शेखर के खुशमिज़ाज स्वाभाव ने अंकिता को इन्सपाइर कर दिया था। अब वह भी दो दिन खुलकर जीना चाहती थी। इसका जो परिणाम होगा, वह जानती थी, पर फ़िर भी उसे एक बार सपनों के आसमान में उड़ना था। अपनी उम्र को मात देकर, उस उम्र को महसूस करना चाहती थी जो पीछे छूट चुकी थी, इसीलिए आज बड़े समय बाद वह तैयार हुई थी लेकिन जल्दी - जल्दी और अच्छे से तैयार होने के चक्कर में, वह क्या कर आई थी, समझ ही नहीं पाई। बार - बार ख़ुद को आईने में देखने के बाद भी सिर्फ़ चेहरे पर ही ध्यान गया, बाकी ध्यान तो शेखर में लगा था। जो पैन्ट ऑफिस पहन कर गई थी वही पहनी हुई थी, उस पर घुटने तक आता स्काई ब्लू कलर का कुर्ता था। सिर्फ़ एक कान में इयर रिंग पहना था, दूसरा भूल गई थी। एक चश्मा बालों में फँसा रखा था और दूसरा आँखों पर था।
शेखर को हैरानी यह थी कि पाँच मिनट में तैयार होकर निकल जाने वाली लड़की इतनी देर लगाकर भी क्या ही तैयार होकर आई थी। अंकिता ने उसके हँसने पर जैसे ही उसे घूरकर देखा तो उस ने झट से हँसना बंद कर दिया। उसने गंभीर आवाज़ में कहा, “चलें?” पर शेखर ने “ना” में सर हिला दिया। वह हैरान थी … गाड़ी खड़ी है, वह वेट कर रहा था और अब जाने से मना कर रहा है? तभी वह उसे पकड़ कर होटल के दरवाजे तक ले गया। वहाँ के काले कांच में खुद को देखने के बावजूद, अंकिता वह नहीं देख पाई जो वह उसे दिखाना चाहता था। शेखर ने माथे पर हाथ मार लिया और बोला, ‘’मुझे बिल्कुल भी जल्दी नहीं थी अंकिता, तुम आराम से तैयार हो सकती थीं। यह क्या पहन लिया है? मुझे ग़लत मत समझो, तुम्हारा मज़ाक नहीं उड़ा रहा था, बल्कि मज़ाक बनने से बचाना चाहता था। मैं अभी आधे घंटे और इन्तजार कर लूँगा, कोई जल्दी नहीं है। जैसे तैयार होना है वैसे होकर आओ। हड़बड़ाने की या जल्दी- जल्दी करने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है।''
तब जाकर अंकिता को समझ आया, वह शीशे में खुद को देखकर हँस दी और चेंज करने रूम की तरफ बढ़ गई। इस बार ज़्यादा देर नहीं लगी उसे, 5 मिनिट में ही वापस आ गई। दोनों एक शानदार रेस्टोरेंट पहुँचे जो शिकागो के अच्छे रेस्टोरेंट्स की लिस्ट में शुमार था। शेखर उसको बैठने का इशारा करते हुए खुद भी बैठ गया लेकिन तुरंत ही उठकर खड़ा हो गया। माथे पर हाथ मारकर मुस्कुराया और उस का इयर रिंग निकालते हुए बोला “यह जो साज़ श्रृंगार है न, उनके लिए है, जिन्हें प्राकृतिक सुंदरता नहीं मिली। तुम्हारी तो सादगी ही तुम्हें सुन्दर बना देती है।”
अंकिता ने हाथ में इयर रिंग लिया और दूसरा कान टटोलते हुए खिलखिलाकर हँस पड़ी, दूसरे कान में कुछ पहना ही नहीं था। वह इतनी तारीफ़ क्यों कर रहा था, अब जाकर समझ आया। उसे याद आया, वह अलग अलग इयर-रिंगस के जोड़ों में से एक-एक ट्राइ करके देख रही थी, कौन सा ज़्यादा अच्छा लग रहा है और फिर एक ही पहन कर आ गई।
अंकिता ; - ( इयर रिंग पर्स में डालते हुए ) बहुत खूब शेखर जी, तारीफ़ करके किसी की ग़लती सुधारना कोई आपसे सीखे। सच कहने के बेहतरीन तरीके हैं आपके, वह भी सच को छुपाकर! मन ही मन सोच रहे होंगे ना, कहाँ से इस गँवार को साथ चलने कह दिया, ढंग से तैयार भी नहीं हो सकती…? कहीं मैं आपका मज़ाक तो नहीं बना रही हूँ न ???
शेखर ; - ( उदास होकर ) मज़ाक ही तो बनाया मेरा…! मुझे हर चीज़ की जल्दी जो रहती है, सब पर जल्दी विश्वास हो जाता है। मुझे पहले अपने आपको देखना चाहिए, फिर किसी को अपना दोस्त कहना चाहिए। क्या करूँ, मैं ऐसा ही हूँ, समझ ही नहीं पाता क्या सही है! देख लो न, मैंने जिसके सामने दोस्ती का हाथ बढ़ाया, उसने मेरी दोस्ती तो स्वीकार ली पर मुझे अपना दोस्त नहीं मान सकी। एक लड़की है जो मुझे दोस्त कहती तो है, पर अभी तक मेरे नाम से ‘जी’ नहीं हटा पाई।
अंकिता हैरानी से उसको बोलते देख रही थी। हमेशा की तरह अभी भी उसकी बात पूरी होते होते उसे समझ आया, कि क्या कहने के लिए उसने इतना लम्बा डायलॉग मार दिया। वह जोर से हँस पड़ी। क्या सवाल था और उसने क्या ज़वाब दिया! वहीं उसका खुलकर हँसना शेखर को बेसुध कर रहा था। वह बार बार उसे इग्नोर करने की कोशिश करता पर नज़र वापस वहीं आ कर रुक जाती।
वह उसके हाल से बिल्कुल बेखबर थी और तभी कुछ बोलते हुए उसके हाथ पर हाथ रख देती है। उसकी छुअन से शेखर का बचा हुआ होश भी खो गया। पूरे शरीर में जैसे बिजली के झटके लग गए थे। वह क्या बोल रही थी फिर उसे कुछ सुनाई नहीं दिया, बस उसके उड़ते हुए रेशमी बाल दिख रहे थे और हँसता हुआ चेहरा था जो उसे दुनिया की सारी ख़ुशी ख़ुद में समेटता लग रहा था। अंकिता की बात सुनने की बजाय वह ख़ुद बीच में बोल पड़ा ...
शेखर ; - ( अपनी धुन में अंकिता को देखते )तुम बहुत प्यारी हो अंकिता… बेहद ख़ूबसूरत, तुमसे मिलकर किसी को भी प्यार हो जाए। तुम जब हँसती हो, तो सारी दुनिया में ख़ुशी बिखरने-सी लगती है। मैं तो समझ नहीं पा रहा कि एक लड़की के हँसने से माहौल इतना सुन्दर कैसे हो सकता है? सच बताओ न कहाँ से आई हो तुम? इस दुनिया में ऐसी सादगी, ऐसी ख़ूबसूरती और ऐसी सरलता एक साथ कैसे हो सकती है ? कहीं मेरी ज़िंदगी से अकेलापन दूर करने, तुम आसमान से उतर कर तो नहीं आई…?
अंकिता के चेहरे पर उसकी बात सुनकर पहले हैरानी आई, जो फिर परेशानी में बदलती गई। वह इतना खोया था कि उसकी हालत देख वह घबराने लगी । शेखर को बिल्कुल एहसास नहीं था, वह क्या बोल रहा है? उसकी नजर उससे हट ही नहीं रही थी। उसने जैसे ही अपना दूसरा हाथ अंकिता के हाथ पर रखा, उसने झटके से अपना हाथ खींचकर उसे हिला दिया। शेखर ने जब उसके चेहरे की घबराहट देखी तो समझ आ गया कि वह क्या बोले जा रहा है। हँसते हुए अपने सिर पर हाथ मारते हुए बोला, ‘’माफ़ करना, क्या बात कर रहा था और क्या कहने लग गया! हाँ तो मैं क्या कह रहा था, आप… आप कौन? क्या मिस अंकिता पटेल अपने सभी दोस्तों को आप ही कहती है या जिन्हें दोस्त कहकर कुछ नहीं समझती, उन्हें आप कहती है! वैसे मेरा नाम अकेले लेने में ज्यादा अच्छा लगता है… अगर मन हो तो ले सकती हो।''
अंकिता ; - ( हँसते हुए ) मैं समझ गई शेखर जी.... अ... शेखर, आगे से याद रहेगा। दरअसल बातों बातों में, जो आदत है, वही निकलता है, पर अब ध्यान रखूंगी। आप ऑर्डर… मतलब, तुम ऑर्डर करो, मैं दो मिनट बच्चों से बात कर लेती हूँ।
अंकिता मोबाइल निकालकर बच्चों से बात करने लगी। वह बाहर निकालकर, टहलते हुए हुए बात करने लगी। शेखर डिनर ऑर्डर करके उसको देखने लगा और उसके दिमाग में ख्याल आया, “काश तुम अपने पति से पहले मुझे मिल जातीं… मैं तुम्हें एक पल भी अकेला नहीं होने देता। तुम्हारे होंठों से हँसी कभी नहीं खोने देता, तुम नहीं जानती तुम्हें उदास देखकर कितना दर्द होता है!”
वह उस को हँसते देखकर मुस्कुरा रहा था। उधर अंकिता बच्चों से बात करने में मगन थी। खाना लगते देखकर वह फ़ोन रखकर अंदर आ गई पर खाना खाते हुए अचानक रुक गई। उसे याद आता है कि शेखर अपने बारे में कभी कुछ नहीं बताता। दोस्ती करने की उत्सुकता तो उसे थी, बातों बातों में अंकिता के मन की भी पूछ लेता था। फ़िर अपने बारे में क्यों कुछ नहीं बताता था? यहाँ तक कि वह यह भी नहीं जानती थी, कि शेखर शादी शुदा है या नहीं, परिवार में कौन कौन है, कहाँ से आया है ?
सोच में डूबी, खाना बंद करके वह प्लेट में चम्मच खटका रही थी। शेखर ने उसे देखा और उसकी प्लेट में खुद की चम्मच से खटखटा कर उसका ध्यान बांटा। उस ने जब उसकी तरफ़ देखा तो उसने इशारे से पूछा, क्या हुआ!!! अंकिता ने हँसते हुए सिर हिला दिया। इसपर उस ने उसे खाने के लिए एक बार फ़िर इशारा किया और ख़ुद भी खाने लगा। अंकिता ने स्पून घुमाते हुए कहा, ‘’आप अपने बा… सॉरी.... शेखर, तुम अपने बारे में कभी कोई बात क्यों नहीं करते? मतलब, मैं तुम्हारे बारे में यह तक नहीं जानती, तुम इंडिया में किस स्टेट से हो! अजीब है न? पिछले पाँच दिन से हम लगभग पूरे टाइम साथ हैं। दोस्ती भी हो गई पर हम एक दूसरे को जानते बिल्कुल भी नहीं…। क्या हमारी अधूरी जान पहचान से हमारी दोस्ती अधूरी नहीं लगती? तुम्हारा साथ अच्छा लगता है, पर सब कुछ अजनबी सा है।''
अंकिता के सवाल को उस ने हँसते हुए टाल दिया, जैसे सुन ही नहीं रहा था। खाने की प्लेट की तरफ़ उंगली दिखाते हुए उसने उससे और कुछ लेने को कहा, “तुम कुछ खा क्यों नहीं रही हो? यहाँ हम खाने आए हैं, बातें तो वैसे भी दिन भर करते हैं।” शेखर का इस तरह बात टालना उसको अच्छा नहीं लगा पर उसने भी मुस्कुराकर इग्नोर कर दिया। अगर वह नहीं बताना चाहता तो जबरन क्यों पूछा जाए। खाना खाकर बाहर निकलते हुए उस ने शिकागो की सैर करने को कहा, मगर अंकिता ने “थकान लग रही है” कहकर टाल दिया और वापस होटल जाने के लिए टैक्सी बुलाने आगे बढ़ गई। शेखर उसके पीछे जाकर बोला, ‘’शिकागो बहुत सुन्दर शहर है अंकिता, और रात में तो यहाँ की ख़ूबसूरती देखने लायक होती है। क्या पता, फिर कब आना हो, और साथ में तो शायद ही... अच्छा यह बताओ, तुम होटल पहुँच कर क्या करोगी? वहाँ अपने कमरे में फ्री बैठकर दिमाग़ चलाने से बेहतर है, सफ़र का लुत्फ़ उठाया जाए।''
अंकिता : - ( सख़्ती से )मुझे नहीं देखनी शिकागो शहर की सुंदरता, ना ही मैं अपने कमरे में बैठकर दिमाग़ चलाती हूँ। मेरे बच्चे हैं, उनकी बातें याद करना मेरे लिए बहुत सुखद है। शिकागो की सुंदरता उनके सामने कुछ भी नहीं है। तुम देखना चाहो तो देख लो, मुझे इसकी कोई जरूरत नहीं है। मैं सोना चाहती हूँ, कल फ़िर काम से फ्री होकर बच्चों के लिए शॉपिंग भी करनी है। वापस जाने की तैयारी भी करनी पड़ेगी…।
अचानक से उस का व्यवहार बदल गया था, और शेखर वजह भी अच्छी तरह जानता था। उस बात को टालने के लिए ही वह उसे घुमाने ले जाना चाहता था पर अंकिता ने साफ़ मना कर दिया और टैक्सी रोककर होटल जाने के लिए बैठ गई। वह थोड़ी देर अपनी ज़गह खड़ा रहा और जैसे ही गाड़ी चलने को हुई, रोककर खुद भी बैठ गया। दोनों चुप थे, गाड़ी चल दी। अचानक से शेखर बिल्कुल सीरियस हो गया, अपने आस पास उसे फिर वही आवाज़ें सुनाई देने लगी। अंकिता ने उसकी तरफ़ देखा और उसकी हालत देख कर अंकिता ने टैक्सी रुकवा दी। शेखर को रिलेक्स होने को कहकर, उसके हाथ में रुमाल देकर उसे पसीना पोंछने के लिए कहा मगर शेखर ज़ोर से बोला, “जल्दी से मुझे होटल तक छोड़ दो प्लीज़…” उसका फिर वही हाल था जो अंकिता ने पहले देखा था। होटल पहुँच कर उसे कमरे तक छोड़कर अंकिता जाने लगी, पर शेखर ने उसका हाथ पकड़ लिया और गिड़गिड़ाया, “मुझे अकेला मत छोड़ो... प्लीज़ मेरे पास बैठ जाओ, रितिका…
शेखर के मुँह से निकले नाम का क्या मतलब था?
कौन थी रितिका जिसका असर शेखर को इतना परेशान कर देता था?
क्या शेखर का अतीत अंकिता के बढ़ते कदम रोक देगा ?
जानने के लिए पढ़िए अगला भाग।
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