महल में सन्नाटा पसरा हुआ था और सभी के चेहरे पीले पड़ गए थे।  पंडित जी मौन थे और पहली बार अर्जुन की आँखें दीवानख़ास के ऊपरी स्तंभों को देख कर घबराहट से फैल गई थीं और पहली बार ही उसके चेहरे पर डर की लकीरें साफ़ उभरी थीं। क्योंकि अब वहां दीवानख़ास के ऊपरी स्तंभों पर कुछ ऐसी भयानक आकृतियां उभर आई थीं, जो शायद किसी दफन राज़ की कहानी बयान रही थीं।

अर्जुन मन ही मन में बोला: ये… ये क्या था?

तभी वहाँ, एक पल को एक धुंधली छाया दिखाई दी मानो कोई औरत का घूँघट… लाल रंग… और बालों में लहराता काजल फिर अचानक वो छाया गायब।

दीये की लौ हिल रही थी। सन्नाटा इतना गहरा था कि दीवारों की सांसें तक सुनाई देतीं। पंडित जी अब मंत्र पढ़ना भूल चुके थे। उन्होंने एक बार फिर ऊपरी गुम्बद की ओर देखा वहाँ अब कुछ नहीं था लेकिन चेहरा पीला पड़ गया था।

पंडित जी अविश्वास से बोले: हे! ईश्वर..... क्या हो रहा है ये सब?

अर्जुन का चेहरा एक पल को जड़ हो गया पसीने की एक बूँद उसके कान के पास से नीचे गिरी।

अर्जुन घबराते हुए बोला: य… ये कौन थी...? अनाया...?

ध्रुवी, जो चौकड़ी की एक सजी सजाई पुतली सी बैठी थी, अब काँप रही थी उसकी आँखों में डर था, वो डर जो उसके चेहरे से साफ़ उभर रहा था।

ध्रुवी काँपती आवाज़ में बोला: मै… मैंने... कुछ देखा... वहाँ... कोई... कोई था...।

सब लोग सबकुछ एकदम से खामोश हो गया था उनकी निगाहें ऊपर थीं जहाँ अब कुछ भी नहीं था लेकिन एक अजीब सी बेचैनी उनके चेहरों पर तैर रही थी।

कजरी धीरे से बुदबुदाते हुए बोली: ये महल कुछ छुपा रहा है... या दिखा रहा है?

मीरा भी पीछे खड़ी, सब देख रही थी पर चुप थी उसने सबको देखते हुए आख़िर में अर्जुन को देखा उसकी आंखों में पहली बार डर साफ़ दिख रहा था सभी की निगाहें उस ऊपरी स्तंभ की ओर थीं, जहाँ पल भर को लाल घूँघट, चूड़ियाँ और उड़ते काजल की छाया दिखी थी… और फिर वो गायब हो गई।

पंडित जी ने मंत्र पढ़ना रोक दिया। उनका गला सूख गया था।

पंडित जी (धीमे से): ये… ये शुभ संकेत नहीं हुकुम सा यहाँ कुछ तो है कुछ जो छुपा नहीं दिखना चाहता है।

अर्जुन ने एक पल को गर्दन घुमाई उसकी आँखें उसी स्तंभ पर टिकी थीं। चेहरा ज़र्द, माथे पर बल… और आँखों में पहली बार वो डर, जो किसी अविश्वास से पनपता है।

अर्जुन (आँखें ऊपर टिकाते हुए, खुद में बुदबुदाते): ये सब क्या है?

ध्रुवी जो इस वक़्त ऐसे चुपचाप बैठी थी जैसे किसी ने उसकी रीढ़ में बर्फ़ घुसेड़ दी हो। उसकी साँसें तेज़ थीं। चेहरा एकदम पीला।

ध्रुवी (काँपती आवाज़ में): मैंने कुछ देखा सच में वहाँ कोई औरत थी लाल साड़ी में उसका चेहरा पर वो वो गायब हो गई।

मीरा, जो अब तक सब सँभालने की कोशिश कर रही थी, अब खुद स्तब्ध सी रह गई। उसकी नज़र ध्रुवी पर थी फिर अर्जुन पर।

मीरा (धीरे से): ये महल कुछ कह रहा है अर्जुन। और ये आवाज़ें ये सिर्फ़ हवा नहीं है…

दाई माँ कजरी, जो छाया की एक हल्की झलक देखकर पीछे हट गई थीं, अब चौकी पर बैठी बुदबुदा रही थीं।

कजरी (अपने आप में): हमारे गांव में कहते हैं कि अगर किसी आत्मा का क्रिया कर्म अधूरा हो वो शांति नहीं पाती कहीं ये महल की कोई पुरानी आत्मा तो नहीं?

अर्जुन (कुछ संभल कर): ये सब वहम और फ़िज़ूल की बातें हैं।

पंडित जी (गंभीर स्वर में): ये कोई वहम नहीं ये चेतावनी है उस रूह की जो किसी मज़ार या श्मशान की नहीं इसी महल की ज़मीन से जुड़ी है।

एक भारी सन्नाटा सब एक-दूसरे की तरफ़ देखने लगे। कोई कुछ कह नहीं रहा था लेकिन सबके चेहरों पर एक ही सवाल था…।

"कौन थी वो"...?

 

***************************************

महल के हर कमरे में अब सन्नाटा पसरा था लेकिन नींद किसी को नहीं आई थी। महल में रात ढल रही थी पर दीवारों में दिन भर की गूंजें बाकी थीं। ध्रुवी अकेले पलंग पर बैठी थी आँखे खुली थीं, पर सपनों से ज़्यादा पुराने डर उसमें जिंदा थे। तभी दरवाज़ा बिना दस्तक के खुला।

मीरा अंदर आई हाथ में गर्म दूध की कटोरी, और आँखों में वो नज़र जो जैसे वक़्त की दीवारों को भी पढ़ चुकी हो। मीरा धीरे से उसके पास आई और कटोरी टेबल पर रख दी।

मीरा (धीमे स्वर में): आपको भी नींद नहीं आ रही, ना?

ध्रुवी (हैरानी से उसकी ओर देखती है): आपको कैसे पता…?

मीरा (हल्की मुस्कान के साथ, बिना जवाब दिए): कुछ चीज़ें कहने की ज़रूरत नहीं होती बस महसूस की जाती हैं। और फिर आज जो कुछ भी हुआ उसके बाद सबकी नींद उड़ चुकी है।

ध्रुवी (एक पल ठहर कर): ठीक कहा आपने वैसे आपको क्या लगता है इस बारे में?

मीरा (धीरे मगर साफ़ लहज़े में): यही की शायद इस महल की हवा चेहरे नहीं भूलती। ये दीवारें पहचानती हैं अपना ख़ून, अपना वजूद।

ध्रुवी (थोड़े गड़बड़ाए स्वर में): मीरा आप क्या कहना चाह रही हैं हम कुछ समझे नहीं?

मीरा (धीरे से, जैसे कोई व्रत दोहरा रही हो): बस यही कि कुछ लोग लौटते हैं चेहरे बदलकर नहीं तक़दीरें बदलने (एक पल रुक कर) ख़ैर आप आराम कीजिए हम मिलते हैं आपसे बाद में।

इतना कहकर मीरा वहां से जाने लगी कि एक पल को रुक कर वो पलटी उसने दूध की कटोरी की ओर इशारा करते हुए अपनी चुप्पी तोड़ी।

"दाई मां ने कहा है इसे पी लीजिएगा ये वही केसर है जो आप हमेशा पीती आई हैं जिससे आपकी तबीयत खुश हो जाती थी"...।

इतना कहकर मीरा वहां से चली गई जबकि ध्रुवी उसके कहे शब्दों में कुछ उलझ कर रह गई थी देर रात अर्जुन कमरे में आया तब तक ध्रुवी को नींद लग चुकी थी।

 

(दीवानख़ास की रात के बाद, अगली सुबह का पहला उजाला)...!

हवा में भीगती नमी थी, और पत्थरों की दीवारों पर सीलन से उभर आईं पुरानी लकीरें जैसे हर ईंट अपने भीतर कोई दबी चीख़ छुपाए हो।

ध्रुवी, जो सबकी नज़रों में अब भी वही अनाया थी उसी गलियारे से होकर गुज़र रही थी, जहाँ वो अब कई मर्तबा गुज़री थी।

ध्रुवी (मन में): ये दीवारें ये चुपचाप गलियाँ क्यों लगती हैं जैसे मुझे पहचानती हों?

वो धीमे-धीमे चल रही थी हर कदम किसी डर को दबाता हर साँस किसी बीते पल की परछाई से भिड़ती हुई। एक पुराना आईना रास्ते में दीवार पर टंगा था। ध्रुवी ठिठकी। आईने में खुद को देखना चाहा पर छवि धुंधली थी।

ध्रुवी (धीरे से खुद से): क्या ये आईना हकीकत पहचान सकता है?

तभी पीछे से कजरी के साथ दाई माँ की धीमी आवाज़ आई जैसे किसी आत्मा ने चेतावनी दी हो।

दाई मां (धीरे से आकर पास खड़ी होकर): मिष्टी आईने कभी झूठ नहीं बोलते। वो सिर्फ़ छुपा लेते हैं सच बोलने से पहले।

ध्रुवी चौंकी। उसने उन लोगों को देखकर फौरन ही अपने भाव सँभाले।

ध्रुवी (धीरे से मुस्कुराते हुए): आपने तो मुझे डरा ही दिया दाई माँ।

दाई मां (मुस्कुरा कर): डर तो भीतर से उठता है बिटिया बाहर का तो बस बहाना होता है।

ध्रुवी (गंभीरता से): सब ठीक है दाई मां?

कजरी (आगे बढ़ते हुए): दीवानख़ास की रात बहुत भारी थी महारानी सा। पंडित जी तो आज सुबह ही चले गए बोले, वहाँ फिर मत जाना कुछ दिन।

दाई मां (सहमति जताते हुए): हां और मीरा बिटिया ने उस कमरे में पूजा रखवा दी है।

ध्रुवी ने सिर झुका लिया।

ध्रुवी (गंभीरता भरे भाव से): क्या आपको लगता है दाई माँ वहाँ कोई है?

दाई मां (ध्रुवी के कंधे पर हाथ रखते हुए): महल की दीवारें साँस लेती हैं बिटिया और साँसों में दबी हुई आहें कभी-कभी चीख़ बन जाती हैं।

ध्रुवी (धीरे से): अगर कोई चीख़ अंदर से उठे तो?

दाई मां की आंखों में ध्रुवी की बात से गहराई उतर गई।

दाई मां (संजीदगी से): तो समझो वो चीख़ उस इंसान की नहीं, उस रूह की है जिसे किसी ने सुना ही नहीं कभी।

एक पल के लिए ध्रुवी की आँखें अनकहे भाव से भर आईं। पर उसने उसे छुपा लिया।

 

(दूसरी ओर अर्जुन की स्टडी की बालकनी)...!

अर्जुन सुबह की हवा में अकेला खड़ा था नीचे के बाग़ में झांकता हुआ। रात की छाया अब भी उसकी आँखों में तैर रही थी।

अर्जुन (धीरे से): आखिर ये सब हो क्या रहा है? क्या वाकई ये कोई रूह है या किसी की साज़िश?

 

***************************************

ध्रुवी अपने कमरे में थी अकेली लेकिन उस अकेलेपन में भी जैसे कोई साँस ले रहा हो। वो दहशत में नहीं थी बस उलझी हुई, बिखरी हुई। उसने घूँघट में छिपे चेहरे को आईने में देखा। अपनी ही आँखों में एक अजनबीपन दिखा।

ध्रुवी (धीरे से खुद से): जो दिखा क्या वो मेरी आँखों का धोखा था? या वो अतीत की परछाई है जो अब मेरे साये में उतर आई है?

तभी कमरे का दरवाज़ा हल्के से खुला अर्जुन अंदर आया हाथ में एक किताब थी।

अर्जुन (धीरे से): आप ठीक हो, ध्रुवी? कल आप बहुत डर गई थी।

ध्रुवी (थोड़ी घबराई, मगर मासूम आवाज़ में): अर्जुन क्या इस महल में सच में कुछ है? कुछ ऐसा जो सिर्फ़ आंखों से नहीं, रूह से महसूस होता है?

अर्जुन कुछ पल तक चुप रहा फिर उसने धीमे लहज़े में जवाब दिया।

अर्जुन (संजीदगी से): कभी-कभी कुछ आवाज़ें गुज़र चुकी रूहों की नहीं होतीं बल्कि हमारे ही डर की होती हैं, ध्रुवी।

ध्रुवी ने एक पल को अर्जुन की आँखों में झाँका और फिर सवाल पूछ ही लिया।

ध्रुवी (अर्जुन की आंखों में देखते हुए): अगर ये आपकी अनाया ही हुईं तो?

अर्जुन (धीरे से दर्दभरे स्वर में): अनाया रानी जैसी थी पर उनकी मौत मौत जैसी नहीं थी। और अगर ये हमारी अनाया हैं तो हम उनसे मिलना चाहते हैं (दर्द भरे भाव से) उनसे कहना चाहते हैं कि वो हमें अपने साथ ले चलें (आंखों में हल्की उभरी नमी के साथ) क्योंकि उनके बिना ये ज़िंदगी महज़ एक बोझ से ज़्यादा कुछ नहीं।

ध्रुवी की नज़रे कुछ पल के लिए अर्जुन के चेहरे पर टिक गईं खिड़की की ओर मुड़ी बाहर हल्का उजाला था। लेकिन उसकी आँखों में अब डर से ज़्यादा सवाल थे। और उन सवालों में धीरे-धीरे एक अजीब आत्मविश्वास जाग रहा था।

ध्रुवी (धीमे लहज़े से): अगर इस महल में कोई राज़ है तो मैं जानकर रहूँगी। क्योंकि अब ये मेरा ही हिस्सा है (अर्जुन की ओर पलट कर) बस इसमें मुझे आपका साथ चाहिए।

अर्जुन (गंभीरता से): हमारा साथ और हम हमेशा आपके साथ हैं।

***************************************

वक्त हमेशा की तरह अपनी गति से आगे बढ़ रहा था अर्जुन और ध्रुवी के बीच अब एक डोर बन रही थी अब दोनों एक साथ लॉन में दिखते अर्जुन कभी ध्रुवी के लिए कुर्सी खींच देता, कभी किसी किताब का पन्ना पढ़कर सुनाता। ध्रुवी कभी उसकी बातों पर हल्के से मुस्कुरा देती, कभी कुछ नहीं कहती। शायद एक नज़र आने वाला साथ बन गया था जो घावों और पछतावे से निकली थी।

 

(एक रात)...।

बारिश की हर बूँद मानो समय के किसी पुराने पन्ने पर गिर रही थी। महल की ऊँचाई पर खड़ी वो पत्थर की छत अब भीग चुकी थी। नीचे महल सोया था लेकिन ऊपर, कोई लम्हा जाग गया था।

ध्रुवी लाल साड़ी में लिपटी, नंगे पाँव बारिश में खड़ी थी। उसकी पलकों से टपकती बारिश और भीतर की बेचैनी अलग-अलग नहीं थीं। मानो उसने अपनी साँसों को भी इन बूँदों में विलीन कर दिया हो।

ध्रुवी (एक सुकून भरे एहसास के साथ): एक अरसे बाद आज सुकून लफ़्ज़ का एहसास हुआ है।

वो धीमे-धीमे घूम रही थी, जैसे कोई पुरानी रागिनी खुद में ही गुनगुना रही हो। आसमान से गिरती बूँदें उसके चेहरे से बह रही थीं और उन बूँदों के साथ बह रहा था उसका सारा आवरण, सारा संकोच।

वो खुल कर मुस्कुरा रही थी एक अरसे बाद। किसी बचपन की तरह, जहाँ कोई डर नहीं, बस शरारत होती है। तभी अर्जुन आया। वो पहले कुछ कदम दूर ठिठका ध्रुवी को यूँ बारिश में खोया देख उसकी रूह काँप उठी।

उसने उसे पहले भी हजार बार देखा था पर आज आज वो अलग लग रही थी।

एक अजनबी सी पहचान,

एक दर्द से घुली मोहब्बत,

और एक ऐसा सुकून जो डराता है।

अर्जुन (धीरे से, कुछ टूटी साँसों के साथ): ध्रुवी भीग जाओगी पूरी अंदर चलिए।

ध्रुवी (पीछे देखे बिना, आँखें मूंदे): मैं चाहती हूँ कि भीग जाऊँ अर्जुन इतने अरसे की चुप्पी, इतने छुपे हुए आँसू कहीं तो बह जाएँ इस बारिश में।

अर्जुन (थोड़ा और पास आकर): लेकिन रात का वक्त है बीमार पड़ जाएंगी आप।

ध्रुवी (धीरे से पीछे घूमती है, हल्की मुस्कान के साथ): इस सुकून के बाद अगर थोड़ा बीमार पड़ भी गई तो ईट्स नॉट अ बिग डील।

अर्जुन एकदम चुप हो गया।

उसके पास जवाब नहीं था।

उसने बस खामोशी से ध्रुवी का चेहरा देखा

जो भीगते हुए भी, किसी दीपक की लौ की तरह स्थिर था।

तभी ध्रुवी लड़खड़ा गई बरसात से फिसली ज़मीन पर उसका पाँव डगमगाया और अर्जुन ने तेज़ी से बिना एक पल गँवाए फ़ौरन ही आगे बढ़कर उसे थाम लिया था।

उसका एक हाथ ध्रुवी की कमर पर, दूसरा उसके काँधे पर था वो लम्हा जैसे समय के बाहर था दोनों की साँसें अब इतने पास थीं कि बारिश की आवाज़ भी दब गई थी।

ध्रुवी (झिझक कर धीरे से फुसफुसाते हुए): थे थैंक्स।

अर्जुन ने कुछ नहीं कहा बस एक गहरी ख़ामोशी। उसकी आंखों की तपिश से ध्रुवी की साँसें अब तेज़ हो चली थीं। अर्जुन की उँगलियाँ अब भी उसकी कमर पर थीं। और तभी बिना कुछ कहे, बिना कुछ सोचे अर्जुन ने अपना चेहरा झुकाया और बहुत धीमे, बहुत थामे हुए अंदाज़ में उसने अपने लबों से ध्रुवी के लबों को छू लिया।

ये स्पर्श कोई वासना नहीं था

ये एक एहसास था…

एक सवाल…

एक इज़हार, जो न मौखिक था, न तयशुदा।

एक अनकहे एहसास से ध्रुवी ने भी अनायास ही अपनी आँखें बंद कर लीं थी क्योंकि उस पल में वो भी अर्जुन की तरह शायद थक चुकी थी।

दो टूटी हुई रूहें

एक अधूरी रात

और एक सच्चा स्पर्श

 

         वो दोनों अभी इस एहसास से पूरी तरह जुड़ भी नहीं पाए थे कि तभी…

 

 

(ये साया है या साज़िश? क्या इन उलझनों के बीच एक नई मोहब्बत करवट लेगी? या ये भी शतरंज की बिसात पर बिखर कर रह जाएगी? जानने के लिए पढ़ते रहिए "शतरंज– बाज़ी इश्क़ की".....!)

 

Continue to next

No reviews available for this chapter.