​​मानव जैसे ही भीड़ को चीरते हुए अंदर जाता है, उसके होश उड़ जाते हैं कि शास्त्री जी का गमछा पास ही के पंखे में आकर फंस गया था, जिस वजह से उनकी गर्दन बुरी तरह से कस गई थी। आस-पास के लोगों ने जैसे-तैसे उस गमछे को उनकी गर्दन से निकाला, मगर उनकी गर्दन पर लगे घाव इतने गहरे थे कि खून बह रहा था। ऐसा लग रहा था मानो किसी ने औजार से उनकी गर्दन पर घाव किया हो। मानव जैसे ही ये देखता है, वो बिना कुछ सोचे-समझे शास्त्री जी की गर्दन पर एक कपड़ा लपेट देता है। इतने में वहां एंबुलेंस आ जाती है। खून में लतपत मानव, शास्त्री जी के साथ एंबुलेंस में बैठकर वहां से निकलता है। सुरु आँखों में आँसू लिए नंगे पैर ही अपने घर की तरफ दौड़ती है।​

​​सुरु एक महत्वाकांक्षी लड़की है, जिसके बहुत बड़े-बड़े सपने हैं। मगर बचपन से ही गरीबी की मार झेल रही ये लड़की कभी हार नहीं मानती। इसने घर खर्च चलाने के लिए हमेशा ही अपने पापा का साथ दिया है। आज जब उसके पापा जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं, ऐसे में सुरु के दिमाग में जो कुछ चल रहा है, उसका हम अंदाज़ा भी नहीं लग सकते।​

​​बेसुध सड़क पर दौड़ती सुरु, किसी तरह से घर पहुँच कर शास्त्री जी के बारे में घर पर बताती है। 
कुछ ही देर में एंबुलेंस अस्पताल पहुँचती है। मानव कदम-कदम पर शास्त्री जी के साथ है, मगर शास्त्री जी होश में नहीं हैं। ऐसे में उन्हें तुरंत ही इमरजेंसी रूम में ले जाने के लिए कहा जाता है। मगर उससे पहले उसे कुछ फॉर्मलिटीज़ करनी होंगी, जिसके लिए मानव तैयार था। वो तुरंत ही काउंटर पर जाकर सारी पूछताछ करता है और अस्पताल से मिलने वाले कुछ फॉर्म्स पर साइन करता है।​

​​साइन करके वो जैसे ही फॉर्म सबमिट करता है कि तभी सामने काउन्टर पर बैठी एक लड़की उसके आगे हाथ बढाती है| उसके ऐसा करने पर मानव अपने हाथो को देखता है और उसने जो पेन पकड़ा था उसे लौटाते हुए उससे कहता है​

​​मनाव: “मैम, प्लीज शास्त्री जी को अंदर जाने दीजिए, उनकी हालत बहुत खराब है।”​

​​यह सुनकर वह लड़की मुंह बनाती है और दोबारा से उसके आगे हाथ बढ़ाते हुए कहती है, “हाँ तो तुम जल्दी से इनके इलाज का खर्चा जमा कर दो, हम इन्हें अंदर जाने देंगे।” यह सुनते ही मनाव शॉक्ड हो जाता है और उससे कहता है,​

​​मनाव: “मगर अभी इलाज हुआ ही कहाँ है? और पहले किस बात का खर्चा?”​

​​इस पर वह लड़की उस पर नाराज होते हुए कहती है, “पहली बार किसी बड़े अस्पताल आए हो क्या? इतना भी नहीं पता ऐसे केसों में पहले फीस जमा करनी होती है, तभी हम पेशेंट को अडमिट करते हैं।” यह बात मनाव को हैरान कर देती है और यह हैरानी उसके चेहरे पर साफ छलकने लगती है। जैसे ही मनाव कुछ कहने लगता है, वह लड़की उससे कहती है, “5 हजार दो और अपने पेशेंट की जान बचाने का प्रोसेस शुरू करवा दो।” मनाव इस बार के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था। तब वह उस लड़की से रिक्वेस्ट करते हुए कहता है कि वह उनका हर खर्चा दे देगा, अभी वह उन्हें यहां से इमरजेंसी रूम में जाने दें। उसके पास इतने सारे पैसे अभी नहीं हैं।​

​​वह लड़की नहीं मानती और नेक्स्ट कहते हुए मनाव से दूसरी तरफ जाकर सोच-विचार करने के लिए बोलती है। मनाव बहुत स्ट्रॉन्ग लड़का है, उसने दुनिया से अकेले लड़ना सीखा है, मगर जब कहीं पैसों की बात आती है तो वह असहाय हो जाता है। आज यहां अभी वह इसी तरह की स्थिति में आ फंसा है। उसे समझ ही नहीं आता कि वह क्या करे! वह अपनी पैंट की जेब से सारे पैसे निकालकर गिनता है।​

​​मनाव: “10, 70, 130, 290, 325, 490, 515....515 इतने में क्या होगा यार....क्या करूँ?”​

​​वह शास्त्री जी के पास जाकर उनके माथे पर प्यार से हाथ फिराते हुए धीरे से कहता है,​

​​मनाव: “आप चिंता मत कीजिए, सब ठीक हो जाएगा...आप बिल्कुल ठीक हो जाएंगे।”​

​​मनाव की आँखों में आंसू हैं, वह किसी तरह से अपने आंसू को छुपाने की कोशिश करता हुआ घूमकर खड़ा हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे वह खुद को एकदम असहाय मान बैठा है, कि तभी उसे जो आवाज सुनाई देती है, वह उसमें नई ऊर्जा भर देती है। “चलिए, चलिए...क्या नाम है इस पेशेंट का? मनोहर शास्त्री...इन्हें इमरजेंसी रूम में लेकर जाइए...फटाफट कीजिए।” ये सुनते ही मनाव के कान खड़े हो जाते हैं। वह जैसे ही पलटकर देखता है, नर्स का झुंड शास्त्री जी को फुर्ती के साथ अंदर लेकर जा रहा है। मनाव आव देखता है न ताव, वह भी उनके पीछे भागते हुए जाता है, कि तभी उसे उसी के साथ भागते हुए कदम दिखाई देते हैं, जिसकी तरफ देखते ही मनाव के चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है। दरअसल, यह कोई और नहीं जीत है, जिसने अपनी सूझबूझ से ऐसे टाइम पर सही फैसला लिया।​

​​मनाव जैसे ही जीत की तरफ देखता है, उसके चेहरे पर स्माइल आ जाती है कि तभी नर्सेस शास्त्री जी को अंदर लेकर जाती हैं। मनाव, जिसके चेहरे पर अभी तक उदासी छाई हुई थी, वह जीत से पूछता है कि आखिर इतनी बड़ी रकम उसने कैसे और कहां से अरेन्ज की, वह भी इतनी जल्दी! इस पर जीत मनाव से कहता है,​

​​जीत: “यार मनाव, मैं ये सब करने वाला कोई नहीं होता, शास्त्री जी ने तुझे बुलवाया था ताकि जागरण के बाद पैसों का हिसाब कर लें। तेरा इंतजार करने के बाद जब तू वहां नहीं पहुंचा, तब उन्होंने मुझे बुलाया और तेरे हिस्से का पैसा मुझे देते हुए कहा कि मैं ये तुझे दे दूं! मैं तुझे ही ढूंढ रहा था कि मैंने देखा तू सुरू की ओर जा रहा है, तो मैंने तुझे डिस्टर्ब करना ठीक नहीं समझा और तभी ये सब हो गया।”​

​​ये सुनते ही मनाव मन ही मन में भगवान का शुक्रिया कहता है और जीत को गले लगाकर एक बार फिर से उसका धन्यवाद करता है। तभी वहां सुरु, उसकी माँ और आदि आते हैं। जिन्हें देखते ही मनाव खुद को स्ट्रॉन्ग बनाते हुए उनसे कहता है,​

​​मनाव: “आप लोग चिंता मत कीजिए, सब ठीक है। डॉक्टर्स अभी-अभी अंकल को अंदर लेकर गए हैं और इमरजेंसी में उनका इलाज चल रहा है। वह जल्दी ही ठीक होकर हमारे बीच आ जाएंगे।”

​​मनाव की बात सुनकर सुरु की माँ को थोड़ी राहत महसूस होती है, जबकि सुरु के चेहरे पर अभी भी शिकन है। वह बहुत बुरी तरह से घबराई हुई है। उसके माथे पर पसीने की बूँदें चमक रही हैं, आँखों में दर्द भरा है और उसके होंठ बुरी तरह से कांप रहे हैं। मनाव से सुरु की ऐसी हालत बर्दाश्त नहीं होती और वह उसे देखकर शांत रहने का इशारा करता है। मगर सुरु शांत होने की जगह वहां से चली जाती है। उसके जाते ही मनाव भी उसके पीछे जाने लगता है, कि तभी सुरु की माँ मनाव का हाथ पकड़ कर उसका धन्यवाद करती है। मनाव उन्हें सांत्वना देता है, जबकि उसका ध्यान सुरु की तरफ होता है। वहां आदि अपनी माँ को पकड़ कर इधर-उधर देखता है। तब जीत माँ को संभालता है और मनाव सुरु के पीछे जाता है।​

​​सुरु: “क्यों मेरा पीछा नहीं छोड़ते तुम? तुमको समझ नहीं आता कि हम इस समय कितनी बड़ी मुसीबत में हैं? अगर...अगर पापा को कुछ हुआ तो...तो क्या होगा हम सबका? हम कहीं के नहीं रह जाएंगे...पता नहीं भगवान ने मुझे किस जन्म की सजा दी है!”​

​​सुरु खुद से ऐसा कहते हुए रोने लगती है। उसके पास खड़ा मनाव उसे सहारा देना चाहता है, मगर वह चाहकर भी उसके करीब नहीं जाता। तब वह उससे कहता है,​

​​मनाव: “सुरु, तुम्हारे डर को मैं समझता हूँ...देखो इस समय मैं तुम्हें कुछ समझा नहीं रहा, बस इतना कह रहा हूँ कि तुम्हें...तुम्हें ही क्यों, बल्कि हम सबको ईश्वर पर भरोसा रखना होगा। कुछ नहीं होगा अंकल को! अगर तुम कमजोर पड़ोगी तो...आंटी को कौन?”​

​​सुरु: “सोलह की हूँ, अगले कुछ महीनों में सत्रह की हो जाऊंगी मैं...तुम क्या उम्मीद कर रहे हो मुझसे? पहले ही बहुत कुछ झेल रही हूँ...अपनी उम्र की लड़कियों को जिंदगी जीते हुए देखती हूँ...मैंने कभी किसी को इस तरह की लाइफ जीते नहीं देखा जैसी मैं जी रही हूँ...ऐसे में तुम चाहते हो मैं खुद के साथ माँ और आदि को भी संभालूं? नहीं नहीं होगा मुझसे ये सब...और प्लीज अगर तुम्हारा ये सब हो गया है तो जाओ यहां से...मुझे नहीं चाहिए किसी की दया या ज्ञान! इस समय मेरा दिमाग बहुत खराब है, मनाव प्लीज जाओ यहां से।”​

​​मनाव एक समझदार लड़का है, वह सुरु की मानसिक स्थिति को समझ रहा है, इसलिए उसकी किसी भी बात का बुरा नहीं मानता। वह चुपचाप वहां खड़ा रहता है, कि तभी ऑपरेशन थिएटर से नर्स बाहर आती है। उन्हें देखते ही मनाव उनके पास जाता है और उनसे शास्त्री जी के बारे में पूछता है। “अभी आप वेट कीजिए, उनका इलाज चल रहा है। डॉक्टर आकर आपको पूरी अपडेट दे देंगे।”​

​​मनाव दो कदम पीछे जाकर खड़ा हो जाता है, कि तभी जीत उसके कान में कुछ कहता है। मनाव तुरंत ही वहां से जीत के साथ जाता है। मनाव को वहां से जाता देख, सुरु मन ही मन में सोचती है,​

​​सुरु: “तुम जो कुछ भी कर रहे हो, इसका हिसाब चुका दूंगी मैं! मगर मैं कभी तुम्हारे साथ लाइफ में आगे बढ़ूंगी, इसका सपना भी मत देखना, मनाव! मैं तंग आ गई हूँ इस गरीबी से! मुझे बस अब पैसा चाहिए...बहुत सारा पैसा।”​

​​ऐसा सोचते हुए सुरु अपनी आँखों से बहते आंसुओं को पोछती है और हॉस्पिटल में मौजूद लोगों को देखती है। यहां जीत के साथ मनाव काउंटर तक आता है, जहाँ काउंटर में बैठी लड़की मनाव के हाथों में एक लिस्ट थमाते हुए उससे कहती है, “डॉक्टर्स ने ये दवाएं यूज़ की हैं, अगला बिल आने तक इनका पेमेंट कर दीजिए।” ये देखते ही मनाव की सांसें ऊपर-नीचे होने लगती हैं। वह कई बार उस लिस्ट की दवाओं के प्राइस को देखता है और कैल्कुलेट करता है।​

​​मनाव: “साढ़े आठ हजार।”​

​​मनाव के मुंह से ऐसा सुनते ही जीत झट से उससे वह लिस्ट ले लेता है और अपनी जेब से एक हजार रुपये निकालकर मनाव को देते हुए कहता है, ​

​​जीत: “यार मनाव, शास्त्री अंकल ने कुल छह हजार दिए थे। ये एक हजार बचे हैं, मैंने वह पांच हजार काउंटर पर पहले ही जमा करवा दिए थे।”​

​​मनाव चुपचाप खड़ा कुछ सोच रहा है। जीत मनाव के दिमाग में हो रही हलचल को महसूस कर सकता है। तब वह धीरे से मनाव के कान में कहता है,​

​​जीत: “साढ़े आठ हजार! बहुत बड़ी रकम है यार! कैसे करेंगे सब?”​

​​मनाव: “मुझे नहीं पता...मगर करना तो है! शास्त्री जी को कुछ नहीं हो सकता, हमें उन्हें बचाना ही होगा।”​

​​मनाव जैसे अपनी सुध-बुध खो बैठता है। इस समय उसके दिमाग में सिर्फ शास्त्री जी को बचाने की बात चल रही है। तभी वह अचानक ही जीत से यहां सब संभालने के लिए कहता है और काउंटर पर बैठी लड़की से कहता है कि वह थोड़ी देर में पैसे लेकर आ रहा है। जीत जैसे ही उससे कुछ पूछने लगता है, वह उसे बिना बताए वहां से निकल जाता है। आदि, मनाव को हॉस्पिटल से बाहर भागते हुए देखता है। वह सुरु के पास जाकर उससे कहता है, “मनाव क्यों भाग गया?” यह सुनते ही जैसे सुरु के होश उड़ जाते हैं और वह आदि से पूछती है,​

​​सुरु: “कहाँ भाग गया?”​

​​आदि उससे कहता है “मुझे क्या पता? मैंने तो बस उसे भागते हुए देखा।” आदि चेहरे पर आड़े-टेड़े एक्सप्रेशन्स देते हुए उससे ऐसा कहता है। सुरु के दिमाग में अब मनाव के खिलाफ सब कुछ चलने लगता है, उसे लगता है मनाव अब उनका साथ नहीं देगा, वह बीच में ही भाग गया ताकि उसके पापा का खर्चा न उठाना पड़े...यह सब सोचकर सुरु थोड़ा घबरा जाती है और अपनी माँ के पास जाकर उनसे घर में रखे पैसों के बारे में पूछताछ करती है।​

​​यहां मनाव अपने घर पर आकर उसने जो इमरजेंसी के लिए कुछ पैसे जमा किए थे, उन्हें निकालता है, साथ ही वह अपने बैंक के कुछ पेपर्स रखता है। उसे यह सब करते हुए देख उसकी माँ घबराती है और उससे पूछती है कि वह यह सब क्या और क्यों कर रहा है?​

​​जिस पर मनाव उसे शास्त्री जी के बारे में सब बताता है। यह सुनते ही मनाव की माँ का खून खौलने लगता है और वह मनाव को मारने दौड़ती है कि तभी मनाव की बड़ी बहन मीनू अपनी माँ का हाथ पकड़ लेती है।​

​​माँ रोते हुए मनाव से कहती है कि उन्होंने यह सेविंग्स मीनू के लिए रखी थी, वह मनाव को उन पैसों को शास्त्री जी पर नहीं खर्चा करने देंगी क्योंकि वह जानती हैं कि वहां गया पैसा कभी वापस नहीं आएगा। मगर मनाव भी जिद पर अड़ जाता है कि वह किसी भी कीमत पर शास्त्री जी की जान बचाकर रहेगा।​

​​पास खड़ी मीनू की आँखों में आंसू हैं, वह अपने घर हो रहे इस झगड़े में किसका साथ दे, समझ ही नहीं पाती। इसलिए वह चुप रहना ही ठीक समझती है। यहां माँ अपनी कसम देकर मनाव को रोकने की कोशिश करती है, मगर मनाव उनके पैरों को छूकर माफी मांगते हुए उसे वह पैसे ले जाने की इजाज़त मांगता है।​

​​यहां सुरु जब अपनी माँ से घर पर रखे पैसों के लिए पूछताछ करती है, तब उसकी माँ कहती है कि उनके घर पर कुछ भी नहीं है। उनके पापा जो भी कमाते हैं, वह राशन और बाकी उन दोनों बच्चों की पढ़ाई के खर्चे में चला जाता है। उनके हाथ कुछ नहीं बचता। सुरु अब समझ नहीं पाती कि उसे ऐसा क्या करना चाहिए कि वह पैसों का इंतजाम कर सके ताकि उसके पापा की जिंदगी बच जाए। वहीं मनाव अपनी माँ को मनाने में नाकामयाब हो जाता है। मीनू माँ-बेटे की इस लड़ाई में खुद को असहाय महसूस करती है।​

​​आखिर कैसे होगा शास्त्री जी का इलाज? क्या मीनू माँ को मना पाएगी या सुरु किसी जुगाड़ से पैसा जुटा लेगी? क्या मनाव और माँ के रिश्ते के बीच शास्त्री अंकल के कारण खटास आ जाएगी या कोई चमत्कार इस स्थिति में सब सही कर देगा? या फिर शास्त्री जी के साथ कोई अनहोनी घटना घटेगी? क्या है इस कहानी में आगे जानने के लिए, पढ़ते रहिए।​

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