मानव और जीत जैसे ही सामने खड़े शख्स की ओर देखते हैं, उनका मुंह खुला का खुला रह जाता है। दरअसल, वो अपने सामने एक 4 फुट का आदमी देखते हैं, जिसने महंगे कपड़े पहने हुए हैं और वो सर से लेकर पाँव तक सोने के ज़ेवरों से लदा हुआ है।
इसे देखते ही दोनों हैरान होते हैं। जीत अपनी हंसी रोक नहीं पाता और वो खांसने के बहाने से हंसने लगता है। मानव उसका हाथ दबाते हुए उसे रोकने की कोशिश करता है, मगर वो नहीं रुकता। तभी सामने खड़ा वो 4 फुट का आदमी उसके हंसने की वजह पूछता है। जीत बस हँसता जाता है, जिसे देखकर मानव को गुस्सा आता है। सामने खड़ा वो आदमी इन दोनों के पास आता है और वो जैसे ही अपने माथे पर उंगलियाँ फिराता है, उसकी कमर पर एक सोने की रिवाल्वेर दिखने लगती है जिस पर नज़र पड़ते ही मानव जीत को वहां देखने का इशारा करता है। जीत की नज़र जैसे ही उस रिवोल्वर पर पड़ती है, एक ही झटके में उसकी हंसी रुक जाती है और वो एकदम चुपचाप खड़ा हो जाता है।
उसके शांत होते ही सामने खड़े आदमी का मुंह बनता है और वो उन दोनों के सामने रखी एक शेर की आकृति वाली बड़ी सी कुर्सी पर बैठता है। उसके बैठते ही वो गंजा आदमी उसके कान में कुछ कहता है, जिस पर वो हाँ में सिर हिलाता है। यहाँ जीत और मानव भी आपस में कुछ बात करते हैं। "राजू...राजू पहलवान...नाम तो सुना ही होगा मेरा" एकदम पतली आवाज़ में सामने बैठा शख्स जब जीत और मानव को अपना इंट्रोडक्शन देता है, तब एक बार फिर से जीत को बहुत जोर से हंसी आती है, मगर मानव उसके पैर को जोर से दबाता है, जिससे उसका मुंह बन जाता है और उसकी हंसी रुक जाती है। मानव हाँ में सिर हिलाते हुए उससे कहता है:
मानव: "हाँ भाई...इसलिए तो आपके पास आए हैं"
यह सुनकर राजू पहलवान हाँ में गर्दन हिलाते हुए उनके सामने एक बैग रखते हुए कहता है: "तुम्हे जितना पैसा चाहिए इसमें से निकाल लो" यह बात मानव और जीत को हैरान कर देती है। उस पैसों से भरे बैग को देखते हुए जीत उससे कहता है:
जीत: "मगर भाई...कोई काग़ज़ पेपर कुछ साइन नहीं करवाएंगे आप?"
यह सुनते ही राजू पहलवान के चेहरे पर स्माइल आ जाती है और वो उससे कहता है: विश्वास पर दुनिया चल रही है...धोखे का क्या है, वो तो कागज़ों पर साइन करने के बाद भी दिए जाते हैं"
मानव: "मगर इतनी बड़ी रकम ऐसे ही कैसे ले सकता हूँ मैं?"
मानव इस बात को लेकर परेशान है कि वो जितना पैसा ले रहा है, उसे उसके हिसाब से ब्याज देना होगा और इस पैसे को वापस भी करना होगा। अगर कहीं लिखित तौर पर ये सब नहीं हुआ, तो पता कैसे चलेगा कितना बचा है कितना देना है। मानव की बात सही है, मगर राजू पहलवान के यहाँ आज तक किसी ने कभी कोई पेपर न तो देखे हैं और न साइन किए हैं। यहाँ जुबान पर काम किया जाता है। राजू मानव से कहता है: "इंसानियत से बढ़कर कुछ नहीं होता दोस्त! मैं तुम्हे तुम्हारे बुरे समय में ये पैसा देकर इंसानियत दिखा रहा हूँ, तुम इसे समय पर ब्याज सहित लौटा कर इंसानियत दिखा देना। बस फिर क्या चाहिए हमें? तुम भी खुश और हम भी!"
मानव राजू की इस बात से सहमत है, मगर कहीं न कहीं उसके मन में पैसों को वापस करने को लेकर सवाल चल रहे हैं। जीत मानव के चेहरे को पढ़ लेता है और हिम्मत करते हुए राजू से कहता है:
जीत: "मानव जैसा ईमानदार आदमी आज के ज़माने में नहीं होता है भाई" "वो आपका लिया पैसा टाइम पर चुका देगा"
हा हा हा...वो तो चुकाना ही पड़ेगा जीत! तुम्हे जितना पैसा चाहिए उसका 3 टका ब्याज लगेगा!" ब्याज का पर्सेंटेज सुनते ही जीत चौंक जाता है और वो जैसे ही राजू से कुछ कहने लगता है कि मानव उसे रोकते हुए कहता है:
मानव: "ठीक है भाई"
मानव के मुंह से निकले ये शब्द जीत को तीर की तरह चुभते हैं और वो बहुत धीरे से मानव के कान में कहता है:
जीत: "अगर तूने 5 लाख लिए तो इसका 3 टका जानता है?"
मानव हाँ में सिर हिलाता है और जीत से चुप रहने का इशारा करता है। राजू को इनकी खुसर-पुसर में कोई इंटरेस्ट नहीं है। यहाँ जीत मानव से इस डील पर हाँ करने के लिए मना करता है, जबकि मानव उसे समझाता है कि उसके पास इस डील के अलावा और कोई चारा नहीं है। जीत को मानव के आगे सिर झुकाना ही पड़ता है। और वो हार मान लेता है। यहाँ मानव जैसे ही उस बैग में से पैसे निकालता है, उसके दिमाग में एक सवाल आता है और वो अपने हाथों को रोकता हुआ राजू से पूछता है:
मानव: "राजू भाई, मैं कौन हूँ, क्या हूँ इसका सारा हिसाब किताब है आपके पास! मैंने आजतक कभी किसी से पैसे नहीं लिए, आज बहुत मजबूरी में आपके पास आया हूँ। मैं जानता हूँ कि मैं आपको ये पैसा लौटा दूंगा और आपको टाइम टू टाइम ब्याज भी दूंगा, मगर अगर किसी कारणवश मैं ब्याज टाइम पर नहीं दे पाया तो?"
राजू मानव की तरफ देखता है और उससे कहता है कि वो दोस्ती और काम को अलग रखता है। मानव उसको पसंद आया, मगर काम को लेकर वो किसी मानव की मानवता नहीं देखेगा। अगर वो किसी कारणवश इंटरेस्ट नहीं दे पाया, तो अगले महीने उसे उस महीने का मिलाकर डबल इंटरेस्ट देना होगा। क्योंकि वो कुछ मामलों में बहुत क्लियर है।
यह सुनकर मानव एक मिनट का पॉज़ लेता है और सोचने पर मजबूर हो जाता है कि उसे क्या करना चाहिए। वहाँ दूसरी तरफ मानव के घर पर मातम सा छाया है। मानव की माँ अपने सिर पर हाथ रखकर बैठी है। मीनू उन्हें समझाने की बहुत कोशिश करती है, मगर उन्हें कुछ समझ नहीं आता। तभी पड़ोस में रहने वाली एक आंटी मानव के घर उसकी माँ से मिलने आती हैं।
मीनू अपनी माँ से , मानव की हरकत के बारे में बताने के लिए मना करती है। तभी वो आंटी अंदर आती हैं और उसकी माँ के आगे एक लिफाफा रखते हुए कहती है: "ये देखने के बाद तुम मेरा माथा न चूम लो तो कहना"
इस भाषा को सुनकर मानव की माँ का मुंह बन जाता है और वो उनसे साफ-साफ बताने के लिए कहती है कि इस लिफाफे में क्या है! जिस पर वो आंटी उसकी माँ से खुद ही लिफाफा खोलने की जिद करती है। पास खड़ी मीनू से रहा नहीं जाता और वो झट से उस लिफाफे को खोलकर देखती है कि उसमें क्या है! वो जैसे ही लिफाफा खोलती है, उसके चेहरे पर चमक आ जाती है, जिसे देखकर माँ उसके हाथ से वो लिफाफा और कुछ काग़ज़ जैसा लगभग खींचते हुए देखती है, जिसे देखते ही उनकी आँखों में भी चमक आ जाती है।
वहीं अस्पताल में शास्त्री जी के पास बैठी सुरु की माँ उनका ध्यान रखती है, कि तभी वहाँ सुरु आ जाती है और अपनी माँ को घर जाने के लिए कहती है। माँ के घर निकलते ही सुरु अपने पापा को देखती है और उसकी तरफ देखते हुए मन ही मन में कहती है।
सुरु: “पापा, मैं नहीं जानती आप कभी पहले की तरह नॉर्मल हो पाएंगे या नहीं! मुझे तो बस इतना पता है कि मेरी लाइफ का अब कुछ नहीं हो सकता। मेरे स्कूल की सभी सहेलियाँ इस समय अपने कॉलेज जाने की तैयारी में लगी हैं। मुझे तो ये भी नहीं पता कि मैं कभी कॉलेज जा पाऊँगी या नहीं...”
सुरु अपनी आँखों में आंसू लिए अपने पापा की तरफ देखते हुए ऐसा कह ही रही होती है कि उसके पापा के हाथों में हलचल होती है। जिसे महसूस करते ही सुरु झट से शांत हो जाती है। तभी उसकी नज़र उसके पापा की गर्दन पर बंधी पट्टी पर जाती है, जिसमें से खून बाहर आ रहा है। सुरु ये देखकर बुरी तरह से डर जाती है और वो भागकर डॉक्टर को बुलाने जाती है।
सुरु के जाते ही वहाँ अफरा-तफरी हो जाती है और डॉक्टर भागकर उसके पापा को देखने के लिए आते हैं। “ओह...नो...इट्स नॉट अ गुड साइन” डॉक्टर के मुँह से ये सुनते ही सुरु जैसे चक्कर खाकर एक कोने में बैठ जाती है। तभी कुछ डॉक्टर आकर उन्हें देखते हैं और इमरजेंसी वार्ड में शिफ्ट करने के लिए कहते हैं। घबराई हुई सुरु हिम्मत जुटाती है और डॉक्टर से पूछती है कि उसके पापा को क्या हो रहा है।
डॉक्टर उसकी हालत देखकर उल्टा उससे पूछते हैं कि उसके साथ अगर कोई है तो उसे जल्दी बुला ले। डॉक्टर के मुँह से ऐसा सुनते ही सुरु और ज़्यादा डर जाती है। वो इस समय हॉस्पिटल में बिल्कुल अकेली है। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि उसे क्या करना चाहिए। इसलिए वो किसी से फोन मांग कर जीत के फोन पर कॉल करती है।
जीत सुरु का फोन देखते ही घबराता है और वो मानव को दूर से ही सुरु का फोन दिखाता है। मानव झट से फोन लेकर सुरु से बात करता है। वो सुरु की आवाज़ और आधी-अधूरी बात सुनकर समझ जाता है कि हॉस्पिटल में इस समय इमरजेंसी है, इसलिए वो सुरु को शांत रहने के लिए कहता है और फोन काटते ही सामने रखे बैग में से 5 लाख रुपये निकाल लेता है। सामने खड़ा गंजा आदमी मानव और जीत की हर हरकत को बहुत बारीकी से देखता है।
मानव जैसे ही 500 रुपये के नोटों के 10 बंडल उठाता है, वो आदमी अपने फोन पर कुछ टाइप करता है और मानव से कुछ पैसे वहीं छोड़ने का इशारा करता है। मानव एक बंडल में से कुछ पैसे गिनकर वहां रख देता है और बहुत ही फुर्ती के साथ वहां से निकल जाता है। यहाँ मानव के घर पर जैसे ही उसकी माँ और बहन उस लिफाफे के अंदर से निकली एक लड़की की तस्वीर देखते हैं, उनका मुँह खुला का खुला रह जाता है।
तभी उनके सामने बैठी आंटी उन्हें बताती हैं कि तस्वीर में दिख रही लड़की का मानव के लिए रिश्ता आया है। वो लोग पहले यहीं रहते थे, मगर अब नॉर्थ दिल्ली शिफ्ट हो गए हैं। वो लोग मानव को बहुत पसंद करते हैं। अगर मानव तैयार है तो वो उस लड़की की बात चला सकती हैं।
मानव सुरु को पसंद करता है, इसके बारे में जीत और मीनू के सिवा और कोई नहीं जानता। यहाँ अपनी माँ के पास खड़ी मीनू मानव के लिए इतनी सुंदर लड़की का रिश्ता देखकर हैरान है, मगर वहीं दूसरी तरफ वो जानती है कि मानव इस बात के लिए कभी नहीं मानेगा। सामने बैठी आंटी के इस प्रस्ताव पर मानव की माँ की आँखें चौड़ी हो जाती हैं, जबकि मीनू के चेहरे पर दुविधा के भाव हैं। वो मन ही मन में सोचती है: “लड़की तो बहुत सुंदर है, मगर मानव इसके लिए कभी नहीं मानेगा” तभी मानव की माँ सामने बैठी आंटी से कहती है: “मुझे तो लड़की बहुत पसंद है...आप प्लीज़ इससे मानव की बात चलाओ”
ये सुनते ही सामने बैठी आंटी के चेहरे पर बड़ी स्माइल आ जाती है और वो झटपट अपने बैग से एक मिठाई का डिब्बा निकालकर मानव की माँ और मीनू को खिलाती हैं। माँ और मीनू आंटी की इस जल्दी को देखकर हैरान होते हैं। तब आंटी उनसे कहती हैं: “मैं तो पहले से ही जानती थी कि ये रिश्ता तो पक्का होना ही होना है, इसलिए तो सारी तैयारी के साथ आई थी” ये सुनते ही मानव की माँ मुस्कुराने लगती है, जबकि मीनू को आंटी की बात सुनकर दाल में कुछ काला लगता है। मीनू के चेहरे पर आए सवालों को देखते ही आंटी कहती हैं कि उन्हें देर हो रही है और उन्हें जाना होगा, और वो वहाँ से निकल जाती हैं।
उनके जाते ही मीनू जैसे ही अपनी माँ से उस आंटी के बारे में कुछ बात करने लगती है, वो ये देखकर हैरान हो जाती है कि उसकी माँ बहुत खुश है और मीनू की बात न सुनते हुए उससे कहती है कि: “मानव को लाइन पर लाने के लिए उसकी शादी ही एक चारा है। ये लड़का अब मेरी नहीं सुनता। सोचा था पहले तेरे हाथ पीले करती, मगर अब लगता है इसको ही पहले बांधना पड़ेगा, तभी इस घर में कुछ सुधर पाएगा।”
“मगर माँ, मुझे लगता है आपको इतना बड़ा फैसला लेने से पहले मानव से बात कर लेनी चाहिए” मीनू जैसे ही ऐसा कहती है, माँ का पारा हाई हो जाता है और वो उस पर चिल्लाते हुए कहती हैं: “तेरी शादी के लिए जमा किए हुए पैसे लेकर गया है वो। वो भी उस आदमी के लिए, जहाँ से मैं जानती हूँ पैसा कभी वापस नहीं आएगा। अरे किए होंगे उन्होंने बहुत एहसान उस पर, मगर इसका मतलब ये तो नहीं है न कि उसकी कीमत तेरी जिंदगी ख़राब करके चुकाएगा वो...तू चुप कर! मुझे पता है मैं क्या कर रही हूँ। मैंने फैसला ले लिया है, मानव की शादी इसी लड़की से होगी बस। मुझे अब इस बारे में कोई बात नहीं करनी।”
मीनू माँ की इस बात पर चिढ़ कर वहाँ से चली जाती है। यहाँ मानव राजू पहलवान से पैसा लेकर सीधा हॉस्पिटल पहुँचता है और सुरु के पास जाता है। सुरु मानव को जो कुछ भी हुआ उसके बारे में बताती है। मानव डॉक्टर के पास जाता है और उनसे कहता है कि उसने पैसे का इंतज़ाम कर लिया है, अब वो उनसे शास्त्री जी का बेस्ट ट्रीटमेंट करने के लिए कहता है।
मानव की ये बात सुनते ही डॉक्टर उससे कुछ पेपर्स पर साइन करवाते हैं और आगे का प्रोसीजर शुरू करने के लिए उसे शुरुआत में एक लाख रुपये जमा करने के लिए कहते हैं। सुरु ये सब देखकर हैरान होती है कि मानव डॉक्टर से किस बेस्ट ट्रीटमेंट की बात कर रहा है और वो इतनी बड़ी रकम कैसे जमा कर पाएगा। तभी मानव एक बैग से एक लाख रुपये निकालकर काउंटर में जमा करता है। जिसे देखकर सुरु की आँखें फटी की फटी रह जाती हैं। वो जहाँ अपने पापा के इलाज के लिए बहुत खुश होती है, वहीं उसकी नज़र इतनी बड़ी रकम देखकर ख़राब होने लगती है।
मानव जैसे ही सारी फॉर्मैलिटी पूरी करता है, सुरु उसके पास जाकर उस बैग में झांकती है। वो जैसे ही उस बैग को नोटों से भरा हुआ देखती है, उसकी आँखों में एक चमक आती है।
सुरु ने कभी सपने में भी इतना पैसा नहीं देखा था। जहाँ वो इस रकम के कारण अपने पापा के होने वाले इलाज के लिए बहुत खुश है, वहीं इसी रकम के कारण उसका मन डगमगाने लगता है। छोटी-मोटी चोरियाँ करके अपने शौक पूरे करने वाली सुरु क्या मानव के इस बलिदान का गलत फायदा उठाएगी या वो उस रकम पर आए अपने मोह को त्याग देगी? मानव ने राजू पहलवान जैसे आदमी से पैसा ब्याज पर लिया तो कैसे चुकाएगा वो इतनी बड़ी रकम का ब्याज? क्या वो इसे चुका भी पाएगा या नहीं? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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