मनाव अपनी माँ के आगे हाथ-पैर जोड़ता है, मगर उसकी माँ नहीं मानती। तब मनाव उन्हें अपनी कसम देकर वह सारा पैसा लेकर वहां से चला जाता है। माँ, मीनू के गले लगकर बहुत रोती है। मीनू का मन बहुत भरा हुआ है, मगर वह जानती है कि इस समय उसके भविष्य से ज़्यादा किसी की जान को बचाना ज़्यादा ज़रूरी है, इसलिए वह अपनी माँ को समझाती है।
वहां हॉस्पिटल में जैसे ही सुरु की माँ उससे कहती है कि उनके घर पर कुछ भी नहीं है, सुरु के होश उड़ जाते हैं और वह सोच में पड़ जाती है कि अब वह ऐसा क्या करे कि अपने पापा की जान बचा सके। तभी उसकी नज़र सामने से आ रहे मनाव पर पड़ती है। जिसे देखकर वह हैरान हो जाती है। पास खड़ा आदि सुरु से कहता है, “ये आदमी कितना मनाव जैसा लग रहा है न दीदी, यह तो भाग गया था ना?” सुरु उसको एक आईब्रो उठाकर देखती है और उसका एक कान मरोड़ते हुए कहती है,
सुरु: “वो आदमी मनाव ही है आदि।”यार...मैं भी कहां आदि की बातों में आ गई थी, बच्चा है यार ये।”
इस समय सुरु के चेहरे पर एक सुकून है, जैसे वह जानती है कि मनाव सब संभाल लेगा। तभी मनाव की नज़र भी सुरु पर पड़ती है। सुरु उसे हल्की मुस्कराहट के साथ देखती है, जबकि मनाव अभी जो भी उसके घर पर हुआ है, उस टेंशन के साथ यहां हॉस्पिटल में आया है। वह उसे देखता है, मगर यह पहली बार है कि वह कोई रिएक्शन नहीं देता। वह जैसे ही अंदर आता है, सुरु उसकी तरफ बढ़ती है, मगर तभी बीच में जीत आ जाता है। वह उसके चेहरे को देखकर समझ जाता है कि कुछ तो प्रॉब्लम हुई है, मगर इस समय वह किसी भी बात को जानने से पहले यह जानना चाहता है कि मनाव शास्त्री अंकल के लिए पैसे जुटा पाया या नहीं।
तभी मनाव तेज़ कदमों से चलता हुआ काउंटर तक जाता है और बिल पे करता है। जीत को मनाव पर बहुत गर्व होता है। वह उसकी पीठ थपथपाता है। वहीं दूर खड़ी सुरु यह देखकर हैरान है कि इतनी जल्दी आखिर मनाव ने इतने पैसों का इंतजाम कैसे किया होगा। वह सब कुछ होता हुआ देखती है, मगर उसके चेहरे पर कोई खास रिएक्शन्स नहीं आते। डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर से बाहर आते हैं। उन्हें बाहर आते देखकर मनाव तुरंत उनकी ओर लपकता है और उनसे पूछता है कि अभी अंकल कैसे हैं! तभी वहां जीत और सुरु भी आ जाते हैं। वह बाहर आते ही कहते है “देखिए शास्त्री जी को हमने बचा लिया है। वह अब खतरे से बाहर हैं।” डॉक्टर की यह बात मनाव, जीत और सुरु को बहुत सुकून देती है, मगर इसके बाद डॉक्टर अपनी बात को पूरा करते हैं, “वह खतरे से तो बाहर हैं, मगर इस घटना में उनके गले को बहुत नुकसान हुआ है। उनकी वोकल कॉर्ड बुरी तरह से डेमेज हो गई है। हमने हमारी तरफ से पूरी कोशिश की है, मगर...”
सुरु: “मगर क्या डॉक्टर, प्लीज़ जल्दी कहिए।”
सुरु के दिल की धड़कनें बढ़ने लगती हैं और वह डॉक्टर से आगे होकर ऐसा पूछती है। तब डॉक्टर उसे बताते हैं, मगर अब शायद शास्त्री जी कभी गा नहीं पाएंगे।” यह सुनते ही मनाव, जीत और सुरु के होश उड़ जाते हैं। सुरु की आँखों में खुशी के आंसू एक झटके में ही दुःख के आंसुओं में बदल जाते हैं। वह चुपचाप डॉक्टर को देखती है। मनाव को भी यकीन नहीं होता। तभी डॉक्टर मनाव के कंधे पर हाथ रखते हुए कहते हैं, “साइंस कहती है वह कभी गा नहीं पाएंगे, मगर मेरा तजुर्बा कहता है कि आप लोगों को हिम्मत नहीं हारनी है...कभी-कभी जो काम दवा नहीं करती, वह दुआ कर जाती है। डोंट लूज़ होप।” इतना कहकर डॉक्टर वहां से चले जाते हैं। उनके जाते ही मनाव भागकर उनके पीछे जाता है और उनके आगे हाथ जोड़ते हुए कहता है,
मनाव: “डॉक्टर, शास्त्री जी का गाना बहुत ज़रूरी है। आप नहीं जानते, अगर वह नहीं गायेंगे तो...”
मानव को बीच में ही रोकते हुए वह कहते है, “देखो मनाव, हमने जो करना था, कर दिया, इसके आगे हम कुछ नहीं कर सकते।” डॉक्टर दो टूक में मनाव से ऐसा कहकर एक कदम आगे बढ़ते हैं, कि तभी मनाव एक बार फिर से उनके सामने आकर खड़ा हो जाता है और उनसे कहता है,
मनाव: “डॉक्टर, मैं बहुत पढ़ा-लिखा तो नहीं हूँ, मगर दुनियादारी की समझ कूट-कूट कर भरी है मुझमें। आज के इस ज़माने में मैं मान ही नहीं सकता कि आप लोगों के पास किसी भी चीज़ का कोई इलाज न हो...कुछ तो होगा इस बात का हल...डॉक्टर प्लीज़ मेरी बात समझिए, यह बहुत ज़रूरी है।”
मनाव को अपने सामने हाथ जोड़े खड़ा देख, डॉक्टर एक गहरी सांस लेते हैं और उससे कहते हैं, “देखो मनाव, मुझे पता चला कि किन हालातों में तुमने शास्त्री जी के लिए पैसा इकठ्ठा किया और फीस चुकाई है, ऐसे में मैं तुम्हें ऐसा कुछ कहकर नहीं डरा सकता जो...”
मनाव: “जो मेरी औकात के बाहर हो? हैं न डॉक्टर? मैं जानता हूँ और समझता भी हूँ कि मेरे लिए भी ये बहुत मुश्किल घड़ी है, मगर मेरे पास इस बात का हल जानने के सिवा और कोई चारा ही नहीं है। आप प्लीज़ मुझे बताइए...क्या कोई तरीका है कि शास्त्री जी दोबारा से बिल्कुल पहले की तरह हो जाएं?”
मनाव का कॉन्फिडेंस देखकर डॉक्टर को उस पर बहुत गर्व होता है और वह उससे कहते हैं, “मनाव, शास्त्री जी को अगर ठीक बिल्कुल पहले की तरह देखना चाहते हो तो वो मुमकिन है, मगर उसके लिए हमें गले के स्पेशलिस्ट को बुलाना होगा जो उनका इलाज करेंगे... इसमें बहुत खर्च होगा।” यह सुनते ही मनाव अपने थूक का घूंट गटकते हुए डॉक्टर से पूछता है,
मनाव: “कि...कितना खर्चा हो जाएगा डॉक्टर?”
मनाव, मैं पहले बता चुका हूँ, ये कोई छोटी-मोटी रकम की बात नहीं हो रही है...यहां तुम्हारे लाखों रुपये खर्च हो सकते हैं।” यह सुनते ही मनाव की आँखें फटी की फटी रह जाती हैं और वह एक बार फिर से डॉक्टर से एक्सैक्ट अमाउंट जानने की कोशिश करता है। डॉक्टर उसको एक्सैक्ट अमाउंट तो नहीं बता पाते, बस इतना ज़रूर कहते हैं कि इसका 10 लाख तक का खर्चा आ सकता है। मनाव ने अपनी जिंदगी में कभी इतने पैसे नहीं देखे, वह यह सब कैसे कर पाएगा? इसी सोच में खो जाता है, तभी वहां से डॉक्टर चले जाते हैं। यहाँ सुरु अपने पापा के पास जाकर उन्हें देखती है और उसकी आँखों से आंसू बहने लगते हैं। सुरु की माँ पूछती है कि क्या हुआ है, इस पर वह कोई जवाब नहीं देती, बस उन्हें गले लगा लेती है। आदि भी अपनी दीदी के गले लगता है।
अगले दिन शास्त्री जी को आई.सी.यू से निकालकर नॉर्मल वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाता है। तब सुरु की माँ सुरु से और आदि को स्कूल जाने के लिए कहती है। यहाँ मनाव, जीत और माँ, शास्त्री जी का ध्यान रखते हैं।
इस हादसे के बाद जब सुरु अपने स्कूल जाती है, तब उसे वहां एक अलग ही माहौल देखने को मिलता है। वह देखती है कि उसकी 12वीं खत्म होने में कुछ ही समय रह गया है। उसकी सारी फ्रेंड्स कॉलेज जाने के लिए एक्साइटेड हैं और तरह-तरह के प्लान्स बना रही हैं। जिन्हें सुनकर सुरु को बहुत दुःख होता है। वह सबके बीच बैठी है, मगर उसकी सोच में बहुत कुछ चल रहा है। वह मन ही मन अपने पापा की कंडीशन को याद करती है और बहुत रोती है। क्योंकि अब वह जानती है कि उसके पापा ठीक तो हो जाएंगे, मगर कभी गा नहीं पाएंगे। अपने अंधकार भरे भविष्य को लेकर बुरी तरह से डरी-सहमी सुरु इस बात को भांप जाती है कि अब उसे जल्दी ही पढ़ाई छोड़नी होगी और किसी छोटी-मोटी जगह काम करना होगा ताकि उसके घर का गुज़ारा चल सके।
सुरु ने कभी भी इस तरह के भविष्य की कल्पना नहीं की थी। वह जानती थी, आज नहीं तो कल उसकी किस्मत बदलेगी और वह जैसी जिंदगी चाहती है, वैसी जीएगी...मगर एक घटना ने उसकी पूरी जिंदगी को हिलाकर रख दिया।
वहां अपनी दुकान पर बैठा मनाव शास्त्री अंकल के इलाज के लिए लाखों रुपये कहां से जुटाएगा, इस बारे में सोचता है। मगर उसे कोई सोल्यूशन नहीं मिलता। जब जीत मनाव से पूछता है कि आखिर ऐसी कोई सी बात है जो उसे इतना परेशान कर रही है, इस पर मनाव उसे पूरी बात बताता है।
मनाव के ऐसा कहने पर जब जीत उससे अमाउंट पूछता है, तो उसके होश उड़ जाते हैं। वह छूटते ही मनाव से कहता है कि उसे इतना बड़ा रिस्क नहीं लेना चाहिए, क्योंकि उसकी खुद की एक बड़ी बहन है जिसकी शादी होनी है। ऊपर से उसके घर पर भी कोई और कमाने वाला नहीं है। अगर मनाव अपनी सारी पूंजी शास्त्री अंकल को बचाने में लगा देगा, तो वह खुद अपने और अपने परिवार को कैसे बचा पाएगा! यह सुनते ही मनाव का पारा हाई हो जाता है और वह जीत से उल्टा-सीधा कहता है। देखते ही देखते दोनों के बीच बहस होती है, जिसमें जीत सुरु का नाम लेते हुए मनाव से कहता है कि वह सुरु के प्यार में इतना अंधा हो गया है कि उसे आगे-पीछे कुछ और नजर ही नहीं आ रहा है।
तब मनाव जीत को उन सब एहसानों के बारे में बताता है जो शास्त्री अंकल ने तब उस पर किए थे जब बहुत छोटी उम्र में उसके पापा उसे छोड़कर इस दुनिया से चले गए थे। मनाव उनके बारे में बात करते हुए इमोशनल हो जाता है और उससे कहता है कि उसके लिए शास्त्री अंकल सिर्फ बिज़नेस पार्टनर ही नहीं हैं, बल्कि उसके पिता समान हैं, इसलिए वह उनका साथ कभी नहीं छोड़ेगा।
मनाव की बात जीत को समझ आ जाती है और वह अपने शब्दों के लिए मनाव से माफी मांगता है। दोनों दोस्त एक-दूसरे के गले लगते हैं। तब जीत के दिमाग में एक आइडिया आता है और वह मनाव से कुछ ऐसा कहता है, कि मनाव का मुँह खुला का खुला रह जाता है।
जीत मनाव से कहता है, “मनाव, मैं एक आदमी को जानता हूं जो मनाव की मदद कर सकता है।” मानव झट से हाँ में सर हिलाते हुए पूछता है…
मनाव: “कौन?”
जीत: “राजू पहलवान।”
यह नाम सुनते ही मनाव का मुंह खुला का खुला रह जाता है और वह जीत से कहता है कि उसने राजू पहलवान के बारे में सुना है, वह लोगों पर बहुत दया करता है मगर उसकी कीमत लेना नहीं भूलता। जीत हाँ में सर हिलाते हुए उससे कहता है, “भले ही राजू पहलवान लोगों की मदद करके कमाता है, मगर मदद तो करता है।” मनाव को उसकी यह बात समझ आ जाती है और वह दोनों बिना समय गंवाए राजू पहलवान के यहाँ जाते हैं।
एक सिंपल सा दिखने वाला घर, जिसके दीवारों से सीमेंट निकल रहा है...उस घर का फर्नीचर लगभग टूटी-फूटी हालत में है...घर के हर कोने में कई ज़माने पुरानी चीज़ें रखी हैं, जैसे उन्हें कभी किसी ने अपनी जगह से हिलाया ही न हो। इस घर में घुसते ही मनाव जीत से कहता है कि शायद वह लोग गलत जगह पर आ गए हैं, उन्हें एक बार कन्फ़र्म कर लेना चाहिए।
जीत कहता है कि उसके पास यहीं का पता है और वह जानता है कि राजू पहलवान यहीं इसी पते पर ही मिलता है।
दोनों उस घर में आवाज़ लगाते हैं, मगर वहां कोई नज़र नहीं आता। तभी जीत जैसे ही नज़रें घुमाता है, उसके सामने एक आलीशान गाड़ी पार्क्ड है। वह कमरे की खिड़की से उस कार को देखते हुए मनाव को भी वहीं देखने का इशारा करता है।
मनाव उस खस्ता हाल जगह पर उस गाड़ी को देखकर हैरान हो जाता है। दोनों उस घर से निकल कर जैसे ही पार्किंग की तरफ जाते हैं, कि एक टूटे हुए दरवाज़े से एक गंजा 6 फुट का आदमी उनके सामने आकर खड़ा हो जाता है और उनसे वहां आने की वजह पूछता है। उसे देखते ही जीत हिल जाता है, मगर मनाव बहुत शांति से कहता है कि उन्हें राजू पहलवान से मिलना है। वजह पूछे जाने पर मनाव उसे सच बताते हैं। वह आदमी जीत और मनाव को टूटे हुए दरवाज़े के अंदर लेकर जाता है, जहाँ जाते ही इन दोनों की आँखें फटी की फटी रह जाती हैं।
यह एक आलीशान महल जैसा घर है, जहाँ बेशकीमती चीज़ें रखी हैं।
मनाव जीत को और जीत मनाव को देखता है। तभी इन दोनों को कोल्ड ड्रिंक देकर थोड़ा इंतजार करने के लिए कहा जाता है। जीत यह सब देखकर मनाव से कहता है कि उसे लगता है कि वह किसी हिंदी फिल्म के अंदर है और यह सब देख रहा है। जबकि मनाव वहां बहुत सतर्क होकर बैठा है। जीत मनाव से कहता है कि अब उसे यकीन है कि शास्त्री जी का इलाज हो जाएगा। वह अपनी एक्साइटमेंट रोक नहीं पाता, कि तभी वहां खड़ा वह आदमी की नज़र जीत पर पड़ती है और वह उसे कुछ इशारे में कहता है।
जीत उसकी बात मनाव को बताता है, कि तभी मनाव भी उसका हाथ हलके से दबाते हुए एक ओर देखने का इशारा करता है। जीत और मनाव जो अपने सामने इस समय देखते हैं, उन्हें उस पर यकीन ही नहीं होता और दोनों के चेहरे का रंग बदल जाता है।
आखिर ऐसा क्या देखते हैं वे दोनों वहाँ कि उनके चेहरे का रंग बदल जाता है? आखिर कौन है ये राजू पहलवान? क्या वह उनकी मदद कर पाएगा या यहाँ से उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ेगा? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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