“इट्स ऑल अबाउट माय हैप्पीनेस, मीन्स माय वन एंड ओनली मिष्टी।”

ध्रुवी अब खुद को आगे पढ़ने से और नहीं रोक पाई, इसीलिए उसने अब बिना देरी किए वीर और अनाया की जिंदगी के इस अनकहे किस्से का पहला पन्ना पढ़ना शुरू किया-

पृष्ठ 1

"आज अनाया ने मुझे फिर से हराया - आम के पेड़ पर चढ़ने की रेस में।

बचपन की इन जीतों में उसका हँसना मुझे सबसे ज़्यादा पसंद है।

शायद इसलिए मैं हर बार हार जाता हूँ, पर उसे पता नहीं, मेरी हार ही मेरी सबसे बड़ी जीत होती है। "

पृष्ठ 5

“हम आज भी याद करते हैं वो दिन जब आप आम के पेड़ से गिरी थीं और हमने आपको अपनी पीठ पर उठाकर दौड़ लगाई थी। आप हँस रही थी और हम काँप रहे थे आपसे नहीं, आपके दर्द से।”

पृष्ठ 8

"अनाया हमेशा कहती थी, ‘वीर, आप जब चुप होते हो ना, तब हमें लगता है जैसे बादल ठहर गए हों।’

हम हँस देते थे। लेकिन सच तो ये था जब वो बोलती थीं तब सब कुछ रुक ही जाता था हमारे लिए।

वो जब हँसती थी, तो ज़िन्दगी भी उनके पीछे दौड़ने लगती थी।

उन्हें ये कभी नहीं बताया हम उनके पीछे कितनी बार गिरे हैं सिर्फ़ उन्हें मुस्कुराता देखने के लिए।"

पृष्ठ 18

"हमें याद है उस दिन जब राजमहल के बगीचे में हम पहली बार अकेले बैठे थे।

अनाया ने तब हमसे पूछा था आप बड़े होकर क्या बनोगे?

हमने गहराई से कह दिया था - ‘आपका साया।’

वो हँसी थीं पर हमने तब भी सीरियस होकर कहा था "जो भी बनेंगे, आपके लिए बनेंगे।'

काश वो उस दिन हमारी आँखों में पढ़ पाती, कि हम क्या कहना चाह रहे थे। "

पृष्ठ 27

"उन्होंने बादलों की तरफ़ देखते हुए कहा था - ‘काश हम उड़ सकते किसी चिड़िया की तरह।’

उसी दिन हमने तय किया हम पायलट बनेंगे,

शायद हम उड़कर उन्हें उनकी ख्वाहिशें दे सकें

शायद उस आसमान में उनकी मुस्कान फिर से देख सकें। 

उन्हें कभी बताएंगे नहीं बस उनके ख्वाबों की ख्वाहिश बनकर रहेंगे। "

पृष्ठ 30

“हम पायलट इसलिए बने, क्योंकि अनाया बादलों में उड़ने की ख्वाहिश रखती थी। आपके सपनों को छू सकें इसीलिए हमने ज़मीन छोड़ दी। ”

पृष्ठ 31

"अनाया को शेरों की कहानियाँ बहुत पसंद थी लेकिन खुद वो ख़ुद किसी शेरनी से कम नहीं थी।

लोग उन्हें एक नाज़ुक राजकुमारी कहते थे, लेकिन हमने उन्हें आंधियों से लड़ते देखा है। 

अपने पिता के सामने, अपने डर के सामने और किस्मत के सामने।"

पृष्ठ 35

"अर्जुन से शादी तय का दिन आपके लबों पे मुस्कान थी, पर आँखें हमसे सवाल कर रही थीं। शायद आपने हमारी उदासी पढ़ ली थी।

हम जवाब नहीं दे सके।

पर उस दिन हमें ये समझ आ गया था हम सब कुछ हार गए हमेशा के लिए।"

 

पृष्ठ 49

"आज वो शादी के जोड़े में थी।

लाल रंग उनके चेहरे पर एक अजीब-सी उदासी के साथ जज़्ब था।

शादी अर्जुन से हो रही थी, पर उनकी नज़रें हमें ढूंढ रही थीं।

वो कुछ कहना चाहती थी शायद

काश, हमने पहले कह दिया होता। 

काश, हम सिर्फ़ ख्वाहिश नहीं, उनका फैसला होता।"

 

ध्रुवी की आँखें चौड़ी हो गईं। वो एकदम सीधी हो बैठी। उसकी साँसें तेज़ हो गईं।

पृष्ठ 50 (सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा)

"आज उनकी शादी थी।

महल में ढोल बज रहे थे और हमारे दिल में सन्नाटा था। 

हमने खुद को उनके लिए मिटा दिया, और वो किसी और के नाम हो गईं।

ध्रुवी के चेहरे पर एक सिहरन दौड़ गई वो धीरे-धीरे आगे पढ़ने लगी।

पृष्ठ 55

"हमने उस दिन रोना चाहा पर वीर नहीं रोते।

बस उस दिन के बाद से आसमान हमारे लिए बेमायने हो गया।

हम उड़ तो गए पर दिल वहीं ज़मीन पर रह गया अनाया के पास।

अब ये डायरी ही हमारी आवाज़ है।

उन्हें शायद कभी ये पन्ने पढ़ने को मिलें

या फिर किसी दिन जब वो दुबारा लौटे, सिर्फ़ हमारी मिष्टी बन कर।

ध्रुवी जब ये पढ़ रही थी वो बुरी तरह टूट रही थी क्योंकि ये उसकी ही जैसी कहानी थी जो किसी और की नज़र से लिखी गई थी आख़िर वो भी तो झूठी मोहब्बत में धोखा खा कर बैठी थी उसका भी तो दिल टूटा था उसकी सच्ची मोहब्बत भी तो नामुकम्मल रह गई थी।

पृष्ठ 60 (आखिरी पन्ना)

"अगर कभी ये डायरी आप तक पहुँचे अनाया,

तो जान लेना आप कभी अकेली नहीं थी ना होगीं। 

अगर आप अब भी कहीं है अनाया किसी और नाम से, किसी और शक्ल में

तो जान लें हम हैं आपके लिए हमेशा

हम आपका इंतज़ार करेंगे।  इस ज़िंदगी में नहीं, तो अगली में।"

और आप जहाँ में कहीं भी रहें,

हम आपके तेरे लिए अब भी वही हैं और हमेशा रहेंगे

जो आपसे वादा किया था।

“आपका साया।”

वीर ने आख़िर लाईन में लिखा था

“हमारी हर सांस अनाया के लिए”

ध्रुवी की आँखों से आँसू गिर रहे थे उसने धीरे से डायरी को अपने सीने से लगा लिया ध्रुवी अब ज़ोर से रो पड़ी थी। उसकी साँसें घुट रही थीं वो बुदबुदाई-

“वीर तुम्हारी मोहब्बत भी मेरी मोहब्बत की तरह ही अधूरी रह गई"!

(कुछ देर बाद)।

ध्रुवी अब भी उस डायरी को सीने से लगाए बैठी थी आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। सामने की खिड़की से चाँद की हल्की रोशनी कमरे के फर्श पर बिछ गई थी जैसे कोई पुरानी याद फिर से ज़िंदा हो गई हो। ध्रुवी अब भी वीर की डायरी को पढ़ने के बाद अंदर तक हिल चुकी थी। वो उठी और कमरे में मौजूद आइने के सामने जाकर खड़ी हो गई।

उसकी नज़रें ख़ुद को देख रही थीं लेकिन जैसे कुछ खोज रही थीं।

ध्रुवी(मन ही मन): वो मिष्टी जिससे वीर मोहब्बत करता था क्या वो सच में इतनी अंजान इतनी नादान थी कि उसकी मोहब्बत को देख ही नहीं पाई?

तभी आइने की सतह पर एक हल्का धुँधलापन उतर आया जैसे किसी ने उस पर गहरी साँस छोड़ी हो। ध्रुवी ने घबरा कर एक कदम पीछे लिया।

फिर वही शब्द बहुत हल्के से उभरे लेकिन इतने धुँधले कि पढ़े भी नहीं जा सके वो झट से पलटी पर पीछे कोई नहीं था।

ध्रुवी धीरे से : कोई तो है कोई जो नहीं चाहता कि मैं यहां रहूं।

उसने फिर से आइने की ओर देखा अब सब कुछ साफ था, जैसे कुछ भी हुआ ही नहीं था उसने एक गहरी सांस लेते हुए एक नज़र फिर से डायरी को देखा और धीरे से बड़बड़ाया।

ध्रुवी(धीमी आवाज़ में बड़बड़ाते हुए): वीर तुमने भी अपनी कुछ नहीं कहा क्यों नहीं बताया, कि तुम्हारे दिल में ये सब था? और अनाया उसने कैसे ये सब महसूस नहीं किया? या शायद किया लेकिन कहा नहीं?

फिर एक सन्नाटा। दीवार पर वीर और अनाया की पुरानी एक तस्वीर अब भी टंगी थी ध्रुवी की नज़र उसमें अनाया की मुस्कान पर टिक गई थी और उसने पहली बार खुद से पूछा।

"क्या मैं सच में उसकी जगह ले रही हूँ?

या कोई मुझे उसी के वजूद को महसूस करवाना चाहता है?"

तभी खिड़की के पास की मोमबत्ती बिना हवा के झपक गई। एक पल को उसका कमरा अंधेरे में डूब गया। फिर, जैसे ही रोशनी लौटी वीर की डायरी के पन्नों के बीच से एक कागज़ अपने-आप नीचे गिरा।

वो काँपती उँगलियों से झुकी और वो कागज़ उठाया। कागज़ पर एक वाक्य लिखा था बहुत ही हल्की स्याही में, जो अब मिटने लगी थी

“आपको जानने का हक़ मिला है पर याद रखना सच्चाई हमेशा मोहब्बत से बड़ी नहीं होती।”

ध्रुवी का शरीर काँपने लगा। उसके चेहरे पर अब डर नहीं था उलझन थी, और एक अंतहीन सवाल।

"कौन था जिसने ये पंक्तियाँ लिखीं? वीर? या कोई और?

क्या कोई जानता है मैं कौन हूँ?

या जो मैं नहीं हूँ?"

तभी एक धीमी सी आवाज़ कमरे में गूंजी। बहुत हल्की, मगर साफ़।

“ध्रुवी”

वो चौंकी। ये कोई पुकार नहीं थी, ऐसे था मानो जैसे कोई उसके नाम से खेल रहा हो।

ध्रुवी(काँपते स्वर में): क कौन है?

तभी खिड़की के बाहर एक हलचल एक साया, जो दीवार पर कुछ सेकंड के लिए उभरा और फिर ग़ायब हो गया। ध्रुवी ने धीरे से डायरी को बंद किया और फौरन उसे वापस वीर की अलमारी में छुपा दिया।

वो जान चुकी थी शायद अब इस डायरी को पढ़ना भी एक खेल था, जिसमें कोई उसे देख रहा था, हर हरकत पर नज़र रख रहा था।

 

(कुछ देर बाद)।

ध्रुवी ने डायरी को अलमारी में वापस रखा। फिर वो महल की पिछली ओर बनी पुरानी लाइब्रेरी में चली आई जहाँ कोई आता नहीं था। वो अकेले बैठ गई। सामने रखी पुरानी मेज पर डायरी खुली पड़ी थी लेकिन अब उसके मन में वीर की मोहब्बत के साथ-साथ एक और सवाल बार-बार गूंज रहा था।

“आख़िर ये परछाईं किसकी है? अनाया की या कोई और ही इस कड़ी से जुड़ा है”?

तभी एक धीमी–सी आवाज़ उसके बाएँ कान के पास से गुज़री जैसे कोई बुदबुदाया हो

“देखो वहाँ”

ध्रुवी झटके से पीछे मुड़ी हमेशा की तरह वहां कोई नहीं था। लेकिन उसकी नज़र किताबों की अलमारी के पीछे की एक दीवार पर टिक गई वहाँ एक हल्की सी दरार थी बहुत महीन, लेकिन बिल्कुल ताज़ा। वो आगे बढ़ी, हाथ से उस दीवार को छुआ।

ध्रुवी(धीरे-से बुदबुदाते हुए): ये दरार तो पहले नहीं थी?

वो जैसे ही उस दरार पर उँगली फेरती है दीवार की भीतरी सतह से एक काग़ज़ की छोटी सी मुड़ी हुई पुर्ची निकल आई बहुत हल्की, जैसे बरसों से वहाँ फँसी हो। उसने धीरे-से वो पुर्ची उठाई और उसे खोली पर्ची पर सिर्फ़ एक लाइन थी

"हर चीज़ को भूल जाना चाहिए पर सच्चाई को नहीं।”

ध्रुवी का दिल तेज़ धड़कने लगा। उसकी उँगलियाँ काँपने लगीं।

ध्रुवी(आवाज़ में डर और झुंझलाहट): ये सब क्या है? कौन भेज रहा है ये इशारे मुझे? और क्यों?

वो पर्ची लेकर वापस खड़ी हुई ही थी कि तभी दरवाज़े पर किसी के चलने की खड़–खड़ की आवाज़ आई।

“क्लक!”

दरवाज़ा अपने आप खुल गया, लेकिन बाहर कोई नहीं था बस दालान की हवा और पुराने पर्दे, जो हिल रहे थे। ध्रुवी ने धीमे-से पर्ची उठाई पर्ची जेब में डाली और बिना पीछे देखे तेज़ कदमों से बाहर निकल गई।

दूसरी तरफ़ अर्जुन लौट आया था। जैसे ही वो महल में घुसा, उसकी नज़र दाईं ओर से आती ध्रुवी पर पड़ी उसके चेहरे पर एक गहरी थकान और उलझन थी।

अर्जुन(धीमे स्वर में मुस्कुराकर): क्या सोच रही हैं महारानी-सा?

ध्रुवी(चौंककर पीछे मुड़ते हुए ज़रा धीमे स्वर में): कु कुछ नहीं।

अर्जुन(थोड़ा ठहरकर): हमे ऐसा क्यों लग रहा है जैसे आप मुझसे कुछ छुपा रही हैं?

ध्रुवी(थोड़ा डगमगाती आवाज़ में): क्या आपको कभी ऐसा लगता है जैसे कोई हमें देख रहा है?

अर्जुन के चेहरे पर कुछ अजीब अनकहे से भाव उभर गए।

अर्जुन(धीरे से): हाँ, कभी-कभी महसूस होता है लेकिन हमें डरने की आदत नहीं, ध्रुवी।

ध्रुवी ने उसकी आँखों में देखा वो कुछ कहना चाहती थी पर कह नहीं सकी।

अर्जुन(धीरे से पास आते हुए): सब ठीक है?

ध्रुवी(हल्के से मुस्कुराने की कोशिश करते हुए): हाँ बस थोड़ा पढ़ाई में डूब गई थी।

अर्जुन(गहराई से देखते हुए): कभी-कभी ज़्यादा पढ़ना भी अच्छा नहीं होता खासकर जब किताबों में सच्चाइयों से ज़्यादा परछाइयाँ हों (एक पल रुक कर) आईए साथ में चाय पीते हैं!

ध्रुवी अर्जुन की बात पर चौंकी थीं। वो कहना क्या चाह रहा था आख़िर? लेकिन अर्जुन मुस्कुराया, और आगे बढ़ गया जैसे उसने जान–बूझकर कुछ अधूरा कहा हो फिर उसे आसानी से नज़रअंदाज़ भी कर दिया था या शायद बहुत कुछ छुपा लिया हो।

अर्जुन जा चुका था जबकि ध्रुवी अभी भी वहीं खड़ी थी तभी अचानक ध्रुवी की नज़र वहीं दीवार पर लगी अनाया की एक पेंटिंग पर पड़ी ध्रुवी अब उस तस्वीर को अकेले देख रही थी। उसका चेहरा डर और उलझन से कुछ भीगा हुआ था।

वो कुछ कह नहीं रही थी, पर उसकी साँसों की धड़कनें तेज़ थीं। उसने तस्वीर की आँखों में देखा और यूँ लगा जैसे तस्वीर की आँखें उसके अंदर झाँक रही थीं।

ध्रुवी(धीमे स्वर में): क्या हो तुम? और क्यों मुझे ऐसे देख रही हो?

तभी तस्वीर के शीशे पर एक हल्का सा धुंधलापन आ गया जैसे किसी ने सांस ली हो और उसमें धीरे से एक शब्द उभरा।

“झूठ”

ध्रुवी चौंक कर एकदम पीछे हट गई।

ध्रुवी(डरते हुए): य ये सब ये सब मेरा वहम है है ना?

उसने जैसे ख़ुद को ख़ुद ही समझाते हुए तसल्ली देने की कोशिश की थी उसने तस्वीर की ओर दोबारा देखा अब वहाँ कुछ नहीं था। तस्वीर वैसी ही थी, शांत, ठंडी, पर अजीब तरह से जीवित।

 

(आख़िर क्या राज़ है इस अनदेखे साए का? ये वाकई साया है या कोई अनछुई साज़िश? आख़िर क्या इशारा देना चाहता है ध्रुवी को ये साया? क्या ध्रुवी पहुंच पाएगी सच की तह तक? जानने के लिए पढ़ते रहिए "शतरंज–बाज़ी इश्क़ की"!)

 

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