइल निकाली और अन्नू का सुसाइड नोट निशांत के हाथ में थमाते हुए बोला,
“तुम्हें ये सुसाइड नोट पहले भी बता चुका हूँ और एक बार फिर से बता रहा हूँ। आख़िरी बार इसको अच्छे से देख लो निशांत, क्योंकि ये केस अब क्लोस हो चुका है और हम यहां इतनी फुर्सत में नहीं बैठे है कि, बार-बार इस सुसाइड केस को मर्डर बताकर उसकी छानबीन करे।”
राजवीर थोड़ा रुका और अचानक निशांत से पूछा, एक बात बताओ... तुम अकेले उस विला में गए क्यों थे?
निशांत - वो मैं….
निशांत चुप हो गया और अपने मोबाइल में सुसाइड नोट का फ़ोटो लेकर थाने से बाहर आ गया। निशांत ग़ुस्सा भी था और कंफ्यूज भी वो बाहर खड़ा-खड़ा थोड़ी देर कुछ सोचता रहा. वो जैसे ही वापस नौकुचियाताल आया तो उसने जो सोचा था वही हुआ। निहारिका अपना मुँह फुलाए बैठी थी। निशांत ने हार्न दिया तो निहारिका उठकर आई और ग़ुस्से में कार का गेट खोलकर पीछे वाली सीट पर जाकर बैठ गयी। निहारिका इतने गुस्से में थी कि दोनों विला वापस आ गए, और पुरे रास्ते उन्होंने एक दूसरे से बात भी नहीं की।
निशांत और निहारिका वापस विला लौट आए। निशांत अब और भी बेचैन था। वो अजय से दोबारा मिलने और सुसाइड नोट के बारे में पूछने का इरादा कर चुका था, लेकिन अजय उसको कहीं नहीं दिखा। निशांत को ये थोड़ा अजीब लगा।
निशांत अपसेट था वो बेड पर जाकर लेट गया और अजय का इंतज़ार करने लगा, लेकिन बेड पर लेटे-लेटे उसको कब नींद आ गयी, उसको पता नहीं चला। इधर निहारिका इतने ग़ुस्से में थी कि वो रूम में आने के बजाय सीधे विला के टेरेस पर जाकर घूमने लगी। तभी उसकी नज़र हवा में झूम रहे गुलाबों पर पड़ी, तो वे अपने आप को रोक नहीं पाई और टेरिस से उतर कर सीधे बगीचे की ओर खींची चली गई।
निहारिका ने इधर-उधर देखा, वहां कोई नहीं था. निहारिका को पता नहीं था कि वो ख़ुद गुलाबों के पास नहीं आई थी, बल्कि कोई था जो उसको इन रहस्य्मयी गुलाबों तक खींचकर लाया था, और अब फिर से निहारिका की ज़िंदगी में एक भूचाल आने वाला था.
आख़िर क्या होने वाला है निहारिका के साथ? क्या अजय निहारिका को भी मार देगा या फिर होगा कुछ और? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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