​​सुरु जैसे ही अपने घर के लिए गली में जाती है, उसके चेहरे के भाव बदल जाते हैं और वह दूसरी गली में मुड़ जाती है। वह एक बहुत ही छोटी सी गली है, जहां सबके घरों की बैकसाइड है। उस पतली सी गली में चलते हुए सुरु के चेहरे पर एक्साइटमेंट है, वह मन ही मन सोचती है।​

​​सुरु: “ये तो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे इतनी जल्दी इतना पैसा देखने को मिलेगा। वैसे तो ये सारा मेरे काम का नहीं है! मगर हाँ, मुझे जो चाहिए वह इसके कुछ हिस्से से तो आ ही जाएगा।”​

​​इस बात से बेपरवाह सुरु कि मानव ने इन पैसों को कितनी मुश्किलों से जमा किया है, वह अपने सपनों में खो जाती है। वह जानती है कि उसके पापा अब खतरे से बाहर हैं। अब वह कॉलेज जा सकेगी, अपने सपनों को जी सकेगी, और अपनी हर उस सहेली को मुंह तोड़ जवाब दे पाएगी, जो उसे उसकी मजबूरी की याद दिलाती है। इसी सोच के साथ आगे बढ़ते हुए सुरु जैसे ही अपना अगला कदम बढ़ाती है, उसके सामने अचानक ही एक दरवाजा खुलता है और कोई उसे अंदर की तरफ खींचता है। “पागल हो गई हो क्या दीदी! कहाँ जा रही हो?”​

आदि अचानक ही सुरु को अपने घर के पिछले दरवाजे से अंदर खींचता है। बुरी तरह से डरी हुई सुरु आदि को घूरते हुए देखती है और उससे कहती है।​

​​सुरु: “ये क्या बत्तमीजी है आदि? अगर मैं गिर जाती तो?”​

अपनी दीदी को गुस्से में देखकर आदि मासूम सा मुंह बनाता है और उसका हाथ पकड़ कर दोबारा से गली की तरफ लाकर एक जगह इशारा करते हुए कहता है। “बस गिरती ही न! वहाँ देखो उस कोने में...वो आवारा लड़के दिख रहे हैं तुम्हे!” आदि के ऐसा कहने पर सुरु गली के उस कोने में देखती है, जहाँ आदि की नन्ही उंगलियाँ इशारा कर रही हैं। वहाँ सुरु को कुछ लड़के दिखाई देते हैं, जिनके हाथों में सिगरेट और शराब है। सुरु उन्हें देख ही रही होती है कि आदि अपनी बात पूरी करते हुए कहता है। अगर मैं तुम्हे नहीं खींचता तो वो खींच लेते...ये ठीक होता क्या?”​

​​आदि की बात सुनकर सुरु उसे गले से लगाकर सॉरी कहती है। दोनों घर के पिछले दरवाजे से अंदर जाते हैं। तब आदि की नजर सुरु के हाथ में उस बैग पर पड़ती है, जिसमें एक मोटी रकम है। “ये क्या है? मेरे लिए लाई हो?” सुरु उसके साथ घर के अंदर जाते हुए अपनी माँ को ढूंढती है। जब उसे वह नहीं दिखती, तब वह आदि की बात काटते हुए उससे पूछती है।​

​​सुरु: “मम्मी कहाँ हैं आदि?”​

​​आदि की भौंहे चढ़ी हुई हैं और वह सड़ा सा मुंह बनाते हुए अपनी दीदी की तरफ देखता है, मगर कुछ नहीं कहता। तब सुरु दोबारा से उससे पूछती है ​

​​सुरु: “आदि! बाबू दीदी पापा से मिलने अस्पताल गई थी, वहीं से वापस आते समय उनकी कुछ दवाइयाँ और अपने स्कूल के लिए प्रोजेक्ट का सामान लाई है। तुम्हारे लिए इसमें कुछ नहीं हैं। देख, अगली बार मैं जब भी बाहर जाऊँगी, तुम्हारे लिए कुछ न कुछ ज़रूर लेकर आऊँगी! अब बताओ, मम्मी कहाँ गई हैं?”​

​​आदि को सुरु की बात पर भरोसा नहीं होता। वह जैसे ही उस बैग में झाँकने की कोशिश करता है, तो सुरु उस बैग को अपनी तरफ दबाते हुए उससे ऐसा करने के लिए मना करती है। तब आदि उससे पूछता है कि अगर उस बैग में दवाइयाँ और प्रोजेक्ट का सामान है, तो वह उसे छुपा क्यों रही है? सुरु के पास आदि की इस बात का कोई जवाब नहीं होता। वह आदि को इग्नोर करते हुए जैसे ही अंदर कमरे में जाने लगती है, कि आदि उससे कहता है। “मम्मी पापा के लिए कुछ सामान लेकर अस्पताल गईं हैं। बोलकर गईं हैं, वह जल्दी आ जाएँगी।”​

​ ये सुनते ही सुरु के चेहरे पर संतुष्टि के भाव आते हैं और वह कमरे में जाते हुए रुक जाती है और फिर एक बार पलट कर आदि की तरफ आती है। आदि मुंह घुमाए दूसरी ओर देख रहा है, कि तभी सुरु उसे पीछे से गले लगाकर कहती है।​

​​सुरु: “आदि! दीदी को इस बार एकदम अलग प्रोजेक्ट बनाना है। जो सबसे अलग होना चाहिए! मैं सोच रही थी कि मैं पहले उसे बना लेती हूँ, फिर सबको सरप्राइज दूँगी! ​

​​सुरु ऐसा कहकर उस बैग के अंदर हाथ डालती है। तभी आदि, जिसकी मासूम सी आँखों में आँसू भरे हुए हैं, वह अपनी दीदी का हाथ रोकते हुए उनसे कहता है कि उसने सुना है सरप्राइज बहुत अच्छे होते हैं। इसलिए वह अपना प्रोजेक्ट बनाने के बाद ही उसे दिखाए। सुरु आदि के नैचर को जानते हुए ऐसा करती है। आदि के ऐसा कहते ही सुरु घर के सारे दरवाजे अच्छी तरह से बंद करके, आदि को टीवी देखने के लिए कहती है और खुद अंदर कमरे में जाती है। यहाँ मीनू की माँ, जिन्होंने मानव से छुपाकर कुछ पैसे जमा किए थे, वह घर के हर कोने से पैसों को निकाल कर गिनती हैं। जिसे देखकर मीनू उनसे पूछती है कि आखिर वह कर क्या रही हैं! इस पर माँ उससे कहती हैं कि उन्होंने इमरजेंसी के लिए कुछ रुपये जमा करके रखे थे, सोचा था जब उसकी शादी होगी और भगवान न करे, किसी चीज़ की ज़रूरत पड़ी तो ये पैसे काम आएँगे।​

​​उनके ऐसा कहने पर मीनू का मुंह बन जाता है और वह उनसे पूछती है कि वह फिर ऐसी क्या इमरजेंसी है कि वह इन पैसों को निकाल कर बैठी हैं? तब माँ उसे प्यार से समझाते हुए कहती हैं कि उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मानव ऐसा कुछ करेगा। इसलिए वह अब उसकी शादी करवाने के लिए तैयारियाँ कर रही हैं। यह सुनते ही मीनू के होश उड़ जाते हैं और वह अपनी माँ से इस बात के लिए बहस करती है। मगर माँ उसकी एक नहीं सुनती और वह इधर-उधर फोन लगाते हुए, रोके के लिए सही मुहूर्त का पता करती हैं।​

​​मीनू अपनी माँ के दर्द को समझ रही है, मगर वह मानव के मन में सुरु के प्यार को भी समझती है। वह ऐसी सिचुएशन में आ फंसी है कि उसे कुछ समझ नहीं आता कि अब उसे क्या करना चाहिए, कि तभी उसके फोन पर मानव का फोन आता है। जिसे देखकर वह चौंक जाती है और गहरी सोच में डूब जाती है। ​

​​मानव: “मीनू, मेरा फोन नहीं उठा रही है। घर पर सब ठीक होगा न! हाँ, मेरी बहन बहुत समझदार है! मगर माँ का गुस्सा...कहीं घर पर कोई ज़्यादा प्रॉब्लम तो नहीं हो गई होगी? क्या करूँ...क्या मुझे घर जाना चाहिए या मीनू के फोन का इंतजार करना चाहिए? क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा है।”​

​​मानव हॉस्पिटल में बैठा ऐसा सोच रहा होता है कि तभी उसे जीत का फोन आता है और वह उसे सारी घटना के बारे में बताता है। तब मानव उस पर चिल्लाते हुए कहता है कि अगर उसकी स्कूटी में पेट्रोल नहीं था और सुरु का घर पास में ही था तो उसे सुरु के साथ पैदल उसके घर जाना चाहिए था। उसे पैसों से भरे बैग के साथ अकेले क्यों भेज दिया? अगर कोई अनहोनी हो गई तो इसका जिम्मेदार कौन होगा? ये सुनकर जीत उसे समझाने की कोशिश करता है कि अकेले जाने का फैसला सुरु का था, वह उसे जाने नहीं देना चाहता था। मानव जीत की किसी बात को सुनने के लिए तैयार नहीं है, और वह गुस्से में आकर फोन रख देता है।​

​​एक तरफ मीनू का फोन न उठाना पहले से ही मानव को परेशान कर रहा था, ऊपर से जीत का मानव को ये बताना कि उसने सुरु को पैसों से भरे बैग के साथ अकेले ही घर जाने के लिए भेज दिया है, मानव के दिमाग को हिला कर रख देता है। तभी डॉक्टर मानव को बुलाते हैं और शास्त्री जी की हालत का अपडेट देते हुए कहते हैं कि वह खतरे से बाहर हैं, मगर अभी भी उनकी हालत बहुत नाज़ुक है। डॉक्टरों की टीम लगातार उन पर नज़र बनाए हुए है। उनका ज़रूरी इलाज चल रहा है। मानव यह सुनते ही डॉक्टर का धन्यवाद करता है। डॉक्टर के जाते ही एक नर्स उसे शास्त्री जी की दवाइयों की एक लंबी लिस्ट पकड़ाती है। मानव इस समय बहुत रिलैक्स है कि तभी उसे मीनू का फोन आता है।​

​​मानव: "क्या यार दी...कहाँ हो आप? आप मेरा फोन नहीं उठाओ, ऐसा कभी नहीं हुआ...सच-सच कहना वहाँ क्या चल रहा है?"​

मीनू मानव के मुंह से ये सुनकर हैरान हो जाती है और हड़बड़ाते हुए उससे पलटकर सवाल करती है, "क्या मतलब है क्या चल रहा है यहाँ?"​

​​मानव: "अरे, मेरा मतलब है कि एक तो आपने मेरा फोन नहीं उठाया, ऊपर से इतनी देर बाद किया! घर पर सब ठीक तो है न? माँ कैसे हैं? बहुत नाराज़ होंगी न मुझ पर?"​

​​ये सुनते ही मीनू की सांस में सांस आती है और वह उससे कहती है, "ओह...वो तो मैं कुछ काम कर रही थी...तेरा फोन देखा ही नहीं! मम्मी...हाँ, वो ठीक है! बस थोड़ा नाराज़ तो हैं...मगर कोई नहीं, सब ठीक हो जाएगा! तू बता, वहाँ क्या हो रहा है? शास्त्री अंकल कैसे हैं? क्या कह रहे हैं डॉक्टर? वह ठीक तो हो जाएँगे न?”​

​​मानव मीनू को सारी बात बताता है। उधर खुद को एक कमरे में बंद करके सुरु उन पैसों के बैग को खोलकर सबसे पहले उसकी खुशबू सूँघती है और फिर खुद को एक करोड़पति लड़की समझते हुए नोटों की गड्डियों से हवा करती है और कैट वॉक करते हुए  खुद को शीशे में देखकर कहती है।​

​​सुरु: "किस्मत को हमेशा खराब नहीं कहना चाहिए डार्लिंग...कभी-कभी नसीब देर से खुलता है, मगर जब खुलता है तो पैसों की बारिश होती है, बारिश!"​

​​सुरु इस समय होश में नहीं है कि तभी उसके दिमाग में एक आइडिया आता है और वह उस बैग में से कुछ गड्डियाँ निकालकर अपने स्कूल के बैग की अलग-अलग जेब में भर लेती है। बाकी का पैसा अपने घर के मंदिर के पीछे छुपा देती है और तैयार होकर आदि को ध्यान रखने के लिए कहती है।​

​​सुरु: "आदि, मैं दिया के घर पढ़ने के लिए जा रही हूँ। मैंने सारे दरवाजे बंद कर दिए हैं। तू किसी के भी आने पर दरवाजा नहीं खोलना! देख, थोड़ी देर में मम्मी आ जाएँगी और मैं भी बस कुछ ही देर में वापस आ जाऊँगी। तब तक तू ये कार्टून देख! ठीक है?"​

​​आदि एक समझदार बच्चा है जो अक्सर घर पर अकेला रहता है। उसे पता है किसके लिए दरवाजा खोलते हैं और किसके लिए नहीं। इसलिए सुरु बेफिक्र होकर जैसे ही घर निकलती है, कि मोहल्ले की गली में बैठी कुछ आंटियाँ उसका रास्ता रोककर उसके पापा की स्थिति के बारे में पूछताछ करती हैं। थोड़ी देर तक जब वे लोग आपस में बातें करने लगती हैं, तब सुरु मौका देखते ही वहाँ से निकलते हुए कहती है।​

​​सुरु: "आंटी, मम्मी हॉस्पिटल गईं हैं और मैं कुछ काम से जा रही हूँ। आप मम्मी के आने पर उनसे पापा के बारे में पूछ सकते हैं।"​

 उसके ऐसा कहने पर सामने बैठी आंटियाँ हाँ में सिर हिलाती हैं। और जैसे ही सुरु वहाँ से जाती है, वह उसके बारे में बातें करना शुरू करती हैं। सुरु जानती थी कि उसके निकलते ही वे लोग उसके बारे में बातें करेंगी, इसलिए वह जल्दी ही एक दूसरी गली की तरफ मुड़कर उनकी आँखों से ओझल हो जाती है। अपने लंबे-लंबे कदमों से चलते हुए सुरु एक के बाद दूसरी और दूसरी के बाद तीसरी गली में पहुँचती है। उसके माथे पर पसीना है, जैसे वह बुरी तरह से थक गई है, मगर इसके साथ ही उसकी आँखों में चमक भी है, जैसे आज उसे वह हासिल होगा जिसका वह हमेशा से सपना देखती आई है। सुरु अपनी रफ्तार बढ़ाते हुए आगे चलती जाती है, कि तभी वहीं जीत की नजर सुरु पर पड़ती है। वह उसे आवाज लगाता है, मगर सुरु किसी और ही दुनिया में खोई हुई चलती चली जा रही है, इसलिए वह उसकी आवाज नहीं सुन पाती। जीत की स्कूटी पेट्रोल पंप पर खड़ी है, मगर वहाँ कुछ काम चलने के कारण अभी पेट्रोल की सप्लाई बंद कर दी गई है। धूप में बिना पेट्रोल की स्कूटी और फोन में बिना बैलेंस के जीत इस समय खुद को दुनिया के सबसे मजबूर लोगों की कैटेगरी में काउंट करता है। ऊपर से सुरु का दिखना उसे मानव की कही हुई बातों को याद दिलाता है। तब वह स्कूटी किनारे लगाकर सुरु के पीछे दौड़ता है।​

​​आखिर क्या करने निकली है 12वीं में पढ़ने वाली एक छोटी सी लड़की नोटों से भरे इस बैग के साथ? क्या जीत सुरु को रोक लेगा या वह उस तह तक पहुँच जाएगी, जिसे सुरु सबसे छुपाकर रखना चाह रही है? आखिर यहाँ चल क्या रहा है, जानने के लिए पढ़ते रहिए।​

 

Continue to next

No reviews available for this chapter.