निशांत ने कार स्टार्ट की और आगे बड़ा दी लेकिन उसके कानों में अभी भी अजय की भयानक दास्ताँ गूंज रही थी. अभी वे लोग लगभग 5-6 किलोमीटर ही आगे आये थे कि देवसिंह ने कहा, “बस, मेरा गांव का रास्ता आ गया, आप यहीं गाड़ी रोक दीजिये।  

निशांत ने गाड़ी रोक दी. कार से नीचे उतरते हुए उसने फिर कहां, “मैंने आपको पूरा सच बता दिया, अब आगे आपकी मर्ज़ी। वैसे अगर आप रुकना चाहें तो मेरे होम-स्टे में भी रुक सकते है, मेरा भी नौकुचियाताल में एक छोटा सा होम-स्टे है, आपको ठीक-ठाक रेट लगा दूंगा”

इतना बोलकर देवसिंह निशांत को अपने होम-स्टे का विज़िटिंग कार्ड थमाकर तेजी से कार से बाहर निकला, और अपने गांव की कच्ची पगडंडी पर चल पड़ा। देवसिंह की बात सुनकर निशांत शॉक्ड हो गया था, वो कभी देवसिंह को जाते हुए देखता तो कभी उसके होम-स्टे के विज़िटिंग कार्ड को, लेकिन निहारिका को समझ नहीं आ रहा था निशांत को अचानक क्या हो गया, उसने निशांत से कहा,  

 

निहारिका - चलों न निशांत, अचानक क्या हो गया तुम्हें? वो देवसिंह कभी का जा चुका है, अब उसको ही देखते रहोगे क्या?

निशांत अचानक जैसे होश में आ गया हो, उसने निहारिका को देखा और ज़ोर से हँस पड़ा. निहारिका हैरान होकर निशांत की तरफ़ देखती रही और निशांत उसको देखकर हंसता रहा।  

 

निहारिका -  पागल हो गए हो क्या निशांत? क्या हो गया तुमको अचानक? वो अजय की स्टोरी सुनकर तुम भी उसके जैसी ही हरकत क्यों करने लगे?

 

निहारिका ने पूछा तो निशांत ने अपनी हँसी पर काबू करते हुए कहा,

 

निशांत - लोग अपने छोटे से फ़ायदे के लिए क्या-क्या नहीं करते निहारिका और एक तुम हो जो कुछ समझती ही नहीं।  

 

निहारिका  - मतलब? कैसा फ़ायदा? किसका फ़ायदा?

 

निशांत  - वो देवसिंह भी एक होम-स्टे चलाता है निहारिका, इसलिए चाहता होगा कि हम  लोग इस होम-स्टे की जग़ह उसके होम-स्टे में रुके, इसलिए हमें फेक स्टोरी सुनाकर डराने की कोशिश कर रहा था, ताकि हम डरकर जल्दीबाजी में उसी के होम-स्टे में रुक जाए। इट्स गोरिल्ला मार्केटिंग स्ट्रैटजी, निहारिका।  

 

निहारिका को जब देवसिंह का इंटेंशन समझ आया तो उसने अपना माथा पीट लिया। उसको देवसिंह पर ग़ुस्सा भी आ रहा था और अपने आप पर हँसी भी, जो उसकी स्टोरी को इतने ध्यान से सुन रही थी और उसपर भरोसा करके डर गई थी. निशांत ने हँसते हुए कार की चाबी घुमाई और नौकुचियाताल पहुँचने के लिए एक्सीलेटर दबा दिया।  

 

निशांत और निहारिका की कार पहाड़ों की घुमावदार सड़कों पर आगे बढ़ रही थी। देवसिंह की बातें, अजय ठाकुर की भयानक कहानी, सब कुछ निशांत के दिमाग में घूम रहा था। कार की खिड़की के बाहर घना कोहरा छाया हुआ था। पहाड़ियों की गहराई और सन्नाटा अब डरावना लगने लगा था। निहारिका की आँखों में भी डर साफ झलक रहा था, लेकिन उसने अपने डर को दबाते हुए धीरे से कहा...

 

निहारिका: "निशांत, क्या तुम भी वही सोच रहे हो, जो मैं सोच रही हूँ? ये जगह... ये सब सच हो सकता है क्या?"

निशांत: "निहारिका, मैंने तुमसे कहा न, ये सब अफवाहें हैं। देवसिंह बस हमें डराने की कोशिश कर रहा था।"

 

जैसे ही वे होम-स्टे के मेन गेट पर पहुंचे, दोनों के दिलों में एक अजीब सा डर बैठ गया। मेन गेट के ऊपर लगे उस बड़े लोहे के बोर्ड पर 'नौकुचियाताल होम-स्टे' लिखा हुआ था, और गेट की तरफ बढ़ते ही जैसे पूरी जगह और भी डरावनी लगने लगी।

 

निहारिका : "ये वही जगह है न? कुछ अजीब सा क्यों लग रहा है?"

 

निहारिका के चेहरे पर हल्का सा डर छा गया था, लेकिन निशांत ने उसे शांत करने की कोशिश की।

 

निशांत: "हम यहाँ आए हैं तो पहले अंदर चलते हैं। हो सकता है ये जगह सच में जितनी खूबसूरत है, उतनी ही सुकून देने वाली हो।"

 

होम-स्टे का एरिया बेहद खूबसूरत था, और चारों तरफ फैली हरी-भरी वादियों की सुंदरता किसी जन्नत से कम नहीं लग रही थी। ऊपर आसमान में हल्के बादल थे, और दूर-दूर तक पहाड़ियों के बीच ये विला बिलकुल अमेजिंग  लग रहा था।

निशांत और निहारिका के मन में अभी भी वो बातें घूम रही थीं, जो उन्होंने इस जगह के बारे में सुनी थीं। उनके कदम धीरे-धीरे विला की ओर बढ़ रहे थे, और मन में सवाल था – क्या सच में ये जगह इतनी खौफनाक हो सकती है?

जैसे ही वे विला के अंदर दाखिल हुए, उनका पहला कदम उस पुराने विला की ठंडी फर्श पर पड़ा। सामने विशाल हॉल, ऊंची छतें, और दीवारों पर बनी पेंटिंग्स ने उस विला की खूबसूरती को और भी बढ़ा दिया था।

 

निशांत : "वाओ! देखो निहारिका, ये विला कितना खूबसूरत है!  

 

निशांत और निहारिका एक-दूसरे की ओर देख रहे थे। वे सोच रहे थे कि क्या ये वही जगह थी जिसके बारे में उन्होंने सुना था? लेकिन यहाँ तो ऐसा कुछ भी लग रहा, जिससे इस जगह के भूतिया होने का अहसास हो. अभी वे दोनों बात कर ही रहे थे कि अचानक से अजय ठाकुर, हंसते हुए उनके सामने आ गया।  

अजय : आपका स्वागत है! उम्मीद है कि आप यहाँ आकर खुश हैं।

 

निशांत और निहारिका ने पलट कर देखा तो उनके सामने वहीं अजय ठाकुर खड़ा था, जिसकी दास्ताँ अभी वे लोग सुनते-सुनते आए थे लेकिन उनको अजय में ऐसा कुछ भी अजीब नहीं लगा। अजय की नजरों में एक अजीब सी मस्ती थी, जैसे उसे किसी का इंतजार था और वह इंतजार अब खत्म हो चुका हो। तभी अचानक निशांत को गुलाब के बगीचे के बारे में का याद आया। उसने अजय से पूछा,  

 

निशांत : "दरअसल, हम उस गुलाब के बगीचे के बारे में सुनकर आए थे। यहां तो ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा। वो बगीचा... अब कहां है?"

 

अजय अचानक थोड़ा चौंका, उसकी मुस्कान एक पल के लिए रुक गई। जैसे किसी ने उसका कोई राज़ पकड़ लिया हो, फिर वह जल्दी से अपने आप को संभालते हुए बोला...

 

अजय : "वो... वो बगीचा अब नहीं है। सूख गया था... लेकिन मैंने पीछे एक और बगीचा लगा लिया है। आप चाहें तो घूमने जा सकते हैं। आप लोग थक गए होंगे, चलिए मैं आपको आपका रूम दिखा देता हूँ.  

अजय के कहने पर वे अपने कमरे में चले गए। विला का इंटीरियर देखकर वे दोनों हैरान थे। कमरा इतना आलीशान था कि वहाँ का सुकून देखकर उनके मन से बचा हुआ डर भी चला गया। उनके कमरें का इंटीरियर किसी लग्ज़री होटल जैसा था, जिसकी विंडो से गुनगुनी धूप आ रही थी. निशांत ने खिड़की पर जाकर देखा तो सामने हर तरफ़ ख़ूबसूरत वादियां ही वादियां नज़र आ रही थी. वो ख़ुश होकर अभी बेड पर लेटा ही था कि अचानक उठ कर बैठ गया।  

उसे अचानक इंस्पेक्टर राजवीर की कहीं एक बात याद आईं। उसने जल्दी से बिस्तर से उठते हुए कहा...

निशांत : "राजवीर ने कहा था कि यहाँ से अन्नू का सुसाइड नोट मिला था... मुझे अजय से ये पूछना होगा।"

 

निशांत सीधे नीचे गया और अजय से सुसाइड नोट के बारे में पूछा।

 

निशांत: "अजय, क्या यहां आर्यन और अन्नू नाम के लोग कभी रुके थे? उनका सुसाइड नोट यहां से मिला था न?"

 

अजय का चेहरा एकदम सफेद हो गया। उसकी आँखों में हल्की सी घबराहट साफ दिख रही थी। उसने एक पल के लिए कुछ सोचा, फिर तुरंत बोला...

 

अजय : आर्यन और अन्नू? यहां तो कभी कोई ऐसे नाम से नहीं आया।

 

निशांत के मन में हलचल मच गई। उसने अजय से गेस्ट रजिस्टर मांगा। अजय ने रजिस्टर लाकर उसके हाथ में दे दिया। निशांत ने रजिस्टर को ध्यान से देखा, लेकिन उसमें आर्यन, अन्नू या अंकित और श्रुति के नाम का कोई ज़िक्र नहीं था।

 

निशांत: ये... ये कैसे हो सकता है? यहां उन लोगों के नाम क्यों नहीं हैं?

 

निशांत के हाथ कांपने लगे, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब क्या हो रहा है। जो लोग इस जगह से गायब हुए थे, उनका नाम रजिस्टर में क्यों नहीं था? उसने अजय को देखा, अजय उसकी तरफ़ हैरानी से देख रहा था। निशांत ने अजय से फिर पूछा,

निशांत: ऐसा कैसे हो सकता है? यहाँ इंस्पेक्टर राजवीर इन्वेस्टीगेशन करने आये थे न?

अजय पहले तो थोड़ा कन्फ्यूज़ हुआ और फिर हँसते बोला,  

 

अजय - सर आपको कोई कनफ़्यूजन हुआ है शायद, ये एक रेप्यूटेड होम-स्टे है, यहाँ सुसाइड, इन्वेस्टीगेशन जैसा कुछ नहीं हुआ।  

 

अजय की बात सुनकर निशांत शॉक्ड रह गया। उसने राजवीर को कॉल करने के लिए अपना मोबाइल निकाला, लेकिन उसने कोई नेटवर्क नहीं था. निशांत कभी अजय को देख रहा था, तो कभी विला को.  

क्या निशांत सुलझा पायेगा आर्यन की मौत का राज़ या फिर ख़ुद भी बन जायेगा यहाँ अगला शिकार? जानने के लिए पढ़ते रहिए।  

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