जीत सुरु को आवाज़ लगाता है मगर अपनी ही धुन में मग्न सुरु चुपचाप तेज़ रफ़्तार के साथ आगे बढ़ती जाती है। उसे इस तरह से जाते हुए देख जीत को मानव के कहे हुए कड़े शब्द याद आते हैं और ये भी कि वो जब अपनी सफाई में कुछ कहना चाह रहा था, तब उसने उसकी एक भी बात नहीं सुनी थी और फोन कट कर दिया था।
जीत सुरु के पास जाकर उसकी मानव से बात करवाना चाहता है और मानव को ये आश्वस्त करवाना चाहता है कि वो एक बहुत अच्छा दोस्त है। सिचुएशन ने उसका साथ नहीं दिया जबकि वो अपनी ज़िम्मेदारी ईमानदारी के साथ निभा रहा था। इसी सोच के साथ जीत भी सुरु के पीछे-पीछे चल देता है। तभी जीत की नज़र सुरु के स्कूल बैग पर पड़ती है। वो जानता है कि सुरु के घर वालों ने पैसों की कमी के कारण उसे कभी किसी ट्यूशन में नहीं डाला और तो और सुरु के स्कूल का टाइम भी खत्म हो गया है।
शास्त्री जी थोड़ा कंजर्वेटिव स्वभाव के हैं, इसलिए वो सुरु को अकेले कहीं आने-जाने नहीं देते। अब ये सारी बातें जीत के मन में सुरु को लेकर थोड़ा शक पैदा करती हैं। खुद को मानव की नज़र में सही साबित करने निकला जीत अब सुरु के पीछे ये जानने चल देता है कि आखिर वो जा कहाँ रही है। एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले को कवर करते हुए ये दोनों बहुत दूर तक निकल आते हैं। तभी सुरु को जीत उसके पीछे है, इसका पता चल जाता है। उसके दिल की धड़कनें बढ़ने लगती हैं और वो अब समझ नहीं पाती कि इस सिचुएशन से कैसे निकले।
जीत अभी भी उससे कुछ दूरी बनाकर उसकी रफ़्तार से अपनी रफ़्तार मिलाकर चलता चला जा रहा है। यहाँ अस्पताल में मानव जैसे ही डॉक्टर से बात करके उन दवाओं को लेने जाता है, कि सुरु की माँ वहां आ जाती हैं। उन्हें देखकर मानव रुक जाता है और उन्हें एक बैठाते हुए पूछता है कि वो कैसे हैं! सुरु की माँ को मानव हमेशा से बहुत पसंद रहा है, ऊपर से उसका इतना केरिंग नेचर सबको पसंद आता है। वो मुस्कुराते हुए मानव को देखती हैं और उसके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहती हैं कि जिसके पास मानव जैसा बेटा हो, तो वो माँ कैसे दुखी हो सकती है।
वो शास्त्री जी के बारे में पूछती हैं। मानव उन्हें शास्त्री जी की हेल्थ अपडेट देते हुए बताता है जिसे सुनते ही माँ की आँखों में आंसू आ जाते हैं और वो धीरे से होठों को हिलाते हुए मानव से पूछती हैं कि क्या वो कभी गा पाएंगे? इस पर मानव खिलते हुए चेहरे के साथ उनसे कहता है:
मानव: बिल्कुल आंटी! वो पहले की तरह गायेंगे और करोल बाग के शास्त्री जी फिर से करोल बाग में अपनी भजन मंडली की संध्या करेंगे। वैसे भी उनका ठीक होना तो मेरे लिए भी ज़रूरी है न!
मानव के इस मजाक को जैसे ही माँ समझती हैं, उनके चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ जाती है। तब वो धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहती हैं कि मानव जो शास्त्री जी के लिए कर रहा है, वो उसे कभी नहीं भूलेंगी। दोनों आपस में बातें करते हैं।
यहाँ मीनू अपने भाई मानव से बात करने के बाद बहुत पछतावे में है। उसे लगता है कि उसे मानव को बता देना चाहिए था कि उसकी माँ ने उसके लिए एक लड़की का रिश्ता पक्का कर दिया है। वहाँ मीनू की माँ जो अपनी होने वाली बहु के रोके की तैयारी में लगी हैं, वो लड़की के घरवालों तक ये बात पहुँचाने के लिए शुद्ध देसी घी से बनी मिठाई उन आंटी के घर देकर आती हैं, जो उस लड़की का रिश्ता लाई थीं।
मिठाई देते हुए वो उन आंटी से कहती हैं कि उन्हें वो बच्ची फोटो में ही पसंद आ गई थी और जैसे कि उन्होंने बताया था कि वो लोग मानव को अच्छी तरह से जानते हैं, तो उन्हें इस बारे में दोबारा सोचने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी, इसलिए वो सीधा इस रिश्ते के लिए मुँह मीठा करने चली आई। तब वो आंटी से उस लड़की का नाम पूछती हैं। “देविका” ये नाम जैसे ही वो आंटी मानव की मम्मी को बताती हैं, उनका चेहरा खिल उठता है और वो तब मन ही मन में ये नाम दोहराते हुए कहती हैं जैसा रूप है वैसा ही नाम भी है “देविका”!
सामने बैठी आंटी मानव की मम्मी के चेहरे पर आई खुशी देखकर कहती हैं कि वो मानव को बहुत पसंद करती हैं, इसलिए उन्होंने उस हीरे जैसे बच्चे के लिए हीरे जैसी बच्ची को ही चुना है। इतना कहकर वो जैसे ही उनके घर से बाहर निकलती हैं, वह देविका के घर फोन लगाती हैं और इस रिश्ते के बारे में वहाँ बताती हैं।
यहाँ सुरु की धड़कनें बढ़ी हुई हैं, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि वो आखिर जीत से कैसे पीछा छुड़वाए। वो ऐसा सोच ही रही होती है कि उसे सामने से जैन समाज का एक बड़ा सा जुलूस आते हुए दिखता है। तब वो बिना समय गंवाए उस जुलूस का सहारा लेते हुए अपने कदमों की रफ़्तार को बढ़ाती है और एक ही झटके में एक पतली गली के अंदर जाकर दूसरी तरफ निकल आती है।
ये सब इतनी जल्दी होता है कि जीत कुछ समझ पाता कि वो सुरु को अपनी नज़रों से सामने खोता हुआ पाता है। इधर-उधर पागलों की तरह सुरु को देखता हुआ जीत अपना सर पकड़ लेता है और मन ही मन में सोचता है पता नहीं क्यों मेरा दिल कह रहा है कि कुछ तो गलत होने वाला है। ये लड़की क्या चाहती है? इसने मुझे इग्नोर क्यों किया? कहाँ जा रही है? क्या इसके बैग में पैसे हैं? या ये सब...नहीं यार, मैं हर बार एक ही बात कैसे सोच सकता हूँ।
इस मानव को भी कैसे समझाऊ, ये तो पागल है, कुछ सुनता ही नहीं है। जीत फिर भी हार नहीं मानता। अब जब उसे सुरु कहीं दिखाई नहीं देती, तब वो उसका नाम पुकारते हुए इधर से उधर गलियों में ढूँढता है। वहीं सुरु खुद को एक कोने में छुपा लेती है। जैसे ही जीत की आवाज़ का सुनाई देना बंद होते हुए महसूस करती है, आगे बढ़ती है। थोड़ी ही देर में उसे ये एहसास हो जाता है कि जीत उससे बहुत दूर चला गया है। अब सुरु एक बार फिर से रफ़्तार पकड़ती है और स्लम एरिया में पहुँचती है।
यहाँ घरों में काम करने वाली बाइयाँ रहती हैं, जिनके पति अमूमन शराब पीकर या तो घर में सो रहे होते हैं या वो किसी के साथ झगड़ रहे होते हैं। बुरी तरह से फैली गंदगी के बीच खुद को बचाती हुई सुरु अपने मुँह को स्कार्फ से कवर करती है और आगे बढ़ती है। ऐसा लगता है वहाँ कि हर नज़र...बच्चा-बूढ़ा और जवान, हर कोई सुरु को ऊपर से नीचे तक देख रहा है। सुरु ने इन नज़रों को पहले भी देखा है। वो पहले भी इन गालियों में फैली गंदगी को देख चुकी है। ये ही कारण है कि उसे आज यहाँ आना कुछ अजीब नहीं लगा।
वो आगे बढ़ती जाती है और जल्दी ही एक घर के दरवाजे पर दस्तक देती है। अंदर से एक लड़की बाहर आती है, जिसे सुरु बहुत अच्छी तरह से पहचानती है। सुरु उसे देखते ही उस घर के अंदर जाती है, जहाँ एक छोटे से कमरे में सिगरेट के भरे हुए धुएँ के कारण उसे खाँसी आती है। खांसते हुए सुरु कमरे में पहुँचती है, जहाँ बहुत बड़ी स्क्रीन लगी है और बड़े-बड़े स्पीकर लगे हैं। इस छोटे से कमरे में जितने लड़के हैं, लगभग उतनी ही लड़कियाँ। कमरे के बीचों-बीच एक बड़ी सी टेबल है, सब उस टेबल के इर्द-गिर्द बैठे हैं और एक के बाद एक बोली लगा रहे हैं।
सुरु : “दस हजार”
दरअसल, सुरु को हमेशा से ही क्रिकेट में दिलचस्पी रही है। मगर उसके पापा उसे जागरण लाइन में ही आगे बढ़ाना चाहते थे। उसके पैदा होने पर उन्होंने उसका नाम स्वर्मालिका रखा था क्योंकि उनका सपना था कि उनकी बेटी एक दिन बहुत बड़ी सिंगर बनेगी। मगर सुरु को संगीत कभी समझ ही नहीं आया। उसे रुचि थी तो बस क्रिकेट में। मगर ये बात शास्त्री जी को कभी पसंद नहीं आई और तब से उसे भजन मंडली में माँ दुर्गा का रोल निभाने का काम दे दिया गया। यहाँ बैठी सुरु जब अपने सामने लगी इतनी बड़ी स्क्रीन पर क्रिकेट को देखती है, तो उसके चेहरे पर अलग ही तेज़ होता है। इसी कॉन्फिडेंस के साथ यहाँ इस कमरे में बैठी सुरु इस बात के लिए श्योर है कि वो यहाँ जितने की भी बैटिंग करेगी, वो जीत कर ही जाएगी।
दिया...हाँ ये वहीं दिया है, जो हमेशा सुरु का साथ देती है। वो सुरु के नॉलेज को जानती है और बस ये ही कारण है कि ये दोनों अच्छी दोस्त हैं। दिया ने ही सुरु को यहाँ के बारे में बताया था। वो यहाँ अक्सर सट्टा लगाने के लिए आती है और ज़्यादातर यहाँ से जीत कर ही जाती है। पिछली बार वो जब यहाँ आई थी, तो सबसे ज़्यादा पैसा दिया ने ही कमाया था। वो पहली बार था जब सुरु ने ये सब अपनी आँखों से देखा था।
सट्टा लगाना या बैटिंग करना ये एक कानूनन अपराध है, जिसकी सजा के साथ पेनल्टी का भी प्रावधान है, जिससे सुरु और यहाँ इस कमरे में बैठा हर शख्स वाकिफ है। तो ऐसा करने के लिए सिर्फ पैसा नहीं बल्कि जिगर भी चाहिए। सुरु किसी भी तरह से अमीर होने के किसी भी मौके को अपने हाथ से नहीं निकलने देना चाहती है, इसलिए वो आज यहाँ इतना बड़ा रिस्क लेने आई है।
वहां जैसे ही मानव की माँ देविका के रिश्ते के लिए हाँ कहती हैं, ये खबर देविका के घर तक पहुँच जाती है। देविका के घर वाले ये सुनकर बहुत खुश होते हैं। कॉलेज के सेकंड ईयर में पढ़ रही देविका, बचपन से ही मानव को पसंद करती आई है, उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन मानव के साथ ही वो शादी के बंधन में बंध जाएगी। उस तक जैसे ही ये खबर पहुँचती है, वो अपने बचपन में लौट आती है, जहाँ उसे याद आता है कि वो कैसे मानव के घर की ठीक पीछे वाली गली में रहते थे।
उन दोनों के घरों की छतें आपस में जुड़ी हुई थी। मानव को देखने के बहाने देविका अक्सर अपने छत पर टहलने आती थी। दिल्ली की भीषण गर्मी हो या हड्डी गला देने वाली ठंड, इन बातों से देविका को कभी कोई फर्क नहीं पड़ा। मानव के लिए उसके दिल में जो प्यार था, उससे ये सब बहुत छोटी बातें थीं। हालाँकि वो अपने प्यार के बारे में कभी मानव से कुछ कह नहीं पाई, क्योंकि वो तब बहुत छोटे थे, मगर उसका दिल जानता था कि वो कभी-न-कभी उसे अपने दिल की बात ज़रूर कहेगी।
इसी सोच में उसके दिन और महीने निकलते गए, मगर वो मौका कभी आया ही नहीं कि वो उसे अपने प्यार के बारे में बता पाती। उसके पापा प्राइवेट कंपनी में काम करते थे, और नई जॉब के चलते अपने परिवार के साथ नॉर्थ दिल्ली में जाकर शिफ्ट हो गए थे।
देविका का हर कोई दीवाना है, मगर वो मानव को आज भी उतना ही चाहती है जितना वो उसे बचपन में चाहती थी। मानव के परिवार की तरफ से हाँ आते ही अपनी सुध-बुध खो बैठती है और मानव के साथ एक नई जिंदगी बिताने के सपने देखने लगती है। यहाँ अस्पताल में सुरु की माँ के साथ बात कर रहे मानव को अचानक ही एक फोन आता है, जिसे सुनकर उसका चेहरा खिल उठता है। वो मन ही मन भगवान का धन्यवाद करता है और उस फोन पर ही सारी जानकारी लेता है। यहाँ मानव बहुत ज़रूरी डिटेल्स लिख रहा होता है कि वहाँ जीत एक बार फिर से मानव को किसी का फोन मांगकर फोन करता है, क्योंकि उसे अभी भी अपना फोन रिचार्ज करवाने का मौका नहीं मिला था।
जब मानव का बहुत देर तक फोन नहीं लगता, तब जीत गुस्से में आकर सीधा अस्पताल की तरफ जाता है। यहाँ कमरे में बैठी सुरु के साथ कुछ ऐसी शुरुआत होती है कि वहाँ बैठा हर कोई उसे घूरता है, और वहीं सुरु के चेहरे का रंग बदल जाता है। अब वो समझ नहीं पाती कि उसे क्या करना चाहिए। क्या हुआ होगा सुरु के साथ, क्या वो सट्टा लगाते ही हार जाती है, या फिर वो जीत जाती है, जो सबको चौका देता है! या फिर सुरु ने कोई ऐसी गलती कर दी है कि हर कोई उसे घूरने लगता है! वो जहाँ बैठी है, वहाँ के लिए खेले खिलाए लगते हैं। क्या होगा सुरु का अब जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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