एक अनकहे एहसास से ध्रुवी ने भी अनायास ही अपनी आँखें बंद कर लीं, क्योंकि उस पल में वो भी अर्जुन की तरह शायद थक चुकी थी।
दो टूटी हुई रूहें,
एक अधूरी रात,
और एक सच्चा स्पर्श।
वो दोनों अभी इस एहसास से पूरी तरह जुड़ भी नहीं पाए थे कि तभी एक तेज़ हवा का झोंका और सीढ़ियों से आती आहटें वहाँ गूँज उठीं, जैसे कोई देख रहा हो, कोई आ रहा हो।
ध्रुवी एकदम चौंक कर पीछे हटी, उसकी आँखों में ग़लती का बोझ नहीं था, बल्कि एक डर था, एक अनकहा डर, जबकि अर्जुन की आँखों में भी डर था कि शायद कहीं ये लम्हा मिट न जाए।
ध्रुवी (काँपती आवाज़ में): ये...ये नहीं होना चाहिए था, अर्जुन। हमने जो किया...वो…
अर्जुन (आगे बढ़ने की कोशिश में): ध्रुवी, हमारी बात सुनिए…
ध्रुवी (तेज़ी से दूर हटते हुए): नहीं...नहीं, प्लीज़…
इतना कहकर ध्रुवी तेज़ी से वहाँ से दौड़ पड़ी। बारिश उसके पाँव के निशान मिटा रही थी, जैसे सबकुछ पीछे छोड़ देना चाहती हो। अर्जुन बस खड़ा रह गया। हाथ अब भी हवा में उठे हुए थे जैसे किसी का चेहरा छूने की कोशिश अधूरी रह गई हो।
आसमान ने बिजली चमकाई, शायद उसने देखा दो आत्माएँ टूटकर जुड़ते हुए, फिर...फिर से टूटते हुए।
(कुछ देर बाद)।
कमरे की बत्तियाँ धीमी थीं। बारिश अब खिड़की से टकरा रही थी, पर अंदर, ध्रुवी की रूह काँप रही थी। उसने कमरे का दरवाज़ा तेज़ी से बंद किया और दीवार से टिक कर तेज़ साँसें लेने लगी।
भीगी हुई साड़ी उसके जिस्म से चिपकी थी, मगर उसका बदन उस स्पर्श की गर्मी से अभी भी काँप रहा था।
ध्रुवी (धीरे से खुद से): ये...क्या कर दिया मैंने...? नहीं...नहीं ध्रुवी, तुम ऐसा कैसे कर सकती हो?
वो धीमे कदमों से आईने के सामने गई, अपने चेहरे को देखा, होंठ अब भी काँप रहे थे, आँखों में घबराहट थी। कुछ अनकहे जज़्बात...आईने में एक पल को उसे अपना ही चेहरा अनाया का सा लगा, मानो उसकी आत्मा उसे जिरह कर रही हो।
"यही तो तुम्हारी चाहत थी, है ना?" जैसे आईने की परछाईं उससे पूछ रही थी।
ध्रुवी (काँपती आवाज़ में): नहीं...मैं...ऐसे कमज़ोर नहीं पड़ सकती।
वो पलंग पर बैठी, साड़ी का पल्लू समेटा और सिर अपने घुटनों में छुपा लिया।
तभी अचानक जैसे उसके अंतर्मन से एक आवाज़ आई।
“वो अगर कभी मुझसे माफ़ी मांगेगा, तो क्या मैं उसे माफ़ कर पाऊँगी?”
इसी के साथ ध्रुवी फफक कर रो उठी, इतने अरसे का गुस्सा, इतने बड़े छल का ज़ख्म, एक पल की गर्मी में पिघल गए थे।
दूसरी तरफ अर्जुन अपने स्टडी रूम में आया, अर्जुन के बाल और कपड़े भीगे थे, मगर सबसे ज़्यादा उसका दिल भीगा था। उसने अपने हाथों को देखा, जिसने अभी-अभी ध्रुवी को थामा था। फिर आगे बढ़कर खुद को आईने में देखा।
अर्जुन (खामोशी से खुद से): आपने उन्हें छुआ, वो भी उस लड़की को, जो शायद आपको कभी माफ़ नहीं कर सकती।
वो गहराई से सोचता वहीं बैठ गया, अपना माथा हाथों में छुपा लिया।
अर्जुन (आँखें बंद करके): लेकिन हमने पहली बार उन्हें अपने लिए चाहा था, बिना किसी साज़िश के, बिना किसी चाल के।
बारिश की गूँज अब अर्जुन और ध्रुवी दोनों के कानों में एक अनकहे एहसास की धुन की तरह बज रही थी।
ये रात, उनका ये पहला स्पर्श, उन दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ, वो अब सिर्फ़ एक याद नहीं, बल्कि एक बोझ, एक बदला हुआ रिश्ता, और एक अटूट खामोशी बन चुका था।
(अगली सुबह – महल का बाहरी आँगन, सूरज की हल्की रौशनी!)
आसमान अभी भी बादलों से ढका था पर बारिश रुक चुकी थी। महल की छत से अब सिर्फ़ टपकती बूंदों की आवाज़ आ रही थी। रात को अर्जुन स्टडी में ही सो गया था, वो शायद ध्रुवी का सामना नहीं करना चाहता था, या फिर से किसी कमज़ोर लम्हे का शिकार नहीं होना चाहता था।
ध्रुवी कमरे के आँगन में अकेली खड़ी थी, बाल खुले हुए, आँखों के नीचे हलकी सी लकीरें, और चेहरा एकदम शांति में, मगर अंदर ही अंदर जैसे कोई तूफान दबा हो।
उसके हाथों में चाय का कप था, मगर चाय अब ठंडी हो चुकी थी, ठीक वैसे ही जैसे उसकी सोच। तभी पीछे से धीमे कदमों की आहट आई, सोच के मुताबिक अर्जुन ही था।
दोनों की नज़रें मिलीं, ना कोई मुस्कान, ना कोई अभिवादन।
अर्जुन (हल्के स्वर में, नज़रें चुराते हुए): रात को आप ठीक से सो पाईं?
ध्रुवी (थोड़ी देर चुप रहकर, फिर धीरे से): हाँ, बिल्कुल।
झूठ था। अर्जुन भी जानता था, लेकिन वह कुछ नहीं बोला। दोनों चुपचाप एक ही आँगन में खड़े थे, और फिर भी जैसे मीलों दूर थे। कुछ देर बाद अर्जुन ने एक धीमा सवाल किया।
अर्जुन (नज़रे झुका कर): कल रात जो हुआ, उसके बारे में…
ध्रुवी (बीच में ही रोकते हुए): उसे भूल जाना बेहतर होगा। हम दोनों ही जानते हैं, वो महज़ एक कमज़ोर लम्हा था और कुछ नहीं।
दोनों के बीच कुछ देर के लिए एक लंबी ख़ामोशी पसर गई।
अर्जुन (धीरे से): क्या अगर हम भूल गए, तो क्या हमारे भूलने से वो हिस्सा भी मिट जाएगा जो उसमें सच्चा था?
ध्रुवी ने एक लम्हे को अपनी आँखें बंद कीं, एक गहरी साँस भरी, फिर बिना अर्जुन की ओर देखे जवाब दिया।
ध्रुवी (अनकहे भाव से): जो सच्चा था, वही सबसे बड़ा झूठ बन जाएगा, अगर हमने उसे नाम देने की कोशिश की।
ध्रुवी की बात सुनकर अर्जुन की उंगलियाँ मुट्ठी में बदल गईं, जैसे वो खुद को रोक रहा हो।
अर्जुन (बहुत धीमे से): ठीक है (फिर एक पल बाद), लेकिन अगर कभी फिर से आप थक जाओ या टूट जाओ, तो इस बार हम सिर्फ़ छत पर नहीं मिलेंगे, हम आपके साथ खड़े रहेंगे, बारिश में भी, और आँसुओं में भी।
ध्रुवी कुछ नहीं कह सकी, बस चाय का कप नीचे रखा, और बग़ैर कुछ बोले वहाँ से चली गई, अर्जुन वहीं खड़ा रह गया, उसी जगह पर, उन जज़्बातों से घिरे जहाँ पिछली रात उनके बीच मोहब्बत पहली बार ज़िंदा हुई थी और आज, शायद पहली बार मर भी गई थी, कम से कम ऊपर से।
***************************************
महल की पूरबी दीवार के पास बना पुराना झरोखा आज फिर से धूप की लकीरों से भर गया था। हल्की-हल्की सुनहरी रेखाएँ दीवारों पर ऐसे गिर रही थीं मानो किसी भूले हुए सुख की याद दिला रही हों।
ध्रुवी वहाँ चुपचाप बैठी थी। उसकी गोद में अव्या थी, अर्जुन की बेटी, जबकि दुनिया की नज़रों में "उन दोनों" की संतान।
"कितनी मासूम है ये, दुनिया की हर चाल, हर छल से बेनियाज़" ध्रुवी ने अव्या के मासूम चेहरे को देखते हुए बड़बड़ाया।
अव्या अब नींद में थी, उसकी साँसें, धड़कनों की तरह चल रही थीं, पर ध्रुवी के सीने में आज भी कुछ भारी था, शायद वो एहसास, जो न आर्यन की मोहब्बत में मिला, न बदले की आग में बुझा।
ध्रुवी की उंगलियाँ अव्या के बालों में धीरे-धीरे चल रही थीं, पर उसकी नज़रें झरोखे के पार कहीं और थीं, जहाँ न कोई मंज़िल थी, न कोई वजह। तभी एक साया उसके पास आकर ठहर गया। वो अर्जुन था।
उसकी आवाज़ एकदम धीमी थी, जैसे वो भी किसी पुराने ज़ख्म की तरह बोलने से डर रहा हो।
“आपके हाथों में हमारी बेटी आज इतनी सुकून में दिखती है, जितना शायद अनाया के रहते भी नहीं दिखी थी।”
अर्जुन की बात पर ध्रुवी के चेहरे पर एक मुस्कान उभरी, नकली नहीं थी, लेकिन सच्ची भी नहीं। वो मुस्कान नहीं थी, वो शायद एक चुप समझौता था। अर्जुन धीरे से ध्रुवी की बगल में बैठ गया।
"कभी-कभी लगता है, आप आई ही इसलिए हैं, ताकि इस घर की अधूरी चीज़ों को पूरा कर सकें" अर्जुन ने कहा।
"और कभी-कभी लगता है, ये घर ही मुझे अधूरा कर देगा" ध्रुवी ने जवाब दिया, नज़रे झुकाकर।
उन दोनों के बीच अब अव्या थी, सोती हुई मासूमियत, जो एक अनदेखे बंधन का नाम बन चुकी थी। अर्जुन की नज़रें ध्रुवी के चेहरे पर ठहरी थीं, थकी हुई, लेकिन सजीव।
"हम दोनों टूटी हुई ईंटों की तरह हैं ध्रुवी, लेकिन शायद एक-दूसरे के लिए ही टूटे हैं ताकि कोई नई दीवार बन सके" अर्जुन ने अनकहे एहसास के साथ कहा।
ध्रुवी ने उसकी ओर देखा। इस बार उसकी आँखें भर आईं, पर उसमें एहसास कम, हिसाब ज़्यादा था, जैसे वो किसी अंधेरे हिसाब में उलझी हो, और अर्जुन की बातों से उसकी गणना गड़बड़ा गई हो।
“अगर कोई दीवार बनने भी लगी है, तो क्या तुम उस पर फिर से हथियार नहीं चलाओगे?”
“वादा है, इस बार अगर कुछ तोड़ना हुआ, तो खुद को तोड़ेंगे आपको नहीं।”
ध्रुवी की पलकों में वो पल अटक गया। उसने गहराई से अर्जुन की आँखों में देखा।
"क्या हम एक नए सिरे से शुरुआत नहीं कर सकते?" अर्जुन ने फुसफुसाया।
ध्रुवी की नज़र अव्या पर गई, वो बच्ची, जो उसे ‘माँ’ की तरह देखती थी। वो रिश्ता झूठा था, लेकिन उस रिश्ते की गरमाहट अब सच्ची लगने लगी थी।
“अगर सब कुछ सच होता, तो शायद हाँ, शायद मैं भी दोबारा जीना सीख जाती।”
ध्रुवी ने कहा और बिना रुके वहाँ से उठकर चली गई, बिना अर्जुन का कोई जवाब सुने।
(चार दिन बाद – महल की छत, रात का तीसरा पहर!)
रात की हवाएँ महल की छत को छू रही थीं, चाँद पूरा था और सफ़ेद रौशनी की छत पर एक चादर सी बिछी थी। ध्रुवी अकेली बैठी थी, बाल खुले हुए, हाथों में वही चिट्ठी, आर्यन की, लेकिन अब वो उसे फाड़ नहीं रही थी, न ही सीने से लगा रही थी, बस उसे ताक रही थी।
ध्रुवी के खुले बालों में गहरी उलझन, और आँखों में अनकहे सवाल थे। वो खुद से भाग नहीं रही थी, वो खुद को जला रही थी। आज चार दिन गुज़र गए थे, अर्जुन को महल के बाहर गए, वो ना उससे मिला था, ना उसने ध्रुवी से कोई बात की थी।
ध्रुवी उसी के बारे में सोच रही थी कि तभी अर्जुन पीछे से आया। कुछ देर चुपचाप देखता रहा, फिर धीमे से बोला।
“हमने पिछले चार दिन सिर्फ़ आपके बिना गुज़ारे नहीं, बल्कि खुद को हर लम्हा आपके अंदर महसूस किया है ध्रुवी।”
अर्जुन की आवाज़ पर ध्रुवी का दिल धक सा रह गया, उसने जवाब नहीं दिया, पर उसकी साँसें तेज़ चलने लगीं।
“हम नहीं जानते कि हमने आपको खोया था या कभी पाया ही नहीं, लेकिन जिस दिन हमने आपकी मांग भरी, बस इतना जानते हैं, वो जो भी था, वो अधूरा नहीं था।”
“तुम्हें लगता है एक दिन मैं तुम्हें माफ़ कर दूंगी?” ध्रुवी ने बिना पीछे देखे पूछा।
“शायद नहीं, या शायद” अर्जुन ने कहा।
ध्रुवी मुड़ी। पहली बार उसने अर्जुन की आँखों में देखा — लंबे समय बाद। उसकी आँखों में न बदला था, न मोहब्बत। बस एक अजीब सी समझ थी।
“तुमने कहा था जो अब है, वो सब सच है,” ध्रुवी ने कहा। “तो ये बताओ, अर्जुन, क्या तुम्हें मुझसे मोहब्बत हो गई है?”
ध्रुवी के इस सीधे सवाल पर अर्जुन चौंक गया था, वो अब तक ख़ुद इस बात को खुद से नहीं कह पा रहा था और ध्रुवी ने इतनी आसानी से कह दिया था, वो कुछ पल के लिए चुप हो गया।
फिर उसने धीरे से कहा, “अगर मोहब्बत उस इंसान से होती है, जो आपको हर दिन तोड़े, लेकिन फिर भी आप उसी के वजूद में सुकून ढूंढो, तो हाँ, शायद हो गई है।”
ध्रुवी ने उसका चेहरा देखा। वो पहली बार उसे टूटा हुआ, बेबस लगा, उस लोहे की दीवार की तरह जिस पर नमी ने अपनी जड़ें जमा ली हों।
“लेकिन मैं तुम्हारा सुकून नहीं बन सकती, अर्जुन,” उसने कहा। “मैं वो आग हूं, जो बुझी नहीं है और शायद कभी बुझेगी भी नहीं।”
“तो हम उस आग में जलने के लिए तैयार हैं, अगर उसमें जलकर हम आपके वजूद को पा सकें तो यकीन मानिए सौदा महंगा नहीं है ध्रुवी" अर्जुन ने गहरे भाव से कहा।
ध्रुवी ने खामोशी से सिर झुका लिया। वो कुछ नहीं कह पाई, शायद उसके पास कुछ कहने के लिए था ही नहीं, अर्जुन ने धीरे से एक मोती उसके कान के पीछे रखा, वही जो अनाया हमेशा पहनती थी।
ध्रुवी चौंकी।
“ये कहाँ से लाए?” उसकी आवाज़ काँपी।
“अनाया की निशानी के तौर पर हमारे पास था, अब से ये आपकी अमानत है" अर्जुन ने सहजता से कहा।
अर्जुन की बात पर ध्रुवी अन्दर तक कांप गई।
“हम चलते हैं” अर्जुन बोला। “लेकिन दिल से एक बात कहें ध्रुवी, चाहे जो भी हो, पता नहीं क्यों पर अब आपका चेहरा हमें अनाया से ज़्यादा अपना लगता है।”
ध्रुवी स्तब्ध खड़ी रही, कांपते हाथों से उस मोती को पकड़े हुए।
“कभी-कभी, सबसे बड़ा झूठ वही होता है जो सच जैसा लगता है।” अर्जुन फुसफुसाया।
ध्रुवी अब अच्छे से जानती थी कि यह अब अर्जुन का खेल नहीं था, अब उसके अपने दिल ने भी इस शतरंज की बाज़ी में एक चाल चला था। और इस बार वो चाल सिर्फ बदले के लिए नहीं थी।
शायद थोड़े से प्यार के लिए भी थी।
"ये मत कहिए अर्जुन, ये सुनना मेरे लिए सबसे खतरनाक चीज़ है।" ध्रुवी ने थरथराते लहज़े से कहा।
अर्जुन ने दो कदम और बढ़ाए। उसकी आवाज़ अब दिल से नहीं, रूह से आ रही थी।
“अगर आप आग हैं, तो हम खुद को राख करने को तैयार हैं ध्रुवी, अगर आप भ्रम हैं, तो हम पूरे मन से अपना होश खोने को तैयार हैं, लेकिन अगर आप सच हैं, तो मुझे वो एक सच चाहिए।”
ध्रुवी का वजूद अर्जुन के लफ्ज़ों से काँपने लगा था, उसका चेहरा बेशुमार आंसुओं से भीगने लगा था, पर वो पीछे नहीं हटी।
ध्रुवी (कांपते वजूद से): मैंने आर्यन से मोहब्बत की थी, बहुत गहराई से। लेकिन तुमसे जुड़ना (कांपती उंगलियों से अपनी मांग के सिंदूर को छूते हुए) शायद कोई मोहब्बत नहीं, कोई 'वजूद' जैसा है। ऐसा रिश्ता जिससे नफ़रत भी नहीं हो सकती।
ध्रुवी का इतना कहना हुआ था कि अर्जुन की बाहों ने उसे घेर लिया था, पर ये आलिंगन अब क़ैद नहीं, सहारा बन रहा था।
"शायद क्योंकि हमारी मोहब्बत आपकी नफ़रत, आपके गुस्से से बड़ी निकली!" अर्जुन की आवाज़ अब भीग चुकी थी।
ध्रुवी अब आगे और कुछ नहीं कह सकी। उसने खामोश बहते आंसुओं के साथ अपना सिर अर्जुन के सीने पर रख दिया था।
वो एक जंग हार गई थी आज,
लेकिन शायद पहली बार,
वो दोनों ही उस मोहब्बत के करीब थे,
जो सिर्फ़ एहसास से नहीं, रूह से जुड़े होते हैं।
(क्या मुकम्मल होगी इस नए मोहब्बत का सफर? क्या दोनों के पाक जज़्बात इश्क़ के रंग में डूब सकेंगे? या शतरंज की बिसात पर मोहब्बत की आड़ में कोई नया मोहरा जन्म लेगा? क्या नया मोड लेगी अब इनकी ज़िंदगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए "शतरंज– बाज़ी इश्क़ की"!)
No reviews available for this chapter.