रवि ऑफिस में टहल रहा है। वो संजय की ऑफिस की तरफ जाता है और उनसे बात करने लगता है।

आजकल अगर एक भी दिन ऐसा जाए, जिसमें संजय से थोड़ी सी तू तू मैं मैं न हो, तो लगता है की कुछ तो अधूरा अधूरा सा है। मानो संजय ऑफिस का CFO न हुआ, मेरी बीवी हो गया है। और सुबह से अब तक तो उससे कम से कम 10 बार पंगा हो जाना चाहिए था। पर वो तो बस अपने कैबिन में बैठा मुझे ऐसे  घूरे जा रहा था जैसे कल के क्राइम पैट्रोल के एपिसोड में मेरी ही कहानी चलने वाली है। वो क्या है न बुरा लगा है न बैचरे को, कल तक अनीता मैडम इसकी टीम में थी और ये दोनों टर्न ले लेकर मेरे लिए मुश्किलें खड़ी करते थे। पर अब अनीता मैडम ने इसकी टीम ऐसे छोड़ दी जैसे IPL में लखनऊ सुपर जाइन्टस ने KL Rahul को। इसलिए आज मैं ही अपने कैबिन से निकाल कर संजय से मिलने उसके कैबिन की तरफ चल दिया।

रवि: संजय सर आज आप बहुत शांत हैं? लग ही नहीं रहा की आप ऑफिस में आए भी हैं या नहीं।

संजय: क्या ही बोलू सर, वैसे आप हो तो खतरनाक, कुछ न कुछ जुगाड़ करके लोगों को अपने साथ कर ही लेते हैं।

रवि: इसमें मैं कुछ भी नहीं करता सर, क्या है की अच्छे लोगों के साथ, अच्छे लोग खुद ब खुद जुड़ ही जाते हैं। वैसे आप हमेशा अकेले क्यू रहते हैं।

मज़ा तो आता है, संजय से पंगे लेने में थोड़ा थोड़ा मज़ा तो आता ही है। अब मन को शांति मिलती है संजय सर में उंगली करके। न जाने ये रिश्ता क्या कहलाता है?

संजय: ठीक कहा सर अच्छे लोग ही अच्छे लोगों के साथ जुडते हैं। इसलिए यहाँ ज्यादातर अकेला ही रहता हु।

ओह्ह, इसने तो नहले पर दहला मार दिया। इसका तो कोई जवाब नहीं है मेरे पास। मैनें सोच नहीं था की ये डाइलॉग ऐसे बैक्फाइर मारेगा। खैर 100 सुनहार की तो एक लौहार की। लेकिन वो कहते हैं न की बॉस इस ऑल्वीज़

राइट, और यहाँ पर बॉस कौन है? मैं। मैं हु यहाँ का बॉस। पता नहीं कब तक के लिए, पर अभी तो मैं ही हूँ। इसलिए अब टाइम आ गया है अपना बॉस कार्ड खेलने का।

रवि: बिल्कुल सही, वैसे अच्छे इंसान को इतने गंदे लोगों के बीच नहीं रहना चाहिए। क्या है की अगर एक मछली पूरा तालाब गंदा कर सकती है तो सोचो इतनी गंदी मछलियाँ मिलकर एक अकेली याची मछली का क्या हाल करेंगी? और अगर आपको इसमें कोई मदद चाहिए तो मैं हूँ न, सीधे मुझसे बात करना। मैं आपकी [पूरी मदद कर सकता हूँ।

अब बोल, अब बोल, अब बोल न… हो गई न बोलती बंद। यार ये हेड होना ऐसी सिचुएशन में तो मजेदार लगता है। जब संजय की बोलती ऐसे बंद होती है मेरे सामने तो न जाने क्यूँ एक अलग ही परमानन्द की अनुभूति होती है। ऑफिस में सब कुछ पुराना हो सकता है पर शायद हमारा ये चूहे बिल्ली का खेल कभी पुराना नहीं होगा। क्या है न की भले ही शुरू मजबूरी में किया था, पर अब मजा आ रहा है। हाँ, पर इसका ये मतलब नहीं है, की हम एक दूसरे से नफरत करते हैं। बिल्कुल नहीं। कम से कम मेरी तरफ से तो नहीं। उसकी तरफ से भी नहीं ही होगा। मुझे लगता है की हमारा रिश्ता थोड़ा थोड़ा देवरानी जेठानी जैसा ही है। एक दूसरे को परेशान कीये बिना दिन ही नहीं कटता। अभी हमारी तू तू मैं मैं चल ही रही थी की तभी शालिनी मैडम हमारे पास आकार बोली।

शालिनी: रवि, अनिता से तुम्हारी बात हो गई न?

रवि: जी मैडम।

शालिनी: तुम्हें मालूम है न, कि क्या करना है तुम्हें?

रवि: हाँ मैडम, एक स्पीच देनी है अच्छी सी।

शालिनी: यस, और जिस जिस को अवॉर्ड देने हैं उनकी लिस्ट भी तुमको मिल जाएगी। वो अवार्ड्स भी तुम ही दोगे। और संजय सर, वो बजट का पेपर वर्क में कितना और टाइम लगेगा?

संजय: मैडम, मैंने सबको इन्वाइस भेज दिया है। लैस डेट एक वीक की है, जैसे ही सब इन्वाइस भर कर भेजेंगे मैं सारे पापर्स कम्प्लीट कर दूंगा।

शालिनी: ठीक है, जैसे ही पेपर्स कम्प्लीट हों, रवि से साइन करवा कर अप्रूव करवा लीजिए।

संजय: ओके, मैम।

शलिनी मैडम के जाते ही मैंने भी संजय को उसके हाल पर छोड़ दिया, क्या है की पंगे उतने ही लो जीतने संभाल पाओ। अगर कहीं ये संजय कोई टेक्निकल टर्म फेंक कर मार देता, तो सबके सामने मेरी भी बोलती वैसे ही बंद हो जाती जैसे अभी संजय की हुई थी। यार ये टेक्निकल चीजें सीखनी ही पड़ेंगी, आखिर कब तक यूं ही इनके दर से ऐसे बच बच कर जीना पड़ेगा। और मुझे पता है की इस पूरे ऑफिस में सबसे अच्छे से इन तेक्नीकलिटीस को कौन सिख सकता है? ईसलिए अब टाइम है रमेश अय्यर से कुछ बात करने का। ये रमेश भी न, अलग ही पीस बनाया है भगवान नें। सारा दिन कंप्युटर पर निगाह गड़ाए पता नहीं क्या करता रहता है। शायद GTA वाइस सिटी खेलता होगा, वैसे भी जब भी बात करो तब यही बोलता है कि ये कोड सही करना है, ये कोड गलत है, कोड, कोड, कोड, कोड। इतने कोड तो GTA में ही होते हैं। इसकी जॉब ठीक है यार। सारा दिन गेम खेलने के पैसे मिल रहे हैं इसे। मुझे भी कुछ ऐसी ही जॉब दे देते, कम से कम ये रोज की माथा-पच्ची से तो बचता। खैर चल कर थोड़ा सीख लिया जाए।

रवि: अय्यर सर, कैसे हो?

अय्यर: अरे रवि सर, बताइए क्या हुआ? कोई काम था?

रवि: नहीं, नहीं, मैं तो बबस ऐसे ही ऑफिस में बैठा बैठा बोर हो रहा था तो बात करने चल आया। आप कुछ काम कर रहे हैं?

अय्यर: नहीं, कुछ खास नहीं। एक मिशन कम्प्लीट करना है उसी पर अटका हुआ हूँ।

खास होगा भी क्या, GTA का कोई मिशन कम्प्लीट कर रहे होंगे, उसी में अटके होंगे।

अय्यर: बस उस मीटिंग वाले प्रोग्राम का बग दूर करने की कोशिश कर रहा हूँ।

ओह्ह अच्छा, मैं तो कुछ और ही समझा था। इन लोगों की प्रॉबलमस भी कितनी बचकानी हैं यार। आब देखो, बग, बग का मतलब होता है, कीड़ा। जैसे मच्छर, मक्खी, टिड्डा, हैं ना? तो इनको दूर करना है तो हिट मारो ना। ऐसे सर पकड़ कर क्या बैठना।

रवि: अगर कोई बग परेशान कर रहा है तो हिट मार दीजिए। ऑफिस में हिट तो होगा ही?

अय्यर: नो सर, इट डसंट वर्क लाइक दिस। टेक्निकल टर्म्स में बग का मतलब (Realisation pause) ओह वेट, यू अरे आ जीन्यस सर, ब्रिलियंट।

रवि: ऐसा भी कुछ नहीं कर दिया मैंने।

अय्यर: नो सर, आप हो, आपको पता नहीं है, पर आप हो। अगर मैं इसकी Hyperlink-Induced Topic search मतलब HITS को अगर चेंज कर दूँ। तो ये सारी इन्फो औठोराइसड और रेलेवेंट पेज से ही लेगा। और बस, काम हो जाएगा। बोल था न यू अरे जीन्यस।

wow, एक हिट स्प्रे से इतना कुछ होता है। मुझे नहीं पता था यार। खैर, क्या ही बोलू? ये अय्यर सर का तो हर बार का ही है। अजीब अजीब सि तो प्रॉब्लमस लेट हैं, फिर मैं कुछ भी बोल दु, तो ऐसे ही शुरू हो जाते हैं। पक्का ये स्कूल में बहुत बुली हुए हैं। ऐसे ही लोग होते हैं जिन्हें बचपन में बैक बेंचर्स परेशान करते हैं। अगर हम एक ही स्कूल में पड़े होते तो पक्का सीट पर बैठते वक्त मैंने इनके पीछे कम्पस जरूर भोंकी होती। चलो छोड़ो, अब पस्त में देखने से क्या ही फायदा, अभी तो अपना फ्यूचर ही बच लेता हूं।

रवि: अच्छा अय्यर सर, आपसे थोड़ी मदद चाहिए थी।

अय्यर: यस, बोलिए?

रवि: सिर आपको तो सब पता ही है। मुझे कहाँ से उठा कर कहाँ पटक गया है। और न जाने कैसे और कब तक मुझे यहीं रहना पड़ेगा। ईसलिए मैं चाह रहा था की अगर आप मुझे थोड़ा बहुत काम के बारे में सिखा दो, तो टाइम पास करने के लिए मुझे यूं हर किसी के ऑफिस में घूमना नहीं पड़ेगा।

अब अय्यर को ये तो नहीं बता सकता था कि अगर थोड़ा काम आता होगा तो संजय में खुल कर उंगली कर सकता हूं, इसलिए ये बोल दिया। मेरी बात सुन कर न जाने अय्यर सर को क्या हुआ की वो फिर रुके ही नहीं। उनकी गाड़ी सीधे टॉप गेयर में पहुँच गई। बाइ गॉड, इतनी स्पीड में तो शंकर महादेवन ने ब्रीथलेस भी नहीं गया है। मुझे लगा जैसे अय्यर में एमिनेम की आत्मा आ गई। सच कहूँ, कुछ समझ नहीं आया, बस एक बात के। इनसे ऐसे कुछ भी पूछना बेकार है। सीधी उंगली से घी नहीं  निकलेगा। मतलब अब घी निकालने के लिए उंगली टेड़ी ही करनी पड़ेगी। और टेड़ी उंगली का तो मैं मास्टर हूं। अय्यर सर मुझे ऐसे ही जीन्यस थोड़े ना कहते हैं।

 

(To be continued)

 

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