सुरु जैसे ही मानव के पास रखे बैग में नोटों के बंडल देखती है उसकी नियत खराब होती है। वो मन ही मन में सोचती है:
सुरु: “पापा के इलाज में क्या ये सारा पैसा लग जाएगा? नहीं नहीं, इतना पैसा थोड़े न लगता है! मगर अगर लग गया तो? हम्म...नहीं, मुझे इन पैसों की तरफ देखना भी नहीं है, आखिर ये मेरे पापा की जान से बढ़कर नहीं है।”
ऐसा सोचते हुए सुरु वहां से थोड़ा आगे जाती है और एक बार फिर से उसके दिमाग में ये बात आती है कि आखिर मानव जैसा फटीचर लड़का इतनी बड़ी रकम कहां से लाया होगा।
सुरु: “क्या इसने चोरी की होगी? नहीं, नहीं ऐसा तो नहीं लगता है ये! तो फिर? क्या इसे बैंक से लोन मिला है? नहीं, वो कैसे हो सकता है, उसके लिए तो बहुत कुछ चाहिए होता है न...ओह...मुझे लगता है ये गरीब होने का नाटक करता है, शायद इसने ये पैसे जमा करके रखे होंगे...हाँ, मैंने देखा है इसकी बहन को...कितनी बन ठन कर रहती है। आए दिन नए ड्रेस पहन कर कॉलेज जाती है...इसका मतलब...तो क्या इसके पास जितने पैसे थे ये सारे यहाँ ले आया? नहीं, इतना पागल तो नहीं लगता है ये...ज़रूर इसके पास और भी पैसे होंगे....”
जीत: “मानव, मुझे लगता है तुझे ये पैसे इस तरह से यहां लेकर नहीं रुकना चाहिए। तू घर जा, मैं यहीं रुकता हूँ। कोई बात हुई तो मैं तुझे फोन करूंगा।”
मानव जीत को देखता है और उससे कहता है:
मानव: “नहीं यार, मुझे यहां रुकना होगा। अंकल का बहुत क्रुशियल इलाज चल रहा है, पता नहीं कब क्या ज़रूरत पड़ जाए।”
जीत: “अरे हाँ, मैं जानता हूँ भाई...इसलिए तो कह रहा हूँ तू जा, पहले इन पैसों को सेफ्टी के साथ घर पर रखकर आ, तब तक मैं यहाँ हूँ कुछ होगा तो बता दूंगा...”
वहीं दूसरी तरफ सुरु तेज़ रफ्तार से चलती हुई मानव और जीत के पास पहुँचती है और उनसे पूछती है कि डॉक्टर अब क्या कह रहे हैं। जीत ने सुरु को मानव के प्रति इतनी प्यार से बात करते पहले कभी नहीं देखा था। वो सुरु के इस रवैये को देखकर हैरान होता है। वहीं मानव सुरु के इतनी प्यार से बात करने को अपनी तरफ एक इशारा समझता है और उसे प्यार से जवाब देते हुए कहता है:
मानव: “सुरु...मैंने पहले ही कहा था तुमसे कि तुम्हें चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। मेरी डॉक्टर से बात हुई है, अंकल खतरे से बाहर हैं। अब बस डॉक्टर उनके गले का इलाज करेंगे ताकि वो जल्द से जल्द ठीक हो जाएं, तुम देखना वो बहुत जल्दी अच्छे होकर दोबारा से गाने के लिए तैयार हो जाएंगे।”
मानव उसकी हिम्मत बढ़ाने की बात करता है, जबकि सुरु को उसकी बातों में कोई इंटरेस्ट नहीं होता। जैसे ही मानव चुप होता है, तब सुरु बेकार की बातें करते हुए वहीं खड़ी रहती है। जीत जो सब कुछ नोटिस कर रहा है, उसे सुरु का नाटक करना खटकता है, जबकि मानव को सुरु से उसका बात करना अच्छा लगता है। उससे बात करते हुए मानव अचानक ही ऐसा कुछ कहता है जिसे सुनते ही सुरु और जीत शॉक्ड हो जाते हैं।
मानव और सुरु बात करते हैं, तभी मानव को जीत की कही बात याद आती है, जहाँ वो उससे कह रहा था कि उसे घर जाकर इन पैसों को हिफाज़त से रख देना चाहिए। वो ये सोचते ही उन पैसों से भरा बैग सुरु की तरफ बढ़ाते हुए उससे कहता है:
मानव: “सुरु, इसमें 4 लाख रुपये हैं! तुम इन्हें जीत के साथ अपने घर ले जाकर रख दो।”
ये सुनते ही जीत और सुरु हक्के-बक्के रह जाते हैं। जीत मानव से इशारा करते हुए कोने में आने के लिए कहता है और दांत पीसते हुए उससे बोलता है:
जीत: “तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है मानव...तुझे पता है तू क्या कर रहा है?”
मानव: “जीत, मुझे बहुत अच्छी तरह से पता है कि मैं क्या कर रहा हूँ।”
जीत: “मगर यार...ये पैसे हमने कैसे जमा किए हैं...”
मानव: “जीत....! यार ये पैसा उसके पापा के इलाज के लिए है और वो ये बात बहुत अच्छी तरह से जानती है। एक बात और...वो जो ऑपरेशन थिएटर में जिंदगी और मौत के बीच लड़ाई लड़ रहा है न! वो तेरे और मेरे लिए एक इंसान है, मगर उस लड़की के लिए वो उसका बाप है और कोई बच्चा अपने बाप की जिंदगी के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता, इतना तो समझ जा यार। अब सुरु पर इस बात को लेकर कभी डाउट मत करना दोस्त।”
मानव को सुरु पर पूरा भरोसा है, इसलिए वो जीत को ऐसा समझाकर सुरु के पास जाता है और उससे कहता है कि जीत उसे उसके घर ले जाएगा। मानव के चेहरे पर बदले हुए एक्सप्रेशंस देखकर सुरु को जीत के ऊपर डाउट होता है, मगर वो कुछ रिएक्ट नहीं करती, बल्कि वो अपनी सफाई में मानव से कहती है:
सुरु: “मानव, तुम जो कुछ भी मेरे पापा के लिए कर रहे हो उसके लिए थैंक यू, मगर मैं ये पैसे तुमसे नहीं ले सकती।”
मानव: “सुरु, ये सब तुम्हें नहीं सोचना है। तुम बस ये पैसे ले जाकर अपने घर पर रख दो।”
सुरु: “लेकिन मानव...”
मन में तो वह पैसे लेकर सुरू बहुत खुश होती है, मगर वो ये खुशी अपने चेहरे पर नहीं आने देती और मानव के सामने अपनी अच्छाई का नाटक करते हुए उसे एक बार फिर से इन पैसों को लेने के लिए मना करती है। उसके इस बार मना करने पर मानव वो पैसे जीत को देता है। वो जैसे ही उन पैसों को जीत की तरफ जाते देखती है, उसके दिल की धड़कने बढ़ने लगती है और वो मन में सोचती है:
सुरु: “ज़्यादा ओवर एक्टिंग की ज़रूरत नहीं है सुरु...तू मना कर देगी तो ये अपने दोस्त को इतना रुपया रखने को दे देगा। एक फटीचर दूसरे फटीचर को इतना पैसा देगा तो उसका क्या फायदा? कम से कम ये पैसे मेरे पास रहेंगे तो ये काम आ जाएंगे।”
सुरु ऐसा सोचते हुए मानव को जैसे ही वो पैसे जीत को देने से रोकती है, कि मानव जीत से कहता है:
मानव: “जीत, ये पकड़...इसे बहुत सेफ्टी के साथ सुरु के घर पहुंचा देना।”
ये सुनते ही एक बार फिर से सुरु की आँखों की चमक लौट आती है और वो मानव से कहती है:
सुरु: “तुम मेरी बात नहीं मानोगे मानव, मैं जानती हूँ। ठीक है, मैं जीत के साथ जाती हूँ।”
जीत को मानव का ये सब करना बिल्कुल ठीक नहीं लग रहा, मगर वो मजबूर है और चाहकर भी मानव को समझा नहीं सकता। इसलिए इस सिचुएशन पर गिव अप करते हुए वो वहां से चला जाता है।
सुरु अपने पापा को लेकर बहुत परेशान है, मगर दूसरी तरफ उसके सामने उसका सपना है। जिससे वो खुल कर जी सकती है। सुरु को लगता है मानव के पास पैसा है, इसलिए उसकी इन पैसों पर नियत डगमगा जाती है। जीत उन पैसों से भरा बैग लिए सुरु को देखता है और लगभग घूरते हुए अंदाज में उसे उसके साथ चलने के लिए कहता है।
सुरु बहुत एक्साइटेड हैं, वो जल्द से जल्द घर पहुंचना चाहती है, इसलिए वो जीत के साथ कदम से कदम मिलाकर चलती है और वो एक ही झटके में स्कूटी पर जाकर बैठ जाती है। जिसे देखकर जीत का शक पक्का होता जाता है। तभी सुरु खुद को कंट्रोल करते हुए स्कूटी से नीचे उतरती है और उससे सॉरी कहती है। जीत सुरु के साथ उसके मोहल्ले के लिए जाता है। जीत और सुरू के जाते ही मानव का फोन बजता है:
मानव: “हैलो, कौन?”
दूसरी तरफ से उसे एक जानी पहचानी आवाज़ सुनाई देती है, जिसे सुनते ही मानव को कुछ याद आता है और वो कहता है:
मानव: “जी सर, मुझे याद है आपने अगले हफ्ते के लिए कहा था न?”
नहीं मानव, सॉरी...मगर मेरे साले ने कहीं और डील कर ली है, इसलिए ये जागरण हम किसी और के साथ कर रहे हैं।” ये सुनते ही मानव का मुंह छोटा सा रह जाता है, और वो कुछ नहीं कह पाता। तभी सामने से आवाज़ आती है: मानव इस बार रहने देते हैं...अगले साल पक्का तुम्हारे साथ ही डील करेंगे। ठीक है!” मानव हाँ में सिर हिलाता है और फोन कट कर देता है। और मन ही मन में सोचता है:
मानव: “मैंने बहुत बड़ा रिस्क ले तो लिया है, मगर क्या मैं इसे पूरा कर पाऊंगा? मुझे मल्होत्रा जी के जागरण से अच्छा खासा बच जाता है, मुझे लगा था इस बार कम से कम इस जागरण से कुछ बचा लूँगा बाकी के और जगहों से कुछ जुगाड़ कर लूँगा, मगर मेरे हाथ से तो ये डील गई...अब क्या करूं? नहीं, मैं ऐसे ही हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठ सकता, मुझे कुछ तो करना ही होगा...मुझे राजू भाई का सारा पैसा सूद समेत लौटाना है।”
वहां स्कूटी पर जीत सुरु के साथ जाते हुए रास्ते में उसके चेहरे पर आई चमक को देखकर परेशान होता है और मन ही मन सोचता है:
जीत: “क्या मैं सुरु को लेकर कुछ ज़्यादा ही गलत सोच रहा हूँ? या ये सच में कोई गड़बड़ लड़की है? मुझे तो बहुत चालाक लगती है, पता नहीं इस बेवकूफ मानव को इसमें क्या नजर आता है? काश यार, मेरा शक गलत हो! मैं नहीं चाहता मानव, तुम किसी भी तरह की मुसीबत में आ फंसो यार! ये लड़कियों का चक्कर बहुत खराब होता है।”
थोड़ी ही आगे सुरु के घर से कुछ दूरी पर अचानक ही जीत की स्कूटी झटके खाकर रुक जाती है। जीत का दिमाग खराब हो जाता है। स्कूटी में पेट्रोल खत्म हो गया है। वो अपनी स्कूटी पर लात मारते हुए अपना गुस्सा निकालता है और मानव को फोन करता है। फोन में आई आवाज़ उसे ये भी याद दिलाती है कि वो अपना फोन रिचार्ज करवाना भी भूल गया है। जीत की चिढ़ का लेवल बढ़ता है, वहीं सुरु का उसके मोहल्ले के पास जीत के साथ यूं रोड पर खड़े रहना सुरु को अच्छा नहीं लगता और वो जीत से कहती है:
सुरु: “जीत, बुरा मत मानना, मगर तुम जानते हो कि ये मेरा मोहल्ला है। और यहाँ सब तुम्हें और मुझे जानते हैं। हम दोनों एक स्कूटी के पास रोड पर खड़े हैं। हमें देखकर कोई कुछ भी सोच सकता है। मैं नहीं चाहती कि मेरे घर तक ऐसी वैसी कोई बात पहुंचे, जो है ही नहीं।”
जीत: “इतना क्या सोच रही हो तुम? कोई कुछ नहीं सोचेगा, सब जानते हैं कि हम तुम्हारे पापा के साथ जागरण करते हैं।”
सुरु: “मगर फिर भी जीत प्लीज मेरी बात समझनी की कोशिश करो जीत...प्लीज।”
सुरु का चेहरा देखकर उसे उसकी मजबूरी दिखाई देती है और फिर वो कुछ सोचकर सुरु से एक मिनट और रुकने के लिए कहता है और पास ही रोड के किनारे पर पड़े एक अखबार को उस पैसों से भरे बैग में भर देता है और सुरु को बहुत ही ध्यान से घर जाने के लिए कहता है। सुरु जीत को भरोसा दिलाती है कि वो बहुत ध्यान से घर पहुँच जाएगी। यहाँ जैसे ही सुरु अपने घर की तरफ जाती है, जीत पेट्रोल पंप की तरफ अपनी स्कूटी को पैदल लेकर जाता है। अपने घर की ओर मुड़ते ही सुरु के चेहरे के भाव बदल जाते हैं और वो अपने घर जाने की बजाय दूसरी गली में मुड़ जाती है।
आखिर क्या चल रहा है सुरु के दिमाग में? क्या वो इन पैसों को लेकर मानव और जीत को कोई बड़ा झटका देगी या उसने कुछ ऐसा प्लान किया है जो सबको सरप्राइज कर देगा? आखिर क्या करेगा मानव अब राजू को भाई का पैसा चुकाने के लिए? क्या इतना सब होने पर भी सुरु के पापा की आवाज़ लौट आएगी या डेस्टिनी ने अपना कोई और ही खेल रचा हुआ है! क्या होगा इस कहानी में आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए।
No reviews available for this chapter.