ध्रुवी अब आगे और कुछ नहीं कह सकी। उसने ख़ामोश बहते आँसुओं के साथ अपना सिर अर्जुन के सीने पर रख दिया।
वो आज एक जंग हार गई थी, लेकिन शायद पहली बार, वो दोनों उस मोहब्बत के क़रीब थे, जो सिर्फ़ एहसास से नहीं, रूह से जुड़े होते हैं।
(अगली सुबह)... (महल का लॉन)...।
ध्रुवी अब महल के पिछले हिस्से में थी, वहीं जहाँ बाग़ के किनारे पुराने झूले लगे थे। एक दासी के साथ अव्या एक झूले पर बैठी थी, अपने नन्हे हाथों में एक कपड़े की गुड़िया थामे। उसकी मासूम हँसी, इस भारी वातावरण में भी जैसे कोई नई साँस भर रही थी।
ध्रुवी धीरे-धीरे उसके पास आई। उसकी चाल में थकावट थी, पर चेहरा शांत।
अव्या (गुड़िया से खेलते हुए, बुदबुदा कर): आ... आई.. म..... मम्मा...।
ध्रुवी थोड़ी रुकी, उसके होंठों पर एक सहज मुस्कान आई। उसने उसकी माँ की जगह ली थी, और अब अव्या उसे उसी नाम से पुकार रही थी... मम्मा...।
ध्रुवी (धीरे से झुकते हुए): हाँ... बेटा... मम्मा यहीं है।
उसने अव्या की नन्ही उंगलियाँ थामीं, तो दासी वहाँ से चली गई, जबकि ध्रुवी ने कुछ देर उसे देखते हुए ख़ुद को संभालने की कोशिश की।
उसी समय अर्जुन पीछे से आया। वह थका हुआ लग रहा था, पर उसकी आँखों में एक नई हलचल थी, जैसे पिछली रात की कोई बेचैनी अब तक पीछा कर रही हो।
अर्जुन (हल्के स्वर में): वीके आपको पहचानती है... आपके स्पर्श से,आपकी मौजूदगी से।
ध्रुवी ने कोई जवाब नहीं दिया। अर्जुन झूले के पास आकर बैठ गया। उसकी निगाहें अव्या पर थीं, पर उसकी बात ध्रुवी से थी।
अर्जुन (सहज भाव से): पता है, हम पूरी रात सो नहीं पाए... आपको पता है क्यों?
ध्रुवी ने चुप रहकर ख़ामोशी से उसकी ओर देखा।
अर्जुन (ध्रुवी की आँखों में देखते हुए): क्योंकि हम रात भर सोचते रहे कि अगर वह जो कल रात हुआ, अगर वह सिर्फ़ एक पल भर का धोखा था, तो फिर हमारे दिल को यह बोझ क्यों लग रहा है?
ध्रुवी (आँखें फेरते हुए): दिल कई बार ग़लतियाँ करता है, अर्जुन। और कुछ ग़लतियाँ दोबारा नहीं दोहराई जातीं।
उसकी आवाज़ सख़्त थी, पर उसमें दर्द था। अर्जुन समझ रहा था कि ध्रुवी हर उस एहसास से भाग रही थी, जो शायद उसे तोड़ सकता था। अव्या झूले से उतरकर दौड़ती हुई ध्रुवी की गोद में आ बैठी। अर्जुन ने यह देखा। एक पल को उसकी आँखों में वह दृश्य जैसे जम गया, एक औरत, एक बच्ची, और एक टूटती पहचान।
(सुबह का तीसरा पहर)...।
पूरे महल में आज एक ख़ास चहल-पहल थी।
सावन का पहला सोमवार - महिलाओं के लिए शिव की पूजा का दिन, पति की लंबी उम्र की कामना का पर्व... और इस बार, पूरे राजपरिवार की परंपरा के अनुसार, अर्जुन और ध्रुवी को साथ बैठकर पूजा करनी थी, पति-पत्नी की तरह।
आँगन के बीच में एक गोल रंगोली बनी थी, उसके बीच में पीतल का कलश, बेलपत्र और दूध से भरा एक पात्र।
साड़ियों की सरसराहट, मंत्रों की गूँज, और कानों में पड़ती महिलाओं की फुसफुसाहटें…
“देखो-देखो... महारानी सा कितनी ख़ूबसूरत लग रही हैं... अब तो सच में लग रहा है जैसे इस महल की महारानी बस यही हो सकती हैं।”
ध्रुवी ने हरे रंग की साड़ी पहनी थी, सिंदूर माँग में गहराई से उतरा था, लेकिन दिल में बहुत कुछ चढ़ा हुआ था। उसके पास बैठा अर्जुन आज पहली बार पारंपरिक धोती और कुर्ते में था, इतना शांत, जैसे आज कोई लड़ाई नहीं लड़नी हो।
पंडितजी ने दोनों को पूजा शुरू करने को कहा।
पंडितजी:
“अब पत्नी अपने पति के हाथ में बेलपत्र दे और उनका साथ दे प्रार्थना में…”
ध्रुवी के हाथ काँपे। उसने बेलपत्र उठाया और धीरे से अर्जुन के हाथ में रख दिया।
अर्जुन (धीरे से फुसफुसाते हुए): इस बार सिर्फ़ दिखावे की पूजा मत कीजिए, मन में कुछ भी हो, ग़ुस्सा, नफ़रत, सवाल, सब चढ़ा दीजिए ईश्वर को।
ध्रुवी (गंभीरता से): तो फिर आप भी अपना छल, अपनी चालें और अपनी माफ़ी चढ़ा दीजिए।
अर्जुन ने एक नज़र ध्रुवी को देखा, फिर गहरी साँस लेकर ख़ामोश हो गया।
पंडितजी: अब दोनों पति-पत्नी एक साथ भगवान शिव का जलाभिषेक करें।
दोनों ने एक साथ कलश उठाया। उनके हाथ एक पल को एक-दूसरे को छुए, और ध्रुवी के दिल ने वही किया जो वह नहीं चाहती थी, उसका हाथ ठिठक गया। एक स्पर्श जो अनचाहा था, लेकिन अब अपरिहार्य बन चुका था।
जल जैसे शिवलिंग पर गिरा, वैसे ही अर्जुन ने धीमे से कहा,
“हम जानते हैं आप यह सब सिर्फ़ निभा रही हैं, लेकिन अगर कभी सच में यह रिश्ता आपको भारी लगे, तो कहिएगा, हम आपको हर बोझ से आज़ाद कर देंगे।”
ध्रुवी कुछ पल को अपलक उसे देखती रह गई। पूजा के अंत में महिलाओं ने आरती ली और फिर पारंपरिक रूप से पति की आरती उतारनी थी। सबके सामने, ध्रुवी को अर्जुन की आरती करनी थी।
उसके हाथ काँप रहे थे, आँखें भर आई थीं, ना जाने क्यों, ना शायद मोहब्बत थी, ना नफ़रत, बस एक युद्ध था अंदर, जो किसी को दिख नहीं रहा था। आज पहली बार, ध्रुवी अर्जुन की पत्नी बनकर, उसकी पत्नी की तरह आरती करते हुए उसे देख रही थी, उसका चेहरा अनकहे भाव से भरा था।
तभी अव्या बीच में दौड़ती आई, "मम... मम्मा"।
और ध्रुवी ने ख़ुद को रोके बिना उसे बाँहों में ले लिया। उसने अव्या को सीने से लगाया, सबके सामने, और रीतियों के बाहर भी एक माँ की भूमिका निभा दी। अर्जुन ने वह लम्हा देखा और उसकी आँखें जज़्बातों से चमक उठीं।
अर्जुन (मन में): अगर इस लड़की से हमने कोई छल भी किया था, तो आज वह हर छल से बड़ी हो गई है।
पूरे महल ने आज दोनों को एक जोड़ा माना था, शायद दोनों ने ख़ुद भी, लेकिन किसी को नहीं पता था, ध्रुवी आज भी मोहब्बत और ग़ुस्से के बीच झूल रही थी, और अर्जुन अब पहली बार सच में मोहब्बत कर बैठा था।
(कुछ घंटों बाद)...।
(अर्जुन का कमरा)...!
अर्जुन कमरे में अकेला था। उसने एक पुरानी डायरी निकाली, वो डायरी जो कभी अनाया की हुआ करती थी। कई पन्ने ख़ाली थे, कुछ में अधूरे वाक्य, कुछ में खुली मोहब्बत।
“पता नहीं क्यों, अर्जुन को देखते हुए लगता है जैसे हमारी सारी शिकायतें ग़ुम हो जाती हैं, वो शायद जानते भी नहीं कि हमारे अंदर क्या कुछ जागता है, जब वो हमें देखकर बिना वजह मुस्कुरा देते हैं, कभी-कभी मन करता है उन्हें झिंझोड़ कर कह दें, क्या आप देख नहीं सकते, हम आपसे बेइंतहा मोहब्बत करते हैं!
अर्जुन के हाथ काँप उठे, उसकी पलके झपकीं, शायद अतीत की याद से, या शायद किसी अनकहे जज़्बात से।
“हम जानते हैं आप हमसे बेइंतहा मोहब्बत करती थीं अनाया, हमने भी आप के वजूद से बेहिसाब इश्क़ किया, लेकिन अब हमारे वजूद में कोई और शामिल होने लगा।”
अर्जुन का इतना कहना भर हुआ था कि तभी अचानक कमरे की लाइट झपकने लगी। एक किताब अपने आप शेल्फ से नीचे गिरी।
“ठक!”
अर्जुन चौंककर उठा। उसी समय कमरे के कोने से एक धीमा-सा संगीत बजने लगा, वही लोरी, जो अनाया अक्सर गाया करती थी। अर्जुन बुरी तरह चौंका।
“झिलमिल तारे... निंदिया प्यारी...”
अर्जुन (हैरत से): य... ये लोरी तो... अनाया गाती थीं।
अर्जुन को महसूस हुआ कोई था वहाँ, कोई... या कुछ... अर्जुन ने पीछे पलटकर देखा। एक परछाईं दरवाज़े के पास से गुज़री, सफ़ेद लिबास में, अर्जुन तेज़ी से बाहर भागा, गलियारे की ओर। बाहर कोई नहीं था। सिर्फ़ हवा थी और दीवार पर जलती हुई मोमबत्तियाँ, जिनकी लौ अब तिरछी हो चुकी थी।
फिर…तभी अचानक दीवार पर लगी एक पेंटिंग ज़ोर से ज़मीन पर गिरी।
“ठक!”
उसमें एक तस्वीर थी, अर्जुन और अनाया की, लेकिन इस बार तस्वीर में अनाया की आँखों पर कोई काली छाया थी, जैसे किसी ने जानबूझकर उस हिस्से को जलाया हो। अर्जुन बुरी तरह घबरा गया। यह कोई भ्रम नहीं था।
पेंटिंग ज़मीन पर गिरी हुई थी। अर्जुन के चेहरे पर पसीने की हल्की बूंदें थीं, मगर उसकी साँसें गहरी और अस्थिर थीं। कभी तस्वीर को देखता, कभी हाथ में पकड़ी डायरी को, कभी खिड़की की तरफ़ देखता, तो कभी उस कोने की तरफ़ जहाँ से सफ़ेद परछाईं गुज़री थी।
“ये... ये सब क्या हो रहा है…” उसने ख़ुद से फुसफुसाते हुए कहा।
वह झुका, धीरे से तस्वीर उठाई, अनाया की वही तस्वीर, जिसे उसने अपने हाथों से बनवाया था, पर अब उसकी आँखों पर जली हुई कालिख थी।
"किसने किया ये?" अर्जुन की आवाज़ थरथरा रही थी।
“क्यों किया ये और क्यों आज ये सब हो रहा है?”
उसने ख़ुद से ही बड़बड़ाते हुए तस्वीर को पलटा, पीछे कुछ लिखा था, हल्के से उभरे शब्दों में, जैसे नाखूनों से खरोंचा गया हो…
“जो अधूरी रह गई, वो मोहब्बत अब किसी और के नाम ना हो...”
अर्जुन एक पल को कांप गया, अनायास ही उसके मुँह से निकला…
“अनाया?”
उसके अंदर कुछ टूटने लगा था, शक, पछतावा, या... कोई अलौकिक डर? या वो पुराना अतीत जिसकी उसे ख़बर भी नहीं थी? वह वहीं पड़ी कुर्सी पर बैठ गया, थका हुआ, बेजान, उसने डायरी को सीने से लगा लिया, और धीरे-धीरे उसके होंठ हिले।
"अगर आप कहीं हैं, किसी भी रूप में, तो क्यों लौट कर नहीं आतीं? क्यों सामने नहीं आतीं"?
अर्जुन की आँखें अनकहे जज़्बात से भर आईं, अनायास ही उसके होंठों से ध्रुवी का नाम फिसला…
"ध्रुवी…" उसने धीमे से नाम लिया।
"आप में कुछ तो है... जो अनाया में भी था।
वो मासूमियत… वो बेचैनी…
वो नज़रों का ठहरना और फिर झुक जाना।
कभी-कभी आप कुछ कहती नहीं, लेकिन फिर भी ऐसा लगता है…
जैसे वो अधूरी बातों को हम पहले ही सुन चुके हैं…"
वह उठकर खिड़की के पास आया। रात की हवा अब भी ठंडी थी, मगर उसमें कोई अनजानी गंध थी, जैसे वक़्त की तहों से आती कोई पुरानी ख़ुशबू।
“क्या ये सब हमारा धोखा है? महज़ वहम? या फिर ये हमारी मोहब्बत की कोई परछाईं है?”
अर्जुन ने ख़ुद से ही सवाल किया, वो वहीं खड़ा रहा, लंबे समय तक, जैसे अपने ही सवालों से लड़ता हुआ, फिर धीरे से वापस आया और मोमबत्ती के पास बैठा।
उसने वो डायरी फिर से खोली - एक आख़िरी पन्ना पलटा।
इस बार लिखा था..…
“अगर हम कभी दूर हो जाएं और हम लौटें, तो सिर्फ़ अपने नाम से नहीं लौटेंगे, हम चाहेंगे कि आप हमें हमारे एहसास से पहचानो, हमारी रूह से, हमारी साँसों से।”
अर्जुन ने वो डायरी वहीं रख दी, अब उसकी आँखें बंद थीं, और मन में सन्नाटा।
एक सवाल... एक डर… एक प्यार… और एक शक, जो अब धीरे-धीरे यक़ीन में बदलने लगा था।
अब वह जान गया था, ध्रुवी का डर, महल में घटने वाली सारी घटनाएँ सिर्फ़ महज़ वहम नहीं था।
(उसी दिन देर रात)...।
बारिश की बूँदें पुराने पत्थरों से टकरा रही थीं। हवाओं में अजीब सी बेचैनी थी, जैसे कोई तूफ़ान आने वाला हो, बाहर नहीं, बल्कि किसी के दिल में। महल के पीछे की पुरानी बावड़ी, जहाँ कोई नहीं आता, और जहाँ की वीरानी हर किसी को ख़ामोश कर देती है। ध्रुवी वहीं खड़ी थी, अकेली। हवा में चंदन और मिट्टी की भीगी ख़ुशबू थी। उसके चेहरे पर बेचैनी थी, वह किसी के इंतज़ार में नहीं थी, शायद किसी डर के बीच उलझी थी।
ध्रुवी के क़दम तेज़ थे, मगर दिल की धड़कन उससे भी तेज़। किसी ने महल के बंद हिस्से में आहट की थी, और उसे लगा जैसे कोई उसे खींच रहा हो, जैसे कोई अधूरी बात वहीं उसके इंतज़ार में हो। वो अभी वहाँ से जाने के लिए दरवाज़े तक ही पहुँची थी कि अचानक पीठ पीछे किसी की परछाईं लहराई।
ध्रुवी (डर से चौंक कर चिल्लाते हुए): को..... कौन है वहाँ? रुको!
ध्रुवी ने मुड़कर देखा और अगले ही पल एक साया उसकी तरफ़ तेज़ी से बढ़ा… ध्रुवी चौंककर मुड़ी ही थी कि तभी एक काली आकृति फुर्ती से उसकी ओर झपट पड़ी... ध्रुवी पीछे हटी पर अब बहुत देर हो चुकी थी।
“को.....कौन है?”
ध्रुवी के सवाल पर, जवाब में सिर्फ़ एक चाकू चमका... हमले में फुर्ती इतनी तेज़ थी कि चीख़ने से पहले ही साया हमला कर चुका था…
“ध्रुवी!”
साथ ही एक दिल दहलाने वाली चीख़ दीवारों से टकरा कर वापस आई थी…
(किसकी चीख़ थी वो? आख़िर किसने हमला किया? कौन था ये अनदेखा साया? क्या अनाया वापस लौट आई है? या इस बिसात पर कोई और ही खेल जमा है? जानने के लिए पढ़ते रहिए... "शतरंज-बाज़ी इश्क़ की"!)
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