डिसक्लेमर : "यह केस वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है, लेकिन इसमें प्रस्तुत सभी पात्र और घटनाएं पूरी तरह से काल्पनिक हैं. किसी भी वास्तविक व्यक्ति, स्थान, या घटना से कोई समानता मात्र एक संयोग है."
सुबह की पहली किरण धनबाद के, कोयले से ढ़के आसमान को मुश्किल से छू पाईं. लेकिन आज की सुबह अलग थी. फ़ैंटम नाम का डर तो पूरे खान में पहले ही फैल रखा था. इस बार फिर से कुछ ऐसा हुआ , जिससे लोगों का शक यकीन में बदल गया. खान के गेट के बाहर मजदूरों की भीड़ जमा थी. अफवाह फैल रही थीं की दूसरा हादसा भी हो गया है. और इस बार दो और मजदूरों की मौत हो चुकी है.
चारों ओर डर और खौफ का माहौल था. लोग एक-दूसरे की आंखों में सवाल देख रहे थे. ख़बर सुनते ही वहां माधव सिंह भी पहुँच गया था. अब खान के अन्दर तो मज़दूर ही जाते थे. रात गए वहां क्या होता है, लोग कैसे मर जाते है, ये मज़दूरों के अलावा और कौन बता सकता था. मज़दूर सिर्फ़ एक ही बात कह रहे थे.
खान के नीचे कोई साया है. जो नीचे काम कर रहे लोगों को मार रहा है. इन हादसों का सिलसिला कब रुकेगा कोई नहीं जानता था. कोयले की खानें, जो कभी रोज़ी-रोटी का साधन थीं, अब मौत का घर बनती जा रही थीं. मजदूरों के चेहरों पर थकान नहीं, अब सिर्फ डर और बेचैनी झलक रही थी.
रात भर मजदूरों के परिवार वाले खान के पास बैठ कर रोते रहे. चीख-पुकार की आवाज़ ने रात और डरावनी कर दी थी. खान से दो और लाशें निकाल ली गई. उनकी लाशों को देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे किसी ने इनके शरीर को फाड़ कर कोयला भर दिया हो. माइनिंग कम्यूनिटी के मन में भी ये डर हो गया था की कहीं ये अफ़वाह सच्ची न निकल जाये. धनबाद के लोकल नेता भी माइनिंग वालों से सवाल पूछ रहे थे.
एक बार फिर, मज़दूरों ने दावा किया था कि उन्होंने “फ़ैंटम ” को देखा था. वह अंधेरे में किसी साए की तरह फिसलता हुआ दिखा था. उसकी आंखें, जो आग की तरह जलती थीं, सबको बर्बादी की दहशत में डाल रही थी.
रमेश यादव एक युवा मज़दूर था. जो इसी खान में काम किया करता था. मरनें वाले दो लोग इसी के ख़ास दोस्त थे. रमेश भीड़ के बीच में खान के सामनें खड़े होकर, माधव और माइनिंग कम्यूनिटी के लोगों के सामने गुस्से से बोल रहा था... "मैं नहीं जा रहा वापस वहां. मेरे दो दोस्त मारे गए, और अब वह फैंटम सबको मार डालेगा”
रमेश, जिसने हादसे में अपने दो करीबी दोस्तों को खो दिया था, अब खान में वापस लौटने से साफ इनकार कर रहा था. उसकी बातों में खौफ था, गुस्सा था, और एक ऐसा दर्द जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल था. रमेश अब और इंतजार नहीं कर सकता था. उसे यकीन था कि अगली बार वह या उसके जैसे और लोग मारे जाएंगे.
खान के बाहर भीड़ और घनी होती जा रही थी. लोगों का गुस्सा उफान पर था. मजदूरों के परिवार और स्थानीय नेता कंपनी को दोषी ठहरा रहे थे, पर अधिकारियों के पास वही पुराना जवाब था. “यह इंसानी गलती है, कोई साया या फैंटम नहीं. अपनी ग़लती को छुपाने के लिए तुमलोग कुछ भी बोल रहे हो” .
माधव सिंह से माहौल का फ़ायदा उठाया और अधिकारी के हां में हां ना मिला कर मज़दूरों की तरफ से बोलनें लगा और गुस्से से कहा...
माधव: "फिर से मज़दूरों के साथ धोका हो रहा है. उनकी पगार नहीं कटेगी. अब हम ये सहन नहीं करेंगे. दोबारा ऐसा हादसा कैसे हो सकता है?"
माधव सिंह, मजदूर यूनियन के लीडर, का गुस्सा इस बार और ज्यादा था. पर दूसरी तरफ, कुछ मजदूर अब भी उसी बात पर अड़े थे. उन्होंने फैंटम को देखा है. रमेश यादव भी खान की घटना को सुनते हुए रोने लगा और कहा..."मैंने देखा उसे, वो साया था, और उसकी आंखें... वो किसी की जान खींच लेने जैसी थी. ये हादसे ऐसे ही होते रहेंगे, तो हमारी जान का क्या होगा?"
जैसे-जैसे फैंटम की कहानियां खदानों में आग की तरह फैलने लगी, कंपनी पर दबाव बढ़ने लगा. मज़दूरों के बीच डर और घबराहट इतनी हद तक पहुँच गई थी कि, कई लोग काम पर लौटने से इनकार करने लगे थे. हर तरफ़ से सवाल उठने लगे. क्या ये वाकई कोई अलौकिक ताकत है, या फिर सिर्फ एक अफवाह? कंपनी के अधिकारी, जो अब तक हादसों को केवल एक मानवीय त्रुटि मानकर नजरअंदाज कर रहे थे, एटलास्ट झुकने पर मजबूर हो गए. काम ठप होने का डर और मजदूरों का गुस्सा बढ़ने लगा था.
कंपनी ने आख़िरकार एक बड़ा कदम उठाया. "पैरानॉर्मल इन्वेस्टिगेशन" के लिए की टीम बुलाई गई. इस टीम का नेतृत्व प्रोफेसर पटनायक कर रही थीं. जो एक जानी-मानी पैरानॉर्मल एक्सपर्ट थीं. इनका नाम सुनते ही लोग उनकी काबिलियत और जिज्ञासा के चर्चे करने लगते थे. उन्होंने अपने करियर में कई अनसुलझे रहस्यों की गुत्थियाँ सुलझाई हैं. लेकिन उनके लिए यह केस अलग था—यहाँ सिर्फ अफवाहें नहीं, बल्कि मज़दूरों की मौतें दांव पर लगी थीं.
पटनायक मैडम की पर्सनैलिटी जितनी मिस्टीरियस थी, उतनी ही इन्टरेस्टिंग भी थी. उनके चेहरे पर एक ठहराव था, पर उनकी बातों में जानने की चाहत हमेशा सुनाई देती थी. वह साइंस और प्रूफ में भरोसा करती थीं. लेकिन उन्होंने कई बार ऐसी घटनाओं का सामना किया था, जिन्हें विज्ञान से परे माना जाता था. उनके पास मॉडर्न टेक्नॉलजी के कैमरे, इंफ्रारेड सेंसर, और रिकॉर्डिंग डिवाइस, जो हर छोटी से छोटी अलौकिक गतिविधि को पकड़ सकते थे. इन उपकरणों से ज़्यादा, उन्हें अपनें अनुभव और अपनीं स्टडी पर भरोसा था.
जब पटनायक मैडम और उनकी टीम धनबाद पहुंची, तो उनके पास एक ही मकसद था. इस फैंटम की सच्चाई का पर्दाफाश करना. क्या यह वाकई कोई अलौकिक ताकत थी, या फिर मजदूरों के दिमाग में घर कर गया एक भ्रम?
पटनायक मैडम को जाँच के लिए रात का इंतज़ार करना था. खान के पास से सभी लोगों को दूर कर दिया गया था. मज़दूरों को ये समझ नहीं आ रहा था की, इन मशीनों से ये औरत क्या खोज निकलेगी? खान में घुसने से पहले पटनायक मैडम ने अपने डिवाइसेस सेट किए. अंधेरा और भी काला लगने लगा. हर आवाज़, हर कोने में एक अजीब सा डर पैदा कर रही थी. उन्होंने जहां मौत हुई थी, पूरे इलाके में कैमरे और माइक्रोफोन्स लगा दिए. हर मजदूर और अधिकारी अब एक ही बात का इंतजार कर रहा था. क्या सच में कुछ दिखेगा? या कंपनी ने उनकी आंखों में फिर से धुल झोंकने के लिए ये सब किया है.
जैसे ही पटनायक मैडम उस जगह पर जांच के लिए पहुंची, तुरंत उसके मशीन में कोई हलचल हुई. पटनायक मैडम ने कहा... "यहां कुछ है. मैं इसे महसूस कर सकती हूं"
पटनायक मैडम बिना सबूत के किसी चीज़ का दावा नहीं करती थी. उसे उम्मीद थी कि शायद आज उन्हें कुछ ऐसा देखने को मिलेगा , जो अब तक सिर्फ कहानियों में था.
रात का वक्त था. सारे कैमरे चालू थे, माइक्रोफोन्स हर हलचल को रिकॉर्ड कर रहे थे. खान के अंदर का अंधेरा और ख़ामोशी किसी अनजानी ताकत की मौजूदगी का एहसास करा रहे थे. मज़दूरों के चेहरे पर डर साफ झलक रहा था, और प्रोफेसर पटनायक की टीम के सदस्यों के चेहरों पर उत्सुकता थी.
अचानक से इक्विप्मेन्ट काम करना बंद कर देते है. पटनायक मैडम को इन सब चीजों का पहले भी बहुत अनुभव रहा है. वो जानती है की, इन सिचुऐशन में क्या किया जा सकता है. पटनायक मैडम को ये तो पता था की, यहाँ कुछ तो ऐसा है जो उन्हें यहाँ से जाने को कह रहा है. पटनायक मैडम ने टीम के किसी मेम्बर को कहा… “जाओ जाकर नई बैटरी ले आओ. लगता है यहाँ की एनर्जी को हमारी बैटरी की एनर्जी अच्छी लग रही है”
पटनायक मैडम जानती है की किसी हॉरर प्लेस में बैटरी का चला जाना बहुत आम है. नई बैटरी ने भी उनका ज़्यादा देर तक साथ नहीं दिया. पटनायक मैडम समझ गयी आज की रात इसे यहीं बंद करना पड़ेगा.
दुसरे दिन पटनायक मैडम ने सभी मज़दूरों के साथ एक मीटिंग बुलाई. कंपनी के सभी बड़े अधिकारी बैठे थे. पटनायक मैडम ने सभी से उनकी उनकी कहानी सुनने को कहा. वो चाहती थी की इस बार वो पूरी तैयारी से जाये. कोयले की चादर में सभी लोग बैठे थे. पटनायक मैडम ने एक एक से पूछना चालू किया … “अब आप लोग मुझे वो बताएँगे, जो आप लोगों ने देखा है”
एक एक करके लोग बताने लगे. पटनायक मैडम के लिए कुछ नया नहीं था. उसने सारी बातें सुन रही थी. कुछ लोग कह रहे थे कि ये सब आदिवासी आत्माओं का काम था. धनबाद की ये कोयला खदानें, जो कभी आदिवासियों की ज़मीन थी, अब उनकी नाराजगी का शिकार हो चुकी थी. लोग फैंटम को उन्हीं आत्माओं से जोड़ने लगे थे, जो आज भी इस जमीन पर अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रही थीं.
तभी एक मज़दूर ने बोला… "मैंने भी देखा उसे. धमाके से ठीक पहले… वो मेरे सामने खड़ा था. उसकी आंखें… जैसे आग की तरह जल रही थी. हां, वो प्रेत था.”
रात गहरी होती जा रही थी, और खान के अंदर का माहौल और भी ख़ौफ़नाक हो रहा था. मजदूरों के चेहरों पर डर था, और पटनायक मैडम की टीम उस फैंटम को अपने उपकरणों से पकड़ने की कोशिश कर रही थी. आज पटनायक मैडमकुछ मज़दूरों को अपने साथ खान में ले गयी थी. सभी मशीन्स चालू थी. मीटर रीडिंग दे रहा था.
अचानक, एक मजदूर डर से कांपने लगा. उसनें कहा… “वो वहां है”
अँधेरे की तरफ इशारा करते हुए उसने कहा.
मजदूर की बात सुनते ही सबके चेहरे पर सन्नाटा छा गया. क्या सच में यह वही फैंटम था? या फिर यह सिर्फ डर की एक छवि थी जो सबकी आंखों में बस गई थी?
रात और भी ख़ामोश हो गई थी. पटनायक मैडमऔर उनकी टीम अपने उपकरणों से कुछ और कैद करने की कोशिश कर ही रही थी तभी, एक और अजीब आवाज उनके रिकॉर्डर्स में कैद हो गई. इस बार, वह घंटी की आवाज साफ सुनाई दे गई थी. और तभी, कैमरे ने कुछ अजीब रिकॉर्ड किया. एक धुंधला साया, जो कुछ पलों के लिए नजर आया और फिर गायब हो गया. टीम के सभी लोग एक-दूसरे की ओर हैरानी से देख रहे थे. ऐसा लग रहा था कि कुछ बड़ा होने वाला है. पटनायक मैडम की आंखों की भूख जाग गई थी. जो किसी बड़े रहस्य की ओर इशारा कर रही थी. और फिर, कैमरे में एक हलचल दिखाई दी. तभी पटनायक मैडम ने चौकते हुए कहा… "यह आवाज़… ये कैमरे में क्या है? "
जैसे-जैसे समय बीतता गया, मजदूरों का डर और बढ़ता गया. खान के अंधेरे में अब सिर्फ कोयले की खुदाई की आवाज़ नहीं थी, बल्कि उन कहानियों की गूंज भी थी जो सदियों से इन खानों में दबी पड़ी थीं.
क्या ये वही फैंटम था, जिसके बारे में मजदूरों ने बताया था? या फिर ये सिर्फ एक वहम था? इन सवालों का जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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