“कि हज़ारों ख़्वाब टूटेंगे, सौ हसरतों का दम घुटेगा,​ 
तब जा कर एक हसीन कामयाब सुबह होगी .. जो तुम्हारी अपनी होगी..”​ 

​​गर्मियों का दौर था और दिल्ली की गर्मी.. उफ़्फ़.. जब पारा 40 नहीं, 45 भी पार कर जाता है! उसी गर्मी में, कुतुब मीनार से थोड़ा दूर, एक पेड़ के नीचे खड़ी वो कभी अपने बाल कान के पीछे करती तो कभी माथे पर आती पसीने की बुंदों को अपने दुपट्टे से साफ़ करती। उसने जब दोबारा अपने बालों से परेशान हो कर उन्हें पीछे किए तो हाथों पर लगा रंग उसके गालों पर लग गया। अपने काम में इतनी तल्लीन थी कि  उसे वक़्त का होश ही नहीं था। ट्राइपॉड पर लगे कैन्वस को अपनी कला से निखारती ये लड़की थी नीना, एक प्रतिभाशाली पेंटर। ​ 

​​वो वहीं पेड़ के नीचे बैठे, दो बच्चों को अपने कैन्वस पर उतार रही थी। दिल्ली जैसे शहर में अपने आप को साबित करना कहाँ आसान होता है, साहब? नीना के लिए भी नहीं था। उसे अपनी पहचान अपनी कला के ज़रिए बनानी थी और इसके लिए वो दिन रात मेहनत करती थी। ऊपर वाले ने उसे एक बहुत खूब हुनर से नवाज़ा था और अब वो अपने इस हुनर को अपने दम पर एक अलग मुकाम पर ले जाना चाहती थी।​ 

​​नीना ने अपने मोबाइल की स्क्रीन पर उभर आए मेसेज को देखा.. उसमें लिखा था ‘लड़की, ऑल द बेस्ट फॉर द एक्सिबिशन’। ये मेसेज़ उसके दोस्त सतीश का था। मेसेज देखते ही नीना को टाइम का एहसास हुआ। ​ 

​​ओहह….  वो इतनी लापरवाह कैसे हो सकती है!!! अपने रंगों और ब्रश की दुनिया में इतना खो गई कि उसे वक़्त का अंदाज़ा भी नहीं रहा। उसने फ़टाफ़ट अपना समान समेटा और दौड़ पड़ी एक्सिबिशन सेंटर की तरफ़ … ​ 

**** 

नीना ने, सामान ज़्यादा होने की वजह से मेट्रो की बजाय, ऑटो लेना सही समझा। जैसे तैसे वो ऑटो वाले भैया के साथ जुगलबंदी करते हुए, कभी ट्राफिक को कोसते​,​ तो कभी राजनीति की बातों में घुसते-घुसाते वहाँ से कनॉट प्लेस पहुंची। ऑटो वाले भैया से थोड़े पैसे को लेकर चिकचिक करने के बाद, नीना एक्सिबिशन सेंटर के अंदर घुसी। कुछ पल बाद, वह अपनी लगाई हुई पेंटिंग के सामने खड़ी थी। नीना एक बहुत ही टैलन्टिड आर्टिस्ट थी। उसका आर्ट सर्किट में नाम बनने लगा था। उसकी बनाई पेंटिंग्स कई एक्सिबिशन की शोभा भी बड़ा चुके थे। ​​  
वैसे तो ये नीना की आज तक की सबसे खूबसूरत पेंटिंग थी। फिर उसे कोई खरीददार क्यूँ नहीं मिल रहा था? वो थोड़ा हताश हुई जो कि होना आम बात है। इतनी भीड़ जमा है तो क्या किसी को उसका काम पसंद नहीं आया? सोचते हुए वो निराश नज़र आ रही थी। लोग उसकी पेंटिंग के आस पास लगी पेंटिंग्स बुक ​​करते जा रहे थे और उसका ब्लड प्रेशर बढ़ता जा रहा था। ​ 

​​वो झल्लाते हुए मन में बोली ​ 

​​नीना: “अब मैंने ये अनुलोम-विलोम क्यूँ चालू कर दिया.. बस कर! लोग तुझे झल्ली ही समझेंगे.. फिर तो हो गयी पेंटिंग्स की बिक्री.. ” ​ 

उसे नहीं पता था लेकिन दो आँखें दूर से उस पर बनी हुई थी। उसकी हर एक हरकत को अच्छे से निरख और परख रही थी। वो कभी उसे मुंह बनाते देख रहा था तो कभी पास वाली पेंटिंग्स पर सोल्ड का तमगा देख उदास होते देख रहा था। सूट बूट में खड़ा ये बंदा कोई सामान्य हस्ति नहीं था। उसकी स्टाइल और पर्सनैलिटी उसके रुतबे को बयान कर रही थी। उसने वहाँ के ऑर्गनाइज़र टीम के एक आदमी को इशारों से अपनी तरफ़ बुलाया और पूछा ​ 

सत्यजीत: ‘इस पेंटिंग को बनाने वाली यही है?”​  

​​उसकी आवाज़ में भारीपन था। ​ ऑर्गनाइज़र नरमी से बोला ​“जी सर! आप कहें तो मैं आपका परिचय करवा दूँ?”​ 
लेकिन इतना कहते ही वो रुक गया क्योंकि सत्यजीत की नज़रें नीना ही को देख रही थी। सत्यजीत ने हाथों से उसे रुकने का इशारा किया और ख़ुद नीना के पास पहुँच गया और पेंटिंग की तरफ़ देखते हुए बोला, ​ 

​​सत्यजीत : “बहुत खूब बनाया है बनाने वाले ने..”​ 

नीना तो नीना थी। वो ख़ुद की तारीफ़ करते सुन, बिना सत्यजीत को देखे बोली ​ 

​​नीना : “है न? मैं तो ख़ुद आपकी बात से सहमत हूँ.. आप ये बताइये अगर आपको इतनी पसंद आई तो खरीदी क्यूँ नहीं?”​​ ​ 

​​अब जाकर नीना ने उस ​​शख़्स​​ को ध्यान से देखा। देखते ही लगा नीना को कि इनको तो कहीं देखा हुआ है। हाँ! कई बार इन्हें  बिज़नेस मैगजीन  के कवर पेज पर देखा है।  यंग, डेशिंग कोलकाता के रहने वाले..  इनका नाम वो सोच ही रही थी की उस शख्स ने अपना हाथ अपनी जेब से निकालकर, उसके आगे करते हुए कहा ​ 

सत्यजीत: “​सत्यजीत.. सत्यजीत चौधरी​”   

​​सच में जैसा रुतबा वैसा नाम! ​ ​​नीना ने सकुचाते हुए उनके हाथ से अपना हाथ मिला कर हैन्ड्शैक किया​ 

​​नीना: “मैं  नीना.. नीना शर्मा..”​ 

​​सत्यजीत: किसने कहा आपसे की इसे खरीददार नहीं मिला? इस पेंटिंग का खरीददार आपके सामने है।  ​ 

​​नीना अपने कानों पर विश्वास नहीं कर पा रही थी। तभी उसके पीछे खड़े ऑर्गनाइज़र टीम के बंदे ने कहा ​​“जी आप ख़ुद को लकी समझ सकती है … आपकी पेंटिंग के खरीददार ख़ुद इस आर्ट गेलेरी के मालिक हैं।”​ यह सुनकर नीना ने मन ही मन सोच कि अच्छा! वसुंधरा इवेंट्स का मालिक ये सत्यजीत है! ​​उसने सत्यजीत से फोकस हटाते ख़ुद पर फोकस करते हुए कहा ​ 

​​नीना: “लेकिन आपने सोल्ड का स्टिकर क्यूँ नहीं लगवाया?”​ 

​​नीना की उत्सुकता भरे सवाल पूछ कर, लोगो को उलझन में डालने की आदत कहाँ सुधरने वाली थी?​ 

​​सत्यजीत: “मेरी जगह से देखिये, आपको वो भी दिख जाएगा।”​  

​कहते, उसने नीना को, इशारे  से पेंटिंग के साइड में लगा स्टिकर दिखाया।​ 

​​नीना: “ओहह …. आई एम सॉरी…  मेरी नज़र नहीं गयी..”​  

​वो झेंप गयी जैसे उसकी कोई गलती पकड़ी गयी हो। ​​सत्यजीत की नज़र उसके गाल  पर लगे काले रंग पर गयी।  उसने नीना की तरफ़ टिशू आगे बढ़ाया । ​ 

सत्यजीत : “आप पेंट करते वक़्त सच में खो जातीं हैं, आपकी पेंटिंग में ये दिखाई देता है..”​ 

 ​नीना अपनी तारीफ से खुश हुई और फिर अपने गाल पर लगे ब्लैक पेंट को हटाने लगी।​ 

​​सत्यजीत: “मुझे आप जैसे ही एक आर्टिस्ट की जरूरत थी। क्या आप मेरे लिए काम करेंगीं?’​ 

​​नीना: आप मुझे अपने प्रोजेक्ट के लिए कमीशन कर रहे हैं? ​ 

​​सत्यजीत: अगर आपको मंज़ूर हो तो…​ 

​  
नीना तो ख़ुद काम की तलाश में थी। अपने उत्सुकता को कंट्रोल करते हुए, वह काम के बारे में पूछने जा ही रही थी कि सत्यजीत ने लंबी सांस भरते हुए, रूखे कंठ से बोला​ 

​​सत्यजीत : “मेरी पत्नी वसुंधरा, जो कि अब इस दुनिया में नहीं है … उसका ​​पोर्ट्रेट बनाना है​​​  
नीना:​ “ओह सॉरी..”​ 
सत्यजीत: ​​“नियति के खेल के आगे किसकी चली है..  खैर, तो आपकी ​​तरफ़ ​​से हाँ है?”​  
नीना: “जी?”​    

सत्यजीत ने अपने मैनेजर को पास बुलाया और एक ब्लैंक चेक दिखाते हुए कहा, 

​​सत्यजीत : “बदले में मनचाही रकम..  आप कहें तो अभी इसी वक़्त.. क्यूंकि मुझे जिस बेहतरीन आर्टिस्ट की तलाश थी अपनी पत्नी के ​​पोर्ट्रेट  के लिए वह मुझे आज मिल गया है। 

​​अपने सामने सत्यजीत के हाथ में लहराते ​ब्लैंक चेक को देखते ही नीना की ​आखों में बुनते सपने ​​देखे जा सकते थे। जहां उसे अपनी आर्ट को बेचने में ​​काफ़ी ​​ मशक़्क़त करनी पड़ती थी ​​और ​​ यहाँ उसे ​​सिर्फ़​​ और ​​सिर्फ़ ​​एक पोर्ट्रेट का मनचाहा पैसा मिल रहा था। इसे ना करना तो ​​बेवकूफ़ी​​ है।​ 

​​नीना: ​​“आई एक्सेप्ट योर ऑफ़र! आप ये चेक अपने पास रखिए​​​​जब ​​मैं ​​पोर्ट्रेट पूरा कर ​​लूँगी …. आई विल बिल यू फॉर इट.. ​​तब आपसे ले लूँगी” ​  

​स्वाभिमानी लड़की थी, जनाब​​। पैसों ​​के लिए अपने आदर्श को ​साइड ​में रखना, उसे नहीं ​​आता था​​। ​​सत्यजीत के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट तैरी।​ 

​​सत्यजीत: “वेरी वेल, देन! पर इस काम के लिए मेरी कुछ शर्तें है..”​  

​​नीना: ​​“शर्तें ?”​  

​नीना ​​चौंक​​ गयी​​। पोर्ट्रेट बनाने  ​​के लिए कैसी शर्तें, वो थोड़ी चौकन्नी हुई।​ सत्यजीत ने उससे पूछा कि वह आमतौर पर किन मटेरियल्स के साथ काम करती है। नीना ने तुरंत जवाब दिया कि ऑइल और अक्रिलिक पेंट्स ही इस्तेमाल करती है। सत्यजीत ने मानो उसके बात को अनसुनी कर दी। वह नीना कि तरफ़ मुड़ते हुए बोले…  ​ 

​​सत्यजीत: “आप मेरी पत्नी के पोर्ट्रेट के लिए ​​सिर्फ़ ​​अपने रंगों का इस्तेमाल नहीं करेंगीं​​। मैं आपको अपना एक ख़ास कलर पिगमेंट दूंगा जिससे आपको यह काम करना होगा ।” ​ 

​सत्यजीत की आवाज़ में दबदबा था और नीना ​​उन्हें हैरत भरी निगाहों ​​से देख रही थी। मन ही मन, वह जद्दोजहद में थी कि आखिर ये मुझसे ऐसे कौन से ​​रंगों​​ से पोर्ट्रेट बनवाना चाहते है? ​ 

​​सत्यजीत: ”कहिये?​​ मंजूर है?​ ​एक सुनहरा भविष्य आपका इंतज़ार कdर रहा है। आपको इस काम की मनचाही कीमत मिल रही है। इसके आगे ये शर्त तो छोटी सी है..”​​  

सत्यजीत की आवाज़ में रुतबा था और उसकी बात टालना, मुश्किल।​ ​​नीना के ऊपर ज़िम्मेदारी थी, उसे ​​ख़ुद​​ को साबित करना था, उसकी पेंटिंग्स को पहचान मिले ये उसका ख़्वाब था​​। तो​​ वो पीछे ​​कैसे ​​हट सकती थी​? ​लेकिन ​​ये शर्त​.. ​उफ़्फ़ ​​उसके माथे की न​​सें​​ तनने लगी​​। उसके दिमाग में कुछ मिनटों की ​“​हाँ​”​ और ​“​ना​​” की ​​लड़ाई चली और आखिर में ​​फ़ैसला​ “​हाँ​​” ने जीत लिया।  ​ 

​​नीना : “​​जी, मुझे मंजूर है। 

​​सत्यजीत: “ग्रेट! और एक बार इसके लिए आपको कोलकाता आना होगा.. ​​मैं ​​ चाहता हूँ आप वहाँ आकर, ​​मेरे आर्ट कलेक्शन को देखें… ​​ और वसुंधरा की सुंदर और सजीव सी पोर्ट्रेट ​​बनाएँ​​ .. ऐसा, कि मानो वो मेरे सामने बैठी हो​​  

​​सत्यजीत ने धीमी आवाज़ में कहा। या तो वसुंधरा के जिक्र से या पता नहीं किसी और कारणवश लेकिन उनकी आवाज़ धीमी होने लगी। ​​कोलकाता कुछ वक़्त के लिए जाने में नीना को कोई तकलीफ़ नहीं थी.. वो राज़ी हो गयी​​।  ​ 

​​सत्यजीत: ​​“ठीक है फिर आपसे जल्द मुलाक़ात होगी ..”​  

​​सत्यजीत वहाँ से जाने के लिए पलटें और उन्होंने अपने मैनेजर से कहा कि नीना के सारे डिटेल्स ले लिए जाए। ​ 

मैनेजर साब ने आदेश का पालन करते हुए, अपना मोबाईल निकाला और नीना के कॉन्टैकक्ट डिटेल्स पूछते हुए नोट करने लगे। ​। नीना की नज़र जाते हुए सत्यजीत पर थी​​।  ​​ अजीब सा आकर्षण था इस इंसान में! आंखे उसकी इतनी गहरी जैसे ना जाने कितने राज़ छुपे हुए थे, ​​ 
 
नीना: खैर, मुझे क्या? मुझे तो बस उसकी बीवी का पोर्ट्रेट बनाना है। वो करके, अपना पैसा लेकर, अपने खुद का काम शुरू करूंगी..”​  

ऐसा, नीना को लगा । पर सच में क्या ऐसा ही हुआ? 

क्या ये सब इतना आसान होने वाला था? 

अगर होता, तो यह कहानी आपको सुनाता ही क्यूँ! ​ 

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