डिसक्लेमर: "यह केस वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है, लेकिन इसमें प्रस्तुत सभी पात्र और घटनाएँ पूरी तरह से काल्पनिक हैं। किसी भी वास्तविक व्यक्ति, स्थान, या घटना से कोई समानता मात्र एक संयोग है।"

बनारस की गलियों में इन दिनों अजीब-सा सन्नाटा पसरा हुआ था। ज़हर से हो मर्डर्स की कड़ी अब अपने लास्ट स्टेज में थी। इंस्पेक्टर हर्षवर्धन के पास अब समय कम था और हर पल कीमती था। एक गुमनाम कॉलर उसे लगातार धमकियाँ दे रहा था, लेकिन अब हर्षवर्धन रुकने वाला नहीं था। सच सामने लाने का जुनून उसके दिल में जल रहा था। उसे बस इतना पता था कि अब वह मास्टरमाइंड के बेहद करीब है। इस मामले की सच्चाई तक पहुँचने के लिए उसे अपनी जान भी दांव पर लगानी पड़ सकती है।

रात के अंधेरे में फ़ोन की घंटी बजती है। हर्षवर्धन अपने डेस्क पर पड़े कागज़ों को पलटते हुए फ़ोन उठाता है। उसके आँखों में गुस्सा था। विजय और अपने सीनियर से मुलाक़ात के बाद उसका दिमाग़ और बेचैन हो गया था। उनके जवाब ने उसे सैटिस्फाइ नहीं किया था। विजय पर डाउट करने का कारण साफ़ था। मगर कोई सबूत साथ नहीं थे। इधर कॉलर उसे केस से दूर रहने की धमकी दे रहा था। हर्षवर्धन ने कॉलर को गुस्से में कहा...

इन्स्पेक्टर: "अगर तुम में इतनी हिम्मत है, तो सामने आओ. मैं तुमसे नहीं डरता। याद रखना मैं तुम्हें बेनकाब करके रहूंगा"

हर्षवर्धन की आँखों में खून सवार था। ग़ुस्से से उसकी पूरी बॉडी अकड़ गई थी। वह अब किसी भी सिचुऐशन को फेस करने के लिए तैयार था। कॉलर कुछ सेकंड शांत रहा फिर धीरे से कहा...

कॉलर: "तुम्हारा समय अब ख़त्म हो रहा है, हर्षवर्धन। तुम अब तक जहाँ भी पहुँचे हो, बस समझो यहीं तुम्हारा सफ़र ख़त्म होगा। सच्चाई से दूर रहो, वरना इसका अंजाम तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा"

कॉलर ने फ़ोन राख दिया। हर्षवर्धन ग़ुस्से से उबल जाता है। वह फ़ोन को ग़ुस्से से ज़मीन पर पटक देता है। उसके अंदर का डर अब, ग़ुस्से में बदल गया था। वह जानता था कि मास्टरमाइंड अब उसके करीब है। इसलिए उसे धमकियाँ आ रही है। उसने हर हाल में उसे पकड़ने की ठान ली थी। लेकिन उसकी चुनौती अब और भी कठिन हो चुकी थी।

उसने सारे सुरागों को जोड़ना चालू कर दिया। घर के ड्रॉइंग रूम में बैठा वह प्लैनिंग करने लगा था। शुरुआत से आज तक की हर एक छोटी से छोटी बात वह याद करने लगा। हर छुटी हुई कड़ी उसने जोड़ना चालू कर दी थी। काफ़ी देर के बाद उसने पाया की उसे एक ख़ास जगह पहुँचना है। जहाँ उसे बहुत कुछ मिल सकता था। बनारस के आउटर में स्थित एक पुराना गोदाम, जहाँ से ज़हर का यह खेल शुरू हुआ था। उस गोदाम में कुछ इम्पॉर्टेन्ट क्लूज़ मिल सकते थे। उसके पास समय कम था। एक बार तो उसने अपनी टीम को कॉल करने का सोचा, मगर फिर वह अकेला ही निकल पड़ा।

रात के सन्नाटे में, जहाँ दूर-दूर तक कोई भूत भी नहीं था, हर्षवर्धन अपनी गाड़ी लेकर गोदाम की ओर सुनसान रास्ते में निकल पड़ा। बनारस से  वेयर हाउस करीब 200 किलोमीटर  की दूरी पर था। गाँव में रात का जल्दी हो जाना भी ये एक कारण था की, इस रास्ते में ना के बराबर लोग दिख रहे थे। आसमान में बादल छाए हुए थे और ठंडी हवा ने बनारस की सड़कों को और भी वीरान बना दिया था। उस कॉलर ने हर्षवर्धन को खुली चुनौती भी दे दी थी। अब हर्षवर्धन के दिल में सिर्फ़ एक ही बात थी। इस मामले को हल करके उन सभी लोगों को बेनकाब करना जो इस कांड के पीछे है।

रात के अँधेरे के कारण हर्षवर्धन रास्ता भटक गया था। उसके सामने से एक कच्ची और एक पक्की दो सड़क जा रही थी। उसे ये समझ नहीं आ रहा था की, जाना किस तरफ़ है। ये बनारस से दूर राजघाट का एरिया था। तभी उसकी गाड़ी के सामने दो बाइकों पर कुछ लोग आ रहे थे। हर्षवर्धन ने गाड़ी साइड की और शीशे से बाहर हाथ निकल कर उनको रोकने लगा। दोनों गाड़ी के दरवाज़े के पास आकर रुक गए.

हर्षवर्धन ने उनसे पूछा की वेयर हाउस कौन से रास्ता जाता है। तभी बाइक के पीछे बैठे एक लड़के ने हाथ में पकड़े डंडे से गाड़ी के फ्रन्ट मिरर पर दे मारी। हर्षवर्धन चौक गया। ये उसके साथ क्या हो रहा था। वह गुंडे थे, जो उसे ही रोकने आए थे। हर्षवर्धन ने गाड़ी को एक्सलरेट किया और वहाँ से निकालनें की कोशिश करने लगा। गुंडे उसकी गाड़ी का पीछा करते हुए, उसे रास्ते से हटाने की कोशिश करने लगे। हर्षवर्धन के चेहरे पर पसीना छलक आया, लेकिन उसने अपनी गाड़ी की रफ़्तार और तेज़ कर दी। उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं और उसकी पकड़ स्टेयरिंग पर और मज़बूत हो गई.

वो जनता था कि एक बार वह हाईवे पर आ जाएगा, तो ये लोग ख़ुद ब ख़ुद पीछे चले जाएँगे। हाईवे आ गया था मगर उन लोगों ने पीछा नहीं छोड़ा। हर्षवर्धन के पास कोई रास्ता नहीं बचा। उसने वह किया जो वह करना नहीं चाहता था। उसने गाड़ी रोकी, सामनें डैश्बोर्ड पर रखी गन निकाली और उसको पीछे की तरफ़ घुमाके फायर किया। गन की आवाज़ से हाईवे में डर दौड़ गया। लोग घूम-घूम कर देखने लगे थे। मगर वह दोनों बाइकर्स रुक गए और यू टर्न ले लिया। हर्षवर्धन ग़ुस्से से गाड़ी से बाहर निकलता है और भाग रहे उन गुंडों को चिल्लाकर बोलता है।

इन्स्पेक्टर: "तुम लोग मुझे रोक नहीं सकते...मैं हर हाल में गोदाम तक पहुँच कर रहूँगा।"

हर्षवर्धन जैसे ही बोल कर गाड़ी में बैठने लगा। पीछे से किसी कार से गोलियाँ चलानी शुरू हो गयी। रास्ते पर पीछा करने वाली गाड़ी ने हर्षवर्धन की गाड़ी को टक्कर भी मारने की कोशिश की, लेकिन हर्षवर्धन ने समय रहते गाड़ी को मोड़ लिया। वह गुंडों से बचते हुए एक संकरी गली में घुस गया। बाइक सवार गुंडे अब भागे नहीं थे, उसकी गाड़ी के करीब आ चुके थे। उनमें से एक ने गाड़ी की खिड़की पर ज़ोर से वार किया, लेकिन हर्षवर्धन ने एकदम से एक टर्न लिया, जिससे वह गुंडा वहीँ बाइक के साथ गिर पड़ा।

दूसरा गुंडा अब भी उसका पीछा कर रहा था। हर्षवर्धन ने अपनी गाड़ी की स्पीड और तेज़ कर दी। बनारस की गलियों में पुलिस का पीछा गुंडे कर रहे थे। हर्षवर्धन काफ़ी तनाव में दिख रहा था। वह इसलिए मरना नहीं चाहता था, क्योंकि उसे, इन सबको सज़ा दिलवानी थी। उसके क़दम थमने वाले नहीं थे। आख़िरकार उसने दूसरे गुंडे को भी पीछे छोड़ दिया और अपनी मंज़िल की ओर बढ़ गया।

गोदाम के पास पहुँचकर हर्षवर्धन ने गाड़ी रोकी। वह अकेला था और उसे पता था कि यहाँ किसी की भी नज़र उसपर हो सकती है। उसने अपने गन की  ट्रिगर पर ऊँगली रखी और वेयर हाउस की और बढ़ा। वेयर हाउसका दरवाज़ा आधा टूटा हुआ था और अंदर घुप्प अँधेरा था। जैसे कोई यहाँ ज़बरदस्ती आकर गया हो। वह जैसे ही अंदर दाखिल हुआ, उसे एक अजीब-सी गंध महसूस हुई. ऐसा लग रहा था कि सालों से यहाँ कोई नहीं आया था।

हर्षवर्धन ने अपने मोबाईल की लाइट जलाई. अंदर एक पुरानी टेबल पर धूल की मोटी परत जमी थी और उसी पर पड़ी थी एक पुरानी डायरी। हर्षवर्धन ने धीरे से उस डायरी को उठाया उसकी धुल उड़ाई और उसके पन्ने पलटने शुरू किए. पन्ने पुराने और कुछ जगह से फटे हुए थे, लेकिन उनमें छिपी हुई जानकारी उसके काम आ सकती थी। फिर हर्षवर्धन ने जो देखा और पढ़ा उसके दिमाग़ के ताले खुल गए. उसने ख़ुद से ही बोला...

इन्स्पेक्टर: "ये...ये तो उसी मास्टरमाइंड की लिखावट हो सकती है"

डायरी के पन्नों में मास्टरमाइंड की साज़िश का ज़िक्र था। कैसे उसने लोगों को ज़हर देने का प्लान तैयार किया, कैसे ज़हर की शीशी पहुँचाई जानी थी और किस-किस ने इसमें उसका साथ दिया। एक ही डायरी में हर्षवर्धन को सब कुछ मिल गया था। बस इसी सबूत के लिए वह आज गुंडों के हाथों नहीं मरना चाहता था। लेकिन जैसे ही हर्षवर्धन आगे पढ़ने लगा, उसने देखा कि डायरी के कुछ पन्ने ग़ायब थे। ग़ायब हुए पन्ने वही थे, जो मास्टरमाइंड का नाम उजागर कर सकते थे।

हर्षवर्धन के चेहरे पर गुस्सा और फ्रस्ट्रैशन साफ़ दिखाई दे रहा था। उसके पास अब दो ही रास्ते थे, या तो वह मास्टरमाइंड को ढूँढ़ने के लिए अपनी जान की बाज़ी लगा दे, या फिर पीछे हट जाए. लेकिन पीछे हटने का सवाल ही नहीं था।

उसने डायरी को अपने पास रखा और गोदाम के बाहर निकलने लगा। उसके दिमाग़ में अब बस एक ही बात घूम रही थी। इस मास्टरमाइंड का पता लगाना। हर्षवर्धन के हाथ अभी भी उस डायरी पर थे, जब उसका फ़ोन फिर से बजा। फ़ोन किसी अननोन नंबर  से ही था। हर्षवर्धन को ये बात पता थी की कोई उसपर नज़र राख रहा था। उसने जैसे ही कॉल रिसीव किया, किसी ने अजीब-सी भारी आवाज़ में कहा...

कॉलर: "इंस्पेक्टर हर्षवर्धन, मुबारक हो...अब तुम बहुत करीब हो। लेकिन अगर तुमने एक और क़दम बढ़ाया, तो... हो सकता है, ये तुम्हारा आख़री क़दम हो"

जैसे ही हर्षवर्धन ने उसका कॉल कट किया और अपनी गाड़ी में बैठने लगा। उसे एक और सुराग मिला। वेयर हाउस के बाहर ज़मीन पर खून के कुछ धब्बे थे, जो अंदर जाने की ओर इशारा कर रहे थे। हर्षवर्धन के दिमाग़ में सवाल आया की " क्या कोई और भी यहाँ आया था? या फिर वह मास्टरमाइंड?

हर्षवर्धन के मन में अब और भी सवाल उठने लगे थे। इस मामले की सच्चाई अभी भी पूरी तरह से सामने नहीं आई थी। वह अब पहले से ज़्यादा उलझन में था। मास्टरमाइंड के असली चेहरे को बेनकाब करने का वक़्त आ चुका था, लेकिन इसके लिए उसे अपनी जान का जोख़िम उठाना पड़ सकता है।

हर्षवर्धन वहाँ तक कभी पहुँच ही नहीं पाया और प्रेशर में केस बंद करना पड़ा।

क्या ऐसे मास्टरमाइन्ड हमारे नज़दीक के गाँव या शहरों में नहीं है। जो रोज़ हमे ज़हर का मीठा घूंट पिला रहे हों। क्राइम की दुनिया ऐसी ही होती है। वह हमेशा छुप कर वार करती है। ऐसी और भी घटनाएँ हैं, जिसे पढ़ कर आप सोचने पर मजबूर हो जाएँगे की, क्या क्राइम का चेहरा ऐसा भी हो सकता है।

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