डिसक्लेमर: "यह केस वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है, लेकिन इसमें प्रस्तुत सभी पात्र और घटनाएं पूरी तरह से काल्पनिक हैं। किसी भी वास्तविक व्यक्ति, स्थान, या घटना से कोई समानता मात्र एक संयोग है।"
धनबाद अपनी पक्की नींद में सो रहा था. रात का अंधेरा जैसे पूरा शहर निगल गया हो. शहर के चारों ओर सन्नाटा घूम रहा था. धनबाद अपनी कोल माइन्स से लिए विश्व प्रसिद्ध है. यूँ कहें की पूरे धनबाद को भी कोयले ने अपने रंग में रंग लिया है. शहर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी से ही, कोल माइन्स शुरू हो जाते हैं. मगर पूरे धनबाद की हवा के साथ अजीब सा कालापन उड़ता है. धनबाद के ग़रीब लोगों को यहाँ अच्छा रोज़गार मिल जाता है. कोल माइन में वर्कर का काम करके वो, अपना परिवार चला लेते है. एक माइन में हज़ारों की संख्या में लोग काम करते है. कोल माइन अपने आप में एक छोटा सा गांव होता है. रोज़ के आने जानें की झंझट से बचनें के कारण कोल माइन्स में भी लोग रहते है.
दूर से देखने पर माइन्स एक बड़ा सा काला पहाड़ जैसा दिखता था. वहां इतनी बड़ी बड़ी मशीन्स लगीं होतीं हैं, जिसको देख कर ही डर लगता है. उसी पहाड़ के नीचे हज़ारों की तादाद में मज़दूर खुदाई के लिए जाते थे. डबल शिफ्ट में काम चलनें के कारण, अभी भी वहां से काम करनें की आवाज़ गूंज रही थी. कोयले की गुफ़ा के बाहर एक दरवाज़ा बना था. लोग काम करनें उसके अन्दर जाते थे. गुफ़ा के बाहर एक डंडे से किसी बल्ब को लटका दिया गया था.
गुफ़ा के बाहर बिलकुल सन्नाटा था. दरवाज़े के बाहर एक पहरेदार सो रहा है. उसके सामनें रखी डायरी में वो आने जाने वाले मज़दूरों की हाजरी लिखता था. माहौल एकदम शांत था, बस कभी-कभी कोयले से लदी ट्रक की घरघराहट सुनाई देती थी. धनबाद के ख़ौफ़नाक कोयले की खानें उस रात और भी डरावनी लग रही थीं. ठंडी हवा की थपेड़ मानों किसी अदृश्य ताकत की उपस्थिति का संकेत दे रहे थे.
खान के अंदर से हल्की हल्की धम धम की आवाज़ आ रही थी. सब कुछ एकदम रोज़ के जैसा चल रहा था. अचानक एक जोरदार धमाका हुआ. मानों भूकंप आया हो. धमाके से वहां की पूरी धरती हिल गई थी. कोयले की काली धूल हवा में फैल गई. रात एकदम से और काली लगने लगी थी. जो मजदूर अंदर काम कर रहे थे. वो अपनी जान बचाने के लिए बेतहाशा भागते हुए बाहर निकलने लगे. चारों ओर चीख़ पुकार और अफरातफरी मच गयी. कोई चिल्ला रहा था, और कोई अपना सामान छोड़कर अंधेरे में भागता जा रहा था.
किसी भी मज़दूर को कुछ समझ नहीं आ रहा था की अचानक से ये क्या हो गया है. थोड़ी देर के बाद जब माहौल थोड़ा ठंडा हुआ, तो पहरेदार ने मज़दूरों की गिनती शुरू की. मज़दूरों के डर के भाग जाने के कारण, गिनती भी नहीं मिल पा रही थी. हिसाब से मज़दूर कम हो रहे थे. पहरेदार ने कुछ लोगों के साथ अंदर खान में जाकर ढूंढने का फैसला किया.
सर पर सेफ़्टी हेलमेट, हेलमेट में लगी छोटी छोटी लाइट्स और हाथ में एक एक डंडा. 4 लोग अंदर गए. बाहर इंतज़ार में खड़े मज़दूरों के जो अभी अभी अपनी जान हाँथ में लेकर भागे थे, चेहरे पर डर साफ़ दिख रहा था. सब चुप चाप खड़े थे. थोड़ी देर बाद जैसे ही अन्दर से पहरेडार उनकी लाशें लिए बाहर निकला, सामने खड़े मजदूरों के होश उड़ गए. सबके चेहरे पर एक ही सवाल था. यह हादसा था या कुछ और? उनकी रात और भी काली हो गयी थी.
सुबह सारे शहर तक बात धुंए के साथ फैल गयी. रात खान में एक बड़ा धमाका हुआ है. मगर वहां के लोगों के लिए ये रोज़ की सी बात थी. धमाके होना, लोगों का मरना, वहां इन सब बातों का कोई प्रभाव नहीं बचा था.
खान के मालिक ने सभी मज़दूरों को पूछताछ के लिए बुलाया. लोग डरे हुए थे. माधव सिंह जो इस मज़दूर यूनियन का लीडर था, वो भी वहीँ खड़ा था. देखने में बुढा, सफ़ेद बाल, गले में गमछा, भड़कते लाल रंग की पेंट, व्हाइट शर्ट और स्पोर्ट्स शू पहनें वो एकदम रंगीन रहता था. मज़दूरों की हालत उससे देखी नहीं जा रही थी. मज़दूरों के कान में रात का धमाके की गूंज अभी तक बैठी हुई थी.
वहां लगभग 100 मज़दूर खड़े थे. माधव नें एक ही बार में सबसे ज़ोर से पूछा...
माधव: “क्या हुआ था, कल रात? किसकी गलती थी”
मज़दूर सर झुकाए खड़े बस सुन रहे थे. वो लोग शायद उस बात को याद तक नहीं करना चाह रहे थे. माधव ने फिर से पूछा...
माधव: “बताओ...कौन था जो बीड़ी, सिगरेट अन्दर ले गया था”
तभी एक मज़दूर ने धीमी आवाज़ में बोलना चालू किया… “गलती किसी की नहीं थी बाबु, हम लोग तो काम कर रहे थे. अचानक बड़ा धमाका हुआ और सब वहां से भाग निकले” तीन लोगों की जान चली गई थी. कुछ अभी भी घायल हॉस्पिटल में थे. बाकी जो यहाँ खड़े थे, बुरी तरह डरे हुए थे. माधव बात को SERIOUS ले रहा था. मगर उसे लग रहा था की, मज़दूर काम चोरी की वजह से बहानें बना रहे है. उसनें थोडे ग़ुस्से में कहा...
माधव: “अगर सच नहीं बताया तो, मालिक इस महीनें की मज़दूरी काट लेंगे.”
माधव चालाक तो था ही, इसलिए तो आज नेता था. उसनें पैसे की बात करके मज़दूरों से सच सुनना चाहा. तभी भीड़ में से किसी मज़दूर की डरी हुई आवाज़ आई… “हमें भी काम नहीं करना इस खान में, नीचे हमारी जान को ख़तरा है” माधव ने समझाते हुए कहा...
माधव: “इतनें दिन ख़तरा नहीं था, अचानक क्या हो गया ऐसा?”
मज़दूर जैसे अचानक ठंड से कांपनें लगा. वो कांपते हुए बोला… “नीचे एक साया है, जिसकी ऑंखें चिंगारी की तरह चमक रहीं थी. वो सबको मार देगी”
साए की बात सुनते ही, भीड़ में एक हलचल मच गयी. हिम्मत करके कुछ और मज़दूरों ने भी इस घटना को सच बताया. वो लोग 3 मज़दूरों के मरनें का कारण उसी साए को मान रहे थे. माधव सिंह के लिए बात नई थी. हादसे से पहले कुछ मज़दूरों ने उसे देखा था. ये बात धीरे-धीरे पूरे धनबाद में फैल गई. एक काला साया, जो अंधेरे में घुल जाता है, लेकिन उसकी आंखें, जैसे आग की तरह जलती रहती है. अगले ही दिन धनबाद के पेपर की हेड्लाइन बनी. “कोयले की इन खानों में एक "फैंटम" घूम रहा है, और वो मौत की गवाही दे रहा है”
मीडिया के सभी लोगों की गाड़ी अचानक से खान की तरफ मुड़नें लगी थी. खान में अब मज़दूरों से ज़्यादा मीडिया के लोग पहुँच चुके थे. माधव नहीं जानता था की, बात इतनी फैल जाएगी. मीडिया खानों की तलाशी लेने लगी थी. उनके कमरे अब उस साये को देखना चाह रहे थे. तभी उनके हाथों वही मजदूर लग गया. जो उस हादसे से बच निकला था और जिसने साए को देखने की बात कही थी. चारों ओर से माइक ने उसे घेर लिया था. उसका इंटरव्यू लिया जा रहा था. मज़दूर डर तो रहा था. मगर उसने बोलने की हिम्मत जुटाई और बोलना चालू किया...
“मैंने देखा था उसे... वो साया. हम लोग आराम से काम कर रहे थे. मेरे सामनें 4 मज़दूर थे. चारों आपस में बात कर रहे थे. तभी मेरी आँखों से सामने से कुछ पार हुआ. काला धुंए जैसा. मगर उस साए की आंखें...वो चमक रही थीं. जैसे आग में जल रही हों. मैंने उसे देखा, किसी को कुछ बताता उससे पहले बड़ा धमाका हो गया. और सब कुछ... सब कुछ ख़त्म हो गया."
माधव सिंह, मजदूर यूनियन का नेता, इस फैंटम की अफवाहों को छुपाने की कोशिश कर रहा था. वह जानता था कि अगर ये डर बढ़ गया, तो मजदूर काम पर नहीं आएंगे, और खानें बंद हो जाएंगी. उसने तुरंत माइक को अपनी और खिंचा और झुंझलाते हुए कहा...
माधव: "ये सब बकवास है. कोई फैंटम-वैंटम नहीं होता. ये सब इनके मज़दूरी बढ़वानें के बहानें हैं.”
उसकी आवाज में जो हलचल थी, वो कुछ और ही बयां कर रही थी. कहीं ना कहीं उसके मन में भी इस बात का डर हो रहा था. इस साए की बात से जितने मुंह उतनी बातें होने लगीं थी. हादसे के बाद बचे मज़दूर डर के साए में जीने लगे. खानों के अंदर जाने से पहले अब सब एक-दूसरे से कहते, "फैंटम फिर से आ जाएगा, वो सबको मार देगा"
धनबाद की ये कोयला खदानें सदियों से अंधेरे और डर के किस्सों में लिपटी रही हैं. यहाँ हमेशा ऐसे ही लोग बेमौत मरते रहे हैं. और हर मौत अपने साथ एक क़िस्सा छोड़ जाती थी. कुछ लोग मानते हैं कि यहाँ पहले एक पूरा कोयले का पहाड़ गिर गया था. जिसके नीचे करीब 200 मज़दूरों की जान चली गयी थी. ये लोग वही हैं.
कुछ लोग और मीडिया इसको किसी पुराने सिरे से जोड़ते है. उनका कहना है की, बहुत समय पहले, धनबाद की पहाड़ियों और जंगलों में एक आदिवासी समुदाय बसता था. वे नेचर सेवियर थे, अपने जंगलों और ज़मीन से गहरा नाता रखते थे. उनकी मान्यता थी कि हर पेड़, पहाड़, और नदी में एक आत्मा वास करती है. लेकिन जब ब्रिटिश हुकूमत ने इस क्षेत्र में कोयले की खानें खोलने का फैसला किया, तो उनका जीवन बदल गया.
उन्हें उनकी पुश्तैनी ज़मीन से बेदखल कर दिया गया. आदिवासियों को जबरन वहां से हटाया गया. जब कई आदिवासियों ने विरोध करते हुए अपनी जान गवां दी, तब आख़री समय में, आदिवासी सरदार ने एक श्राप दिया "जिस धरती ने हमें पाला है, अब वह उन लोगों से बदला लेगी जिन्होंने इसे बर्बाद किया. हमारी आत्माएं यहां तब तक भटकेंगी जब तक इस अन्याय का बदला नहीं लिया जाता"
हर हादसे को आदिवासी आत्माओं की नाराज़गी का नतीजा माना जाता है. इस डर के चलते लोग फैंटम को उन आदिवासियों की भटकती हुई रूहों से जोड़ने लगे, जो अब भी इंसाफ का इंतज़ार कर रही हैं.
माधव कहीं दूर मज़दूरों के बीच में खड़ा होकर, सबको कुछ समझाने की कोशिश कर रहा था. वो नहीं चाहता था की, इन अफ़वाहों से चक्कर में मज़दूर काम बंद करें. तभी अचानक दौड़ता हुआ एक और मज़दूर सामने आता है. उसको देखकर माधव के साथ साथ सभी लोगों की हालत ख़राब हो जाती है. माधव फिर से कोई नए हादसे के होनें की बात सोच ही रहा था की उस मज़दूर ने कांपती आवाज़ में कहा...
"मैंने भी देखा उसे देखा था. धमाके से ठीक पहले... वो मेरे सामने खड़ा था. एक पल के लिए लगा जैसे उसकी आँखें मेरी जान खींच रही हों. मेरी लाख कोशिश के बाद भी, उसके सामनें में हिल भी नहीं पा रहा था. अचानक से मुझे बहुत गर्मी लगनें लगी थी. वो एकदम काला था, मगर उसके चेहरे में चमक थी. मानों गीला काजल. जैसे ही वो साया फटा, ज़ोरदार धमाका हुआ, और मैं गिर पड़ा. उसके बाद तो सब खत्म हो चुका था."
क्या ये सब बस एक डरावनी कहानी थी, या सच में कुछ अनदेखी ताकत उस रात वहाँ मौजूद थी? क्या वाकई कोई "फैंटम" है? या फिर ये सिर्फ उनकी आंखों का धोखा है? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए।
No reviews available for this chapter.