इंसान के बहकने में हमेशा बुरी संगत का ही असर हो, यह ज़रूरी नहीं है, कभी कभी उदासियाँ और अकेलापन भी ज़िंदगी को ऐसे मोड़ दे देते हैं। अंकिता का शेखर की तरफ़ झुकाव की वजह उसका अकेलापन था, और शेखर का बेवजह फिक्र करना, उसे आकार की लापरवाही का और ज़्यादा एहसास करवा रहा था। बार बार कोशिश करने के बाद भी वह शेखर को एक पल भी नजरअंदाज नहीं कर पाती। उसके सामने आने पर जिस तरह से वह होश खो बैठी, उससे ख़ुद ही डर गई थी।

फ़ोन की घंटी लगातार बज रही थी और अंकिता घबराहट में फोन भी नहीं देखती। शेखर भी उसके पीछे अंदर आ गया था , उसका मोबाइल उठाकर देते हुए बोला, “मोबाइल देख लीजिए…  शायद काम का फोन हो। ” अंकिता ने आँसू पोंछकर मोबाइल देखा तो हैरान रह गई… आकार का नंबर था। जानती थी कि आकार को कोई काम ही होगा वरना वह कहाँ कभी कॉल करता है! फ़ोन रिसीव करके वह कुछ बोल भी नहीं पाई और आकार भड़क गया।  

आकार ; - ( फोन पर चिल्लाते हुए ) यह क्या तरीक़ा है अंकिता?  बच्चे तुम्हें कब से कॉल कर रहे हैं, तुम फोन तक नहीं देख सकती? बच्चों को अकेला छोड़कर गई हो और थोड़ी सी भी फ़िक्र नहीं है उनकी …  इतनी ज्यादा निश्चिंत हो कि फोन भी नहीं उठा पाईं? तुम इतनी लापरवाह कैसे हो सकती हो? मीटिंग छोड़कर, मुझे बाहर आकर आशी से बात करनी पड़ी। देखो, बच्चों ने कितनी बार कॉल किया तुम्हें ? काम तुम्हारे लिए बच्चों से ऊपर कब से हो गया? हद है यह तो…

आकार ने अपनी बात सुनाई और फोन काट दिया। अंकिता झट से फोन चेक करने लगी पर बच्चों का कोई मिस्ड कॉल नहीं था। उसे समझ नहीं आया बच्चों ने आकार को फोन क्यों लगाया होगा और जब उसके पास बच्चो का कोई मिस्ड कॉल नहीं था तो आकार से बच्चों ने झूठ क्यों कहा ? तभी शेखर उसके पास बैठ गया और उसके हाथ पर हाथ रखकर बोला।

शेखर ; - ( हाथ थामकर ) प्रॉब्लम्स सबके जीवन में होती हैं अंकिता जी, पर जब तक आप उनका मुकाबला नहीं करोगी, वह कम नहीं होंगी,,,  और बढ़ती रहेंगी। मैं आपकी पर्सनल लाइफ में दख़ल नहीं देना चाहता पर मैं आपको दुखी भी नहीं देख  सकता। इसलिए कोई भी बात हो, आप मुझसे बेझिझक शेयर कर सकती हैं, और कुछ नहीं तो कम से कम, मन हल्का हो जाएगा।

शेखर तो चला गया पर अंकिता को जैसे कोई थामने वाला मिल गया। उसके जाते ही आंसू पोंछ कर उसने बच्चों को कॉल किया और पापा को कॉल करने की वज़ह पूछी। ”बेटा कोई प्रॉब्लम थी तो मुझे कॉल करते न, अपने पापा को क्यों डिस्टर्ब किया?” अंकिता परेशान थी बच्चों की हरकत से, लेकिन बच्चे हँस रहे थे। अश्विनी ने बताया “पापा कभी भी कॉल नहीं करते, और हम करें तो, एक ही ज़वाब… मैं अभी मीटिंग में हूं,,, मीटिंग में हूं,,, यही कहते रहते हैं, पर मम्मा मीटिंग खत्म भी तो होती है। आप भी मीटिंग में होती हो पर आप तो कॉल बैक करती हो ना?  पापा कभी नहीं करते, इसलिए आज हमने उन्हें लगातार कॉल किया और उनको बात करनी पड़ी।” अश्विनी हंस रही थी, अंकिता के परेशान चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। दोनों बच्चों से बात करके अंकिता बालकनी में जाकर खड़ी हो गई, रोड पर चल रही गाड़ियों की भागम भाग देखकर, अपने आप से बातें करने लगी, ‘’ज़िंदगी कैसे चारों दिशाओं में भाग रही है, कहीं ठहराव नहीं दिखता। क्या पता, यह किस मंजिल की दौड़ है! क्या पाने की जिद में भागना पड़ रहा है! यह कैसी खुशी की तलाश है जिसमें हर खुशी से समझौता करना पड़ता है। इंसान इतना व्यस्त है कि साँस  लेने तक फ़ुर्सत नहीं है और उतना ही अकेला भी है कि सहारे तलाशता रहता है। आकार भी तो इतनी सी बात नहीं समझ पाता, उसके बच्चे उससे कुछ तो उम्मीद रखते होंगे, तभी तो झूठ बोलकर बात कर रहे हैं।''

आकार के फोन के बाद अंकिता उदास हो गई, छोटे छोटे बच्चे भी अब समझने लगे कि पापा उनके लिए समय नहीं निकालते। वहीं शेखर का ख्याल आता है तो बिल्कुल विपरीत लगता है। काम तो शेखर भी पूरी लगन से करता है पर हमेशा व्यस्त नहीं दिखता। अंकिता ने अपने अंदर चल रही लड़ाई को विराम दिया और अपने दिल की सुनने का फैसला किया।

वह खुद को जीने का एक मौका देना चाहती थी। अपनी उजड़ी सी उदास ज़िंदगी में कुछ प्यार के रंग चाहती थी और शेखर के साथ उसे पूरी दुनिया रंगीन सी महसूस हो रही थी। शेखर कौन है, क्या चाहता है, कब तक साथ चल पाएगा, सारे सवाल कहीं दबे पड़े थे। अभी तो उसे उसका साथ अच्छा लग रहा था और इन पलों को वह जी भर कर जीना चाहती थी।

खुद को बहकते देख पा रही थी क्योंकि उस सुकून की कोई परिभाषा नहीं थी जो कुछ पल का था पर उसे जिंदगी से मिला रहा था। रात के गहराते अंधेरे में बालकनी में खड़ी अंकिता ने कुछ सोचते हुए शेखर को कॉल किया और अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी।

अंकिता : - ( सहमी सी आवाज़ में ) आई एम्  सॉरी शेखर जी…  मैं अपने  व्यवहार के लिए बहुत शर्मिंदा हूँ। मुझे आपसे इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी। आपने ऐसा कुछ नहीं कहा था, मैं ही ओवर रिएक्ट कर गई। मुझे खुद को संभालना चाहिए था। पता नहीं किस बात का गुस्सा था जो इस तरह निकल गया। आप भी काम करते हैं, आप को भी प्रेशर झेलना पड़ता होगा, घर के भी टेंशन और ज़िम्मेदारियाँ होती होंगी पर मैं…।

शेखर : - ( कॉल पर ) ओवर रिएक्ट??? कौन सा वाला, ऑफिस के बाहर या आपके रूम के बाहर?  आपको ऐसा कब लगा आपने ओवर रिएक्ट किया,  क्योंकि मुझे आपके रिएक्शन में कहीं कुछ ओवर नहीं लगता बल्कि आपने वही किया, जो मैं चाहता था। अपने अंदर से भड़ास निकाल दी आपने और गले लगाकर तो जैसे मुझे, जिंदगी से मिला दिया। मैं तो आपका एहसानमंद हो गया।

शेखर की बातों में अंकिता खोती जा रही थी। शायद पहली बार किसी ने उसकी कद्र की थी। उसे याद भी नहीं कि कभी आकार ने उसे समझने की कोशिश की हो, कभी उसके गुस्से को इगनोर किया हो। वह जब भी गुस्सा हुई, उसने उससे ज्यादा गुस्सा दिखाया। उससे कुछ गलत हुआ तो बवाल मच गया। धीरे धीरे यह सब चीजें उन दोनों के बीच चुप्पी की वजह बन गईं और वह परिवार से ही नहीं, अंकिता के दिल से भी दूर होता चला गया। अंकिता उसके लिए सोचना भी चाहे तो उदासी के अलावा कुछ नहीं मिलता।

अंकिता आकार को सोचती है फिर शेखर को सोचती है, इस बार उसका दिमाग दिल को चुनौती दे रहा था,  मगर दिल शेखर को ही चुनता है। खोई सी बैठी अंकिता दरवाजे पर आई आवाज को सुनकर, खुशी से उछलती दरवाज़ा खोलती है, और उम्मीद के अनुसार शेखर को खड़ा पाती है। अंकिता के होंठों पर फैली हल्की मुस्कान, शेखर के होश उड़ा रही थी, वह धीमी सी आवाज में बोला, ‘’इतना खूबसूरत चेहरा और उससे भी ज्यादा खूबसूरत, आपकी मुस्कुराहट है। ऐसे ही हंसती रहा करो मिस अंकिता…  अच्छा लगता है आपको हंसते देखकर,  जैसे सारी कायनात मुस्कुरा उठी हो। हर तरफ जैसे फ़ूल ही फ़ूल खिले हुए हों। शिकागो शहर के इस होटल में मुझे सरसों के खेत की फीलिंग आने लगती है, और,,, और क्या ही बोलूं… आप तो बस हंसती रहा करो, अपने लिए नहीं तो मेरी खुशी के लिए।''

अंकिता : - ( हँसते हुए ) अरे,अरे,,, बस कीजिए शेखर जी… आपने तो दरवाजे पर खड़े खड़े ही शायरी की महफिल सजा दी। वैसे मुझे अपनी तारीफ सुनने का बिल्कुल भी शौक नहीं है, पर फिर भी आपका शुक्रिया, मुझे इतना तवज्जो देने के लिए। वैसे अभी कोई काम था…? अ… पहले आप अंदर आइए,  बैठिए…

शेखर की बातों पर अंकिता खिलखिला गई और उसे हाथ पकड़ कर अंदर ले आई, शेखर के लिए यह सपने जैसा था।  कुछ ही मिनट में अंकिता इतना कैसे बदल गई?  यह हैरानी की ही बात थी, कि उसकी किसी भी मेल फ्रेंड से ऐसी घनिष्ठता नहीं थी, जो कुछ ही दिन की पहचान में शेखर से हो गई। अंदर जाते हुए शेखर पीछे से अंकिता को टोकता है, "अंकिता…  " मिस, मिसेज या जी, के बिना अंकिता अपना नाम सुनकर रुक कर रह गई, उसने हैरानी से मुस्कुराते हुए पलट कर देखा तो शेखर झट से आगे बोल गया, ‘’क्या मैं तुम्हे... मेरा मतलब आपको, अंकिता कह सकता हूँ… ? नहीं आपको अच्छा नहीं लगे तो नहीं बोलूंगा। मैं सोच रहा था, हमें दोस्ती कर लेनी चाहिए। हमारी सोच भी मिलती है और हमें एक अच्छे दोस्त की ज़रूरत भी है, शायद यह वज़ह काफ़ी है कि हम अच्छे दोस्त बन सकें। हम जिस ख़ालीपन से भाग रहे हैं वह अपने आप ख़त्म हो जाएगा।''

अंकिता  : - शेखर जी, आप मुझे अंकिता मिस मिसेज दोस्त जो चाहे कह सकते हैं, मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है। मैंने तो पहले दिन से आप में एक अच्छा दोस्त देखा है। अब रहा सवाल, गहरी वाली दोस्ती का, वह तो अपने आप हो जाती है। आप अपने दोस्त को जितना समझ पाते हैं उतनी ही दोस्ती गहरी होती है।

पहली बार अंकिता की बातों से शेखर हैरान था, उसे यह कहने में पांच दिन लग गए, " क्या हम दोस्त हो सकते हैं " और उसने कहा पहले दिन से उसने शेखर में एक दोस्त देखा है। अंकिता की दोस्ती पाकर शेखर खुश हो जाता है।  बातों - बातों में उसने एक बार फिर अंकिता को  कहीं बाहर चलकर डिनर करने को कहा और इस बार अंकिता हंसते हुए उसका प्रपोजल मान लेती है। उसकी हाँ सुनकर शेखर की खुशी दोगुनी हो गई और वह वहाँ से जाते हुए बोला, ‘’ठीक है, तो फिर आप तैयार...  सॉरी, तुम तैयार होकर आओ, मैं नीचे वेट कर रहा हूँ। आज से हमारी गहरी दोस्ती की ख़ूबसूरत शुरुआत होती है। कोई साथ हो ना हो, हम दोनों एक दूसरे के साथ हमेशा खड़े रहेंगे। एक दूसरे का अकेलापन या ज़िंदगी में घुला सूनापन पूरी तरह खत्म कर देंगे।''

शेखर चला जाता है, और अंकिता कुछ गुनगुनाते हुए तैयार होने लगती है। काम और घर की व्यस्तता में खुद के लिए समय देना उसने बंद कर दिया था, पर आज उसका अच्छे से तैयार होने का मन कर रहा था,  कई सालों बाद वह आज साड़ी पहनना चाहती थी पर जानती थी वहाँ साड़ी नहीं मिल सकती थी। फ़िर भी वह कुछ ट्रेडिशनल ढूंढ रही थी, एक सिम्पल सलवार कुर्ता निकाल कर देखा और पहन लिया। बाल बांधते हुए वह रुक गई, कुछ सोचते हुए हेयर बैंड वापस रख कर बाल खुले छोड़ दिए।

तैयार होने के बाद बार बार ख़ुद को देख रही थी, शायद ऐसा पहली बार ही था कि अंकिता को तैयार होने में इतनी कन्फ्यूजन हो रही थी। वह तो ख़ुद को ढंग से देखती भी नहीं थी कि वह कैसी लग रही है! आज बहुत कुछ पहनने का मन कर रहा था जैसे झुमके, चूड़ी… मग़र वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं था जो उसे ट्रेडिशनल लुक दे पाए, इसलिए जो था उसी से तैयार होकर,  जल्दी जल्दी रूम लॉक करके भागती है।

शेखर से उसने पाँच मिनिट कहा था और आधा घंटा हो चुका था। नीचे पहुँची तो शेखर गाड़ी में बैठा था। टैक्सी खड़ी देखकर अंकिता को एहसास हुआ कि उसने बहुत देर कर दी, वह जल्दी जल्दी आकर गाड़ी में बैठने ही वाली थी कि शेखर ने उसे रोक दिया और खिलखिला कर हँस पड़ा… अंकिता उसे हैरानी से देखती है…।

क्या शेखर और अंकिता की दोस्ती किसी अनचाहे रिश्ते की तरफ़ बढ़ रही थी???

क्या शेखर हँसते हुए अंकिता का मज़ाक उड़ा रहा था या उसे मज़ाक बनने से बचाना चाहता था???

जानने के लिए पढ़िए अगला भाग।

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