कभी कभी हमेशा खुश मिज़ाज दिखने वाला इंसान अपने अंदर सबसे ज्यादा दर्द समेटे रहता है। अंकिता शेख़र के बारे में सब कुछ जानना चाहती थी पर वह क्यों नहीं बताना चाहता, इसका उसे बिलकुल एहसास नहीं था। उसे तो लगा था, वह ख़ुद के बारे में कुछ नहीं बताना चाहता और दूसरों से सब पूछ लेता है। उस के बारे में वह,बस, इतना ही जानना चाहती थी कि वह कहाँ से है, परिवार में कौन कौन है, इसीलिए शायद थोड़ी उखड़ गई थी लेकिन डिनर के बाद लौटते हुए, उसकी हालत देख कर अंकिता घबरा गई। एक सवाल अब और खड़ा था कि यह रितिका कौन थी, जिसने शेखर के दिलो-दिमाग पर कब्ज़ा किया हुया था।  

उस के हाथ से अपना हाथ निकालकर उसने शेखर को बेड पर लिटाया और वहीं  बैठ गई। थोड़ी देर तक वह कुछ न कुछ बड़बड़ाता रहा, फिर बोलते बोलते सो गया। सोते हुए फिर उसने उस का हाथ कसकर पकड़ लिया। धीरे से हाथ निकाल कर अंकिता ने उसे चादर ओढ़ायी और जाने लगी। दरवाजे तक पहुंची थी कि उस की आवाज से चौंक गई…

शेख़र ; - ( उठकर बैठते हुए ) रुको अंकिता… मैं अब ठीक हूँ। तुम थोड़ी देर और यहाँ रुक सकती हो?? प्लीज़…!! मैं जानता हूँ तुम नाराज़ हो, पर ऐसा बिल्कुल नहीं है कि मैं तुम्हें कुछ बताना नहीं चाहता, बल्कि पहली बार, मैं किसी से अपना सारा दर्द बाँटना चाहता हूँ। तुम्हारे सारे सवालों के जवाब देना चाहता हूँ, लेकिन उसके लिए मुझे जो हिम्मत चाहिए, वह मैं नहीं जुटा पा रहा। मेरा अतीत मेरे आज पर इस तरह हावी हो जाता है कि मुझे ख़ुद को सम्भालना मुश्किल हो जाता है। आज तुम साथ थीं तो सब ठीक है, नहीं तो पता नहीं…

अंकिता ने ख़ुद उसकी आँखों में डर और भयानक दर्द देखा था। उसकी बातों में कोई झूठ या दिखावा नहीं था, यह तो वह जान गई थी पर इतने भयानक तूफ़ान को छुपाकर यह शख़्स हँसता रहता है, यह ज़्यादा चौंकाने वाला था। वह लौटकर वापस आई और उस के बालों में उंगलियाँ फिराकर बोली, “आराम करो शेखर कल बात करते हैं।” उस ने मगर, फिर उसका हाथ पकड़ लिया, “मत जाओ अंकिता, मुझे सच में तुम्हारी ज़रूरत है।” उसने मुस्कुरा कर अपना हाथ खींच लिया और उसे आराम करने को कहा। वह नहीं समझ पा रही थी, कि शेखर उसके जाने से क्यों घबरा रहा था। रोकने पर भी जब वह नहीं मानी तो उसने झटके से खड़े होकर उसे रोक लिया, और गले लगा लिया।

शेखर : - ( घबराते हुए ) मत जाओ अंकिता प्लीज़, तुम चली गईं तो मैं मर जाऊँगा। अब तुम मेरे लिए ज़िंदगी बन गई हो, मुझसे दूर कभी मत जाना। कभी मुझे ख़ुद से अलग मत करना। हम साथ मिलकर सब ठीक कर लेंगे, हमारा अकेलापन हमें मार डालेगा अंकिता। हम एक दूसरे का दर्द बाँटने ही मिले हैं। हम अलग नहीं हो सकते, प्लीज़ समझने की कोशिश करो…

अंकिता उसकी तेज़ पकड़ और बकवास लगती बातों से घबरा गई। उसने ख़ुद को झटके से अलग़ किया और चिल्लाई…  “यह क्या पागलपन है, अगर बोलने का भी  होश नहीं है तो मत बोलो। आराम करो या अकेले में बड़बड़ाओ।” शेखर उसे समझाना चाहता था पर वह हाथ झटक कर दौड़ती हुई अपने कमरे में चली गई। वह उसे चुपचाप जाते देखता रहा और दरवाजा बंद हो गया।

अपने कमरे में पहुँचकर वह बिस्तर पर उलटे मुंह लेट गई। बड़ी मुश्किल से खुद को कंट्रोल करके अपने कमरे तक आई थी, उसे शेखर की छुअन में कोई जादू सा महसूस हुआ था। ख़ुद को बहकने से बचाने के लिए, उसने वहाँ से गुस्सा दिखाकर निकलना सही समझा। उस की उंगलियों का एहसास उसे अपने मन पर हो रहा था, ख़ुद को कंट्रोल में रखना उसे अब चुनौती की तरह लग रहा था, वहीं शेखर की फ़िक्र भी हो रही थी। क्या पता उसके अतीत में ऐसा क्या था जिसे याद करके उस की रूह काँपती है।

अंकिता काफी रात तक उसके लिए सोचती रही, कई बार सोचा, जाकर देख ले पर डर था कहीं बात ज्यादा ना बिगड़ जाए। कुछ जाने बिना उसकी हेल्प भी नहीं कर सकती थी, इसलिए सुबह का इंतजार करना सही लगा। सुबह मोबाइल की घंटी से हड़बड़ाकर उठ गई। शेखर का नंबर देखकर लगा, सब ठीक होगा। उसने फोन रिसीव किया और तुरंत उसका बोलना चालू हो गया…

शेखर ; - ( फोन पर ) गुस्सा मत करना अंकिता प्लीज़… कल मैंने क्या कहा, क्या किया, मुझे सब पता है। मतलब मुझे याद सब है, लेकिन मैं होश में बिल्कुल नहीं था। सॉरी यार, प्लीज़ माफ़ कर दो। विश्वास करो मैं तुम्हे किसी तरह का दर्द नहीं देना चाहता, बल्कि मैं चाहता था, तुम साथ बैठ जाओ तो मैं थोड़ा सा सम्भल जाऊँ और तुम्हें सब कुछ बता पाऊँ। मेरी ज़िंदगी ऐसी कहानी है जिसे याद करना मुझे मौत से भी बद्तर लगता है। दिल में दबे दर्दनाक हादसे और कानों में गूँजती अतीत की बेदर्द आवाज़ें पसीने छुड़ा देती हैं। मैं सालों से अपने दर्द को चुनौती देकर हँसता रहा हूँ, पर कोई छेड़ दे तो कई रात सो नहीं पाता।

उस की आवाज़ भरभराने लगी थी, बोलते - बोलते वह चुप हो गया। अंकिता को कुछ भी जवाब नहीं सूझ रहा था, क्या बोले! बात को टालने के लिए उस ने काम पर बात शुरू करती दी और मीटिंग के लिए तैयार होने का बहाना बनाकर फोन काट दिया। शेखर को उसका व्यवहार अब और भी रूखा लग रहा था, मगर उस की तरफ़ उसका खिंचाव बढ़ गया था। उसको दुखी करके उसे अपने आप में बहुत बुरा लग रहा था।

यहाँ अंकिता मीटिंग की तैयारी के साथ वापस जाने की तैयारी भी कर लेती है। अगले दिन उन दोनों की वापसी की फ्लाइट थी। दरवाजे तक पहुँच कर उस का हाथ दरवाजा खोलने से रुक गया। वह शेखर को छोड़कर नहीं जाना चाहती थी पर उसे बुलाने में भी झिझक रही थी। रात के अपने व्यवहार के लिए वह शर्मिंदा था और अंकिता उदास। फिर कुछ सोचकर दरवाज़ा खोला और चीख़ते-चीखते रुक गई। दरवाज़े पर शेखर खड़ा था, बिना नॉक किए, बिना बताए, उसके निकलने का इन्तजार कर रहा था। वह अपनी घबराहट दबाते हुए मुस्कुरा कर बोली, ‘’कल जो हुआ उसे कल के साथ जाने दो। एक दिन का सफर और बचा है, आज हम साथ हैं। कल हो सकता है फ्लाइट तक भी साथ हों पर उसके बाद तो पता नहीं मिलना होगा या कभी नहीं। सिर्फ़ सात दिन का साथ है तो उसको क्या गुस्सा और शिकायतों से भरना! अभी चलो मीटिंग के लिए हम पहले ही लेट हो चुके हैँ।''

शेखर ; - ( सर झुकाकर ) आई एम सॉरी अंकिता, मैं बहुत शर्मिंदा हूँ, तुम्हें दुःखी करने का इरादा नहीं था।  सच में, मैं कल ख़ुद के बस में नहीं था। मेरा विश्वास करो, रात में जो हुआ कोई नाटक नहीं था। तुम्हारे साथ होने से एक सुकून सा मिलता है, और मैं सम्भल सकता था पर मैं… सच कहूँ मुझे कुछ समझ नहीं आया कि जो हुआ कैसे हुआ!!!

 

अंकिता मुस्कुराई और “कोई बात नहीं” कह कर आगे बढ़ गई। वह वहीं खड़ा रह गया, उसके साथ जाने की हिम्मत नहीं थी और उसके बिना जाना अच्छा नहीं लग रहा था। मीटिंग में जाना भी ज़रूरी था। इसी उधेड़बुन में था कि क्या करे तभी उस ने पलट कर आवाज़ लगाई। “चलो शेखर, मीटिंग शुरू होने तक तो पहुँच जाएं हम।”

उस के बुलाते ही वह पीछे चला गया जैसे उसके बुलाने का ही इंतजार कर रहा हो।  ख़ुद भी यही चाहता था, कि उस के साथ जाए, बस कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी। मीटिंग से लौटते हुए शेखर ने, डरते डरते उस के सामने लंच ऑफ़र किया। उस ने चुपचाप हाँ कह दिया और साथ चली गई। लंच करते हुए अंकिता ने फ़िर वही बात छेड़ दी।

अंकिता : - ( चम्मच खटकाते हुए ) दर्द को जितना दबाया जाए उतना दर्दनाक हो जाता है। बेहतर है उसे निकाल दिया जाए। दिल से बोझ कम हो जाता है और दर्द घाव नहीं बनता…। मुझे नहीं पता तुमने क्या सहा है पर कोई भी ज़ख्म इतना गहरा नहीं हो सकता कि उसे भरा नहीं जा सके। अपने आप को इतना खुश रखकर भी अपने दर्द से नहीं लड़ पाते?  ख़ुद को मज़बूत करो शेखर और निकाल दो, जो भी दिल में दबाकर रखा है।

अंकिता ने फ़िर उसी ज़ख्म को हवा दी थी जिसे याद करके उस के रोंगटे खड़े होते थे। खाना खाते उस का हाथ वहीं रुक गया। वह उसे संभालना चाहती थी और शेखर बिखरता जा रहा था। उसके कांपते हाथ देखकर उस ने सख़्ती दिखाई और उठकर खड़ी हो गई, मगर उसने  उसकी तरफ देखा भी नहीं। अंकिता ने उसकी स्पून ली और उसे देकर ध्यान से खाना खाने को कहा। उसने भी कोशिश की, ख़ुद को संभाल पाए… उसने स्पून ढंग से पकड़ी और फ़िर से खाने की कोशिश करने लगा।

वह मुस्कुरा दी कि शायद वह नार्मल हो रहा है, मगर उस के सामने तो जैसे खाने  की प्लेट थी ही नहीं! कुछ धुँधली तस्वीरें थीं और आसपास अजीब - अजीब आवाज़ें गूँज रही थीं। अंकिता ने खाना शुरू किया ही था कि एकाएक शेख़र ने लम्बी चीख़ मार दी, और दोनों हाथों से पूरा खाना नीचे गिरा दिया। कोई कुछ नहीं बोला, आसपास सब उसे देख रहे थे और वह टेबल पर मुँह छिपाकर बैठ गया। अंकिता ने उसे उठाया और जैसे तैसे टैक्सी तक ले गई। होटल जाते हुए उसके हाथ पर हाथ रखकर बोली, ‘’मेरी तरफ़ देखो शेखर, तुम जिससे डर रहे हो, गुजरा कल है… छोड़ दो उसे वहीं। मेरी तरफ देखो और बोल दो सब कुछ, जो भी डरावना लगता है। विश्वास करो, सब ठीक होगा, मैं तुम्हें उस भयानक अतीत से निकाल लूँगी। मैं नहीं डरती अतीत से, तुम भी मत डरो, मेरी तरफ़ देखो… और मेरे साथ उस दर्द का सामना करो। ‘’

अंकिता के बार बार बोलने पर भी वह उससे नज़र नहीं मिला पा रहा था। घबराता हड़बड़ाता सा किसी बच्चे की तरह उस से लिपट गया। वह उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए वही शब्द बार बार बोलती रही, “सामना करो, अपना डर निकालो”। होटल पहुँचने तक शेखर कुछ शांत हुआ, वह उसे कमरे में छोड़ने गई और बोली, “डरने की जरूरत नहीं है शेखर, दर्द कभी दबाकर रखने से ख़त्म नहीं हुआ है। अतीत को सोचो, उसका सामना करो और भूल जाओ।”

उस के जाते ही वह अपने गुजरे कल में खो गया… एक खूबसूरत सी लड़की उसे सामने नजर आने लगी। उसके बाल हवा में लहरा रहे थे और वह उस को अपने पास बुला रही थी। मुस्कुराते हुए वह उसके पीछे जा रहा था। अचानक वही लड़की जोर से हँसती है, उसकी खिलखिलाहट के साथ कितनी ही चीखें निकल रही थीं। उसके पीछे जाता शेखर रुक गया और घबराकर इधर - उधर देखने लगा। धीरे धीरे वह लड़की उसे चारों दिशाओं में हँसती हुई नजर आने लगी, शेखर ने अपने कानों पर हाथ रखा और ज़ोर से चीख मार दी… अंकिताअअअअअअअआ

 

शेखर की चीख अंकिता को सोने देगी ? क्या उसे एहसास हो पाएगा उसके दर्द का ???

क्या शेखर की कहानी वाक़ई इतनी दर्दनाक थी ???

जानने के लिए पढ़िए अगला भाग।

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