निशांत और निहारिका की कार उत्तराखंड के घुमावदार और सुनसान रास्तों पर तेजी से बढ़ रही थी। सर्दी की ठंडी हवा से तो कार का हीटर चलाकर बचा जा सकता था लेकिन बाहर कोहरा इतना था कि निशांत की कार की पिली लाइट भी उस कोहरे को काट नहीं पा रही थी, इसलिए निशांत ने कार की स्पीड कम ही कर रखी थी.
निशांत की कार धीरे-धीरे दिल्ली राज्य की सीमा पार करके अब उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों के बीच से गुज़र रही थी। निहारिका की आंखें कोहरे में लिपटी उन पहाड़ियों की खूबसूरती देख तो रही थी लेकिन उसने पिछले कुछ दिनों से जो कुछ झेला था, उसका डर अभी तक उसके मन में बसा था और निशांत की कार जब भी घने पेड़ों से गुज़रती तो निहारिका उनकी परछाई देखकर भी डर जाती।
अब नौकुचियाताल मुश्किल से पचास किलोमीटर दूर ही रहा होगा। उत्तराखंड का मौसम कब बदल जाये, कुछ कहा नहीं जा सकता। वे लोग दिल्ली से चले थे तब बारिश के बिलकुल आसार नहीं थे, लेकिन यहां हल्की बूंदाबांदी शुरू हो चुकी थी।
अचानक…
निहारिका: "निशांत .........
निहारिका की चीख ने जैसे निशांत की धड़कनें तेज़ कर दीं। उसकी चीख के साथ ही निशांत ने तुरंत ब्रेक पर पैर मारा, लेकिन इससे पहले कि कुछ समझ पाता, कार एक ज़ोरदार आवाज़ के साथ किसी चीज़ से टकरा गई।
निशांत घबराकर बाहर देख रहा था, और निहारिका बगल में सहमी हुई बैठी थी। उसने चारों ओर देखा, लेकिन सिवाय घने अंधेरे और सड़कों पर पसरी धुंध के, कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। निहारिका का चेहरा पूरी तरह सफेद हो चुका था, जैसे उसने किसी भयानक चीज़ को देख लिया हो।
निशांत : "निहारिका, क्या हुआ? तुम इतनी जोर से क्यों चीखी?"
निहारिका की आंखों में अब भी वही खौफ था, लेकिन उसके शब्द गले में अटक गए थे। उसने कांपते हुए इशारा किया, लेकिन कुछ कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
निहारिका: निशांत… मुझे लगा, हमने… किसी को टक्कर मारी है…
निशांत के मन में डर की एक लहर दौड़ गई। उसने तुरंत कार से बाहर निकलकर देखा, एक जंगली जानवर घने कोहरे की वजह से निशांत की कार से टकराकर रोड पर दूर जाकर गिरा और तुरंत उठ खड़ा हुआ.
कार की पीली लाइट में उसकी आंखे चमक उठी. वो अपनी लाल डरावनी आँखों से कुछ देर तो निशांत को ऐसे देखता रहा, जैसे साक्षात् यमराज खड़े हो और थोड़ी देर बाद वो कोहरे में कहीं गायब हो गया. उसकी लाल आंखे देखकर निशांत के पूरे शरीर ने सिहरन दौड़ गयी थी. निशांत वापस कार में आकर बैठ गया. उसके दिल की धड़कने इतनी तेज़ चल रही थी कि, वे कार के सन्नाटे को चीरते हुए निहारिका के कानों में पड़ थी. निहारिका ने उससे पूछा,
निहारिका - क्या हुआ निशांत? एक जानवर को देखकर इतना क्यों डर गए?
निशांत - ऐसे अचानक लाल आंखे देखकर डर तो लगता है न निहारिका?
निशांत की बात सुनकर निहारिका थोड़ी शांत हुई, लेकिन उसकी आंखों में अभी भी अजीब सा डर था। निशांत ने गाड़ी फिर से चलानी शुरू कर दी, लेकिन अब उनकी गाड़ी बहुत कम स्पीड से आगे बढ़ रही थी। निशांत के दिल में भी हल्का सा डर समा चुका था, लेकिन वह खुद को शांत रखने की पूरी कोशिश कर रहा था।
निशांत को एक साइन बोर्ड दिखा, जिस पर लिखा था “नौकुचियाताल पंद्रह किलोमीटर”
निशांत - “बस अब हम नौकुचियाताल पहुंचने ही वाले है निहारिका।”
निशांत ने साइन बोर्ड दिखाते हुए कहा। धीरे-धीरे सूरज की किरणें निकलने के साथ ही कोहरा भी अब छंटने लगा था. सामने की सड़क थोड़ी साफ़ दिखाई देने लगी थी। निशांत ने कार की थोड़ी स्पीड बढ़ाई ही थी कि, उसको सामने से एक आदमी लिफ्ट मांगता हुआ दिखाई दिया। निशांत ने उसे नजरअंदाज करने की कोशिश की, लेकिन निहारिका की नजर उस पर पड़ चुकी थी।
निहारिका: "निशांत, उसे लिफ्ट दे दो। इतनी ठंड में अकेला खड़ा है बेचारा।
निशांत को लिफ्ट देने में थोड़ी झिझक हो रही थी, लेकिन निहारिका के बार-बार कहने पर उसने गाड़ी धीरे करते हुए उस आदमी के पास रोकी। निशांत ने खिड़की खोली और पूछा,
निशांत : आपको कहां जाना है?
उस आदमी के चेहरे की थकावट बता रही थी कि वो काफी टाइम से पैदल चल रहा था। उसने धीरे से जवाब दिया, "मैं नौकुचियाताल के पास जा रहा हूं। अगर आप वहां तक छोड़ दें, तो बड़ी मेहरबानी होगी।"
निशांत उसे लिफ्ट देने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था, लेकिन निहारिका की वजह से उसने उसे कार में बैठा लिया और उससे बातचीत करने लगा.
निशांत (नॉर्मल): "क्या नाम है आपका?
“जी देवसिंह” उसने ठिठुरते हुए जवाब दिया। निशांत ने हीटर की स्पीड़ बढ़ाई और उससे पूछा, “आप यहां कर क्या रहे थे इतनी सुबह-सुबह?" "मैं बस गांव से लौट रहा था… लेकिन बारिश की वजह से फंस गया। वैसे आप लोग कहां जा रहे हैं?" देवसिंह ने थोड़ा रिलैक्स होते हुए कहा.
निशांत की कार घुमावदार रास्तों से होकर नौकुचियाताल के रास्तें पर आगे बढ़ रही थी, और इधर निशांत और देवसिंह की बातों का सिलसिला। “आप दिल्ली से नौकुचियाताल घूमने जा रहे होंगे शायद?” देवसिंह ने निशांत और निहारिका को देखकर अंदाज़ा लगाकर पूछा।
निशांत - हां......बस यहीं समझ लीजिये।
कार में थोड़ी देर ख़ामोशी रही। निशांत ने अपना मोबाइल निकाला और उस होम-स्टे का फ़ोटो, देवसिंह को दिखाकर कहा, “हम इस होम-स्टे में रुकने वाले है।”
जैसे ही निशांत ने होम-स्टे का फ़ोटो देवसिंह को दिखाया, उसके चेहरे का रंग उड़ गया। उनकी आंखों में अजीब सा खौफ दिखने लगा था। वो कभी निशांत और निहारिका को देखता और कभी उस होम-स्टे का फ़ोटो। अचानक देवसिंह चिल्लाया, "रुको! रुको….गाड़ी, रोको! मुझे यहीं उतार दो।"
निशांत समझ नहीं पाया, अचानक देवसिंह को क्या हो गया. उसने चौंकते हुए गाड़ी रोकी और उससे पूछा,
निशांत: “क्या हुआ? "आप अचानक क्यों उतरना चाहते हैं?”
देव सिंह कांपते हुए निशांत की ओर देख रहा था। उसकी आंखों में डर साफ झलक रहा था। उसने कांपते हुए कहा, "तुम लोगों के साथ मुझे नहीं मरना। आप जिस होम-स्टे की बात कर रहे हो… उस जगह का नाम भी यहां कोई नहीं लेता। वो कोई होम-स्टे नहीं, एक भूतिया जगह है भूतिया। आपको पता भी है….वहां आजतक जो भी गया है, वापस ज़िंदा नहीं लौटा। न बाबा तुम्हें मरने का शौक होगा, मुझे नहीं है।
देवसिंह बहुत डरा हुआ था। वो हड़बड़ाकर कार से निचे उतरा और कुछ बड़बड़ाते हुए पैदल चलने लगा. उसने उस होम-स्टे के बारे में जो बताया उसे सुनकर निशांत और निहारिका की आंखें चौड़ी हो गईं थी. उनका चेहरा सफेद पड़ चुका था।
निशांत की कार अभी भी वही खड़ी थी और निशांत पुतले की तरह बैठा-बैठा देवसिंह को जाते हुए देख रहा था। थोड़ी देर तक दोनों में से कोई भी नहीं बोला, लेकिन किसी को तो बोलना ही था, इसलिए निहारिका ने सन्नाटा तोड़ते हुए कहा,
निहारिका- निशांत वो सही बोल रहा था, वो जग़ह…. वो जग़ह श्रापित है तभी तो वहां से न आर्यन-अनु वापिस लौटे और न ही अंकित-श्रुति। वो हमें भी मार डालेगा निशांत।
निशांत- मैंने तुमसे आने के लिए पहले ही मना किया था न निहारिका। अगर है तो वो राजवीर और उसके आदमी कैसे वापस आ गए उस होम-स्टे से। और अगर वो होम-स्टे, बुकिंग वेबसाइट पर डला है तो किसी ने तो डाला होगा न उसको वहां। ये गांव वाले किसी भी जगह को भूतिया बता देते है निहारिका, कहाँ तुम भी इसकी बातों में आ रही हो।
निशांत को थोड़ा ग़ुस्सा आ गया और उसने गाड़ी आगे बढ़ाकर देवसिंह के पास रोकी। देवसिंह कार देखकर ओर तेज़ चलने लगा था। निशांत ने थोड़ी तेज़ आवाज़ में कहां,
निशांत- ठीक है, अगर हमारे साथ नहीं जाना हो तो मत जाओ लेकिन उस होम-स्टे में क्या हुआ था, ये तो बता दो।
देवसिंह नहीं रुका। वो उस भूतिया जग़ह के बारे में उस सुनसान जग़ह पर बात करने से भी डर रहा था। निशांत ने फिर से कहा,
निशांत: "तुम्हें कैसे पता? क्या तुम वहां कभी गए हो?"
देवसिंह चलते-चलते अचानक रुका और कांपते हुए निशांत की ओर देखा। अब देवसिंह को निशांत पर थोड़ा ग़ुस्सा आने लगा। वो बार-बार पहाड़ियों की तरफ़ देख रहा था।
अचानक उसने ग़ुस्से में निशांत से कहा, "नहीं, मैंने खुद वहां कदम नहीं रखा, लेकिन वहां के बारे में जो सुना है, वो देखने से भी ज़्यादा भयानक है। तुमको अगर अपनी जान प्यारी हो तो यहीं से वापस लोट जाओ, वरना बेमौत मारें जाओगे।
क्या देवसिंह बता पायेगा अजय और उसके होम-स्टे का ख़ौफ़नाक सच? क्या वो रोक पायेगा निशांत और निहारिका को वहां जाने से ? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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