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नीचे आकर मोहन ने देखा कि अभी भी रात का अँधेरा था; लेकिन उस शहर के लोगों को जैसे इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ता था कि दिन है या रात, वे सारे तो बस भाग रहे थे, मानों कोई दौड़ ही रही है और हर कोई इस दौड़ को जीतना चाहता है।
मोहन किसी तरह रेलवे स्टेशन से बाहर आ गया और बाहर आकर फुटपाथ पर एक सीमेंट के लैंडमार्क के ऊपर बैठ गया, थैला उसने अपने पैरों में दबा रखा था और लाठी को आगे हाथ में पकड़ा हुआ था। कुछ देर बैठकर सोचने के बाद मोहन वहाँ से उठकर थोड़ा आगे बढ़ने लगा, तभी उसके पीछे से एक गाड़ी के हॉर्न की तेज आवाज आयी और मोहन पलटकर उस ओर देखने लगा। वह गाड़ी ठीक उसके बगल में आकर रुकी और उसमें से एक रौबदार व्यक्ति बाहर आया जो औसत कद का थोड़ा मोटा, यही कोई पैंतालीस वर्षीय व्यक्ति था।
"हेल्लो मिस्टर मोहन?" उस व्यक्ति ने मोहन के पास आकर जैसे उसका परिचय पूछा।
"ज...जी! लेकिन आप?" जवाब में मोहन ने भी उसका परिचय पूछा।
"अहा! भगवान तेरा लाख-लाख धन्यवाद! मुझे तो लगा था हमने आपको खो दिया जी मैं $एन. एम.आर्ट कम्पनी’ से आया हूँ, मेरा नाम शम्भूनाथ वर्मा है। कम्पनी द्वारा मुझे आपको लाने के लिए भेजा गया है, वह क्या हुआ कि ट्रेन आज लेट हो गयी तो मैं जरा स्टेशन के बाहर चाय पीने लगा, बस उतनी ही देर में गाड़ी आयी और आप गाड़ी से उतरकर बाहर आ गए। वह तो अच्छा हुआ कि आप मुझे मिल गए नहीं तो आज मेरी नौकरी तो गयी ही थी, साहब ने कहा था कि आप उनके स्पेशल गेस्ट हैं और मुझे आपको आपके होटल तक पहुंचाने से लेकर खाने-पीने तक का पूरा अरेंजमेंट देखना है। आप चाय पियेंगे? या फिर हम लोग सीधे होटल चलें?" शम्भूनाथ ने गाड़ी का दरवाजा खोलते हुए सम्मान के साथ मोहन को बैठने का इशारा करते हुए धीरे से पूछा।
मोहन को तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि कोई उसे भी इतना सम्मान देगा।
जी होटल ही चलिए, मैं नहाकर फ्रेश होकर ही चाय-नाश्ता ले लूँगा।" मोहन ने गाड़ी में बैठते हुए धीरे से कहा, हालांकि मोहन को बहुत तेज़ भूख लगी हुई थी क्योंकि सुबह से उसने बस दो समोसे खाकर पानी ही पिया था।
"ठीक है मोहन जी जैसी आपकी इच्छा।" शम्भूनाथ ने भी गाड़ी में बैठकर दरवाजा बंद करते हुए कहा और ड्राइवर को गाड़ी चलाने का संकेत कर दिया।
लगभग आधे घण्टे बाद गाड़ी एक होटल के सामने जाकर रूकी, होटल बाहर से देखने पर ही बहुत बड़ा और महंगा दिखाई दे रहा था, मोहन सोच रहा था कि अगर उसे यहाँ रहने के पैसे देने पड़े तब तो उसे खुद को बेचना पड़ जायेगा और शायद तब भी वह इस होटल का किराया ना दे सके।
"क्या हुआ मिस्टर मोहन? चलिए मैं आपको आपके रूम तक छोड़ देता हूँ फिर आपको जो भी नाश्ता करना होगा आप ऑर्डर कर दीजिएगा।" शम्भूनाथ ने आगे आते हुए कहा।
"ज...जी! क्या हम किसी सस्ते...?" मोहन ने हिचकिचाते हुए धीरे से कहा।
"आप चिंता ना करें मोहन जी कम्पनी ने आपके तीन दिन के रहने का एडवांस पे होटल को कर दिया है, बाकी जो आपके खाने का बिल होगा वह भी सब कम्पनी के खाते से हो जाएगा। आप तो बस निश्चिंत होकर एन्जॉय करें और इस खादिम को भी जाने की अनुमति दें। चलिए देर हो रही है हमें, आपके आराम की व्यवस्था सुनिश्चित करके मैं सर को बताकर अपने घर जाकर थोड़ा आराम करना चाहता हूँ सर।" शम्भूनाथ ने मधुर स्वर में कहा और मोहन बिना कुछ बोले उसके पीछे चलने लगा।
रिशेप्शन पर जब शम्भूनाथ ने अपना परिचय दिया तो रिसेप्शनिस्ट खड़ा हो गया और एक वेटर को आवाज देकर कमरे की चाभी देकर उसे कुछ समझा दिया।
"चलिए सर मैं आपको आपके रूम में ले चलता हूँ। वेटर ने मोहन के हाथ से थैला लेने के लिए हाथ बढ़ाते हुए कहा लेकिन मोहन ने वह थैला अपने हाथों में मजबूती से पकड़ लिया मानों उसमें कोई अनमोल खज़ाना हो या फिर वह थैला किसी और के हाथ में जाने से मोहन का कोई राज खुल जायेगा।
"चलिए हम इसे खुद ही ले चलेंगे, ऐसे भी यह बिल्कुल भी भारी नहीं है।" मोहन ने धीरे से कहा और वेटर के साथ चल दिया।
"सर हमने आपकी सुविधा के लिए नीचे की मंज़िल पर ही रूम लिया है। सर ने कहा था कि आपको बिल्कुल भी कष्ट नहीं होना चाहिए।" शम्भूनाथ ने मोहन के पीछे-पीछे आते हुए चापलूसी भरे स्वर में कहा।
"लीजिए सर ये आ गया आपका रूम, अब आप फ्रेश हो जाएं चाहे आराम करें, आप चाहें तो चाय, काफी या स्नेक्स का ऑर्डर मुझे दे सकते हैं मैं कुछ ही देर में ले आऊँगा।" वेटर ने कमरा खोलकर अंदर आते हुए कहा।
कमरे में आकर मोहन की आँख फ़टी की फटी रह गयीं, मोहन ने तो आज तक सपनों में भी ऐसा कमरा नहीं देखा था। यह एक बड़े आकार का रूम था जिसमें एक किंग साइज का डबलबेड पड़ा हुआ था, साथ ही एक शानदार सोफा और ग्लास की गोल टेबल रखी हुई थी। कमरे में एयरकंडीशनर लगा हुआ था जिसके कारण मोहन को गर्मी में भी ठंड का एहसास हो रहा था।
"बाथरूम इधर है सर, इसमें ठंडा-गर्म दोनों तरह का पानी हर समय उपलब्ध है।" वेटर ने बाथरूम खोलते हुए कहा।
"ठीक है अभी आप जाओ जब जरूरत होगी आपको बुला लेंगे।" शम्भू नाथ ने कहा और वेटर चला गया।
"लीजिए मोहन जी यह रहा आपका रूम, और कोई सेवा हो तो बताइएगा।
बाकी आप नहा कर फ्रेश हो जाईएगा और इस बटन को दबाकर आपको जो भी चाहिए कह दीजिएगा सब यहीं आ जायेगा। अब मैं चलता हूँ शाम को छः बजे आप तैयार रहिएगा मैं आपको प्रदर्शनी में ले जाने के लिए आ जाऊँगा। हमारे सर आपको वहीं मिलेंगे।" शंभूनाथ ने कहा और बाहर निकल गया।
अभी सुबह के छः बजे थे और मोहन को आर्ट गैलरी शाम को छः बजे जाना था, मोहन के पास पूरे बारह घण्टे थे आराम करने और सोचने के लिए। ट्रेन में वह लेटकर ही आया था तो उसे कोई खास थकान भी नहीं हो रही थी और ना ही उसे नींद आ रही थी।
मोहन सबसे पहले बाथरूम गया, मोहन ने जैसे ही बाथरूम का गेट खोला वह चौंक गया, "बाप रे! यह बाथरूम है? इतनी बड़ी तो हमारी बैठक भी नहीं है।" मोहन खुद में ही बड़बड़ाया और बाथटब की ओर बढ़ गया। मोहन आज तक बस गाँव में ही रहा था, किसी बड़े शहर तो छोड़ो वह तो कभी किसी शहर में भी नहीं गया था। मोहन को कुछ देर तो समझ में ही नहीं आया कि यहाँ नहाया कैसे जाये? फ्रेश तो वह ट्रेन में ही हो लिया था नहीं तो यहाँ तो उसका पेट भी साफ नहीं होता। मोहन ने जैसे-तैसे एक बाल्टी को पानी से भरा, अब तक लेकिन उसे यह समझ आ गया था कि यहाँ गर्म पानी कैसे आता है और ठंडा कैसे। मोहन ने दो बाल्टी पानी से अच्छी तरह स्नान किया और अपने साफ कपड़े पहनकर कमरे में आकर शम्भूनाथ का बताया बटन दबा दिया, दो मिनट बाद ही उसके कमरे के दरवाजे पर एक वेटर हाथ बांधे खड़ा था, "आप क्या लेना पसंद करेंगे सर?" वेटर ने बहुत सम्मान से पूछा।
"एक चाय और डबल रोटी मिल सकती है क्या?" मोहन ने वेटर की ओर देखते हुए कहा।
"व्हाट?? चाय और रोटी...?" वेटर कन्फ्यूजन में बड़बड़ाया।
"अरे भाई डबल रोटी...अरे वह जो चाय में डुबोकर खाते हैं।" मोहन ने अपनी तरफ से वेटर को समझाते हुए कहा।
वेटर को कुछ समझ में नहीं आया और वह सिर ठोकते हुए चला गया।
"क्या यार! कहाँ-कहाँ से गंवार लोग होटल में आ जाते हैं। चाय के साथ डबलरोटी माँग रहा है वह लंगड़ा! मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा।" वेटर ने पैंट्री में जाकर बड़बड़ाते हुए अपने साथियों से कहा।
"शशः!! धीरे बोलो, वह कोई बड़े चित्रकार हैं और मित्तल साहब के खास मेहमान। देखा नहीं था शंभूनाथ जी खुद सुबह के पाँच बजे उन्हें यहाँ लेकर आये थे। अरे ये कलाकार लोग ऐसे ही होते हैं आधे गायब दिमाग, इन्हें बस अपने काम से मतलब होता है बाकी ये क्या खाते हैं क्या पहनते हैं उस से इन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता। तू भाई ऐसा कर चाय के साथ ब्रेड बटर ले जा और उनसे कोई ऐसी बात मत करना जो उन्हें बुरी लग जाये नहीं तो तू मित्तल साहब को जनता ही है फिर।" एक सीनियर वेटर ने उस वेटर को समझाते हुए कहा।
कुछ ही देर बाद वेटर चाय और ब्रेड लेकर मोहन के रूम में आ गया।
"लीजिए सर आपका ब्रेकफास्ट, आप लंच में क्या लेना पसंद करेंगे सर?" वेटर ने यह सोचकर कि ये न जाने क्या माँग ले, तैयारी करने के लिए पहले ही पूछ लिया।
"लंच?? खाने में पूछ रहे हो आप शायद? भाई कोई भी दाल और चावल चल जाएँगे साथ ही कोई अचार और एक गिलास मट्ठा बस।" मोहन ने कहा और वेटर की ओर बिना देखे चाय की ओर बढ़ गया।
वेटर फिर अपना सिर खुजाते हुए कमरे से बाहर निकल गया।
मोहन ने आराम से चाय पी और कुछ देर इधर-उधर टहल कर फिर बिस्तर पर लेट गया। कुछ ही देर में एक बार फिर मोहन को नींद आ गयी। नींद में मोहन की ऐसा लग रहा था कि वह रागनी की गोद में सिर रखकर लेटा हुआ है और रागनी प्यार से उसके बालों में उंगलियां घुमा रही है।
कुछ ही देर में मोहन की आँख खुल गयीं लेकिन उसे रागनी कहीं दिखाई नहीं दी। वह एक बार फिर रागनी को पुकारने लगा, "रागनी! रागनी कहाँ हो तुम? मैं जानता हूँ कि तुम अभी यहीं थीं, मैं तुम्हारी खुशबू महसूस कर सकता हूँ। पूरे पाँच साल हो गए रागनी तुम्हें देखे हुए, ये तड़फ अब और मुझसे बर्दास्त नहीं होती। एक बार मेरे सामने आ जाओ रागनी बस एक बार तुम्हें देख लूँ, उसके बाद मौत भी आ जाये तो कोई फिक्र नहीं।" मोहन उस कमरे के कोने-कोने में रागनी को खोजते हुए आवाज लगा रहा था। अचानक कमरे की एक अलमारी में मोहन को चित्रकारी का सामान रखा दिखा, मोहन ने उस समान को उठाकर केनवास सेट किया और फिर चित्र बनाने लगा।
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