सुरू: “बाप रे बाप!! यह तो बहुत बड़ी दुकान है! यहाँ मेरे मतलब का सब कुछ है लेकिन यहाँ हर जगह कैमरा क्यूँ लगा है?”

सुरू अपनी सहेलियों के साथ एक बड़ी सी लाइफस्टाइल शॉप में घुसती है। वहाँ का कलेक्शन देख कर उसकी आँखें चौंदिया जाती है और उसका मुँह खुला का खुला रह जाता है। फैशन कितनी तेज़ी से बदल रहा है, सुरू यह देख कर हैरान है। लेकिन सुरू यहाँ सिर्फ विंडो शॉपिंग करने के इरादे से आई है, उसकी खाली जेब उसे बार बार यह याद दिलाती है कि वह इन चीजों को देख तो सकती है लेकिन खरीद नहीं सकती। तभी सुरू की सहेली भूमिका को मैनेक्विन पर सजी एक ड्रेस पसंद आ जाती है| वह दुकानदार से वैसी ही ड्रेस दिखाने के लिए कहती है|

सहेलियों से दूर जाकर सुरू नैलपैन्ट के सेक्शन में पहुंचती है। उसे एक लाल रंग का नैलपैन्ट पसंद आता है। कीमत एक सौ पचास रुपए। वह उसे वापस रखकर भूमिका के पास चल पड़ती है| दुकानदार जैसे ही भूमिका के हाथ में वह ड्रेस देता है वह इतराते हुए अपनी सभी सहेलियों से उस ड्रेस के बारे में पूछती है  

“लग रही हूँ न मैं मिस वर्ल्ड इस ड्रेस में?”

सामने खड़ी उसकी सहेलियों के चेहरे पर एक्साइट्मेंट है लेकिन शायद सुरु के मन में कुछ और ही चल रहा है|  

सुरू: “न शक्ल है न सूरत बड़ी आई है मिस वर्ल्ड बनने! इसकी जगह अगर मैं होती तो पता चलता कौन है असली मिस वर्ल्ड ! हुंह!!”

ऐसा सोचते ही सुरु की नज़र उस ड्रेस पर लगे प्राइस टैग पर जाती है, जिसे देखती ही उसकी भौंहे चढ़ जाती है|

सुरू: “दो हज़ार नौ सौ निन्यानवे! बाप रे! इतनी महंगी ड्रेस! नहीं-नहीं यह इतनी महंगी लग तो नहीं रही| यह क्या है? शायद इसके टैग पर कोई दाग लगा है”

ऐसा सोचते ही सुरु चुपके से उसके टैग को खरोंचने लगती है, जिसे देखते ही भूमिका उसके हाथ से वह प्राइस टैग खींचते हुए कहती है.. “पागल हो गई है क्या सुरु? अभी तक मैंने यह ड्रेस ली नहीं है! यह क्या कर रही है तू?”

सुरू: “वह मैं...तो...मैं तो बस यह चेक कर रही थी कि यह दो हज़ार नौ सौ निन्यानवे ही लिखा है या मुझे कोई कन्फ़्युशन हो रहा है|?”

सुरु बेचारगी के साथ वह टैग तुरंत छोड़ देती है और मुंह बनाते हुए भूमिका की तरफ़ देखती है| तब भूमिका उस tag को पढ़ते हुए कहती है, “दो हज़ार नौ सौ निन्यानवे! हाँ यही लिखा है सुरु डार्लिंग! मैंने तुझे कितनी बार समझाया है, कि तू ऐसी हरकतें मत किया कर यार! देख सुरु, बुरा मत मानना, आगे से तूने ऐसा कुछ किया तो...इससे पहले की भूमिका अपनी बात पूरी कर पाती सुरू उसे कहती है  

सुरू: तो तू तेरी टाँगे तोड़ देगी! मालूम है!!  

वहाँ खड़ी सभी सहेलियाँ हंसने लगती है और भूमिका को यह बात पसंद नहीं आती| भूमिका उस ड्रेस को पहन कर आती है तो सभी उसे देखकर उसकी तारीफ करते हैं, वहीँ जैसे ही भूमिका और सुरु की नज़रे आपस में टकराती हैं तो वह दोनों एक दूसरे को इग्नोर करते हैं|

सुरु दुकान के दूसरे सेक्शन में जाती है और उसकी नज़र कुंदन के बहुत सुन्दर सेट पर पड़ती है। वह उसे पाना तो चाहती है मगर चाहकर भी ले नहीं सकती।  

सुरू: “काश! मैं इन्हें खरीद पाती| मगर कोई बात नहीं, आज नहीं तो कल मैं यहाँ आउंगी और यहाँ की हर चीज़ खरीद कर ले जाउंगी|”

यह सोचते ही उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है और वह पर्फ्यूम वाले सेक्शन में पहुंचती है, जहाँ उसके हाथ एक महंगा परफ्यूम लगता है।  

सुरू: “क्या बात है यार! यह तो बहुत बढ़िया है| मैंने इतनी अच्छी खुशबू वाला पर्फ्यूम तो कभी नहीं देखा| इसकी शीशी भी कितनी कमाल की है|”

वह उस शीशी को हाथ में लेकर उस पर लगे प्राइस टैग को देखने से पहले सोचती है..  

सुरू: “हे माता रानी! प्लीज इसका प्राइस कम हो! और मैं इसे अपने साथ घर ले जाऊ। अब मैं आँखें खोल रही हूँ.. प्लीज माता रानी, ठीक-ठीक लगा लेना।  

सुरू अपनी आँखें खोलती है। प्राइस टैग देखकर वो समझ जाती है की माता रानी के दरबार में लगी परफ्यूम की अर्ज़ी नामंजूर हो गई है। पर सुरू का दिल इस परफ्यूम पर आ गया था। वो धीरे से पर्फ्यूम अपने पर्स में डाल ही रही होती है कि सामने एक सेल्समैन आ खड़ा होता है।  

सेल्समैन अपनी उंगली से सीसीटीवी की तरफ़ इशारा करता है। सुरु, नकली हंसी के साथ, उस सेल्समैन को वह पर्फ्यूम थमा कर वहाँ से खिसक लेती है। वह फटाफट अपनी सहेलियों के पास पहुंचती है। भूमिका अपने मोबाइल को देखकर खुशी से चिल्ला उठती है “हो गए पैसे ट्रांसफर!, थैन्क यू मम्मी! गाय्ज़, मम्मी ने पैसे भेज दिए हैं अब मैं यह ड्रेस ले रहीं हूँ”।  

सुरू देखती है की उसकी सभी सहेलियों ने कुछ ना कुछ खरीद लिया है। यह देखकर सुरु का मुंह बन जाता है और वह मन ही मन सोचती है..  

सुरू: “क्या मैं यहाँ इन सबकी शॉपिंग देखने आई थी? काश मेरे घरवाले मुझे पॉकेट मनी देते तो मैं भी अपना मनपसंद सामान खरीद सकती थी|  

दरअसल सुरु ने अपनी मर्ज़ी से जिंदगी का एक भी दिन नहीं जिया और कारण था गरीबी| जबसे उसने आँखें खोली, बस गरीबी ही देखी| अपने माता पिता और छोटे भाई के साथ दिल्ली के करोल बाग की तंग गलियों में रहने वाली सुरु ठीक वैसे ही सपने देखती है जैसे उसकी उम्र की हर लड़की देखती है| सुरु के पिता की एक भजन मंडली है और वह जागरण और माता की चौकी में भजन गाकर परिवार का पेट पालते हैं।  

इसी भजन मंडली का हिस्सा सुरू भी है जिसमें वह माँ दुर्गा का किरदार निभाती है। अब माँ दुर्गा का रोल निभाने के लिए उसे साज शृंगार की जरूरत तो पड़ती ही है, लेकिन उसे खरीदने के पैसे सुरू के पास नहीं होते।  

मगर उसका एक ही सपना है “भले ही गरीब परिवार में पैदा हुई हूँ, मगर वह गरीब मरेगी नहीं”

इसी सोच के चलते सुरु हमेशा अपनी सहेलियों के साथ बड़ी जगहों पर जाना पसंद करती है| उसे अमीर लोगों से दोस्ती करने का शौक है| वह अपने आपको उन्हीं के तौर तरीकों में ढालने की कोशिश करती है| जिसमें बहुत सी जगह वह नाकाम होती है मगर हार नहीं मानती|

सुरू ने जब देखा की वह एक नैलपैन्ट भी नहीं खरीद सकती है तो उसे बहुत बुरा लगता है। अब ऐसे में आखिर वह करे तो क्या? उधार मांग कर खरीद भी ले तो उस उधार को चुकाएगी कैसे? इसलिए सुरू कई जगहों पर अपना मन मार लेती है। सुरू को अपने खयालों में खोई देख कर दिया उसके पास आकर उससे पूछती है। सुरु यहाँ सब कुछ न कुछ ले रहे हैं तुझे कुछ नहीं लेना?

सुरू: “नहीं यार! मुझे तो यहाँ कुछ खास अच्छा ही नहीं लग रहा है|  

दिया भी मुंह बनाते हुए कहती है कि उसे भी यहाँ कुछ खास पसंद नहीं आया कि तभी दिया के फ़ोन पर घंटी बजती है और वह फोन उठाते हुए दुकान से बाहर निकल जाती है| सुरू की नज़र एक बार फिर उस नैलपैन्ट पर पड़ती है और वह अपनी नजरें घुमाकर शोरूम के सभी कैमरे देखती है। उसका हाथ आगे बड़ ही रहा होता है की सेल्समैन दोबारा वहाँ या जाता है। सुरु सकपकाते हुए उसकी ओर देखती है और उससे कहती है कि उसे और कलर्स देखने हैं| सेल्समैन जब उसे ऑप्शनस दिखा रहा होता है तब वह धीरे से उस लाल नैलपैन्ट को अपनी जेब में रख लेती है और उसे कहती है  

सुरू: “नहीं आपके पास वैसे कलर्स नहीं हैं जैसे मुझे चाहिए”

सेल्समैन को एक बार फिर सुरू पर शक होता है और वह अपने मैनेजर के कान में जाकर कुछ कहता है। शोरूम का मैनेजर सुरू की ओर आने लगता है जिसे देख वह सोचती है..  

सुरू: “आज तो तू पकड़ी जाएगी सुरु, शोरूम वाले तेरी चोरी का विडिओ इंटरनेट पर डाल देंगे अब तो!”

सुरु ऐसा सोच ही रही होती है कि तभी मैनेजर उसके सामने आकर खड़ा हो जाता है, उसके साथ एक फीमैल स्टाफ भी होती है। वह सुरू से कहता है “मैडम, माफ कीजिएगा पर हमें आपकी चेकिंग करना होगी। अगर आप चाहती हैं की ऐसा ना हो तो प्लीज वह नैलपैन्ट वापस रख दीजिए। यह सुनते ही सुरू के होश उड़ जाते है। बवाल होता देख उसकी सहेलियाँ भी उसके पास आने लगती है की तभी कोई आकर उसके हाथ में उस नैलपैन्ट के पैड बिल की रसीद रखता है| उस शख्स को देख कर सुरू के चेहरे के भाव बदल जाते है और वह तेज कदमों के साथ बाहर की ओर जाते हुए काउन्टर पर नैलपैन्ट वापस रख देती है।  

आखिर कौन है यह शख्स जिसने सुरु को ऐसे मौके पर बचाया? क्या सुरु की किसी सहेली ने उसकी मदद की है या यह कोई और ही है जो सुरु की चोरी की आदत को जानता है? आखिर क्या होगा सुरु के सपनो का? जानने के लिए  पढ़ते रहिए।  

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