निशांत, देवसिंह से उस भूतिया विला की कहानी जानना चाहता था। देवसिंह ने एक गहरी सांस ली, मानो वो किसी भयानक सच को फिर से जीने जा रहा हो। उसकी आंखों में डर साफ दिख रहा था, और उसने कांपते हुए अजय ठाकुर और उस भूतिया विला की कहानी बताना शुरू की,

"अजय ठाकुर नाम था उसका... कहाँ जाता है कि उसकी वाइफ बेहद खूबसूरत थी और वो अपनी वाइफ से बेइंतहा मुहब्बत करता था. इतनी कि उसकी वाइफ पर किसी मनचले लड़के की नज़र न पड़े और वो सुकून से रहे, तो उसने अपनी वाइफ के लिए नौकुचियाताल से दूर खूबसूरत वादियों के बीच में एक आलीशान विला बनवाया और उसमें गुलाबों का एक खूबसूरत बगीचा लगाया, जहां वे दोनों घंटों तक सबकी नज़रो से एक-दूसरे के प्यार में डूबे रहे।  

 

देवसिंह अचानक चुप हो गया जैसे कुछ सोच रहा हो। निशांत और निहारिका उसके चेहरे की तरफ़ देखने लगे लेकिन वो चुप ही रहा. आख़िर निशांत को चुप्पी तोड़ते हुए उससे पूछना पड़ा,

 

निशांत - फिर? फिर क्या हुआ?  

देवसिंह ने अपनी आंखें बड़ी करते हुए धीमे से कहा, “फिर, फिर वहीं हुआ जैसा अक्सर होता आया है, दोनों की लव स्टोरी के बीच में कोई तीसरा आ गया और फिर हुआ मौत का खेल शुरू, लेकिन इसमें गलती अजय की ही थी....

 

निहारिका- कैसी गलती?

 

देवसिंह अब थोड़ा खुल गया था, उसने अपना एक हाथ निशांत की ड्राइवर सीट पर रखा और एक्साइटेड होकर बोला,  “दरअसल इंसान को अगर स्वर्ग में भी रहने को मिल जाए तो, वो वहां भी थोड़े दिनों में बोर हो जाता है, और यहीं उसकी वाइफ के साथ हुआ।  

उसकी वाइफ उस सुनसान जग़ह पर अकेली और तन्हा महसूस करने लगी और वो शांत जग़ह उसे वीरान लगने लगी थी. वो अक्सर अजय से कहती, ये तन्हाई किसी दिन मेरी जान ले बैठेगी, मुझे लोगों के बीच रहना है, लेकिन अजय उसकी बात को अक्सर मज़ाक में उड़ा देता।  

एक दिन अजय ने उसको अपने घर में काम करने वाले नौकर की बाहों में देख लिया। अजय अपनी वाइफ की बेवफ़ाई सहन नहीं कर पाया। उसकी नसों का ख़ून उबलने लगा और उसने उसकी वाइफ को तड़पा-तड़पा कर मार डाला।  

लोग ऐसा कहते है कि उसकी वाइफ ज़ोर-ज़ोर से चीख़ती  रही, उससे माफ़ी मांगती रही लेकिन अजय ने उसको माफ नहीं किया। अजय के सर पर जैसे खून सवार हो गया हो। वो उसकी वाइफ को तब-तक बेदर्दी से मारता रहा -मारता रहा, जब तक की उसकी आख़िरी साँस नहीं उखड़ गयी।  

देवसिंह चुप हो गया। निशांत और निहारिका की सांसे इतनी बढ़ चुकी थी कि कार के   सन्नाटे में उनकी सांसे देवसिंह को साफ़ सुनाई दे रही थी. निशांत थोड़ा सीरियस हो गया था। उसने अपनी कार रोकी और देवसिंह से पूछा,  

निशांत - और उसके नौकर का क्या हुआ ? उसको भी तो मार दिया होगा न?

 

देवसिंह ने जवाब देते हुए कहा - नहीं, अजय जैसे ही उसकी वाइफ के पीछे दौड़ा, उसके नौकर को भागने का मौका मिल गया और वो कही जाकर छुप गया लेकिन उसके छुपने का कोई मतलब नहीं हुआ।  

 

निशांत - अजय ने उसको भी ढूंढ लिया होगा?

 

देवसिंह, निशांत के बार-बार बीच में बोलने से परेशान हो गया। उसने फ्रस्ट्रैट होकर निशांत से कहा,

देवसिंह ने गुस्से से कहा  - मुझे बोलने देंगे?

निशांत झेप गया। उसने सॉरी कहा तो देवसिंह ने अपनी बात कंटिन्यू रखते हुए कहा, “अजय अपनी बीबी को राक्षसों की तरह मारता रहा और उसका नौकर छुप कर देखता रहा।  

अजय को फिर भी सुकून नहीं मिला और उसने अपनी ही बीबी के टुकड़े-टुकड़े किये और उसी गुलाब की बगिया में गाड़ दिए. उसका नौकर इतना ख़ौफ़नाक मंज़र देखकर सिहर उठा था, वो उस टाइम तो वहां से भाग निकला और उसने अजय की हैवानियत नौकुचियाताल आकर सबको बताई भी लेकिन किसी ने उसकी बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।  

उसका नौकर इस सदमे को ज़्यादा दिन तक झेल नहीं पाया और हमेशा के लिए पागल हो गया।  

देवसिंह, निशांत और निहारिका को अजय की दास्ताँ सुना रहा था। निशांत को देवसिंह की बातें थोड़ी फ़िल्मी लग रही थी लेकिन निहारिका के पूरे शरीर में सिहरन होने लगी और हाथों के रूहें खड़े हो गए। निहारिका को डर तो लग रहा था लेकिन वो अब अजय की आगे की पूरी स्टोरी जानना चाहती थी, इसलिए उसने देवसिंह से पूछा।  

निहारिका - और अजय, उसका क्या हुआ? उसको तो पुलिस ने पकड़ लिया होगा न?

 

देवसिंह ने हंसते हुए कहा - पुलिस? उस समय पुलिस इतनी एक्टिव ही कहां रहती थी जो वहां पहाड़ों पर जाती। और उस वीरान जग़ह पर किसी ने कुछ देखा ही नहीं था, तो पुलिस को कौन इन्फॉर्म करता?

 

निहारिका- अरे! अभी तो अपने कहा कि उसके नौकर ने देखा था, फिर उसने पुलिस को क्यों नहीं बताया?  

 

देवसिंह ने झल्लाते हुए कहा - आप लोग तो मुझसे इस तरह सवाल पर सवाल पूछ रहे हो, जैसे मैं वहीं पर खड़ा था। भलां कोई पुलिस के पास जाकर अपनी इज्ज़त क्यों ख़राब करेगा? उसके नौकर ने उसके 20-22 साल के दोस्तों को सच बताया होगा और उसके पागल होने के बाद उसके दोस्तों ने दूसरे लोगों को शुरू किया और फिर जब बात निकलती है तो दूर तक फैलने में देर कहां लगती।

 

निहारिका - तो फिर अजय का क्या हुआ?

देवसिंह ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा - अजय ठाकुर के बारे में न जानों तो वो ही तुम लोगों के लिए अच्छा है, ईश्वर ऐसा किसी के साथ न करे, जैसा अजय ठाकुर के साथ हुआ था, बड़ी भयानक और दर्दनाक सज़ा मिली थी उसे. इस सुनसान जग़ह पर उसकी बात न करो, यहीं हमारे लिए अच्छा होगा।  

देवसिंह अजय के बारे में बताने से थोड़ा झिझक रहा था। ठंड में भी उसके माथे पर पसीने की बूँदें चमकने लगी थी, लेकिन निशांत और निहारिका के बार-बार पूछने पर उसने आगे बोलना शुरू किया,

उस बगीचे में कभी खुशी और मोहब्बत की खुशबू फैली रहती थी, लेकिन उसकी पत्नी की बेवफ़ाई और उसको दर्दनाक मौत देने के बाद अजय उसके सदमें को झेल नहीं पाया। वो पागलों की तरह उसी गुलाब के बगीचें में बैठा रहता और अजीब - अजीब हरकतें करने लगा. अजय को ऐसा लगने लगा जैसे उसकी बीवी की आत्मा हर जगह उसका पीछा कर रही हो। कभी वो उसे अपने कमरे के शीशे में दिखती, कभी बगीचे में चलते हुए। अजय की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही थी और उसका पागलपन वक्त के साथ और बढ़ता गया। अजय धीरे-धीरे बहुत कमज़ोर हो चुका था।  

मैंने तो ये भी सुना है कि उस बगीचें में अजय की पत्नी की आत्मा भटकती थी, और अक्सर उसके चीखने-चिल्लानें की आवाजें सुनाई देती थी। अचानक गुलाबों की पंखुड़ियाँ खून से लाल हो जाती और उनसे ख़ून टपकने लगता था.  

अक्सर अजय के शरीर में उसकी पत्नी की आत्मा समां जाती और उससे अपनी मौत का बदला लेने के लिए उसे घंटों तक तड़पाती और अजय उसी तरह चीख़ता, जैसे उसकी पत्नी चीख़ती-चिल्लाती थी. वो अक्सर अजय से कहती थी, “एक काली रात को मैं भी तुझें तड़पा-तड़पा के मारुंगी और तू कुछ नहीं कर पायेगा (laugh).  

एक रात ऐसा ही हुआ,  

अजय गुलाब के बगीचे में शाम के समय बेसुध पड़ा था. उसको पता ही नहीं था आज अमावस्या है. काली रात और गहराती जा रही थी. धीरे-धीरे अजय के सर पे काले बादल मंडराने लगे और साये - साये की आवाजें आने लगी लेकिन अजय नहीं उठा. गुलाब की पत्तियों में ख़ून उतरने लगा और उन्होंने अजय को हर तरफ़ से जकड़ना शुरू कर दिया।  

अचानक, अजय ज़ोर से चीखा। ग़ुलाब की पत्तियां उसके शरीर में घुसकर उनका ख़ून पी रही थी, अजय दर्द के मारें बुरी तरह चीख़ रहा था लेकिन वो हिल भी नहीं पा रहा था. तभी अचानक अजय को ऐसा लगा, एक हाथ उसके गले की तरफ़ बड़ रहा है, अजय कुछ समझ पाता उससे पहले ही उसके गले में कसावट शुरू हो गयी.  

अजय बूरी तरह तड़पता रहा, झटपटाता रहा लेकिन उसके गले की कसावट धीरे-धीरे और बढ़ती जा रही थी. और अचानक  

“मैंने तुझसे बोला था न काली रात को तेरी आख़िरी रात होगी, मैं तुझे आज तड़पा-तड़पा के मार डालूंगी और तू कुछ नहीं कर पायेगा।  

वो आवाज़ उसकी पत्नी की थी. अजय बेहोशी की हालत में भी बुरी तरह सिहर उठा था. उसको उसकी मौत सामने दिखने लगी थी. धीरे-धीरे पत्तियों ने उसका सारा ख़ून चूस लिया। एक तेज़ और आख़िरी चीख़ के साथ अजय की आत्मा उसी बगीचे  में समां गयी और उसका शरीर गुलाबों में।  

बस उसके बाद से ही वो विला बगीचा एक श्रापित जगह बन गया। जो भी वहां जाता, उसे चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें सुनाई देने लगतीं और उसके बाद उनकी रहस्य्मयी तरीके से मौत हो जाती। कुछ लोग तो ये भी कहते हैं कि उन्होंने उस विला के आसपास एक औरत को सफेद साड़ी में घूमते हुए देखा है, और उसके पीछे अजय की आत्मा थी, जो अब गुलाबों में बस गई थी।"

देवसिंह अजय और उसकी पत्नी की मौत की दास्ताँ सुनाकर चुप हो गया। कार के अंदर अजीब सी ख़ामोशी छा गयी थी. निशांत एकदम चुप था लेकिन उसको देवसिंह की स्टोरी एक सुनी-सुनाई रयूमर लग रही थी लेकिन निहारिका की आंखों में अब डर का साया साफ झलक रहा था। देवसिंह ने उनकी ओर देखा, जैसे वह उन्हें इस श्रापित बगीचे की सच्चाई से बचाना चाहता हो।  

देवसिंह ने अपनी डरी हुई आवाज़ में उन्हें सलाह दी - "तुम लोग उस होम-स्टे में मत जाओ... जो भी वहां गया है, वापस जिंदा नहीं लौटा। मेरी बात मानों और तुम भी वापस चले जाओ, वरना अंजाम वही होगा जो बाकियों का हुआ।"

अजय की ख़ौफ़नाक दास्ताँ सुनकर निशांत ज़ोर से क्यों हँस पड़ा था? क्या थी इसके पीछे की सच्चाई? जानने के लिए पढ़ते रहिए।  

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