दोनों की नज़रों में अब कोई इकरार नहीं था, सिर्फ एक सवाल था…
“आख़िर कौन नहीं चाहता कि हम एक हों...?”
और... तभी अर्जुन और ध्रुवी के सामने की दीवार पर... एक शब्द उभरा... धुएँ और राख से बना हुआ, जिसे देखकर दोनों की आँखें अविश्वास और डर से फैल गईं। वो शब्द थे.......!
“हमारी जगह कोई और ले रहा है..... याद रखिए, वापसी मुमकिन नहीं है।”
ध्रुवी का हाथ काँपने लगा, उसकी उंगलियाँ अर्जुन की हथेली से छूटने को थीं, लेकिन अर्जुन ने उसे कसकर पकड़ लिया।
अर्जुन (आवाज़ में एक सख़्ती): ये क्या मज़ाक है।
ध्रुवी (सहमी हुई, फुसफुसाते हुए): नहीं अर्जुन ये सब तो इंसानी हरकत नहीं लगती।
दोनों की साँसें भारी हो चुकी थीं। अर्जुन की नज़रें दीवार पर जमी थीं, जहां वो धुएँ से बना लफ़्ज़ अब धीरे-धीरे हवा में घुलकर मिटने लगे थे जैसे किसी ने बस उनके लिए लिखा हो और फिर लौट गया हो अपनी परछाईं में।
ध्रुवी (धीमे स्वर में): अर्जुन तुम तुमने भी उसकी परछाईं देखी न? (एक पल रुक कर) उसने हमें देख लिया था अर्जुन।
कुछ पल के लिए कमरे में फिर एक सन्नाटा भर गया अर्जुन लड़खड़ाता हुआ खड़ा हुआ, कमज़ोर शरीर के बावजूद उसके चेहरे पर अब भी हिम्मत थी।
(कुछ देर बाद).....!
हवा की आवाज़ अब थम चुकी थी। दीवार पर लिखे शब्द भी धुएँ की तरह मिट चुके थे ध्रुवी चुप थी, लेकिन उसकी आँखें अब भी उसी जगह थीं जहाँ राख में वो लफ़्ज़ उभरे थे “हमारी जगह कोई और ले रहा है याद रखिए, वापसी मुमकिन नहीं है।”
वो सिहर गई। उसके चेहरे पर कुछ ऐसा था जो डर से ज़्यादा अंदर तक चुभता था एक पहचाना डर। लेकिन अर्जुन अब भी कुछ सोच रहा था उसके माथे की सिलवटें बता रही थीं कि वो इस पूरी रात को समझने की कोशिश कर रहा है।
कुछ देर चुप्पी के बाद अर्जुन ने एक लंबी साँस ली और ध्रुवी के सामने आकर उसके कंधों पर हाथ रखे।
अर्जुन (धीरे से, ठहरे हुए स्वर में): ध्रुवी जो कुछ हमने देखा वो बेशक डरावना था, हम मानते हैं लेकिन कभी-कभी हमारा दिमाग़ हमारी थकावट, हमारे डर, हमारे अतीत से मिलकर वो दिखाता है जो असल में है ही नहीं।
ध्रुवी चौंकी। उसकी आँखों में जैसे 'वो सब सच था!' की पुकार थी, लेकिन अर्जुन की बात सुनकर वो चुप रही।
ध्रुवी (धीरे से): तो तुम कहना चाह रहे हो कि ये सब बस हमारे मन का भ्रम था?
अर्जुन (हल्की मुस्कान जैसे खुद को भी मनाने की कोशिश कर रहा हो): हाँ देखिए खिड़की का खुलना, मोमबत्ती का झुकना हवाओं की शरारत हो सकती है और वो परछाईं शायद हमारे डर की छाया जब दिमाग थकता है तो असंभव को भी संभव समझ लेता है।
ध्रुवी उसकी आँखों में देख रही थी उसे अर्जुन के शब्दों पर भरोसा करना चाहिए था पर उसके भीतर कुछ था, जो उस 'परछाईं' को भ्रम नहीं मान पा रहा था।
ध्रुवी (धीरे पर डरी हुई आवाज़ में): ले लेकिन दीवार पर वो शब्द राख से बने वो शब्द अर्जुन क्या वो भी हवा ने बनाए?
अर्जुन (हौले से मुस्कुराकर खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश में): ध्रुवी कई बार हमारा सबकॉन्शियस माइंड उन चीज़ों को आकार दे देता है जो हम पहले से सोच रहे होते हैं। अनाया की बात, महल का इतिहास, आपका डर शायद इन सबने मिलकर आपकी आँखों को वो दिखाया जो शायद वहाँ था ही नहीं।
ध्रुवी (धीरे से रुकते हुए): तुम्हारी नज़र में भी तो वो शब्द आए थे ना अर्जुन सिर्फ मेरी नज़र का धोखा नहीं था न?
ध्रुवी की बात सुनकर अर्जुन कुछ सेकंड के लिए चुप हो गया।
अर्जुन (धीरे से): हम झूठ नहीं कहेंगे हां, एक पल को हम भी डर गए थे पर अगर हम इस डर को सच मान लेंगे, तो क्या हम कभी सुकून से जी पाएँगे?
ध्रुवी (असमंजसता से): लेकिन अर्जुन, हम इस सब को यूहीं नज़रअंदाज़ भी तो नहीं कर सकते ना?
अर्जुन (थोड़ा करीब आकर उसके गालों पर हाथ रखते हुए): ध्रुवी, जो कुछ भी था या नहीं था वहम था धोखा था सब भूल जाइए (एक पल रुक कर) हम ज़िंदा हैं, साथ हैं यही हक़ीक़त है बाक़ी सब बस वक़्त का खेल या महज़ दिमाग़ का वहम है।
ध्रुवी की पलकों से आँसू फिसल पड़े। उसके अंदर की भावनाएँ अब और उलझ चुकी थीं।
ध्रुवी के (उलझन भरे लहज़े से): काश मैं भी सब कुछ इतनी आसानी से भूल पाती जितना तुम कह रहे हो।
तभी खिड़की का दरवाज़ा फिर से धीरे-से सरका कोई तेज़ हरकत नहीं, बस हवा की सी धीमी सरसराहट अर्जुन की नज़र पल भर के लिए उस ओर गई पर उसने जानबूझकर अपना ध्यान हटा लिया।
अर्जुन (सख़्ती से मन में): नहीं कुछ नहीं है वहाँ। ये सब हमारे दिमाग़ का शोर है महज़ एक वहम।
इसी के साथ अर्जुन ने आगे बढ़कर खिड़की के पर्दे बंद कर दिए जैसे किसी भी डर को आंखों से ओझल कर देना चाहता हो।
जबकि ध्रुवी उसे चुपचाप देखती रही अर्जुन के लॉजिक उसका भरोसा, और उसकी हिम्मत लेकिन ध्रुवी की आँखों में एक झलक थी जैसे वो किसी अनकही सच्चाई को पहचान चुकी हो, पर कह नहीं सकती।
अब अर्जुन की पीठ खिड़की की ओर थी और तभी पर्दे की सिलवटों में कोई परछाईं हल्के से हिली थी जैसे किसी ने बहुत धीरे से वहाँ से जाना चाहा हो।
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(रात के करीब ढाई बजे).....!
चारों ओर सन्नाटा फैला हुआ था बस पुरानी घड़ी की टिक-टिक और खिड़कियों से टकराती हवा की हल्की आवाज़ें चारों ओर सन्नाटा था महल की गैलरी में बस एक छोटा सा दीया जल रहा था।
अर्जुन सुकून से सोया हुआ था ध्रुवी की आंखों से नींद गुम थी कि तभी अचानक उसे अपने कमरे के आगे क़दमों की धीमी आहट सुनाई दी थी ध्रुवी चौंकी।
ध्रुवी (चौंक कर): इस वक्त कौन हो सकता है बाहर?
पहले ध्रुवी ने इग्नोर किया फिर जब लगातार वो आहट महसूस हुई तो आख़िर में ध्रुवी ने एक नज़र सोए हुए अर्जुन की ओर देखा और फिर वो आहिस्ता से बिस्तर से उठ बैठी ध्रुवी अपने कमरे से बाहर निकली उसके बाल खुले थे और चेहरे पर तनाव था।
ध्रुवी ने पूरी गैलरी देखी वहां कोई नहीं था ध्रुवी को थोड़ी दूर पर कुछ हलचल महसूस हुई ध्रुवी ने कांपते हुए वजूद के साथ अपने कदम उसकी ओर बढ़ा दिए वो एक पुरानी दालान की ओर बढ़ी वहां कुछ दूरी पर एक छोटा सा संदूक रखा था जैसे ही वो ज़मीन पर रखे संदूक के पास झुकी कि अचानक
“फुफफफ…”
उसे किसी औरत की धीमी सिसकी सी हवा में सुनाई दी ध्रुवी अचानक ही सिहर उठी।
ध्रुवी (काँपती आवाज़ में): को कौन है?
किसी का कोई जवाब नहीं आया तभी वो संदूक अपने आप खिसक गया और उसके अंदर की एक पुरानी तस्वीर बाहर गिर पड़ी अनाया की तस्वीर, जिसके पीछे काले अक्षरों में फ़ौरन ही कुछ उभरा था।
"तुम मेरी जगह नहीं ले सकती"।
ध्रुवी का चेहरा पीला पड़ गया वो घबरा कर पीछे हट गई।
“धप्प!
तभी एक काँच की तस्वीर ज़मीन पर गिर पड़ी और टूटी हुई फ्रेम से फिर एक आवाज़ वहां गूंजी।
“चली जाओ वरना मिटा दी जाओगी”।
इस सब को देखकर ध्रुवी चीख़ने ही वाली थी कि तभी पीछे से किसी ने उसका कंधा पकड़ा ध्रुवी डर से बुरी तरह हड़बड़ा कर पीछे की ओर मुड़ी सामने अर्जुन खड़ा था।
अर्जुन (ध्रुवी को घबराया देख चिंतिंत लहज़े से): ध्रुवी? आप यहाँ क्या कर रही हैं? और आप इतना घबराई हुईं क्यों हैं?
ध्रुवी (डरी-सहमी): वो अर्जुन मैंने देखा कोई कोई था यहाँ कोई औरत उसकी आवाज़ सुनी मैंने (अनाया के फोटो की ओर इशारा करते हुए) और उस फोटो पर कुछ लिखा भी था।
ध्रुवी की बात सुनकर अर्जुन आगे आया उसने झुक कर फोटो उठाया वहाँ अब कुछ नहीं था।
अर्जुन (धीरे से): यहां तो कुछ भी नहीं लिखा ध्रुवी?
ध्रुवी (हड़बड़ा कर फोटो को उलट पलट कर देखते हुए): ले लेकिन अर्जुन मैंने खुद अपनी आंखों से देखा था कि लिखा था यहां एक वार्निंग कि "तुम मेरी जगह नहीं ले सकती"।
अर्जुन (ध्रुवी का हाथ थामते हुए): आप ने ख़ुद देखा है कुछ भी नहीं है यहां ध्रुवी (एक पल रुक कर) शायद आप ने कोई सपना देखा होगा चलिए सो जाइए बहुत रात हो चुकी है हूं?
अर्जुन की बात सुनकर ध्रुवी उसकी बाँह थामकर उसके सीने से लग गई वो इस वक्त बिल्कुल काँपती हुई बेबस नज़र आ रही थी।
ध्रुवी (रुँधी आवाज़ में): तुम बस मुझे अकेला मत छोड़ना अर्जुन मुझे लग रहा है जैसे कोई मुझे इस महल से निकालना चाहता है।
अर्जुन (ध्रुवी को अपने गले लगाते हुए): हम वादा करते हैं जब तक हम हैं कोई आपको छू भी नहीं सकता।
ध्रुवी के चेहरे पर जहाँ आँसू और डर के साथ ही मासूमियत पसरी थी अर्जुन की बात सुनकर फ़ौरन ही कुछ राहत भरे भाव उभरे थे ध्रुवी का डर अब कहीं ना कहीं अर्जुन की मोहब्बत बन चुका था और मोहब्बत अक्सर इंसान से उसकी अक़्ल छीन लेती है।
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(कुछ दिन बाद दोपहर का समय)
महल में हल्की सी शांति पसरी थी। धूप दरवाज़ों से छनकर गलियारों में उतर रही थी, और ध्रुवी अकेली सी अपने कमरे की बालकनी में बैठी थी एक गहरी उलझन में। अर्जुन किसी ज़मीनी कागज़ात के सिलसिले में शहर गया हुआ था और शाम तक लौटने वाला नहीं था। ध्रुवी ने अपने दोनों हाथों से चेहरा ढँक लिया।
ध्रुवी (धीमे से): जो कुछ भी हो रहा है, वो सिर्फ़ डर नहीं हो सकता हमेशा लगता है कि कोई हमें देख रहा है कोई हर वक़्त हमारे बहुत पास है (उलझन भरे भाव से) लेकिन इस सब की जड़ तक कैसे पहुंचा जाए? (सोचते हुए) कोई तो रास्ता होगा ना? कुछ तो?
ध्रुवी ये सब सोच ही रही थी कि तभी उसे एक झटका सा लगा जैसे किसी बँधे हुए स्मृति–पात्र का ढक्कन खुला हो।
ध्रुवी (धीरे से): हां वीर वीर की डायरी इन सब उलझनों के बीच मैं तो उसे बिल्कुल भूल ही गई थी (सोचते हुए) शायद उसमें कुछ ऐसा हो जो ये सब गुत्थी समझा सके उस सुलझा सके।
ये सब सोचते हुए अचानक ध्रुवी की साँसें तेज़ हो गईं। वो फ़ौरन ही कमरे से बाहर निकली उसने एक नौकर को आदेश दिया।
"जाइए और हमें जल्दी से वीर के कमरे की चाबी लाकर दीजिए"।
"जी महारानी सा, अभी लाया"।
(कुछ देर बाद).....।
ध्रुवी अब वीर के कमरे के बाहर खड़ी थी वही कमरा, जहाँ वीर अक्सर अकेला वक्त बिताता था जहां अनाया और वीर की खूबसूरत दोस्ती की कई यादें आज भी ताज़ा थीं जहां वो अपनी डायरी में कुछ न कुछ लिखता रहता था दीवार पर वीर की एक पुरानी चिपकी हुई स्केचिंग अब भी लगी थी अनाया के बचपन की मुस्कुराती तस्वीर। उस कमरे की हवा अब भी जमी हुई-सी लगती थी, जैसे कोई आज भी वहाँ साँस लेता हो।
ध्रुवी ने धीरे से दरवाज़ा खोला। लकड़ी की किवाड़ों से धूल उड़ी। अंदर घुसते ही उसे वीर की गंध महसूस हुई कुछ स्याही-सी, कुछ धूप–छाँव–सी।
ध्रुवी (धीरे से फुसफुसाती हुई): लोग कहते हैं सच हमेशा रह जाता है मैं अब उस सच को जानना चाहती हूँ तुम्हारे ज़रिए वीर।
इसी के साथ ध्रुवी कमरे में दाखिल हुई अनायास ही ध्रुवी के क़दम सीधा उस अलमारी की ओर बढ़ गए जहां उसने कुछ दिनों पहले वीर की डायरी देखी थी कुछ पल सोचने के बाद ध्रुवी ने एक गहरी सांस ली फिर आखिर में ध्रुवी ने उस अलमारी को खोला। अलमारी खोलते ही एकाएक उसकी नज़र उसी लाल कपड़े में लिपटी वीर की डायरी पर पड़ी।
ध्रुवी (हौले से बड़बड़ाते हुए): माफ़ करना वीर ये गलत है शायद लेकिन मजबूरी है।
इसी के साथ ध्रुवी ने बिना देरी किए डायरी पर लिपटा वह कपड़ा उठाया और फ़ौरन ही उसे खोला उसमें से वही नीले खाके वाली डायरी ध्रुवी के सामने आ गई जिस पर गोल्डन वर्ड्स में "सुनहरी यादें" उभरा हुआ था। कुछ पल ध्रुवी ने उसे गौर से देखा फिर एक गहरी सांस लेते हुए उसने अलमारी बंद करते हुए वह डायरी अपने हाथ में ले ली।
ध्रुवी (डायरी देखते हुए): "सुनहरी यादें" आज मुझे इन यादों का राज़ जान कर ही रहना है।
ध्रुवी आगे बढ़ी और वहीं पास ही कुर्सी पर बैठते हुए ध्रुवी ने वह डायरी अपने सामने रखी टेबल पर रखी और उस पर उभरे "सुनहरी यादें" पर अपना हाथ फिराते हुए आखिर में ध्रुवी ने उस डायरी को खोला जिसके पहले पन्ने पर ही बड़े-बड़े अक्षरों में वही खूबसूरत अल्फ़ाज़ उसकी नज़रों से होकर गुज़रे जो उसने पहले भी पढ़े थे।
"इट्स ऑल अबाउट माय हैप्पीनेस,
मींस माय वन एंड ओनली मिष्टी"।
ध्रुवी अब ख़ुद को आगे पढ़ने से अब और नहीं रोक पाई इसीलिए उसने अब बिना देरी किए वीर और अनाया की ज़िंदगी के इस अनकहे किस्से का पहला पन्ना पढ़ना शुरू किया।
(आख़िर वीर की डायरी से अब कौन से अनकहे राज़ से पर्दा उठने वाला था? क्या ये डायरी ध्रुवी की उलझनों का जवाब बनने वाली थी? या उसके हालातों को और पेचिदा करने वाली थी? जानने के लिए पढ़ते रहिए "शतरंज–बाज़ी इश्क़ की“!)
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