बचपन में अक्सर हमें सिखाया जाता था कि किताबें इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं—वो दोस्त जो कभी धोखा नहीं देतीं, हमेशा ज्ञान का खज़ाना लुटाती हैं, और हमें हमारी कल्पनाओं की दुनिया में ले जाती हैं। इस लाइब्रेरी का माहौल कुछ और ही कहानी बयां कर रहा था। यहाँ की किताबें न तो सुकून दे रही थीं और न ही कोई दोस्ताना एहसास।
अंश के किताब खोलने के बाद, धीरे धीरे सब खुद को तैयार करने लगे। चारों किरदार धीरे-धीरे अपनी ज़िंदगी के सबसे कड़वे पलों में वापस खींचे जा रहे हैं, जैसे उन्हें कोई अदृश्य शक्ति उनके अतीत में ले जा रही हो। हवा भारी हो चुकी है और हर किरदार के दिल की धड़कन तेज़ हो रही है।
लाइब्रेरी की दीवारों में एक अजीब सी खामोशी थी। वो पल, वो गलती जिसे वे सबसे ज्यादा भूलना चाहते थे, अब उनकी आंखों के सामने फिर से घटित होने लगती है।
लाइब्रेरी की हर एक किताब से निकलती रोशनी अब एक अलग रंग में चमक रही है, जैसे हर किरदार का पछतावा एक अलग रंग में बंधा हो। किताबें धीरे-धीरे खुद से पलट रही हैं।
हर इंसान के सामने वो लम्हा फिर से खड़ा था, जिसने उनकी ज़िंदगी को जड़ से हिला दिया था। अब कोई पीछे हटने का रास्ता नहीं था। इस बार उन्हें न केवल उस पल का सामना करना था, बल्कि उसकी सच्चाई को जीना था, जैसे वो अतीत नहीं, बल्कि एक ताजा अनुभव बनकर उनकी आंखों के सामने दुबारा घटित हो रहा हो।
राघव: “मैं... मैं फिर से उस दिन का सामना कैसे कर सकता हूँ?”
राघव उससे दूर भागने के लिए उस किताब को बंद करने की कोशिश करता है लेकिन बंद नहीं कर पाता, जैसे किताब का control उसके हाथ में हो ही न, जैसे किताब उससे ये बताना चाहती हो की - यहाँ तुम्हारी नहीं मेरी मर्ज़ी चलेगी।
राघव को अपने सामने अब वो दिन दिखाई दे रहा है, जब उसने एक छोटी सी गलती की वजह से एक मासूम जान को खो दिया था।
राघव: “नहीं... नहीं... ये सब फिर से नहीं हो सकता। मैंने उस दिन सब कुछ खो दिया था।"
राघव खुद को देख रहा है, ठीक उसी पल में, जब उसने ऑपरेशन किया था। हर छोटी-छोटी चीज़, हर डिटेल अब सामने थी। हवा में ब्लीच की तेज़ गंध और हॉस्पिटल की मशीनों की बीप-बीप की आवाज़ फिर से गूंजने लगी है। अब उसे ये सब देखकर उस दिन का एक-एक पल याद आ रहा है और एक तीखी सुई की तरह चुभ रहा है । उसके हाथ कांप रहे थे, जैसे एक हेल्पलेस सर्जन के सामने एक पेशंट हो और सब कुछ होते हुए भी वो कुछ न कर सकता हो।।
राघव: “ये... ये सब फिर से नहीं हो सकता। मुझे कुछ करना होगा। मुझे इसे बदलना होगा।”
मशीनों की आवाज़ धीरे धीरे बढ़ती जाती है और एक वक़्त के बाद इतनी तेज़ हो जाति है की उससे कुछ और सुनाई ही नहीं दे रहा। राघव फर्श पर बैठ जाता है और अपने कानों को अपने हाथों से ढक लेता है। वह अपने अतीत को रोकने के लिए चिल्लाता है, अपने हाथों से रोकने की कोशिश करता है, लेकिन वो कुछ नहीं कर सकता। यादें वैसी ही हैं, जैसी वो थीं।
राघव ने हर संभव कोशिश की, लेकिन वो अपनी उस गलती को बदल नहीं सकता था। यादें ज़िंदा हो चुकी थीं, लेकिन वो बस एक साइलेंट ऑब्जर्वर था, जो अपने अतीत को फिर से जीने के लिए मजबूर था।
उधर अनीशा के सामने भी उसका सबसे बड़ा पछतावा खुल रहा है। वह दिन जब उसने अपनी बेटी को छोड़ दिया था। उसकी आंखों के सामने उस दिन की हर घटना फिर से घटित हो रही है। उसे वही स्टेशन, वही भीड़, और उसकी बेटी की मासूम सी आवाज़ याद आ रही है।
अनीशा: “नहीं... नहीं! मैं फिर से ये सब नहीं देख सकती।"
अनीशा के सामने स्टेशन का दृश्य खुलता है। उसकी बेटी उसे हाथ पकड़ने के लिए पुकार रही है, लेकिन अनीशा के लिए उसके सपने पहले थे और बाकी सब बाद मे। वह उस दिन पीछे मुड़कर नहीं देखी थी, लेकिन आज वह फिर से उस पल को जीने के लिए मजबूर थी। उसकी आंखों में आंसू भर आए हैं, और उसके पैर कांपने लगे हैं।
उसका पति और उसकी बच्ची उसको रोकने की कोशिश कर रहे हैं पर वो नहीं रूकती। उस बच्ची की आवाज़ धीरे धीरे उसको पुकार रही है और अनीशा बस उसकी तरफ देखके रोने लगती है, अब बच्ची की पुकार बढ़ती जा रही है और उसकी चीखें इतने तेज़ होगयीं हैं जैसे मानो अनीशा को कुछ और न दिखाई या सुनाई दे रहा हो।
अनीशा: “मैंने उसे क्यों छोड़ा? मैं उस दिन... काश मैं कुछ और सोच पाती।"
वह अपनी बेटी की ओर दौड़ने की कोशिश करती है, लेकिन उसके कदम वहीं ठहर जाते हैं। वह अपनी बेटी की तरफ हाथ बढ़ाती है, लेकिन हवा में उसका हाथ जैसे ठहर जाता है। यादें उसे वहीं रोक देती हैं।
ये सिर्फ यादें नहीं थीं। ये वो पल थे, जिन्होंने उनकी ज़िंदगी को बदल दिया था और अब उन्हें इन पलों को फिर से जीने का दंड मिल रहा था।
सक्षम भी अपनी गलती को फिर से देख रहा है। वह दिन, जब उसने अपने पद और ताकत का गलत इस्तेमाल किया था। उसके सामने उस घूस का दृश्य खुल रहा है, जब उसने लालच के चलते हजारों लोगों की ज़िंदगियों को प्रभावित करने वाला डिसिज़न लिया था।
सक्षम: “मैंने ये क्यों किया? काश मैंने उस दिन मना कर दिया होता।"
सक्षम के सामने वो कागज़ फिर से उभर आता है, वही कागज़, जिस पर उसने वो साइन किए थे, जो ना सिर्फ उसकी ज़िंदगी, बल्कि हजारों लोगों की ज़िंदगियों को बदलने वाला था। उसकी आंखों के सामने वो पल बार-बार घूम रहा है—कलम उसके हाथ में है, उसकी उंगलियां उस कागज़ पर थरथरा रही हैं, लेकिन उसने वो साइन कर दिए। उस पल, उसे नहीं पता था कि ये छोटा सा काम कितनी बड़ी तबाही लेकर आएगा।
अब, उस पल को देखते हुए सक्षम जैसे समय में कैद हो गया है। वो सब कुछ फिर से जी तो रहा है, लेकिन कुछ भी बदलने की ताकत नहीं है। सक्षम वो हर गलती देख रहा था, जिसे उसने कभी नहीं किया होता, तो उसकी ज़िंदगी कुछ और होती।
ये चारों किरदार अब एक-एक करके अपनी-अपनी यादों में पूरी तरह से डूब चुके थे, जैसे कोई इंसान किसी पुरानी दर्दभरी फोटो को बार-बार देखने पर मजबूर हो जाए।
जिस तरह हम कभी किसी गलती को दिल से मिटा देना चाहते हैं, लेकिन ज़िंदगी अचानक उस गलती को फिर से सामने लाकर खड़ा कर देती है, ठीक उसी तरह ये लोग अब अपनी ज़िंदगी के उस कड़वे लम्हे का सामना कर रहे थे, जिसे वे हमेशा के लिए भुला देना चाहते थे।
क्या कभी किसी ने सोचा होगा की भुला देने की कीमत कभी कभी उस पल को सैकड़ों बार जीकर चुकानी पड़ेगी।
एक-एक करके सब वापस लाइब्रेरी के उसी अंधेरे, रहस्यमयी कमरे में लौट आते हैं। उनके चेहरों पर पसीने की बूंदें चमक रही हैं, सांसें तेज़ और बेकाबू हो चुकी हैं। हर कदम उनके लिए भारी पड़ रहा है, जैसे शरीर में जान ही ना बची हो। उनके चेहरे पर गहरे दर्द और पछतावे के निशान साफ-साफ उभर रहे हैं, जैसे अभी-अभी किसी भयानक सपने से जागे हों, लेकिन ये सपना नहीं था।
अभी तो बस शुरुआत हुयी है, पता नहीं अभी क्या क्या देखने को बचा है।
अनीशा: “ये... ये तो सिर्फ शुरुआत है, है ना? हमें... हमें अभी और भी देखना होगा।”
राघव: “हां... ये सब कुछ नहीं था। हमें अभी और भुगतना है।”
चारों एक-दूसरे की ओर देखते हैं और उन्हें पता है कि उन्हें इसका सामना बार बार करना होगा। उनके चेहरों पर दर्द साफ दिखाई दे रहा था। आँखों में एक अजीब सा खालीपन था, जैसे सारी उम्मीदें उन पलों में कहीं खो गई हों।
सक्षम: "लेकिन सब कुछ होते हुए भी इस किताब ने पूरी कहानी नहीं दिखाई, ऐसा क्यों?"
अंश: 'पूरी कहानी? मतलब"
राघव: "हाँ सही कह रहे हो, ये बस कुछ पल थे उस वक़्त के लेकिन सब कुछ नहीं था। क्या ऐसा जान बूझकर किया होगा?
भले ही उन्होंने वो सब देखा हो जिसके लिए वो तैयार नहीं थे लेकिन उनके मन में कुछ डाउट्स जाग रहे थे और कई सवाल भी। जैसे मानो ऐसा लग रहा हो की कुछ तो है जो अब भी उनसे छुपाया जा रहा है
ये सबकुछ अभी खत्म नहीं हुआ था। उन्हें अभी अपनी गलतियों का और सामना करना था। उनके सामने अभी असली इम्तिहान आने वाले थे पर सवाल ये था की वो क्या होंगे? कैसे होंगे? और क्या उनमें उनसे लड़ने की हिम्मत है?
कमरे के एक कोने में लाइब्रेरियन खड़ी है , उसकी परछाई अब भी दीवारों पर झलक रही है। वह उन्हें चुपचाप देख रही है, बिना कोई मदद किए। उसकी मौजूदगी ने उन्हें और भी डरा दिया है, लेकिन वो समझ नहीं पा रहे थे कि वह क्या चाहती है।
राघव: “वो... वो हमें क्यों नहीं बता रही कि हमें क्या करना है? वो बस देख रही है।”
अंश: “शायद यही उसकी योजना है। वो चाहती है कि हम खुद इसका सामना करें।”
लाइब्रेरियन, जो अब तक कमरे के एक कोने में खामोशी से खड़ी थी, उनकी हर हरकत को बारीकी से देख रही थी। उसकी आंखों में कोई स्पष्ट भावना नहीं थी—न हमदर्दी, न दया, न गुस्सा। बस एक अजीब सी ठहराव वाली गहराई।
उसकी निगाहें जैसे इन चारों की आत्माओं में झांक रही थीं, लेकिन उसके चेहरे पर कोई हलचल नहीं थी। वह बस खड़ी रही, पूरी तरह स्थिर, मानो वक़्त को रोक रखा हो। ऐसा लग रहा था मानो लाइब्रेरियन खुद इस कहानी की लेखिका हो, जो सिर्फ अपने पात्रों को देखना चाहती है।
चारों के मन में एक अजीब सा गुस्सा उमड़ रहा था, की ये लाइब्रेरियन कोई मदद करने वाली नहीं बल्कि उनकी दुश्मन नज़र आ रही थी जिसके दिल में उसके सामने सफर करते हुए लोगो के लिए कोई हमदर्दी नहीं थीं।
चारों अब एक अजीब सी उलझन में हैं। उन्होंने अपनी सबसे बड़ी गलतियों का सामना तो कर लिया है, लेकिन अब उन्हें इसका सोल्यूशन ढूंढना होगा।
क्या वे अपनी गलतियों से उभर पाएंगे? या ये लाइब्रेरी हमेशा के लिए उनकी जेल बन जाएगी?
क्या वो भी इन किताबों में समा जायेंगे?
आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में!
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