“को... कौन है?”
ध्रुवी के सवाल पर, जवाब में सिर्फ़ एक चाकू चमका... हमला इतना तेज़ था कि चीख़ने से पहले ही साया हमला कर चुका था…
“ध्रुवी!”
साथ ही एक दिल दहला देने वाली चीख़ दीवारों से टकरा कर वापस आई... अगर अर्जुन वक़्त पर न आया होता, तो ये वार ध्रुवी पर होता…
अर्जुन (तेज़ी से कूदते हुए): ध्रुवी!!!
और अगले ही पल चाकू की धार अर्जुन की बाँह को चीर गई। ध्रुवी की चीख़ महल की पुरानी दीवारों से टकराकर वापस लौटी... अर्जुन भागते हुए आया और बिना सोचे उस साये के बीच में आ गया... छुरा सीधे पहले उसकी बांह पर, फिर अर्जुन की पसलियों में धँस गया... वो लड़खड़ाया, लेकिन गिरा नहीं।
ध्रुवी की चीख़ गूंज उठी…
“अर्जुन!”
साया फुर्ती से भाग गया... अर्जुन वहीं ज़मीन पर गिर गया... उसकी शर्ट लहू से भीग चुकी थी... ध्रुवी ने पैनिक होते हुए, भीगी आँखों से घुटनों के बल बैठते हुए, अर्जुन का सिर अपनी गोद में रख लिया... उसके चेहरे से सारा रंग उड़ चुका था... होंठ काँप रहे थे... आँखों से आँसू लगातार बह रहे थे…
ध्रुवी (हाथों से अर्जुन को थामते हुए): अर्जुन!!!
साया भाग चुका था। केवल खून, आँसू और भीगी हुई साड़ी की सरसराहट बची थी। अर्जुन ज़मीन पर गिरा, कंधे से खून बहता रहा।
अर्जुन (कमज़ोर स्वर में): आप ठीक हैं न?
ध्रुवी (रोते हुए): तुम पागल हो क्या? अपनी जान क्यों दांव पर लगा दी मेरे लिए?
अर्जुन (हल्के से मुस्कराकर): क्योंकि... मेरी जान... अब आप में है…
ध्रुवी का दिल किसी तूफ़ान की तरह कांप गया। बारिश की बूँदें अब उसकी पलकों से बह रहे आँसुओं से मद्धम पड़ चुकी थीं। उस क्षण, उसके भीतर गुस्सा, नाराज़गी जैसे कुछ पल के लिए कहीं ठहर गया था। उसने अर्जुन को कसकर बाँहों में भर लिया।
ध्रुवी (बिलखती आवाज़ में): तू... तुम बीच में क्यों आए? क्यों मेरी जान बचाने के लिए तुमने अपनी जान जोख़िम में डाल दी? आख़िर मैं कौन हूँ तुम्हारे लिए? क्यों...? अर्जुन... क्यों किया ऐसा...?
अर्जुन ने ध्रुवी के सवाल पर उसके चेहरे को देखा... उसकी कांपती उंगलियाँ ध्रुवी के गालों पर गईं…
अर्जुन (धीमी साँसों में): क्योंकि आप... अब सिर्फ़ नाम से नहीं, वजूद से हमारी हो…
अर्जुन के लफ़्ज़ों से ध्रुवी की रूह काँप उठी... लेकिन उसने इन कमज़ोर लम्हों में खुद को संभालते हुए, अर्जुन के लहूलुहान सीने को थामा, और मदद के लिए चिल्लाई... पहली बार उसकी आवाज़ कांप नहीं रही थी, बल्कि टूटी हुई महसूस हो रही थी…
ध्रुवी (भावुकता से): तुम ऐसे क्यों हो...? इतनी सच्चाई... कोई इतना अच्छा कैसे हो सकता है?
इसी के साथ अर्जुन बेहोश हो गया था…
(चौबीस घंटों बाद – अर्जुन का कमरा)
कमरे में तेज़ दवाइयों की गंध और हल्की धुंधली रोशनी थी। बाहर आकाश पर बादलों की परतें थीं, और भीतर... अर्जुन की धड़कनें। चौबीस घंटे बीत चुके थे। अर्जुन अब भी बेहोश था। ध्रुवी उसकी बगल में बैठी थी... आँखों में गहराई, माथे पर चिंता, होंठों पर एक अनकही दुआ।
धूप के हल्के रेशे खिड़की से झाँक रहे थे... ध्रुवी पिछले चौबीस घंटों से वहीं बैठी थी। आँखों में नींद नहीं, मगर भावनाओं में एक अजीब कशमकश थी। वो आर्यन के ख्यालों, उसके छल को अब दूर कर चुकी थी। शायद पूरी तरह... अब उसके हाथों में सिर्फ़ एक नमक की पोटली थी, जो अर्जुन के माथे पर रख रही थी।
तभी वहां डॉक्टर की आवाज़ गूँजी…
“चिंता की कोई बात नहीं है... हुकुम सा अब खतरे से बाहर हैं... अगले कुछ घंटे में इन्हें होश भी आ जाएगा...”
ध्रुवी ने सिर हिलाया... और जैसे कोई आँसुओं से जली साज़िश उसी पल रुक गई। पूरे महल और यहां के लोगों में जैसे एक गहरी उदासी, एक टेंशन का माहौल बढ़ गया था... महल की सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी, साथ ही हमलावर की खोज बड़ी ही सख़्ती से की जा रही थी…
कुछ वक़्त बाद... सब लोग जा चुके थे... ध्रुवी ने धीरे से अर्जुन का हाथ अपने हाथों में लिया। उसकी उंगलियाँ काँप रही थीं... पहली बार डर से नहीं, किसी भीतर की बग़ावत से।
ध्रुवी (कांपती आवाज़ में, बहुत धीमे): मैं नहीं जानती... कि तुमने ये क्यों किया, क्यों अपने आप को मौत के मुंह में धकेला... पर जब तुम मेरे सामने खून से लथपथ होकर गिर पड़े थे, उस पल मुझे तुम्हें खो देने का वो डर महसूस हुआ, जो पहले कभी नहीं हुआ…
ध्रुवी की आँखें अब बिल्कुल भीग चुकी थीं। उसने अर्जुन के चेहरे को अपने दोनों हाथों में लिया।
ध्रुवी (भावुकता से): मैंने कभी नहीं सोचा था कि तुम्हारी ख़ामोशी मुझे इस तरह से तोड़ देगी अर्जुन…
वो उसके पास झुकी, उसका माथा अपने माथे से सटाया, और फिर एक फुसफुसाहट में कहा…
“अर्जुन... मुझे सच में नहीं पता कि ये क्या है... बदला है... गुस्सा है... या मोहब्बत... लेकिन ये सच है कि... अगर आज तुम्हें कुछ भी हो जाता, तो मैं भी मर जाती... सच में... शायद अपराधबोध से... शायद अकेलेपन से... या फिर... नहीं जानती क्यों... पर नहीं जी पाती...”
उसके शब्द एक इज़हार थे, लेकिन बहुत गहराई में छुपे हुए... शब्दों में 'प्यार' नहीं था, पर उसके आँसुओं में 'इकरार' था। तभी अर्जुन की उंगलियाँ बहुत हल्की सी हिलीं। ध्रुवी चौंकी। अर्जुन की पलकें धीरे-धीरे खुलीं। उसकी आँखें धुँधली थीं, लेकिन ध्रुवी के चेहरे पर रुकीं।
अर्जुन (बहुत धीमे से): सच?
अर्जुन को होश आया... आँखें खुलीं... सबसे पहले वही चेहरा दिखा, जिसे एक बार वो खो चुका था... और दुबारा अभी शायद पा नहीं सका था... ध्रुवी।
जबकि ध्रुवी फटी आँखों से उसे बस देखती रह गई... अर्जुन को होश आया... ध्रुवी वही बैठी थी... आँखों के नीचे काली लकीरें, लेकिन चेहरा ठहरा हुआ। उसके हाथों में अर्जुन का हाथ था... वो पिछले चौबीस घंटों से बिना हिले यही बैठी थी…
अर्जुन (कमज़ोर मुस्कान के साथ): आप अब भी यहीं हैं... क्यों?
ध्रुवी (धीरे से): अगर मैं तुम्हें अकेला छोड़ जाती, तो शायद खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाती…
अर्जुन (मद्धम लहज़े से): ध्रुवी?... (धीरे से)... आ... आप…
ध्रुवी (तेज़ी से उसका हाथ पकड़ती है): कुछ मत बोलो... बस... खामोश रहो... अभी तुम ठीक नहीं हो…
एक लंबा सन्नाटा दोनों के बीच बैठ गया। फिर जैसे ध्रुवी खुद को रोक न सकी। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
अर्जुन (मिले-जुले भाव से): ध्रुवी?
ध्रुवी (फफकते हुए): क्यों किया तुमने ऐसा? अगर तुम... अगर तुम्हें कुछ भी हो जाता ना अर्जुन, तो मैं ख़ुद को कभी भी माफ़ नहीं कर पाती…
अर्जुन (धीरे से मुस्कराकर): और वो किसलिए?
ध्रुवी (आँखें चुराते हुए): मू... मुझे नहीं पता…
ध्रुवी कुछ नहीं बोली... बस उसने धीरे से अर्जुन की हथेली थाम ली... पहली बार बिना डरे, बिना झिझके। और इस वक़्त उसकी आँखों में आँसू नहीं, एक रौशनी थी... जो टूटी लड़की की नहीं, बल्कि किसी को अपनाने की हिम्मत रखती है।
अर्जुन (कमज़ोर मुस्कान के साथ): आप रो रही थीं... हमारे लिए? मत रोया कीजिए ध्रुवी... क्योंकि जब आप रोती हैं तो लगता है... जैसे हम हार गए…
ध्रुवी अब और नहीं सह पाई। उसने अर्जुन का हाथ अपने दिल पर रखा और पहली बार उसके सामने टूटी... खुलकर…
ध्रुवी (काँपती साँसों में): आप हार नहीं सकते... क्योंकि हमारी जीत अब आपसे जुड़ी है, अर्जुन।
अर्जुन (छेड़ने वाले अंदाज़ से): कहीं मोहब्बत तो नहीं कर बैठी हमसे? क्या है ये?
ध्रुवी (आँखों में झलकती सच्चाई के साथ): शायद मोहब्बत... शायद मजबूरी... शायद अपराधबोध... या शायद... वो सुकून... जो तुम्हारे साथ बैठकर महसूस होता है।
अर्जुन (अपनी भौहें उचकाते हुए): क्या ये... इज़हार था?
ध्रुवी (हल्के से मुस्कराकर): नहीं... ये कबूलनामा है…
अर्जुन का हाथ अब ध्रुवी के गाल पर था। वो पहली बार उसके इतने पास थी, जैसे साज़िशों की, नाराज़गी की, नफरतों की चादर हट चुकी हो…
अर्जुन (ध्रुवी के गाल को छूते हुए): हम हमेशा से बस आपके इंतज़ार में थे…
ध्रुवी (नम आंखों से): और मैं... शायद खुद से, उन झूठे जज़्बातों से लड़ने में इतनी बिज़ी थी... कि तुम्हारे जज़्बातों को समझ ही नहीं पाई…
दोनों की निगाहें मिलीं... इस बार कोई दर्द नहीं था, कोई झूठ नहीं, कम से कम इस एक लम्हे में तो नहीं... और उस पल... एक अनकहे भाव से ध्रुवी ने अपनी माँग के सिंदूर को छुआ... वो सिंदूर जो अर्जुन ने उसे सरेआम भरा था, वो रस्म... जो उस रात के तूफ़ान की याद दिलाती थी।
ध्रुवी (अपने सिंदूर को छूते हुए): मैं मान चुकी हूं अर्जुन... दिल से... कि ये रिश्ता अब सिर्फ़ रस्म नहीं है अर्जुन, ये अब मेरी पहचान है।
अर्जुन (आश्चर्य से): क्या कहा आपने? क्या आप सच में...?
ध्रुवी (धीरे से): हाँ।
इसी के साथ ध्रुवी ने उसका हाथ चूम लिया... शायद पहली बार, बिना नाटक, एक सच्चा स्पर्श... और अर्जुन की आँखों में वो चमक लौट आई थी, जो सिर्फ़ मोहब्बत जगा सकती थी।
सूरज की हल्की धूप अब महल की पुरानी खिड़कियों से अंदर झाँक रही थी। दीवारों पर टंगी पुरानी पेंटिंग्स की छाया ज़मीन पर फैल रही थी। लेकिन आज उन पर किसी ने ध्यान नहीं दिया, महल के सभी सदस्य धीरे-धीरे अर्जुन के कमरे की ओर बढ़ रहे थे — एक राहत, एक चिंता, और एक शांत उत्सुकता के साथ।
दाई मां (धीरे से): ईश्वर का लाख-लाख शुक्र है अर्जुन... कि आपको होश आ गया। अब महल का चैन वापस लौटेगा।
मीरा ने भी सहमति से धीरे से सिर हिलाया। पर अर्जुन चुप था। उसकी नज़रें जैसे ध्रुवी की तलाश में थीं।
(कुछ देर बाद)
अर्जुन के चारों ओर अब बहुत कुछ बदल चुका था... दवाइयों की खुशबू, हल्की धीमी आवाज़ें, और एक अनकहा सुकून। लेकिन सबसे अलग चीज़ — अर्जुन की निगाहें... बार-बार उस ओर जातीं, जहाँ ध्रुवी बैठी थी।
ध्रुवी अब चुप थी। रात भर जागने के कारण उसकी आँखें लाल थीं, लेकिन चेहरा स्थिर। हर कुछ मिनट में वो अर्जुन की ओर देखती और कुछ न कुछ ठीक करती... तकिया, चादर या ड्रिप। अभी कुछ देर पहले वो कमरे से बाहर गई थी…
कमरे की लाइट बहुत हल्की थी... बस एक टेबल लैंप की पीली रौशनी पूरे कमरे को ढँके हुए थी। अर्जुन अब बिस्तर से थोड़ा टेक लगाकर बैठा हुआ था... खिड़की से हल्की हवा आ रही थी। दरवाज़ा खुला और भीतर दाखिल हुई ध्रुवी।
उसके हाथ में गर्म सूप की कटोरी थी। वह चुपचाप भीतर आई और सामने कुर्सी खींचकर बैठ गई।
अर्जुन (धीमे से मुस्कराकर): हमने कहा था आराम कीजिए... और आप यहाँ ड्यूटी पर लगी हैं?
ध्रुवी (हल्की मुस्कान के साथ): क्योंकि हुकुम सा आपकी देखभाल... अब किसी और के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती…
अर्जुन कुछ पल उसे देखता रहा... फिर नज़रें झुका लीं।
अर्जुन (धीमे से): आप बदल गई हैं…
ध्रुवी (थोड़ा रुककर): शायद... या फिर... मैं अब वैसी हो गई हूँ जैसी हमेशा थी, पर कभी दिखा नहीं पाई…
अर्जुन चुप रहा। ध्रुवी ने धीरे से चम्मच में सूप लिया और उसकी ओर बढ़ाया। अर्जुन कुछ पल उसे देखता रहा... और फिर उसकी हथेली छूते हुए सूप ले लिया। उसकी उंगलियों की हल्की छुअन पर ध्रुवी थोड़ी ठिठकी... पर कुछ नहीं बोली।
(कुछ मिनटों बाद)
अर्जुन की थाली अब खाली हो चुकी थी। ध्रुवी धीरे से उसे हटाने लगी, लेकिन तभी अर्जुन ने उसका हाथ थाम लिया।
अर्जुन (धीमे, लेकिन साफ़ लहज़े में): जानती हैं ध्रुवी... जब हम आपके पास थे... और वो हमला हुआ... उस पल हमें सिर्फ एक चीज़ का डर था…
ध्रुवी (धीरे से): क्या?
अर्जुन (मद्धम लहज़े से): कि अगर हम मर गए, तो शायद आप फिर से तन्हा हो जाएंगी... कभी किसी पर भरोसा नहीं कर पाएंगी... और हम बिल्कुल नही चाहते थे कि आप फिर से टूटे…
अर्जुन की बात पर, ध्रुवी की आँखें भर आईं... पर उसने पलकें झपका लीं।
ध्रुवी (भीगे लहज़े से): मुझे नहीं पता अर्जुन... मैं असल में तुम्हारे लिए क्या महसूस करती हूँ... लेकिन जब तुम घायल हुए थे, तो मैंने खुद को पहली बार इतना डरा हुआ महसूस किया... जैसे कुछ छिन गया हो... और वो डर अब भी मेरे अंदर ज़िंदा है…
अर्जुन ने उसकी ओर हाथ बढ़ाया... और धीरे से उसकी उंगलियाँ थाम लीं।
अर्जुन (धीमी आवाज़ में): अब किसी डर से मत भागिए ध्रुवी... बस हमें थाम लीजिए…
ध्रुवी ने कुछ नहीं कहा... बस उसकी उँगलियाँ अर्जुन की हथेली में और कस गईं। दोनों की आँखें मिलीं... पहली बार खामोश लम्हों ने लफ़्ज़ों से ज़्यादा कहा।
अर्जुन कुछ पल उसे देखता रहा... फिर हल्के से बोला…
अर्जुन (गंभीरता से): क्या आप कुछ देर और यहीं रुक सकती हैं? डर लग रहा है कि आँख बंद करें... और सब फिर से चला जाए…
ध्रुवी के होंठ काँपे... लेकिन वो उठी, और पास रखी कुर्सी को खींचकर उसके सिरहाने बैठ गई।
ध्रुवी (धीरे से): अब कुछ नहीं जाएगा अर्जुन... क्योंकि अब मैं कहीं नहीं जा रही... कभी भी नहीं…
(अर्जुन का कमरा देर रात)
कमरे में हल्की रोशनी थी... खिड़की के बाहर आधा चाँद अपनी दूधिया चाँदनी बिखेर रहा था। अर्जुन के कमरे की खिड़की हल्के-हल्के हिल रही थी, जैसे कोई अदृश्य साँस वहां ठहरी हो। अर्जुन अब पूरी तरह होश में था। ध्रुवी कमरे में थी, बिल्कुल चुप... जैसे उसकी चुप्पी में भी कोई इकरार दफ़्न था।
अर्जुन (धीरे से): क्या आप... आर्यन वाली बात से अब भी हमसे ग़ुस्से में हैं?
ध्रुवी (हौले से मुस्कुराते हुए): नहीं... गुस्सा नहीं... अब बस कुछ और महसूस होता है... कुछ जो समझ नहीं आता…
वो कुर्सी से उठी और धीरे से अर्जुन के पास बैठ गई।
अर्जुन (अनकहे भाव से): ध्रुवी, क्या हम आपको छू सकते हैं?
उसका सवाल हवा में कुछ देर तक तैरता रहा... फिर ध्रुवी ने हल्के से गर्दन झुका दी। अर्जुन ने धीरे से उसका हाथ थामा... और उसकी हथेली अपनी हथेली में रख ली। उस पल सब कुछ थम गया... जैसे वक़्त एक साँस के लिए रुक गया हो।
इसी के साथ अर्जुन धीरे-धीरे उसका चेहरा अपनी ओर मोड़ने लगा... उनकी नज़दीकियाँ अब साँसों के फासले पर थीं... बस कुछ ही इंच दूर थे उनके होंठ…
तभी…
“धप्पप!”
अचानक कमरे की खिड़की ज़ोर से खुली... बिना हवा के, बिना आंधी के। कमरे का तापमान एकाएक गिर गया। दीवार की घड़ी तेज़ी से उल्टा चलने लगी।
कमरे में मौजूद एक मोमबत्ती की लौ सीधी नहीं रही... वो एक तरफ झुककर कांपने लगी, जैसे कोई अदृश्य चीख़ अंदर घुट रही हो।
और... अचानक... अर्जुन और ध्रुवी के बीच रखी पानी की बोतल... अपने आप गिर पड़ी।
“छपाक!”
पानी तेज़ी से फर्श पर फैला... और पानी की सतह पर किसी की परछाईं बनी... एक स्त्री की परछाईं। ध्रुवी का हाथ कांप उठा। अर्जुन ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया।
अर्जुन (गंभीर स्वर में): हम हैं आपके साथ ध्रुवी…
ध्रुवी (डरी हुई आवाज़ में): वो... वो तुमने देखा... कोई था... अर्जुन... उसने हमें देखा…
“फुफफ…”
एक धीमी साँस सी हवा कमरे में गूंजी... तभी अचानक अब खिड़की बंद हो चुकी थी... बिना किसी की छुअन के। अर्जुन उठने की कोशिश कर रहा था... लेकिन अभी भी कमज़ोरी थी... तो वो लड़खड़ाया... ध्रुवी ने फ़ौरन ही उसे थाम लिया…
दोनों की नज़रों में अब कोई इकरार नहीं, सिर्फ एक सवाल था…
“आख़िर कौन नहीं चाहता कि हम एक हों...?”
और... तभी अर्जुन और ध्रुवी के सामने की दीवार पर... एक शब्द उभरा... धुएँ से, राख से बना हुआ, जिसे देखकर दोनों की आँखें अविश्वास और डर से फैल गईं। वो शब्द थे..…
(आख़िर कौन है वो जो अर्जुन और ध्रुवी की मोहब्बत को मुकम्मल नहीं होने देना चाहता?, कोई आत्मा?,कोई साज़िश?,कोई अतीत?..... जानने के लिए पढ़ते रहिए –"शतरंज–बाज़ी इश्क़ की"!)
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