तेईस तारीख शाम को जब मोहन प्रदर्शनी हॉल में पहुँचा तो उसने देखा कि हाल के बाहर ही उसकी बड़ी सी तस्वीर लगी हुई थी और उसके नीचे लिखा था, 'आज के महान चित्रकार- मोहन जी' उस हाल के द्वार को इतनी सुंदरता से सजाया गया था कि वह सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। द्वार से अंदर तक कार्पेट बिछा हुआ था और पूरे हाल में गुलाब की हल्की महक फैली हुई थी। सामने ही मोहन की बनाई सारी पेंटिंग्स लगी हुई थीं, मोहन को यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि जिस पेंटिंग को वह होटल में अधूरा छोड़ आया था वह भी वहाँ लगी हुई थी और अब वह अपूर्ण नहीं थी।

 बहुत सारे लोग इस हाल में आये हुए थे  और मोहन की पेंटिंग्स को देखकर उनकी तारीफ कर रहे थे, मोहन हॉल में एक ओर बने ऊँचे मंच पर मित्तल और शम्भू नाथ के साथ बैठा हुआ था। कोई दो घण्टे बाद मित्तल ने चित्रों की बोली लगवानी शुरू कर दी, मोहन के चित्रों की बोली पच्चीस हजार से शुरू हुई थी लेकिन उपस्थित लोग शायद इतनी अधिक कीमत लगाने में हिचकिचा रहे थे तभी मोहन की नयी तस्वीर के लिए किसी ने चालीस हजार की बोली लगा दी। फिर क्या था देखते ही देखते मोहन की दो और तस्वीर तीस-तीस हजार रुपये में बिक गयीं। 

 अब मित्तल ने घोषणा कर दी कि बाकी की नीलामी कल की जाएगी और सभी लोग अपने-अपने घर चले गए।

 "मैं तो वह चित्र अधूरा छोड़ गया था और कमरा भी ठीक से लॉक करके गया था तो फिर वह तस्वीर प्रदर्शनी में कैसे पहुँची? और वह भी पूरी होकर। कहीं किसी ने होटल वालों से दूसरी चाभी लेकर मेरा कमरा तो नहीं खोला? मुझे होटल वालों से पूछना चाहिए।" मोहन ने सोचा और होटल के रिसेप्शन पर पहुँच गया।

 "कृपया मुझे बताएं कि क्या मेरे जाने के बाद आपने मेरे कमरे की चाबी किसी को दी थी? या किसी ने मेरा कमरा खोला था? देखिए मेरे कमरे से कुछ सामान चोरी हुआ है, मुझे जानना है कि मेरा कमरा किसने खोला?" मोहन ने रिसेप्शन पर जाकर पूछताछ की।

 "नहीं सर, हमारे यहाँ ऐसे बिना अनुमति किसी के भी रम को नहीं खोला जाता है और ना ही किसी को चाभी दी जाती है।" रिसेप्शनिस्ट ने सीधा जवाब दिया और मोहन अपने कमरे में वापस आ गया।

 "रागनी! यह आपके अलावा दूसरा कोई हो ही नहीं सकता, मैं जानता हूँ कि उस चित्र में मैंने जो कमी छोड़ी थी वह आपके सिवा कोई और समझ ही नहीं सकता था। आप यहीं हो रागनी और जानबूझकर मेरे सामने नहीं आते, ना जाने मैंने ऐसी कौनसी गलती की है जो आप मुझे ऐसे सज़ा दे रहे हो।" मोहन इधर-उधर देखते हुए उदास स्वर में कह रहा था और रागनी को ढूंढ रहा था।

 

 

     ◆◆◆

 

  "क्या कहा! रेहाना कहीं चली गयी है? ऐसे कैसे चार-चार लोगों की निगरानी में से वह लड़का कहीं चली गयी? जाओ जाकर ढूंढो उसे और अगर वह सही-सलामत नहीं मिली तो सोच लेना तुम लोगों का क्या हस्र होगा।" रेहाना के बाबा ने जब सुना कि रेहाना को रात से किसी ने नहीं देखा तो वे आग-बबूला हो गए और जिन लोगों को उन्होंने रेहाना पर नज़र रखने के लिए लगाया था उन्हें डाँटने लगे।

 "अब जाओ बेवकूफ़ों यहाँ खड़े होकर किसका इंतज़ार कर रहे हो?" रेहाना के बाबा ने कड़क कर कहा तो उनके सामने खड़े चारों लोग डर से काँप उठे और पीछे मुड़कर जाने लगे।

 "रुको! दो लोग वहाँ जाकर भी देखो जहाँ यह लड़की उस आदमजात से मिली थी और चाहे जो हो जाये रेहाना को वापस लेकर ही लौटना।" बाबा ने चेतावनी देते हुए कहा और चारों लोग वहाँ से गायब हो गए।

  अगले दिन मोहन की एक पेंटिंग और बिकी तीस हजार रुपये में और मित्तल ने तीस प्रतिशत कमीशन काट कर इक्यानवे हज़ार रुपये मोहन को दे दिए। मोहन ने ग्यारह हजार रुपये नगद लिए थे और बाकी के अस्सी हजार का चेक लेकर वह वापसी की ट्रेन में बैठ गया।

 

 

       ◆◆◆

 

 "बेटा सोहन!  आज पूरे छः दिन हो गए मोहन को गए, अभी तक नहीं लौटा मेरा बेटा। वह तो कह रहा था बस तीन-चार दिन का ही काम है तो फिर कहाँ रह गया वह? किसी तरह पता तो कर सोहन अपने भाई का।" मोहन की माँ उदास होकर सोहन से कह रही थी।

 "अरे माँजी! परेशान क्यों होती हो, आ जायेंगे लाला जी, हो सकता है मोटा हाथ मारने का मौका ढूँढ रहे हों और अभी मौका मिला ना हो।"मोहन की भाभी ने ताना मारते हुये कहा और हँसने लगी।

 "मुन्नी की माँ ये कोई मज़ाक की बात नहीं है, मोहन कोई गलत काम नहीं करता जो तुम बात-बात पर उसके खिलाफ ऐसे बोलती रहती हो। 

 माँ तू परेशान मत हो आ जायेगा मोहन, हो सकता है उसे और ज्यादा काम मिल गया हो और वह वहीं रुक गया हो। एक दो दिन देख लेते हैं नहीं तो फिर मैं खुद जाऊँगा दिल्ली मोहन का पता करने।" सोहन ने अपनी पत्नी को डांटते हुए कहा।

 

 "मित्तल!! मोहन जी अभी तक घर नहीं पहुँचे; कहाँ गए मोहन जी पता करो।" रेहाना मित्तल के सामने बैठी हुई गुस्से से भरी आवाज में कह रही थी।

 "ज...जी हमने तो उन्हें पैसे देकर ट्रेन में बिठा दिया था, अब रास्ते में वे कहाँ चले गए हम कैसे जानेंगे?" रेहाना के तेवर देखकर मित्तल मिमियाते हुए बोला।

 "हमें कुछ नहीं पता मित्तल! हमें बस मोहन जी चाहियें सही सलामत। और अगर पैसे के लालच में तुमने कोई गड़बड़ की होगी तो देख लेना फिर..., तुम्हारी भलाई इसी में है कि अभी से सारा काम छोड़कर मोहन जी को ढूंढना शुरू कर दो।" रेहान गुस्से से लाल होते हुए बोली और मित्तल "ज...जी...जी करते हुए वहाँ से चला गया।

 

   “आखिर कहाँ चले गए मोहन जी? यहाँ से तो रेलगाड़ी में बैठे थे तो फिर रास्ते में कहाँ रह गए? इसीलिए मैं हर बार उनके साथ ही रहती थी कि कहीं ये भटक ना जायें, बस इस बार मैं थोड़ा सावधानी वश इनसे अलग हुई कि कहीं बाबा के लगाए जासूस हमें साथ ना देख लें…! ‘बाबा के जासूस…?’ ओह्ह!! तो कहीं इस के पीछे बाबा तो नहीं? ओ मेरे खुदा!! ऐसा नहीं होना चाहिए, क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो फिर मोहन जी को बचाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। ओ खुदा!! क्या करें अब हम…? कुछ तो करना ही होगा, क्या हमें बाबा से बात करनी चाहिए…? लेकिन बाबा तो पहले जी बहुत नाराज हैं हमसे, मोहन जी की बात सुनकर तो पता नहीं बाबा हमारे साथ क्या करेंगे? लेकिन हम मोहन जी को भी तो ऐसे नहीं छोड़ सकते, आखिर पूरे पाँच साल हम इसी डर से मोहन जी से दूर रहे और वे हमारी जुदाई में तड़फते रहे। हमें बाबा से पूछना ही होगा इस बारे में।” रेहाना कुर्सी पर बैठी हुई खुद से ही बातें कर रही थी और फिर देखते ही देखते वह अचानक वहाँ से गायब हो गयी।

 

  “बाबा! बाबा हजूर!! क्या आपने उन्हें गायब कराया है?” रेहाना ने अपने बाबा के पास आकर बहुत हिम्मत करके थोड़ा ऊँची आवाज़ में पूछा।

 “रेहाना! बच्चे यह किस तरह से बात कर रहे हो आप हमारे साथ? और बाकी सब छोड़ो पहले यह बताओ कि आप हमारे मना करने के बाद भी यहाँ से कहाँ चले गए थे? हमने आपको कितनी बार समझाया है कि ऐसे अकेली कहीं मत जाया करो लेकिन आप हो कि हमारी कोई बात सुनती ही नहीं हो।” बाबा ने रेहाना की बदली हुई आवाज सुनकर उल्टा सवाल कर दिया।

 “बाबा हम कहीं नहीं गए थे, यहीं थे आपके पास। बस आप हमें यह बताओ कि क्या उनके गायब होने के पीछे आपका हाथ है?” रेहाना ने फिर वही सवाल दोहराया क्योंकि वह इस समय कुछ और बात करने की हालत में ही नहीं थी, वह तो बैचेन थी मोहन के गायब हो जाने से। 

 “अरे कौन गायब हो गया और भला हम क्यों किसी को गायब करने लगे? यह आप आज कैसी बहकी-बहकी बातें कर रही हो बच्ची?” रेहाना के बाबा ने फिर नासमझी भरा सवाल किया।

 “वही जिनसे हमारे मिलने पर आपको आपत्ति है, वही जिनसे किसी भी तरह का रिश्ता रखना आपको नागवार गुजरता है। वही जिनसे ना मिलने की आपने हमें हिदायत दी थी और जिनसे मिलने से रोकने के लिए आपने हमारे पीछे अपने जासूस लगाए थे। अब आपके उन्हीं जासूसों ने उन्हें कहीं गायब कर दिया है, वह पिछले दो दिन से ना जाने कहाँ हैं। उनके परिवार वाले उनके लिए बहुत परेशान हो रहे हैं बाबा खुदा के लिए उन्हें छोड़ दो, हम आपसे वादा करते हैं फिर कभी उनसे नहीं मिलेंगे। जैसे पिछले पाँच साल हम उनसे बिना मिले रह लिए ऐसे ही आगे भी रह लेंगे बाबा हुज़ूर बस उन्हें छोड़ दो और सही-सलामत घर वापस जाने दो।” रेहाना अब दुःखी स्वर में कह रही थी, उसकी आँखें गीली हो रही थीं।

 “अरे भाई कौन गायब हुआ है? हमें तो अभी भी कुछ समझ नहीं आ रहा है। कहीं आप किसी आदमजात की बात तो नहीं कर रही हो?” रेहाना के बाबा ने फिर वही सवाल किया।

 “जी अब्बू वही आदमजात ‘मोहन जी’ हम जिनकी मदद कर रहे थे और अब वे रेलगाड़ी में से गायब हैं, हम जानते हैं अब्बू की आपके अलावा कोई भी किसी को चलती रेलगाड़ी में से गायब नहीं कर सकता। सच-सच बताओ बाबा कि मोहन जी कहाँ हैं?” रेहाना अब फिर थोड़ी तेज़ आवाज में पूछने लगी।

 “हम सच कह रहे हैं बच्ची, हमे कुछ नहीं पता कि कोई आदमजात कहीं गायब हुआ है।  लेकिन हमें एक बात समझ नहीं आ रही रेहाना कि एक अदना से आदमजात के गायब होने से आप भला इतनी परेशान क्यों हैं।” बाबा सीधे-सीधे इनकार करते हुए सवाल पूछ लिया।

 

 “वह कोई भी आदमजात नहीं हैं बाबा! मोहन जी हैं जिन्हें हम पिछले पाँच साल से जानते हैं, वह एक उम्दा चित्रकार हैं और हम उनकी बनाई तस्वीरों को बहुत पसंद करते हैं। हम उनकी तस्वीरों की नुमाइश के लिए ही गए थे बाबा, ताकि उनकी कुछ मदद हो सके लेकिन वह तो अपने घर ही नहीं पहुँचे। पता नहीं ट्रेन में से कहाँ चले गए? आपके आदमी हमारे पीछे थे बाबा, आप उनसे पूछो कि कहीं उन्होंने तो मोहन जी को कहीं गायब नहीं कर दिया है? रेहाना दुःख के साथ-साथ नाराज़ भी थी।

 

 “ये आप कैसी बात कर रही हो रेहाना? क्या तुम्हें लगता है कि हम किसी आदमजात का ऐसे अपहरण करवाएंगे? अरे भला हमें अगर किसी आदमजात को कुछ करना ही होगा तो हम बस यहीं से एक फूँक मरेंगे और आदमजात सुपुर्दे आग हो जाएगा। हमने किसी को गायब नहीं किया है रेहाना हमारा यकीन करो? वैसे हमें एक बात समझ में नहीं आ रही कि इस मोहन नाम के आदमजात से भला आपको इतनी हमदर्दी क्यों है? जबकि हमने हमेशा आपको इन आदमजात से दूर रहने की नसीहत दी हुई है। बाबा ने कुछ सोचने के बाद थोड़ा कड़क आवाज में पूछा।

 

 “हम उनसे इश्क़ करने लगे हैं बाबा, और आज से नहीं पिछले पाँच साल से हमारे दिल में उनके लिए मोहब्बत है। वह तो आपकी और अम्मी की नसीहत के चलते हम पाँच साल पहले उनसे दूर हो गए थे लेकिन इन पाँच सालों में न तो हम उन्हें भुला पाए और ना हम उन्हें।” अब रेहाना ने साफ बात करने का मन बना लिया था।

 “नहीं!! ऐसा नहीं हो सकता रेहाना, तुम भूल गयी हो कि हम  ‘जिन्न’ हैं और हमारा आदमजात से मोहब्बत करना गुनाह है। आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ रेहाना कि किसी जिन्नजादी ने किसी आदमजात से मोहब्बत की हो और वह भी एक खुदा को ना मानने वाले ‘काफिर’ से?

नहीं रेहाना इस बारे में सोचना भी मत क्योंकि यह ना कभी हुआ है और ना ही कभी होगा।

 “बाबा हुजूर!! आज से पहले तो कभी ये भी नहीं हुआ था।” रेहाना ने अपना दुपट्टा हटाकर कुर्ते की आस्तीन फड़ी और अपना कंधा दिखाने लगी जहाँ उसका एक हाथ ही नहीं था। बाबा हुज़ूर हम जानते हैं कि हम ‘जिन्न’” हैं और आदमजात से हम मोहब्बत नहीं कर सकते, लेकिन अब्बू आज से पहले किसी जिन्न के घर एक हाथ की औलाद भी तो पैदा नहीं हुई थी। आपको क्या लगता है बाबा की इस डूंड हाथ के साथ कोई जिन्न हमें पसन्द करेगा? बाबा अब ये सब दकियानूसी बातें छोड़ो और हमें बस इतना बता दो कि मोहन जी कहाँ हैं बस, अब हम और कोई बात सुनना नहीं चाहते…।” रेहाना ने सीधे-सीधे कहा और अपने बाबा की आँखों में देखने लगी।

 

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