एक कमरा… हल्की रौशनी… और एक 24-25 साल की लड़की—सिया—सामने बैठी थी। आँखों में डर और होंठों पर कांपती हुई सच्चाई। कुछ शब्द यूं ही उसके होंठो से निकले।
"मुझे नहीं पता मैं कल ज़िंदा रहूंगी या नहीं," सिया कह रही थी, "लेकिन अगर आप ये वीडियो देख रहे हैं, तो समझिए मैं कुछ बड़ा देख चुकी हूँ। कुछ सच हमारी आँखों के सामने छिपे रहते हैं और हम उनसे अनजान अपनी ज़िन्दगी में व्यस्त रहते हैं। लेकिन कभी न कभी वो अचानक हमारे सामने आ जाते हैं।"
उसने धीरे-धीरे कैमरे की ओर झुकते हुए कहा, "ये संस्था, जहाँ मैं बड़ी हुई, जहाँ मुझे खाना, कपड़ा और पढ़ाई दी गई… यह संस्था जिसने मुझे इतना बड़ा जर्नलिस्ट बनाया, मुझे कहते हुए शर्म आ रही है कि वही संस्था दरअसल बच्चों के ऑर्गन का व्यापार कर रही है। यह जैसी बाहर से दिख रही है वैसी ही नहीं। यह बाहर से भले बच्चों के बेहतर भविष्य का सपना दिखाती है पर अंदर से उनके लिए बच्चे सिर्फ और सिर्फ एक टेस्ट सब्जेक्ट हैं। लैब में पाए जानेवाले चूहों की तरह। और यह संस्था सिर्फ इकलौती नहीं है बल्कि इसी के जैसे न जाने कितने संस्था पूरी दुनिया में होंगे जो बच्चों को बेहतर ज़िंदगी देने के नाम पर उनकी जिंदगियों के साथ एक बहुत गन्दा खेल खेल रही है। मैं जो खुद इसी संस्था में पली बढ़ी, इसकी गवाह हूँ।"
"अगर आप यह वीडियो देख रहे हैं इसका मतलब यह है कि आप भी उन बच्चों को बचाना चाहते हैं। काश मैं आपके साथ होती, लेकिन जब आप यह वीडियो देख रहे होंगे, तब तक मैं इस दुनिया से…!"- सिया ने बोलना जारी रखा।
कुछ देर वीडियो शूट करने के बाद उसने अपना लैपटॉप बंद कर दिया और सामने खड़े आदमी की तरफ देखने लगी। जो इस पूरे प्रोसेस पर नजर बनाए हुए थे। सिया ने उनसे कहा-
"क्या यह ठीक है? नितिन सर!"
वर्तमान।
मिस्टर ओझा के क्लीनिक। जहाँ अभी सब बैठे हुए हैं। जबकि लक्ष्मण वहाँ दौड़कर आता है।
"क्या हुआ लक्ष्मण? कुछ पता चला?"- पीटर ने पूछा।
"मैंने उस रेस्टॉरेन्ट के बारे में पता करने की हर कोशिश की लेकिन एक तो वह किन्हीं कारणों से कल से बंद है और ऊपर से वहाँ के आस पास के लोग, कोई भी उस रेस्टॉरेन्ट के बारे में नहीं बता रहा है। मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं अब क्या करूँ?"- लक्ष्मण ने जवाब दिया।
"फिर तो यह बहुत बड़ी दिक्कत हो गयी। ऐसे में तो हम मेल्विन तक वक़्त रहते नहीं पहुँच पाएंगे।"- पीटर ने चिंता जताते हुए कहा।
"नहीं। ऐसा नहीं है। अभी भी मेल्विन को ढूंढने का एक रास्ता बचा हुआ है। रास्ता थोड़ा पेचीदा है लेकिन यह जरूर मेल्विन तक पहुंचा देगा।"- मिस्टर कपूर ने आत्म विश्वास के साथ जवाब दिया।
जिसके बाद लगभग सभी ने मिस्टर कपूर की तरफ आशा भरी किरणों से देखा।
"और वो क्या है?"- मिस्टर ओझा ने पूछा।
जिसके बाद मिस्टर कपूर ने ठंडी आह भरते हुए सभी से कहा-
"चलो मेरे साथ।"
यहाँ मेल्विन के दोस्त उस तक पहुँचने की कोशिश कर रहे थे, वहीँ कुछ लोग थे जो उस तक पहुँच चुके थे।
"बॉस। आपको पक्का यकीन है कि उनलोगों ने उस मेल्विन को यहीं रखा हुआ है? और अगर है भी तो क्या हमें सच में उन्हीं लोगों के पाश वापिस जाना चाहिए जिनसे हम बचकर भागे थे "- विशाल ने पूछा।
"मुझे अपने सोर्सेस पर पूरा भरोसा है, जिसकी वजह से हम उनके चंगुल से निकले हैं, वो हमसे झूठ नहीं बोलेगा। और इतनी चिंता मत करो। इस बार हम अकेले नहीं जा रहे हैं उनसे लड़ने। बस तुमलोग अपने-अपने हथियार तैयार कर लो। और हाँ, वह मेल्विन मुझे जिंदा चाहिए। और उसे मारने की नॉबत आ ही गयी तो उसके भेजे में पहली गोली मैं उतारूंगा। तुम सब समझ गए?"- रघु ने कहा।
"हाँ बॉस।"- सभी ने जवाब दिया।
एक बहुत बड़े जंग की तैयारी हो रही थी जिसकी खबर अभी तक न तो मेल्विन को थी और न ही रेबेका को।
उस अनजान कमरे में।
"तुम्हें याद है मेल्विन? जब तुम मेरे आदमियों के साथ गोली बारी में फँसे हुए थे और तब मैंने तुम्हें फोन करके अपनी स्केच बनाने को कहा था? क्या लगता है? मैंने ऐसा क्यों किया था जबकि मुझे अच्छे से पता था कि तुम किसी परिस्थिति में हो?"- रेबेका ने कहा।
मेल्विन ने कोई जवाब नहीं दिया।
"हाँ, मेल्विन। मैं तुम्हें हमेशा से भटकाना चाहती थी। मैं चाहती थी कि तुम कोई गलती करो! मैंने ही श्याम लाल को तुंम्हारे पीछे भेजा था तुम्हे पकड़ने के लिए। मेरे सो कॉल्ड पिताजी तुम्हें मेरे ही कहने पर बार-बार रिजेक्ट कर रहे थे। क्योंकि वो हमारा मिशन नहीं था, मैं चाहती थी कि तुम उलझे रहो जब तक मेरा मिशन कम्प्लीट न हो जाए। और रही बात तुंम्हारे माँ की बात, तो हाँ। मैंने ही उसे मरवाया था जब तुम मेरे पीछे-पीछे चलकर मेरे स्कूल आ गए थे। मैंने ही तुम्हें उस जाल में फँसाया था, तुम्हें धोखे में रखा था कि वे मुझे मारने वाले हैं, जबकि हमारा शुरू से यही फैसला था कि तुमसे तुम्हारी माँ छीनी जाएगी।"- रेबेका ने आगे कहा।
"और तुम्हारे मां बाप क्या वे भी सिंडिकेट से थे?"- मेल्विन ने पूछा।
जिसके रेबेका हँस पड़ी। उसने तुरन्त रिमोट को पर्दे की तरफ मोड़कर एक बटन दबाया। पर्दे में अब एक नई तस्वीर उभर आयी। खून से लथपथ वे बेजान पड़े तस्वीर थे उन्हीं लोगों के
जिनको मेल्विन अब तक रेबेका का माता-पिता मानते आया था। उनके सर पे लगे गोलियों के निशान, उनके बेजान आंखें और उनके खुले मुँह, यह मेल्विन के लिए रोंगटे खड़े कर देनेवाले दृश्य थे। उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था मानो मरने से पहले वे बहुत तड़पे होंगे।
"तुम जानवर हो।"- मेल्विन ने गुस्से से कहा- "तुमने उनको तक नहीं छोड़ा? अपने माँ बाप तक को नहीं छोड़ा।"
जिसे सुनते ही रेबेका हँस पड़ी।
"हा हा हा। ओह, मेल्विन। तुम कितने भोले हो। ये मेरे असली माँ-बाप नहीं थे। मेरे मिशन के लिए उठाए गए मोहरे थे। जब मिशन खत्म हुआ, तब इनकी जरूरत भी खत्म हो गयी। मैं तो इन्हें आसान मौत देना चाहती थी लेकिन इनलोगों ने उस भरे पार्टी में मेरा हाथ पकड़ने की जुर्रत की। मेरा, इस सिंडिकेट के चीफ का हाथ।"- रेबेका ने अहंकार के साथ कहा।
रेबेका मेल्विन के करीब आई, उसकी आँखें उस पर स्थिर थीं, जैसे कोई शिकारी अपने शिकार को टटोल रहा हो। उसकी आवाज़ में एक अजीब सा मीठापन था, जो किसी जहरीले नागिन के फुफकार जैसा था। "मेल्विन, तुम्हें लगता है कि तुम अकेले हो? कि तुम्हारे पास कुछ नहीं बचा? लेकिन ऐसा नहीं है। तुम अब भी मेरे साथ हो। हम एक साथ होंगे। सोचो, हम क्या कर सकते हैं अगर हम एक साथ आ जाएँ। दुनिया हमारी मुट्ठी में होगी।"
अब रेबेका के बातों में बदलाव आने लगा। उसका बर्ताव फिर से बदलने लगा। वह धीरे-धीरे मेल्विन के चारों ओर घूमने लगी, उसकी हर चाल में एक अजीब सी लचक थी। "तुमने अपने पिता के क्राइम से नफरत की, है ना? तुमने सोचा कि तुम दुनिया को बदल सकते हो। लेकिन तुम बदलोगे कैसे, मेल्विन? अकेले तुम कुछ नहीं हो। मेरे साथ, तुम्हारे पास ताकत होगी। वो ताकत जिससे तुम दुनिया को अपनी मर्ज़ी से बदल सकते हो। हम उन लोगों को खत्म करेंगे जिन्होंने तुम्हारे परिवार को चोट पहुँचाई। उन धोखेबाजों को, उन कमजोरों को। हम एक ऐसी दुनिया बनाएंगे जहाँ सिर्फ़ ताकतवर राज करेंगे, और तुम मेरे साथ, उस दुनिया के किंग होगे।"
मेल्विन ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं। उसका दिल चीख रहा था कि वह रेबेका को ना कहे, उसे धक्का दे, लेकिन उसके मन का एक हिस्सा, एक अँधेरा हिस्सा, इस बात से सहमत होता जा रहा था। "लेकिन... तुम इतनी क्रूर क्यों हो, रेबेका?"
मेल्विन ने मुश्किल से पूछा, उसकी आवाज़ लड़खड़ा रही थी।
रेबेका ने एक बेजान हँसी हँसी। "क्रूरता? मेल्विन, यह क्रूरता नहीं, यह अस्तित्व है। इस दुनिया में या तो तुम शिकारी बनते हो, या शिकार। मैंने शिकार बनने से इनकार कर दिया। और तुम्हें भी ऐसा ही करना चाहिए।" वह मेल्विन के बिल्कुल सामने आकर रुक गई, उसकी आँखों में झाँकते हुए। "मेल्विन, तुम मुझसे प्यार करते हो न? हर रोज मुंबई की लोकल में मुझे देखने आते थे? मुझसे शादी करना चाहते हो न? चलो हम शादी कर लेते हैं। हमारे बीच कोई तीसरा नहीं होगा। जिसने हमारी शादी को रोका, वे अब इस दुनिया में नहीं हैं, अब हमें एक होने से कोई नहीं रोक पाएगा। कोई नितिन नहीं, कोई मिस्टर कपूर नहीं, कोई रघु नहीं, कोई ‘मी’ नहीं, कोई परिवार नहीं। सिर्फ़ हम। एक साथ। हमेशा के लिए।"
उसकी आवाज़ में एक ऐसी सनक थी जो मेल्विन को अपनी ओर खींच रही थी। जैसे कोई गहरा, अँधेरा भँवर उसे अपनी ओर खींच रहा हो। रेबेका ने अपना हाथ बढ़ाया और मेल्विन के गाल को छुआ। उसका स्पर्श ठंडा और खतरनाक था, लेकिन साथ ही, उसमें एक अजीब सी चुंबकत्व थी। "तुम मेरे हो, मेल्विन। तुम हमेशा से मेरे थे। मैंने तुम्हें गढ़ा है। मैंने तुम्हें यहाँ तक लाया है। और अब, हम अपना खेल खेलेंगे।"
रेबेका अपनी बात रख ही रही थी कि तभी उसके ट्रांसमीटर में एक आवाज गूंजी। यह आवाज डिकोस्टा की थी।
"चीफ… डिकोस्टा हिअर! चीफ, आर यु लिसनिंग? चीफ।"
डिकोस्टा से बात करते वक़्त रेबेका को सपनी आवाज बदलने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि डिकोस्टा उसके परिवार स ही जुड़ा आदमी था और वह रेबेका के असलियत से वाकिफ था। रेबेका ने तुरन्त कहा-
"डिकोस्टा। तुम्हें कितनी बार कहा है कि जब मैं कोई जरूरी डिस्कसन में होऊं तो मुझे परेशान नहीं करने को। क्या तुम भूल गए?"
"सोरी चीफ। but it's an emergency. I repeat it's an emergency."- डिकोस्टा ने कहा।
"क्या इमेरजेंसी है डिकोस्टा?"-रेबेका ने पूछा।
जिसके बाद आवाज झिलमिल ही होती चली गयी और रेबेका अंतिम के कुछ शब्द ही सुन पाई।
"…बॉस… हम पर हमला हुआ है… आई रिपीट, हम
पर हमला हुआ है।… हमें यहाँ से तुरन्त निकलना होगा… evacuate this place immediately."- डिकोस्टा के बातों में अर्जेंसी थी, एक desperation था क्योंकि अगर उनके अड्डे पर कोई हमला हुआ होगा तो जरूर उसे किसी बहुत बड़े गैंग ने किया होगा।
"क्या बकते हो? यहाँ और हमला? इस जगह पर हमला करना तो बहुत दूर की बात है। यहाँ तक पहुँचना ही किसी के बस का बात नहीं है।"-" रेबेका ने कहा।
"नहीं, चीफ। हम… सच… हमला… हुआ है। हमपर हमला……, ने किया है।"- डिकोस्टा के इतना कहते ही एक तेज़ गोली के आवाज के साथ वह ट्रांसमीटर एकदम से बंद हो गया।
रेबेका ने मामले की गम्भीरता को समझते हुए तुरन्त अपना मास्क वापिस पहना और पास के कोने में एक एक सीक्रेट बटन दबाया जिससे एक रैक खुला। उस रैक में कई अत्याधुनिक हथियार थे। रेबेका ने उसमें से एक बंदूक उठा लिया और वह वापिस से मेल्विन की तरफ मुड़ गयी।
मेल्विन की आँखों में एक पल के लिए संघर्ष दिखाई दिया। उसके दिमाग में नितिन का खून से सना चेहरा और उसकी माँ का चेहरा घूम रहा था। लेकिन फिर, एक अजीब सी शांति उसके भीतर उतर गई। जैसे उसने अपनी हार मान ली हो, या शायद, कुछ और ही स्वीकार कर लिया हो। जो भी हो, मेल्विन अब और विरोध करने के हालत में नहीं था।
रेबेका की आँखों में एक विजयी चमक आ गई। वह जानती थी कि उसने मेल्विन को जीत लिया है। उसने उसे तोड़ दिया था, और अब वह उसे अपनी इच्छानुसार ढाल सकती थी।
"तो, मेल्विन?" रेबेका ने फुसफुसाया, उसकी आवाज़ अब और भी धीमी और खतरनाक थी, "तो मेल्विन, मैं तुमसे आखरी बार पूछती हूँ, क्या तुम मेरे साथ हो?"
मेल्विन ने एक गहरी साँस ली, और फिर, उसके मुँह से जो शब्द निकले, उसने कमरे में एक भयानक सन्नाटा ला दिया।
"हाँ... मैं तुम्हारे साथ हूँ।"
मेल्विन ने रेबेका के हाथों में अपना हाथ दे दिया। एक अजीब सी मुस्कान उसके चेहरे पर फैल गई, एक मुस्कान जो किसी मनोरोगी की तरह थी। उसने सिंडिकेट जॉइन कर लिया था।
रेबेका ने तुरन्त उस जखीरे से एक दूसरा बंदूक उठाया और मेल्विन क पास फेंक दिया।
"उम्मीद करती हूँ कि तुम्हें स्केचिंग के अलावा भी बहुत कुछ आता होगा। तैयार हो जाओ।"- रेबेका ने कहा और फिर उसके इतना कहते ही उस तहखाने का एक बहुत बड़ा सा दरवाजा खुलने लगा। जहाँ दूसरी और एक बेहद ही खूनी गोली बारी चल रही थी।
मेल्विन अभी भी असमंजस में था लेकिन एक बात साफ थी। मेल्विन अब रेबेका के साथ है।
क्या यह उसकी हार है, या एक नए, खतरनाक खेल की शुरुआत? क्या वह सिंडिकेट की दुनिया में अपनी जगह बना पाएगा, या रेबेका उसे सिर्फ़ एक और प्यादे की तरह इस्तेमाल करेगी? यह हमला किसने किया था? कौन इतना काबिल था जो सिंडिकेट तक से खतरा मोल ले सकता था? रघु ने? इवनोवा फैमिली ने, या फिर इनके पीछे कोई और था? क्या वे दोनों इससे बचकर निकल भी पाएंगे?
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