मानव जब अपनी आँखें खोलता है तब उसे ये देखकर आँखें फटी की फटी रह जाती हैं कि सुरु उसके इतने करीब है। इस समय दोनों की धड़कनें एक सी धड़क रही हैं। मानव का गला सूखने लगता है और उसका पूरा शरीर कांपने लगता है। मानव के कंपकंपाते शरीर को जैसे ही सुरु महसूस करती है, वह उससे कहती है।
सुरु: "अरे तुम्हें तो ठंड लग रही है।"
ये सुनते ही मानव मुस्कुराने लगता है और कहता है:
मानव: "सुरु! ये तुम ही हो न? मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि तुम आज मेरे पास, मेरे इतने करीब हो।"
सुरु: "ओह! अच्छा! तो बोलो ऐसा क्या किया जाए कि तुम्हें यकीन हो जाए कि ये मैं ही हूँ?"
मानव नहीं का इशारा करते हुए अपनी गर्दन हिलाता है। कि तभी उसके फोन पर किसी की कॉल आती है। वो सुरु की आँखों में और बातों में इतना खो जाता है कि उसे अपने फोन के बजने का भी एहसास नहीं होता। तब सुरु उसको इशारे में फोन रिसीव करने के लिए कहती है.. फोन उठाते ही दूसरी ओर से आवाज आती है “हेल्लो मानव”
मानव: “जी...मैं बोल रहा हूँ....”
"बेटा हमारे घर अगले हफ्ते जागरण है...तुमसे कुछ बात करनी थी।" मानव के सामने सुरु है, जिसके साथ उसने अभी अपने प्यार को महसूस किया है। वहीं दूसरी तरफ फोन पर उसके लिए बहुत दिनों बाद कोई काम आया है। वो इन दोनों सिचुएशन को हैंडल नहीं कर पाता और कन्फ्यूज हो जाता है। तब सुरु उसके कान में धीरे से कहती है:
सुरू: “फ़ोन पर कहो मैं अभी आ रहा हूँ”
मानव: “मैं अभी आ रहा हूँ!”
सुरु की बात सुनते ही मानव झट से फ़ोन पर ऐसा कहता है और फ़ोन रख देता है| तब सुरु उससे कहती है
सुरू: “मुझे लगता है तुम्हे अभी जाना चाहिए”
मानव: “मगर क्यों? अभी तो हमने ठीक से बात भी नहीं की!”
मानव वहां से नहीं जाना चाहता, मगर सुरु जानती है कि उसका वहां से जाना ही ठीक है क्योंकि उसकी दुकान पर कोई उसका इंतजार कर रहा है| इसलिए वो उसके गालों पर प्यार से हाथ फिराते हुए कहती है|
सुरू: “मानव कोई तुम्हारा इंतजार कर रहा है! और इस समय तुम्हारा दुकान में जाना ज़रूरी है”
मानव: “मगर हमारी बात?”
सुरू: “हम्म...एक काम करते हैं कल हम कहीं बाहर चलते है| साथ में घूमना फिरना भी हो जायेगा और हमारे बात भी”
ये बात मानव के लिए किसी सपने के सच होने से कम नहीं होती। वो एक बार फिर से खुले मुंह के साथ सुरु को देखता है। वो उसका मुंह बंद करके उसे लगभग धकेलते हुए कहती है, "अब जाओ यहाँ से।" आखिरकार मानव वहां से चला जाता है। इस बार उसका चेहरा खिला हुआ है और वो गुनगुनाते हुए अपनी दुकान की तरफ जाता है। जीत अभी भी वही मानव की दुकान के बाहर बैठा है और वो उसके बदले हुए भाव को देखकर उससे कहता है:
जीत: “क्या बात है भाई...जब जा रहा था तो मुरझाया हुआ सड़ा सा फूल लग रहा था...अब देखो कमाल की तरह खिला हुआ है चेहरा....क्या बात है??? भाई को नहीं बताएगा क्या?”
मानव: “कुछ नही यार! बस ऐसे ही”
इसपर जैसे ही जीत कुछ कहने लगता है, कि तभी मानव उसको दुकान की तरफ इशारा करते हुए कहता है। वो जैसे ही दुकान में बैठे एक आदमी से मिलता है, वो आदमी उससे अपने घर अगले हफ्ते होने वाले जागरण के लिए कहते हैं। जिसपर मानव उनसे सबसे पहला सवाल करते हुए पूछता है:
मानव: “आप शास्त्री जी से मिले?”
"जी उन्होंने ही आपके पास भेजा है।" उस आदमी के ऐसा कहने पर मानव झट से एक लाल रंग की डायरी निकाल कर उसमें लिखता है "115 – शास्त्री जी" आज की तारीख लिखने के बाद मानव दोबारा से उस आदमी से बात करते हुए उनसे अगले हफ्ते होने वाले जागरण के लिए हाँ करता है और एडवांस लेकर अपनी दुकान के कोने पर बने एक लकड़ी के मंदिर में उस एडवांस के पैसों को रखता है। सामने बैठा आदमी जैसे ही वहां से जाता है, मानव के फोन पर एक कॉल आती है। "हेलो मानव, भाटिया नाम का एक आदमी आएगा तुम्हारे पास... इस बार थोड़ा ज़्यादा पैसे बढ़ाकर कहना... पिछली बार की तरह नहीं हिस्सेदारी में कुछ ऊपर-नीचे होता है तो हम सब नुकसान में आ जाते हैं।" ये सुनते ही मानव का मुंह बन जाता है और वो अपनी दबी हुई आवाज़ में उनसे धीरे से कहता है:
मानव : “मगर...मगर वो तो आकर चले गए”
मानव का जवाब सुनते ही शास्त्री जी ने कहा, "हाँ तो मैंने भेजा ही था तुमसे बात करने के लिए..." कि तभी उन्होंने कुछ सेकंड का पॉज लेते हुए उससे कहा, "एक मिनट... आकर चले गए मतलब? तुमने क्या कहा? कितने में डील की?" सकपकाते हुए मानव जैसे ही उन्हें उस आदमी से हुई पूरी बातचीत के बारे में बताता है, शास्त्री जी उस पर चिल्लाते हुए उससे कहते हैं, "यही तो प्रॉब्लम है आजकल के लड़कों की! काम-धंधा करना है नहीं, चले आते हैं अपने बाप-दादाओं के ज़माने की दुकान चलाने के लिए!"
मानव पर लगातार चिल्ला रहा ये आदमी उससे ये कहने से भी नहीं चूकता कि वो उसे पहले भी फोन लगा रहा था, मगर वो फोन ही नहीं उठा रहा था। अगर वो फोन उठा लेता तो कम से कम आज मुश्किल से आया ये ग्राहक सही दाम में डील करके जाता। मानव, जिसके चेहरे पर अभी तक सुरु की मोहब्बत की चमक दिख रही थी, अब मानो जैसे इसी चेहरे पर उदासी के काले बादल छा जाते हैं और वो चुपचाप मुंह बंद करके फोन में से आ रही तेज आवाज़ को सुनता रहता है। जैसे ही शास्त्री जी पॉज़ लेते हैं, मानव झट से उनसे कहता है:
मानव: "सॉरी अंकल... आगे से ध्यान रखूंगा... आप अभी इतना नाराज़ मत होइए वरना आपका गला बैठ जाएगा और आप..."
मानव इतना कहता है कि शास्त्री जी उसके मुंह पर फोन काट देते हैं। दरअसल, शास्त्री जी सुरु के पापा हैं। मानव और शास्त्री जी बहुत पहले से ही जागरण का काम एक डील के तहत करते आए हैं। जहाँ शास्त्री जी के पास अपनी एक भजन मंडली है, जिसमें वो अपने कुछ शागिर्दों के साथ भजन गाते हैं और बदले में उन्हें उनका हिस्सा देते हैं, वहीं मानव के साथ भी एक डील के तहत जागरण होने के बाद मिलने वाले अमाउंट की हिस्सेदारी की जाती है।
शास्त्री जी के पास एक मात्र गायन का हुनर था जिससे उनका घर चलता था, वहीं मानव के सिर पर उसके मरते हुए पिता ने बहुत छोटी सी उम्र में ही पुश्तैनी दुकान को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी दी थी।
शास्त्री जी के भजनों और गाना गाने में आज के ज़माने को कोई झलक नहीं है, और शायद ये एक बहुत बड़ा कारण है कि जहाँ लोग आये दिन जागरण करवाते हैं, वहीं शास्त्री जी के पास कोई इक्का-दुक्का ही आता है, और वो भी वो जिनको पुराने स्टाइल के जागरण में दिलचस्पी होती है। वहीं पुश्तैनी दुकान के चक्कर में मानव न उसे ठीक से तोड़कर बना सकता है, न ही इतनी छोटी जगह में आजकल के हिसाब से सामान भरवा कर लोगों को दिखा सकता है। अपनी-अपनी मजबूरियों के जाल में फंसे मानव और शास्त्री जी की गाड़ी ऐसे ही कुछ सालों से चलती आई और शायद ये आगे भी ऐसे ही चलने वाली है।
तो बात हो रही थी मायूस मानव की, जो शास्त्री जी का फोन कट होने के बाद मुंह बनाकर बैठ जाता है। तभी उसे एक बार फिर से सुरु की आवाज़ सुनाई देती है। वो चौंक कर इधर-उधर देखता है, मगर उसे कोई नहीं दिखता। तभी उसे याद आता है कि आज तो वो सुरु से मिलकर आया है, और उसे कल उससे मिलने के लिए जाना है। ऐसा सोचते ही मानव में ऊर्जा आती है और वो दुकान में फैले सामान को झटपट समेटने लगता है। धूल भरी दरियाँ और बुरी तरह से उलझे टेंट... ये सब वो अकेले ही ठीक करता है। दुकान के बाहर एक स्कूटी पर अपना डेरा जमाए जीत, जो अब तक सब कुछ देख रहा था, दुकान से आ रही धूल के कारण खांसने लगता है और मुंह बनाते हुए मन में सोचता है:
जीत: "मैं एक चुटकी ज़हर खाकर मर जाऊँगा भाई साब... मगर इस पागल की तरह अपनी जिंदगी गड्ढे में नहीं डालूँगा! गजब का मजनू है ये... लैला के बाप से भी सुनता है और लैला से भी! अबे क्या करेगा इस बेइज्जती वाले इश्क़ का! कोई सेल्फ रिस्पेक्ट है ही नहीं, छी!"
यहाँ जीत ऐसा सोचता है, वहाँ मानव एक्साइटमेंट में देखते ही देखते अपनी दुकान को ऑर्गनाइज कर डालता है। अगले दिन सुबह अपने सबसे अच्छे कपड़े निकाल कर अपने जूतों को थूक लगा-लगा कर चमकाते हुए, मानव खुद को शीशे में देखता है और अजीब-अजीब से मुंह बनाता हुआ मुस्कुराता है। मानव की माँ कोई उसकी ये अटपटी हरकतें समझ नहीं पातीं और वो मानव के सिर पर एक हाथ घुमाते हुए हल्के दबाव के साथ थप्पड़ लगाते हुए कहती हैं, "21 साल का है तू, और हमारी दुकान तेरे भरोसे ही चलती है। तेरी ये जो हरकते मुझे नजर आ रही हैं न, इन्हें यहीं रोक दे वरना... मैं भूल जाऊँगी कि..."
मानव: “कि मैं 21 साल का हूँ...”
मानव अपनी माँ की बात पूरी करते हुए ऐसा कहता है। माँ वहां से चली जाती हैं। ये पहली बार है जब माँ के ऐसा करने के बाद मानव चिढ़ा नहीं, बल्कि अपने बिखरे हुए बालों को दोबारा से संवारता है और झट से अपनी घड़ी में टाइम देखकर वहां से निकल जाता है। पैसे बचाने के लिए रोज़ मीलों तक पैदल चलने वाला मानव आज ऑटो-रिक्शा में बैठता है और उस जगह पर पहुँचता है जहाँ इन दोनों को मिलना था।
मानव जैसे ही वहां पहुँचता है, वो ये देखकर हैरान हो जाता है कि सुरु पहले से ही वहां खड़ी उसका इंतजार कर रही थी। वो जैसे ही ऑटो-रिक्शा से उतर कर उसे रुपए देने वाला होता है कि सुरु दोबारा से उसके साथ उसी ऑटो में बैठ जाती है और मानव को भी अंदर आने के लिए कहती है। इन दोनों के बैठते ही रिक्शा वाला जैसे ही फिर से मीटर ऑन करता है, मानव का सारा ध्यान अब वहीं होता है क्योंकि उसके पास सुरु पर खर्च करने के लिए थोड़े बहुत पैसे हैं, रिक्शा को देने के लिए नहीं। दोनों सरोजनी नगर पहुँचते हैं। ऑटो का मीटर 146 रुपये दिखाता, जिसे देखकर मानव की आँखें चौंधिया जाती हैं। वहीं सुरु रिक्शा से उतरते ही मानव का हाथ पकड़ कर उसे मार्केट में ले जाती है। मानव तेज़ी से चलती जा रही सुरु की रफ़्तार के संग चलता हुआ उससे कहता है|
मानव: “हमारा करोल बाग़ खुद एक इतना बड़ा मार्केट है सुरु...तो हम यहाँ सरोजनी नगर क्यों आये हैं?
सुरु उसकी बात का कोई जवाब नहीं देती। इसपर मानव उससे उसका हाथ पकड़ कर उसे रोकते हुए कहता है:
मानव: "इंडिया गेट, कुतुब मीनार, लाल किला, दिल्ली हाट या... या कुछ नहीं तो हम कोनॉट प्लेस भी तो जा सकते थे न यार... वहाँ हम बैठकर थोड़ी बात कर लेते... यहाँ... देखो तुम चारों तरफ कितनी भीड़ है और कितना शोर है... ऐसे में हम कैसे बात कर पाएंगे सुरु?"
ये सुनते ही सुरु का चेहरा बन जाता है और वो बस एक शब्द में बात को खत्म करने के लिए मानव से "सॉरी" कहकर एक कोने में खड़ी हो जाती है। उसके ऐसा करने पर मानव को तुरंत ही एहसास हो जाता है कि उसे ऐसा नहीं कहना चाहिए था। वो उसे मनाने के लिए खुद भी "सॉरी" कहता है और पास ही के ठेले से उसके लिए गोल गप्पे बनवाकर लाता है। दोनों हँसते हुए बातें करते हैं और गोल गप्पे खाते हैं। जिसके बाद सुरु एक बार फिर से उस मार्केट की चकाचौंध में खो जाती है। अब मानव भी उसके पीछे-पीछे चल देता है।
थोड़ी आगे जाकर जब सुरु मानव की आँखों से ओझल हो जाती है, वो उसको इधर-उधर तलाशने लगता है। वो जैसे ही सुरु को एक नकली ज्वेलरी की दुकान में देखता है, उसके होश उड़ जाते हैं। वो देखता है कि सुरु ने बहुत सफाई से एक ईयर रिंग का सेट अपने साइड बैग में डाल लिया है, जिस पर मानव के अलावा किसी की नज़र नहीं पड़ती। ये देखते ही मानव के दिल की धड़कनें बढ़ने लगती हैं। वो जैसे ही सुरु के पास जाने लगता है, सुरु एक कपड़े के शो-रूम में जाती है और पलटकर मानव को देखती है और उससे वहीं रुकने के लिए कहती है। मानव के माथे पर पसीना है और उसका गला सूख रहा है।
मानव: "अब यहाँ इतने बड़े कपड़े के शो-रूम में तुम क्या करने वाली हो सुरु? देखो, मैं तुम्हें यहाँ नहीं बचा पाऊँगा।"
मानव शो-रूम के दरवाजे पर खड़ा ऐसा सोच ही रहा होता है कि वो सामने से लाल रंग की साड़ी में लिपटी सुरु को दुल्हन के रूप में देखकर हैरान हो जाता है। जैसे ही कुछ कहने लगता है कि उसकी पीठ पर मानो कोई तीन लोहे की सरियों से एक साथ वार करता है। मानव को दर्द का एहसास होता है और एक ही झटके में नीचे गिर जाता है।
सब कुछ तो ठीक ही चल रहा था, फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि मानव पर किसी ने वार कर दिया? क्या ये सच में किसी ने जानबूझ कर किया था, या वो किसी हादसे का शिकार हो जाता है? अब ऐसे में सामने दुल्हन के रूप में सजी-धजी सुरु क्या करेगी? क्या ये वो लोग थे जिन्होंने यहाँ से अभी हाल ही में सुरु ने ईयर रिंग्स चुराए थे, जिन्होंने सुरु की जगह मानव को घेर लिया, या ये मामला कुछ और ही है? जानने के लिए पढ़ते रहिए…
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