"ये क्या बदतमीज़ी है रेहाना? हमने एक बार कह दिया ना कि हमने किसी आदमजात को गायब नहीं करवाया फिर आप हमारी बात मानती क्यों नहीं हो? और रही बात तुम्हारी मोहब्बत की तो कान खोल कर सुन लो, हम यह बिल्कुल नहीं चाहेंगे कि हमारी अपनी औलाद हमारे मुँह पर स्याही पोत कर चली जाए तो अबसे आप यहाँ से कहीं नहीं जाओगी और अगर आपने हमारी बात नहीं मानी तो फिर हम भूल जायेंगे कि आप हमारी बेटी हो और हम आपको कोई सख्त सजा देंगे। अब जाओ अपनी अम्मी के पास, हम आते हैं अभी। आज हम आपकी अम्मी से भी बात करेंगे क्योंकि उनकी ही मेहरबानी से आप इधर-उधर घूमती रहती हो।" रेहाना की बात सुनकर बाबा बहुत गुस्से से बोले।
"बाबा! आप जो सज़ा देंगे वह हम देख लेंगे लेकिन उससे पहले हमारा यह पता लगाना बहुत ज़रूरी है कि मोहन जी कहाँ हैं। हम पहले उन्हें खोज लें फिर अम्मी के पास भी चले जायेंगे।" रेहाना ने जवाब दिया और पीछे घूम गयी।
"रुक जाओ रेहाना! अब आप यहाँ से कहीं नहीं जा सकती। हमारी बात मान लो और चुपचाप अपनी अम्मी के पास चली जाओ। एक तो आपके ऐसे खुलेआम घूमने की वजह से सारी जिन्न बिरादरी हम पर हँसती है और जब उन्हें पता चलेगा कि हमारी बेटी इतने सारे जिन्नजादों को छोड़कर एक आदमजात से मोहब्बत करती है तो हमारा तो बिरादरी में रहना ही मुश्किल हो जाएगा। हम इस जिन्न कबीले के सरदार हैं रेहाना, हमारी इज्जत का कुछ तो ख्याल करो।" रेहाना के बाबा ने थोड़ा नरम स्वर में रेहाना को समझाते हुए कहा।
"कौन सी बिरादरी बाबा? वही ना जो मेरे एक हाथ का पैदा होने पर आप पर हँसने आयी थी और मेरे पैदा होने की खुशी में बंटने वाले आपके खजूर लेने से सबने मना कर दिया था। अरे जो बिरादरी एक विकलांग के पैदा होने की खुशी में शरीक नहीं हुए वह मुझसे शादी करने आएँगे भला। छोड़िए ये सब बाबा, ये बातें तो हम बाद में भी कर सकते हैं। अभी तो आप बस ये बता दीजिए कि मोहन जी कहाँ हैं? बाबा खुदा के ये थोड़ा तरस खाइये, देखिए जब सारी जिन्न बिरादरी हम पर हँस रही थी तब एक मोहन जी ही थे जिन्होंने हम से बहुत प्रेम से बात की थी, हमने उनके दिल में अपने लिए जो मोहब्बत देखी है बाबा वह कभी किसी और के दिल में नहीं देखी। खुदा के लिए बता दीजिए बाबा कि कहाँ हैं मोहन जी।" रेहाना हाथ जोड़ते हुए बोली, उसकी आँखों में इस समय आँसू भरे हुए थे।
"देखो रेहाना हमने एक बार कह दिया ना कि उसके गायब होने में हमारा कोई हाथ नहीं है तो नहीं है और रही बात तुम्हारी मोहब्बत की तो वह भी हमें मंजूर नहीं है। हम फिर आपसे कह रहे हैं कि हमें गर कुछ करना ही होगा तो हमें उसे गायब करने की ज़रूरत नहीं है, हम जब चाहें किसी भी आदमजात को बस फूँक मारकर राख का ढेर बना सकते हैं। हमने किसी को गायब नहीं किया है रेहाना अब जाओ और जाकर अपनी अम्मी से मिलो।" रेहाना के अब्बू ने साफ-साफ कह दिया।
"नहीं बाबा, बिना मोहन जी को खोजे तो हम यहाँ रुकने वाले नहीं हैं। बस हम खुदा से यही दुआ करेंगे कि मोहन जी के गायब होने में आपका या आपके किसी जासूस का हाथ ना हो बाबा नहीं तो हम कभी आप को माफ नहीं करेंगे और मोहन जी को गायब करने वाले को तो हम ऐसे भी माफ नहीं करेंगे। आपको क्या लगता है बाबा कि हम उन्हें ढूंढ नहीं पाएंगे? हम अभी जाते हैं और जाकर उनका पता लगाते हैं, अब हम यहाँ एक पल भी नहीं रुकेंगे।" रेहाना ने कहा और आगे बढ़ने लगी।
"रुक जाओ रेहाना! बहुत हो गयीं आपकी बदतमीज़ी, अब अगर तुमने एक कदम भी आगे बढ़ाया तो सोच लेना जी जिन्न सल्तनत से तुम्हारा रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो जायेगा। सोच लो रेहाना अब अगर आप यहाँ से गयीं तो फिर कभी वापस यहाँ नहीं आ पाओगी।" बाबा ने फिर रेहाना को रोकते हुए धमकी देकर कहा।
"ठीक है बाबा अगर आप ऐसा ही चाहते हैं तो ऐसा ही सही, नहीं आयेंगे हम यहाँ लौटकर। आपकी सल्तनत आपको मुबारक हो अब्बू! हमें नहीं चाहिए ऐसी सल्तनत जहाँ हमारी मोहब्बत का गला घोंटा जा रहा हो। हम जा रहे हैं बाबा और अब जब तक आप खुद हमें नहीं बुलाओगे हम यहाँ वापस नहीं आयेंगे।" रेहाना ने भी गुस्से से भरी आवाज में कहा और फिर आगे बढ़ने लगी।
"ठीक है रेहाना जाओ! लेकिन एक बात याद रखना, आपको जिन्नातों की से शक्तियों का त्याग करना होगा। आप अबसे कहीं भी जिन्नों की माया इस्तेमाल नहीं करोगी और ना ही आपको हमारे सोने को इस्तेमाल करने की इजाज़त होगी। जब आप आदमजात के साथ रहना ही चाहती हो तो आपको भी आदमजात की तरह ही रहना होगा बिना किसी जिन्नती ताकत के।" रेहाना को ज़िद पर अड़े देखकर बाबा ने एक और दांव खेला।
" मंजूर है बाबा हम नहीं करेंगे आपकी दी हुई कोई भी ताकत इस्तेमाल और ना ही यहाँ से सोना लेकर जायेंगे लेकिन आप भी उ हमारे और मोहन जी के बीच में नहीं आओगे बाबा आप भी वादा करो।" रेहाना ने कहा और अपने गले से जिन्नाती ताबीज निकालकर अपने बाबा के पैरों ने फेंककर आगे बढ़ गयी।
"रुको रेहाना! एक बार फिर सोच लो, इन आदमजात की जिंदगी बहुत मुश्किल है तुम जी नहीं पाओगी उसे।" रेहाना के बाबा उसे रोकते रह गये लेकिन अब रेहाना ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
"ये आपने क्या किया जी! आपने रेहाना को ऐसे जाने क्यों दिया?" रेहाना के जब के बाद उसकी अम्मी ने उसके बाबा से पूछा।
"देखो बेगम ये सब आपके ही लाड़-प्यार का नतीजा है जो ये लड़की इतना सिर चढ़ गयी है, आपने देखा उसे कैसे बदतमीज़ी से बात कर रही थी वह हमारे साथ? अरे हम क्या उसके दुश्मन हैं जो उसके लिए कुछ बुरा चाहेंगे? हमने तो बस यही कहा था कि वह इन आदमजात से कोई रिश्ता ना रखे लेकिन वह बददिमाग लड़की तो हमें ही अपनी मोहब्बत की दुहाई देने लग गयी और ऊपर से हमपर इल्ज़ाम लगा रही है कि हमने किसी आदमजात को गायब करवा दिया है। वाह रे मेरे खुदा! अब हम जिन्नातों के इतने बुरे दिन आ गए कि हमें किसी आदमजात से डरकर उसे गायब करवाना पड़ेगा।" रेहाना के बाबा ने उसकी अम्मी को तीखा जवाब दिया।
"वह सब हम नहीं जानते हुजूर! लेकिन आपको उसे ऐसे सारी ताकत छोड़ने को नहीं कहना चाहिए था। आप तो जानते हो कि वह कितनी जिद्दी है, उसका एक हाथ नहीं है इस लिए सारे जिन्नातों ने हमेशा उसका मजाक बनाया है और इसी लिए वह इतनी जिद्दी हो गयी है। अब जब वह किसी को ढूँढने जा ही रही है तो वह कुछ भी करेगी उसे ढूँढने के लिए, लेकिन बिना ताकत के मेरी बच्ची पर कहीं कोई मुसीबत ना आ जाये। आप कुछ कीजिये जी आखिर जैसी भी है वह है तो हमारी औलाद ही।" रेहाना की अम्मी उदास होकर उसके बाबा से इल्तिज़ा करने लगीं।
"रहने दो बेगम, दो-चार दिन बिना किसी ताकत के रहेगी तो उसे समझ आ जायेगा कि आदम जात की जिंदगी कितनी मुश्किल है और फिर उसके सिर से उसकी मोहब्बत का खुमार भी उतर जाएगा। अब जाओ और हमें अपना काम करने दो, एक बात और ध्यान से सुन लो कि कोई भी रेहाना की किसी भी तरह की मदद नहीं करेगा नहीं तो हम उसे भी सजा देंगे।" रेहाना के अब्बू उसी गुस्से भरी आवाज में बोले और रेहाना की अम्मी सहमी हुई सी अपने कमरे में चली गयीं।
◆◆◆
मोहन की माँ मोहन के लिए बहुत परेशान थीं, पूरे सात दिन हो गए थे मोहन को गए लेकिन उसकी कोई खबर नहीं मिल रही थी।
"अरे बेटा सोहन! कुछ पता चला मेरे मोहन का? देख बेटा तू ऐसा कर कि दिल्ली जाकर पता तो कर की मोहन कैसा है और कब तक आएगा? देख मेरा मन बहुत घबरा रहा है; पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा है कि मेरे मोहन के साथ कुछ गलत हुआ है, ऐसा लग रहा है कि मेरा मोहन ठीक नहीं है।" माँ ने बड़े बेटे सोहन से कहा।
"ठीक है माँ मैं कल ही दिल्ली के लिए निकल जाऊँगा, मुझे याद है माँ वह प्रदर्शनी वाली जगह का पता जहाँ मोहन गया था। वहाँ जाकर मुझे कुछ ना कुछ पता तो जरूर लगेगा मोहन का।" सोहन ने माँ को तसल्ली देते हुए कहा।
"ठीक है बेटा तू कल ही चला जाना, और देख मोहन को साथ लेकर ही आना।" माँ ने धीरे से कहा।
अभी ये लोग बातें कर ही रहे थे तभी इनके दरवाजे पर एक गाड़ी आकर रुकी, गाड़ी की आवाज सुनकर ये लोग घर से बाहर आ गए।
"लगता है मोहन आ गया माँ! देख इस बार गाड़ी से आया है हमारा मोहन।" सोहन खुश होकर कह रहा था।
"भगवान करे ये हमारा मोहन ही हो।" मॉं ने धीरे से कहा और दोनों गाड़ी के पास आ गए।
गाड़ी का दरवाजा खुला और उसमें से जो बाहर आया उसे देखकर ये दोनों माँ बेटे एक दूसरे को देखने लगे क्योंकि वह तो मोहन नहीं था।
"जी मैं शम्भूनाथ, मोहन जी ने मुझे भेजा है आप लोगों के पास। उन्होंने कुछ पैसे भिजवाए हैं और कहा है कि उन्हें लौटने में कुछ दिन और लगेंगे, आप ये पैसे रख लीजिए और मोहन जी ने यह भी कहा है कि वे बिल्कुल ठीक हैं, आप लोग भी अपना ध्यान रखें। अच्छा जी तो मैं चलता हूँ मुझे अभी वापस दिल्ली जाना होगा।" शम्भूनाथ ने पचास हज़ार रुपये मोहन की माँ के हाथ पर रखते हुए कहा और गाड़ी में बैठने लगा।
"अरे तुम ऐसे कैसे जा सकते हो बेटा, तनिक रुको कुछ खा-पीकर चले जाना। इतने दिन बाद हमारे मोहन की कुछ खबर मिली है तो हम तुम्हें ऐसे नहीं जाने दे सकते।" मॉं ने सोहन को इशारा करते हुए कहा और सोहन ने आगे बढ़कर शम्भूनाथ को रोक लिया- "माँ सही कह रही हैं शम्भूनाथ जी, आप थोड़ी देर रुककर, कुछ जलपान करके चले जाइये। इसी बहाने आपसे थोड़ी जानपहचान भी बढ़ जाएगी और मोहन के बारे में भी कुछ बातें हो जायेंगी।" सोहन ने शम्भूनाथ का हाथ पकड़ते हुए कहा।
"ठीक है ठीक है लेकिन बस एक प्याली चाय, उसके बाद आप लोग मुझसे रुकने की जिद नहीं करेंगे।" शम्भूनाथ ने कहा, उसकी आवाज में ना जाने क्यों एक डर जैसा महसूस हो रहा था।
"हमारा मोहन ठीक तो है ना शम्भू? और उसे ये पैसे भेजने की इतनी जल्दी क्यों थी? अभी तो उसके पहले के रुपये ही बहुत बचे हैं हमारे पास।" शम्भूनाथ को चाय पकड़ाते हुए माँ ने सवाल किया।
"ज...जी...जी हाँ, मोहन जी बिल्कुल ठीक हैं; उन्हें भला क्या होगा। ये पैसे तो उन्होंने इस लिए भेज दिये क्योंकि वहाँ वे होटल में रुके हैं और सारा-सारा दिन उन्हें बाहर जाना होता है अपनी तस्वीरों के सिलसिले में तो इन पैसों के चोरी होने का डर था; आप तो जानती ही हो माँजी कि आजकल पैसे के लिए लोग किस हद तक चले जाते हैं तो इससे पहले की ये पैसे उनके लिए खतरा बनते उन्होंने मुझे भेज दिया यह कहकर की ये पैसे भाई अपने खाते में जमा करा लेंगे।" शम्भूनाथ ने धीरे से कहा लेकिन उसके चेहरे के भाव उसके शब्दों का साथ नहीं दे रहे थे।
"ये बात तो ठीक है शम्भू बेटा लेकिन ये पैसे तो पहले की तरह डाकखाने से भी आ सकते थे वो क्या कहते हैं...? हाँ चैक से जैसे पहले भेजे थे।" माँ ने फिर सवाल किया।
"हाँ माँजी आ तो जाते लेकिन उसमें समय भी लगता है और पैसे भी पूरे नहीं आते।" शम्भूनाथ ने कहा।
"अच्छा ठीक है बेटा लेकिन तुम्हारे आने में भी तो खर्च हुआ ही होगा, तुम तो इतनी बड़ी गाड़ी में आये हो। खैर जो भी है, मेरे मोहन का ध्यान रखना तुम बस।" माँ ने उदास होते हुए कहा।
"आप बिलकुल बेफिक्र रहें माँजी, मोहन जी हमारे भाई जैसे हैं और हमारा बिजनिस भी तो उनके सहारे ही चल रहा है। अच्छा माँजी अब मैं चलता हूँ, अगले प्रोग्राम की तैयारी भी करनी है। आप बिलकुल चिंता मत करना माँजी, जैसे ही सारे प्रोग्राम खत्म हो जायेंगे मोहन जी सही-सलामत वापस आ जायेंगे।" शम्भूनाथ ने कहा और जल्दी से गाड़ी में बैठकर वहाँ से निकल गया।
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