सुरु के बाहर जाते ही उसकी सहेलियों के बीच गॉसिप शुरू हो जाती है। हालांकि, इसकी परवाह किए बिना, वो शख्स काउंटर से एक नेल पेंट उठाता है और वहां से निकल जाता है। कुछ ही देर में, दिया दुकान के अंदर आती है और सभी को उस शख्स की तरफ घूरते हुए देखकर हैरान हो जाती है। वो तुरंत अपनी सहेलियों से पूछती है, “ओए, ये कौन है? सब इसे क्यों देख रहे हैं? और सुरु कहां है? मुझे उससे बात करनी है।”
उसकी एक दोस्त जवाब देती है, “यार, कुछ तो हुआ है जो हमें नहीं पता। सुरु इस दुकान के मालिक से बात कर रही थी। मालिक ने उससे कहा था, ‘आप सबको बताएंगी या मैं बताऊं।’ तभी एक स्मार्ट-सा लड़का अंदर आया। सुरु के हाथ में शायद कोई रसीद थी। सुरू ने गुस्से में अपनी जेब से नेल पेंट निकालकर काउंटर पर रखते हुए मुंह सड़ा के चली गई।” दिया ने बीच में टोकते हुए पूछा, “फिर क्या हुआ?”
“फिर क्या...उस लड़के ने वो नेल पेंट उठाया और चला गया।” ये सुनकर दिया गहरी सांस लेते हुए बोली, “बस! इतनी-सी बात?” दिया की बात सुनकर भूमिका ने कहा, “इतनी-सी बात होती तो वो हीरो बनकर यहां नहीं आता, मैडम! जरूर कोई बड़ी बात है, जो मुझे जाननी है।”
दिया भूमिका की बात सुनकर मन ही मन सोचती है, “शर्म आनी चाहिए इसे! हर समय सुरु से मुकाबला करती रहती है। छी...” जैसे ही दिया भूमिका को कुछ कहने वाली होती है, उसका फोन बज उठता है, और वो दोबारा अपनी कॉल में बिजी हो जाती है।
दूसरी तरफ, सुरु के पीछे लगभग उसी रफ्तार से चलता हुआ वो शख्स उसे पीछे से आवाज देना ठीक नहीं समझता। वो चुपचाप उसका पीछा करता रहता है। काफी आगे बढ़ने पर, जब सुरु पीछे मुड़कर देखती है, तो उसकी नजर उस शख्स पर पड़ती है। उसे देखते ही, वो अपनी रफ्तार और बढ़ा देती है। वह इंसान भी उसकी तेज चाल का मुकाबला करते हुए उसके पीछे-पीछे चलता रहता है।
सुरु, करोल बाग की भीड़भाड़ भरी तंग गलियों को पार करते हुए आखिरकार अपने घर पहुंच जाती है। वही शख्स भी उसी भीड़ को चीरते हुए उसके घर की तरफ बढ़ने लगता है। लेकिन जैसे ही वो सुरु के घर के करीब पहुंचता है, अचानक एक हाथ उसके हाथ को पकड़ लेता है। “इतनी जल्दी मैं कहाँ जा रहा है मानव? कभी हमारे लिए भी टाइम निकाल लिया कर यार”
5 फुट 11 इंच की ऊंचाई, गठीला बदन, बड़ी-बड़ी आंखें, और चेहरे पर हल्की दाढ़ी—ये सब कुछ मानव के चेहरे पर बेहद सूट करता है। जितना वो देखने में हैंडसम है, उतना ही अपने स्वभाव में सौम्य । करोल बाग के इसी भीड़भाड़ वाले इलाके में उसकी पुश्तैनी टेंट हाउस की दुकान है। दुकान का कारोबार उन्हीं जागरणों के सहारे चलता है, जिनके भरोसे सुरु के पापा की भजन मंडली। दोनों का काम जैसे एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है, लेकिन दोनों के हालात एक से फटेले है। दुकान के ठीक सामने, लकड़ी की पुरानी कुर्सी पर बैठा जीत, मानव का हाथ पकड़कर उसका रास्ता रोक लेता है।
जीत: “भाई, रुक! पहले मेरी बात सुन,”
मानव के लिए इस समय कहीं और पहुंचना ज्यादा जरूरी है। वो जीत का हाथ अपने हाथों से छुड़ाता है और कहता है..
मानव: “जीत, यार, अभी नहीं। मुझे कहीं जरूरी जाना है। बाद में बात करेंगे।”
इतना कहकर, मानव आगे बढ़ जाता है। सुरु के घर के बाहर पहुंचते ही मानव के दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है। उसके हाथ-पैरों से पसीना बहने लगता है। वो अपनी तेज़ चल रही सांसों को काबू में करने की कोशिश करता है। दरवाजे पर कदम रखते ही, वो घंटी बजाने के लिए हाथ बढ़ाता है, लेकिन तभी दरवाजा खुलता है, और सामने खड़ा होता है—आदि। सात साल का छोटा, नटखट आदि, सुरु का भाई। वैसे तो वो अपनी दीदी का सबसे बड़ा चमचा है, लेकिन मौके के हिसाब से पासा पलटने में उस्ताद है।
आदि दरवाजे पर खड़ा मानव को सिर से पैर तक घूरता है। मानव कुछ कहने के लिए अपने होंठ हिलाता ही है कि आदि उसकी बात काटते हुए सख्त लहजे में बोलता है, “अपनी जान प्यारी है तो यहाँ से चले जाओ।”
आदि के धमकी भरे अंदाज के बाद, घर के अंदर से टीवी पर गोली चलने की आवाज आती है। मानव थोड़ी हंसी दबाते हुए अपने दोनों हाथों को उठाकर सरेंडर के अंदाज में कहता है,
मानव: “हाँ आदि! मुझे अपनी जान बहुत प्यारी है... लेकिन क्या तुम मेरी उससे बात करवा सकते हो?”
आदि उसकी बात पर हैरान होकर अपना माथा खुजलाने लगता है। वह मासूमियत भरी आवाज में जवाब देता है,
“क्या मतलब? सीधे-सीधे बोलो, मानव क्या काम है!!!। ये सुनकर मानव के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। वो अपनी जेब से दो टॉफी निकालकर आदि की ओर बढ़ाते हुए कहता है,
मानव: “सुरु दीदी कहाँ हैं, आदि?”
आदि झट से टॉफी लेता है और जवाब देता है, “अंदर हैं... मम्मी के जमाने की कोई पिक्चर देख रही हैं।” टीवी की आवाज अब और तेज़ हो जाती है। इसी बीच, मानव आदि के कान के पास झुककर धीरे से कहता है,
मानव: “सुरु दीदी से कहो कि मुझे उनसे कुछ जरूरी बात करनी है।”
आदि सिर घुमा कर उसे घूरता है और तपाक से बोलता है, “मगर वो तो तुम्हें पसंद नहीं करती, न?” ये सुनते ही मानव का मुंह बन जाता है। वो चिढ़ते हुए कहता है,
मानव: “अभी तो कह रहा था कि बड़े लोगों की बातें समझ नहीं आती। अब ये कैसे समझ आ गया तुझे?”
आदि उसकी बात पर हंस देता है और टॉफी खाता दरवाजा वापस बंद कर देता है। मानव एक बार फिर घंटी बजाने जा ही रहा होता है कि दरवाजा खुलते ही उसका मुंह भी खुला का खुला रह गया। सामने सुरू खड़ी होती है। सुरु उसे सिर से पैर तक घूरती है और सख्त लहजे में कहती है,
सुरू: “हालत देख रहे हो अपनी... छिछोरे लग रहे हो! और क्यों तुम मेरा पीछा कर रहे थे यार? ... पागल-वागल हो क्या?”
मानव: “न-नहीं सुरु... नहीं, मेरा मतलब... मैं तो... वो मैं... मतलब नहीं...”
उसकी बेतुकी बातों को सुनकर सुरु झुंझलाती है और बीच में टोकते हुए कहती है,
सुरू: “क्या मेरा? मैं? मतलब ये तो वो तो... क्या बकवास किए जा रहे हो? कोई काम है तो सीधे बताओ, वरना...”
मानव: “वरना नहीं! सुरु, प्लीज... दरवाजा मत बंद करना!” “मेरा मतलब... अभी-अभी आदि भी ये ही करके गया है।”
सुरू: “तो ठीक ही तो है। कोई बेवजह की बकवास करेगा, तो उसके मुंह पर दरवाजा बंद होना चाहिए।”
मानव इस पर कुछ नहीं कहता। वो बस बेहद प्यार से सुरु को देखता रहता है। उसकी नजरें जैसे रुकने का नाम नहीं ले रहीं। सुरु उसकी तरफ चुटकी बजाते हुए कहती है,
सुरू: “चलो, हो गया बहुत तुम्हारा। अब निकलो यहां से...”
इतना कहकर, सुरु दरवाजा बंद करने के लिए आगे बढ़ती है। लेकिन तभी मानव तेजी से एक हाथ से दरवाजे को रोक लेता है। दूसरे हाथ से वो अपनी जेब से वही नेल पेंट निकालता है, जो सुरु वहां दुकान पर छोड़ आई थी। मानव उसे आगे बढ़ाते हुए धीमी आवाज में कहता है,
मानव: “ये तुम्हारा है... जो तुम भूल आई थी।”
सुरु की आंखों में उस नेल पेंट को देखकर ठीक वैसी ही चमक थी, जो उस दुकान में नजर आई थी। लेकिन उसने बड़ी होशियारी से अपनी इस खुशी को छिपा लिया और बोली..
सुरू: “हाँ तो? ठीक है, अब दे दिया न... जाओ यहाँ से।”
मानव, जो पहले से ही उसकी हरकतों से वाकिफ था, बिना कुछ कहे वहां से चला गया। सुरु ने दरवाजा बंद किया और अचानक खुशी से झूम उठी। वो नेलपेंट को हाथ में घुमाते हुए नाचने लगी और खुद से बोली,
सुरू: “मैंने सुना था, जो किस्मत में होता है, वो खुद चलकर हमारे सामने आता है। आज देख भी लिया। इतनी बड़ी दुकान से मेरे लिए ये लेना मुश्किल था, लेकिन... चोरी न सही, मानव की एकतरफा मोहब्बत ने इसे मुझ तक पहुंचा दिया!”
अपने कमरे में, शीशे के सामने खड़ी सुरु, नेल पेंट लगाते हुए उंगलियों को निहारती है। वो अपनी तारीफों के पुल बांधते हुए खुद से कहती है,
सुरू: “वाह! सुरु, तू कितनी स्मार्ट है... और ये नेल पेंट... बिल्कुल परफेक्ट।”
तभी, पीछे से आदि कमरे में आता है और मासूमियत से बोलता है, “दीदी, ये मानव, मजनू सा लगने लगा है अजीब सा।” आदि के मुंह से ये सुनकर सुरु चौंक जाती है। हैरानी से उसे देखती है और कहती है, “ये सब कहां से सीखा तूने? और ये मजनू क्या होता है?” आदि बेफिक्र अंदाज में जवाब देता है, “इसमें सीखने की क्या बात है? सब जानते हैं कि प्यार में पड़े इंसान को मजनू कहते हैं।” तभी टीवी पर चल रही फिल्म से डायलॉग आता है, “अगर तुम नहीं मिली तो मैं तुम्हारी मोहब्बत में अपनी जान दे दूंगा! मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, राधा।” सुरु झट से टीवी बंद करती है और गुस्से में कहती है,
सुरू: “ये सब बकवास देखने से तू बड़ा रोमियो बन जाएगा। अगर अब ये सब देखा, तो पिटाई पक्की है।”
आदि डरकर भाग जाता है। उधर, मानव अपने कमरे में उदास बैठा खुद से बात कर रहा होता है,
मानव: “इस दुनिया में बस एक ही लड़की है, जो मुझे भाव नहीं देती। और वही लड़की है... जिस पर मैं मरता हूँ। हे भगवान, क्या करूँ? ऐसा क्या करूँ कि सुरु मुझे पसंद करे?”
वो अपनी ही सोच में डूबा होता है, जब उसे पीछे से एक आवाज सुनाई देती है। “मानव!” ये वही जानी-पहचानी आवाज थी। लेकिन वो पलटकर नहीं देखता। उसकी चाल धीमी हो जाती है, मगर वो चलता रहता है। “क्या तुम अब मेरी आवाज भी नहीं सुनोगे, मानव?” इस बार आवाज और भी पास लगती है। सुरु की आवाज में जो नरमी और सवाल था, वो उसे अपने कदम रोकने पर मजबूर कर देता है।
सुरु के शब्द मानव के बढ़ते कदमों को रोक लेते हैं। वो धीमे से पलटकर पीछे देखता है। उसके सामने खड़ी है सुरु, काले रंग का खूबसूरत सूट पहने, जिस पर रंग-बिरंगी कढ़ाई की गई है। उसके कंधे पर लाल दुपट्टा हवा में उड़ रहा था, मानो किसी फिल्म का सीन चल रहा हो। मानव को ये सब सपना लगता है कि वो कुछ देर के लिए लॉस्ट सा खड़ा रहता है। तभी सुरु आगे बढ़ती है। वो अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाती है और धीरे से मानव के हाथों में रख देती है। फिर अपने नाखूनों पर लगा वही नेल पेंट दिखाती है, जो मानव ने उसे दिया था।
ये देखकर, मानव का चेहरा खुशी से चमक उठता है। उसके चेहरे पर बड़ी-सी मुस्कान आ जाती है, जिसे देखकर सुरु भी मुस्कुरा देती है। वो धीरे-धीरे उसके और करीब आती है। मानव ने कभी सुरु को इतने करीब से नहीं देखा था। उसकी नजरें सुरु के चेहरे पर टिक जाती हैं—बड़ी-बड़ी गोल आँखें, काले घने घुंघराले बाल, जो हवा में उड़ती लटों के साथ उसके चेहरे को छू रहे हैं। और लाल दुपट्टा, जो हवा में लहराते हुए, उस नेल पेंट से मेल खा रहा है।
यह सब देखकर, मानव का दिल तेजी से धड़कने लगता है। वो इस पल को महसूस करने के लिए अपनी आंखें बंद कर लेता है। जब उसकी आँखें दोबारा खुलती है तो फटी की फटी रह जाती हैं। सामने वाकई सुरू खड़ी होती है! यह कोई सपना नहीं होता है। वही सुरू, जिससे मानव बचपन से प्यार करता आया है। जिसने कभी उसे भाव नहीं दिया।
तो आज ऐसा क्या बदला? क्यों सुरु ने अपने कदम आगे बढ़ाए? क्या ये सिर्फ एक नेल पेंट की वजह से हुआ, या फिर इसके पीछे कोई और वजह छिपी है?
मानव की प्रेम कहानी अब एक नए मोड़ पर आ गई है। लेकिन सवाल यह है कि ये कहानी आगे कहाँ तक पहुंचेगी? क्या सुरु भी मानव के प्यार में बह जाएगी, या फिर उसका अमीर बनने का सपना इस रिश्ते को बीच में ही रोक देगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिए...
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