मानव की पीठ पर जैसे ही किसी के वार का एहसास होता है, वो दर्द की वजह से ज़मीन पर गिर जाता है। थोड़ी देर में जैसे ही उसकी आँखें खुलती हैं, वह अपनी पलकों को लगातार झपकाता हुआ अपनी आँखें खोलता है। वो देखता है कि लाल जोड़े में सुरु ठीक उसकी आँखों के सामने खड़ी है और कुछ बड़बड़ा रही है। सुरु के हाथ में एक त्रिशूल है जो बहुत पुराना हो चुका है और बहुत ही बुरी हालत में है| वो उसे वहां मानव के पास रखते हुए ऐसा कहती है
सुरु: "तुम्हारे सारे काम ही उलटे हैं, इस त्रिशूल को कब से कहा है बदल दो... मगर तुम... तुमसे एक काम भी ढंग से नहीं होता!"
मानव: “अरे मगर सुरु...”
ज़मीन पर पड़ा मानव हिम्मत जुटाते हुए उठता है और उसे कुछ कहने की कोशिश करता है, मगर सुरु उसकी एक बात भी नहीं सुनती और वहां से चली जाती है। जल्दी ही मानव को एहसास होता है कि सुरु ने उस त्रिशूल से मानव पर वार किया था। वो अपनी पीठ को सहलाते हुए आस-पास के माहौल को देखकर हैरान होता है। दरअसल, वो इस समय एक जागरण के पंडाल में हैं। सुरु उसकी आँखों के सामने उसी लाल रंग के जोड़े में दुर्गा माता की छवि में घूम रही है। जागरण शुरू होने में थोड़ा ही समय बाकी है, इसलिए सभी लोग भाग-दौड़ में लगे हैं।
मानव: “अरे...ये सब क्या है? मतलब मैं सपना देख रहा था? नहीं नहीं...ओह नहीं! मतलब सुरु मेरे करीब कभी आई ही नहीं थी?”
उसका दिल बहुत उदास हो जाता है और वो बहुत भारी मन से इस सपने को अपनाते हुए बहुत धीमी चाल से वहां जागरण में हो रहे काम पर ध्यान देता है। तभी एक बार फिर से उसके सामने सुरु आ जाती है और वो उससे जैसे ही कुछ कहने लगता है कि तभी उसका ध्यान उसी त्रिशूल पर जाता है, जिसे सुरु ने पहले भी कई बार बदलवाने के लिए कहा था। मानव को देखते ही सुरु अपना रास्ता बदल लेती है। तभी एक ज़ोरदार कर्कश आवाज़ मानव का ध्यान खींचती है। वो जैसे ही पलटकर देखता है, शास्त्री जी ठीक उसके सामने खड़े उसे आज होने वाले जागरण के लिए आगाह करते हुए कहते हैं, "आज का जागरण करवाने वाले तिवारी जी माता के बहुत बड़े भक्त हैं। उन्होंने इस रात के लिए दिल खोलकर पैसा खर्च किया है। आज कोई गलती नहीं होनी चाहिए।" मानव शास्त्री जी की बात को ध्यान से सुनता है और हाँ में सिर हिलाता है। तभी अपनी बात को पूरा करते हुए शास्त्री जी उससे पूछते हैं, "सारी तैयारी ठीक से हो गई है न?"। "हाँ अंकल!" "ठीक है! मैं अब अपनी मंडली में जा रहा हूँ... सबके आने का टाइम हो रहा है, तुम भी सारा काम झटपट से निपटा लो।"
शास्त्री जी इतना कहते ही वहां से निकल जाते हैं| उनके जाते ही मानव का मुंह बन जाता है और वो बड़बड़ करने लगता है| जिसे सुरु देख लेती है और वो दूर से ही मानव को घूरते हुए पंडाल के पीछे की ओर जाती है|
जीत: “भाभी जी तो नाराज़ हो गई यार”
जीत मानव के कंधे पर हाथ रख कर उससे ऐसा कहता है, तब मानव उसका हाथ हटाते हुए अपनी गर्दन हिलाते हुए टेंट को आगे से पीछे तक चेक करने लगता है। उसके जाते ही जीत भी वहां के इंतजाम को देखने में बिजी हो जाता है। थोड़ी ही देर में वहां लोगों का आना शुरू हो जाता है, और भजन मंडली में बैठे सभी लोग अपने-अपने इंस्ट्रूमेंट्स को चेक करते हैं। जिसकी आवाज़ से आस-पास के और लोग भी वहां आने लगते हैं। देखते ही देखते माता की पूजा शुरू होती है और जागरण की शुरुआत।
पंडाल के पीछे बैठी सुरु, जो कि एक एंनाउंसमेंट के साथ अपनी परफॉर्मेंस का इंतजार कर रही है, उसकी नज़र हर उस लड़की पर है जिसने बहुत सुंदर कपड़े पहने हैं। उनका हेयरस्टाइल, उनकी ज्वेलरी वगैरह को वह बहुत ही लालची निगाहों से देखती है।
सुरु: "मेरी किस्मत में अभी गरीबी ज़रूर है, मगर... मैं गरीब नहीं रहने वाली... मुझे अमीर बनना है, बहुत अमीर... इतना कि कोई गरीब मेरे आस-पास भी नहीं होगा।"
सुरु ऐसा सोच रही होती है कि तभी उसी पंडाल में एक बहुत ही हैंडसम सा लड़का आता है। टॉल, फेयर और लगभग उसी की उम्र का ये लड़का जिस लेडी के साथ जाकर बैठता है, सुरु उसे देखती ही रह जाती है। चेहरे से ही करोड़पति लग रही ये अधेड़ उम्र की औरत, इस लड़के की माँ ही होगी। सुरु उसे देखते ही खुद को व्यवस्थित करती है और उस लड़के की नज़र में आने का एक बहाना ढूँढ़ती है। मगर अभी वो जिस गेटअप में है, उसके लिए ये पॉसिबल नहीं है। इसलिए वो अपने दोनों हाथों की उंगलियों को एक-दूसरे में फंसाकर अपना गुस्सा निकालती है और खुद से कहती है:
सुरु: "आखिर कौन करता होगा मेरी उम्र में ये सब! 12वीं में हूँ यार मैं! अगले साल से कॉलेज जाना है मुझे! ये सब जब मैं छोटी थी तब बहुत कर लिया न, अब इन सबकी क्या ज़रूरत है? लोगों को मुझे देखकर दुर्गा माँ वाली फीलिंग्स नहीं आती।"
मानव: "आती हैं सुरु... तुम्हारे चेहरे पर बिखरी मासूमियत ही तो तुम्हारी पहचान है। और इसे कम मत समझो, ऐसा समझो जैसे मातारानी ने तुम्हें इतना सुनहरा मौका दिया है कि वो तो यहाँ नहीं आ सकती, तो तुम्हारे रूप में लोगों को खुद के दर्शन करवाती हैं।"
उसके चेहरे के ठीक सामने मानव का चेहरा है, जो उसे ऐसा समझा रहा है। मानव को देखते ही सुरु का पारा हाई हो जाता है और वो मुंह घुमा कर दूसरी तरफ बैठ जाती है और उससे कहती है:
सुरु: "ये सब कहना बहुत आसान है, जिसपर बीतती है, पता उसे ही होता है। तुम्हे तो बस तम्बू लगाने हैं और निकालने हैं, दरियाँ बिछानी है और उठानी हैं, थोड़ा बहुत ऊपर-नीचे का काम कर लेते हो बस। तुम्हे थोड़ी न लोगों के बीच में इस तरह से जाना होता है। जाना ही नहीं, उनको आशीर्वाद भी देना होता है। कभी-कभी तो मुझसे सच में लगने लगता है जैसे मैं ही दुर्गा माँ हूँ... ये क्या आइडेंटिटी है मेरी, बता सकते हो तुम?" "ज्ञान देना आसान है मानव! खुद को देखो, तुम बचपन में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी तुम्हे ताकि तुम तुम्हारी पुश्तैनी दुकान चला सको। सच बताना, जब से उस दुकान को चला रहे हो कहीं भी लगता है तुम्हे कि तुम ग्रो कर रहे हो?"
सुरु की बात कड़वी है मगर एक दम सच है, जिसे मानव भी मानता है। वो इस बात का उसे कोई जवाब नहीं देता, कि तभी एक एंनाउंसमेंट होती है और सुरु को देवी के दरबार में बुलाया जाता है। सुरु अपने चेहरे पर नकली हंसी लेकर आती है और उसी मुस्कराहट के साथ हाथ में त्रिशूल लिए, एक नकली शेर पर बैठकर दरबार में जाती है। मानव उसे अंदर जाते हुए देखता है।
यहाँ जैसे ही सुरु स्टेज पर आती है, सभी की नज़रें उस पर होती हैं। पीछे से माँ दुर्गा के भजन समां बांध देते हैं। वो नकली शेर, जिसे बैटरी से चलाया जा रहा है, सुरु ऊपर पर बैठी हल्की मुस्कराहट के साथ सभी की तरफ देखती है। अब तो जो लोग भजन में इंटरेस्ट नहीं ले रहे थे, उन्हें भी माँ दुर्गा वाली फीलिंग आती है और वो ही सबसे पहले सुरु के पैरों की तरफ लपकते हैं और आशीर्वाद देने के लिए कहते हैं।
सुरु के साथ-साथ एक आदमी भी चल रहा है, जिसके हाथ में एक मटका है, जिसे बजाते हुए वो लोगों को आकर्षित कर रहा है। लोग उसके मटके में सुरु की नजर उतार कर पैसे डालते हैं। भीड़ के बीच जाते हुए सुरु की नजर उस लड़के और उसकी माँ पर पड़ती है, जो उसे बहुत ही भाव से देख रहे हैं।
सुरु ये देखते ही दूसरी ओर देखने लगती है और सबको आशीर्वाद देते हुए आगे की ओर बढ़ती है। तभी वो जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ती है, वो ये देखकर हैरान हो जाती है कि वो लड़का, जिस पर उसकी नजर थी, वो भी उसके पैर छू कर आशीर्वाद ले रहा है और तभी उसकी माँ भी उसके हाथों से मटके में कुछ रुपये डालवाती है।
ये देखते ही सुरु का दिल टूट जाता है और वो आगे बढ़ जाती है। थोड़ी ही देर में सभी लोगों के पास घूमता हुआ वो शेर, सुरु को वहां से लेकर दोबारा पीछे की ओर जाता है। पीछे जाते ही सुरु अपना गेटअप हटा देती है और बड़बड़ाती जाती है।
सुरू: “पता नहीं मेरी किस्मत में क्या लिखा है और यह ड्रामा कब तक चलेगा”
देखते ही देखते रात की जगह सूर्योदय ले लेता है और जागरण का समापन होता है। सभी लोग पंडाल के एक कोने में लगे प्रसाद वाले एरिया में जाते हैं और अपनी-अपनी बारी का इंतजार करते हैं। कुछ लोग धक्का देते हैं, जिन्हें जीत संभालते हुए एक लाइन में लगने की रिक्वेस्ट करता है।
"आज का जागरण बहुत अच्छा रहा, आप सबने बहुत अच्छा काम किया," इतना कहते हुए शास्त्री जी अपनी जेब से कुछ रुपये निकाल कर गिनते हैं और अपनी मंडली के सदस्यों में बांट देते हैं। उन्हें पैसे देने के बाद वो उस मटके को खाली करते हैं और उसमें आया पैसा गिनने लगते हैं। "बेटा, वो मानव को कहना मैंने बुलाया है," शास्त्री जी पैसे गिनते हुए अपनी मंडली के सबसे छोटे लड़के से मानव को बुलाने के लिए कहते हैं।
मानव, शास्त्री जी की ओर चलते हुए इधर-उधर देखता है कि तभी उसकी नजर थोड़ी दूरी पर खड़ी सुरु पर पड़ती है, जो भीड़ में किसी को ढूंढ रही है। मानव, जो शास्त्री जी के पास जा रहा था, अपने कदम घुमा कर सुरु की तरफ बढ़ता है। वो थोड़ी आगे जाता है कि उसे सुरु के चेहरे पर एक संतुष्टि भरी मुस्कान नजर आती है, जिसे देखते ही मानव रुक जाता है और अब वो भीड़ में उस तरफ देखता है जहाँ सुरु देख रही है।
ये देखते ही उसका खून खौल जाता है कि सुरु एक हैंडसम लड़के को देखकर मुस्कुरा रही है। मानव से ये बात बर्दाश्त नहीं होती और वो अपनी रफ्तार को तेज़ करते हुए जैसे ही सुरु के पास पहुँचता है, एक लड़की भाग कर आती है और जोर से सुरु को गले लगा लेती है। ये देखते ही मानव के कदम रुक जाते हैं और उसे खुद पर गुस्सा आने लगता है। वो दूर से उस लड़की और सुरु को बातें करते हुए देखता है और मुस्कुराता है, कि तभी सुरु की नजर उस पर पड़ती है।
सुरु को लगता है कि मानव उसकी दोस्त को देखकर मुस्कुरा रहा है। सुरु अपनी सहेली को लेकर अंदर जाने लगती है, कि तभी वो भाग कर कहीं और जाने लगती है। उसकी सहेली भी, जो उसके साथ अंदर जा रही थी, वो भी सुरु के पीछे बेसुध होकर भागती है। मानव दोनों के चेहरे पर घबराहट देखता है, मगर समझ नहीं पाता कि अचानक ये सब क्या हो रहा है। तभी पंडाल में लोगों के चीखने की आवाज़ें आती हैं, जिसे सुनकर मानव चौंक जाता है और वो भी उस तरफ भागता है जहाँ सुरु और उसकी सहेली भाग रहे थे। थोड़ी ही देर में जैसे ही मानव देवी दरबार के पास पहुँचता है, वो देखता है कि बहुत से लोग आपस में कुछ बातें कर रहे हैं। वो भीड़ को चीरते हुए बहुत डरता हुआ अंदर जाता है। मानव के पैरों तले ज़मीन निकल जाती है।
आखिर अचानक ही ऐसा क्या हुआ पंडाल में कि लोगों की चीख निकल गई? सुरु ने ऐसा क्या देखा या उसे ऐसा क्या पता चला कि वो सब छोड़-छाड़ कर भागने लगी? आखिर क्या देखा मानव ने जिससे उसके पैरों तले की ज़मीन निकल गई? क्या पंडाल में कोई हादसा हुआ था या ये किसी बड़े नुकसान की ओर इशारा था?
जानने के लिए पढ़ते रहिए…
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