​​सुरु जैसे ही उस कमरे में बैठी दस हज़ार की बोली लगाती है, वो जीत जाती है। और वहां बैठा हर कोई उसे देखने लगता है। पहली बार में इस तरह से सुरु का जीतना उसे हैरान कर जाता है और उसका आत्मविश्वास और बढ़ जाता है। वो इसके डबल पैसे लगाकर खेलती है। दिया उसे रोकते हुए कहती है की इतनी जल्दी डबल अमाउन्ट के साथ खेलना ठीक नहीं है। मगर सुरु कुछ नहीं सुनती और 20 हज़ार की बेटिंग करती है। किस्मत से वो एक बार फिर से जीत जाती है। अब सुरु की ख़ुशी और कॉन्फिडेन्स का कोई ठिकाना ही नहीं होता। वो दिया को गले लगाकर उसका धन्यवाद करती है, जबकि दिया के चेहरे पर इस समय कोई भाव नहीं होता।​

​​वहीं दूसरी तरफ मानव को एक के बाद एक दूसरी अच्छी खबर मिलती है, जिसे सुनने के बाद उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव आते हैं। उसे देखते ही सुरु की माँ उससे कहती हैं कि वो कब से यहाँ अस्पताल में शास्त्री जी के साथ है, उसे अब घर जाना आना चाहिए। उनकी बात सुनकर जैसे ही मानव उनसे कुछ कहने लगता है, वो उससे दोबारा कहती हैं कि वो उसकी अब कोई बात नहीं सुनेंगी। वो पहले ही उसके परिवार के लिए बहुत कुछ कर चुका है, अब उसे खुद पर भी ध्यान देना चाहिए और अपने काम पर भी। ​

​​उनके ऐसा बार-बार कहने पर मानव अब मना नहीं कर पाता और उन्हें वो दवा की लिस्ट दिखाते हुए कहता है: ​

​​मानव: ठीक है आंटी, मैं बस अंकल की ये दवा लेकर डॉक्टर को देते हुए जाता हूँ और जीत को आपके पास आने के लिए कहता हूँ। आपको कोई भी ज़रूरत हो तो प्लीज आप मुझे तुरंत बुला लीजिएगा। ​

​​सुरु की माँ उससे हाँ में सिर हिलाकर जाने के लिए कहती हैं। मानव वहां से निकलते ही जीत को फ़ोन लगाता है।  उसके फ़ोन उठाते ही मानव उससे पूछता है: ​

​​मानव: जीत!!!!! कहाँ है यार?​

​​जीत उसे बताता है कि वो हॉस्पिटल की ही तरफ आ रहा है। ये सुनते ही मानव उससे कहता है: ​

​​मानव: वाह, ये तो बढ़िया...मैं तुझे यही कहने जा रहा था कि तू जल्दी से यहाँ आ जा!​

​​मानव उससे कुछ और कहता है कि नेटवर्क में इशू होने की वजह से उसे जीत की कोई बात सुनाई नहीं देती। यहाँ देविका के पास मानव के बचपन की एक तस्वीर है जो उसने शिफ्ट होते समय किसी तरह से चुरा ली थी। वो उसकी तस्वीर को देखकर उससे कहती है: ​

​​देविका: तुम मेरे हो ऐसा सपना मैं बचपन में देखती थी मानव...मेरा यकीन मानो मैं...​

​​देविका अपने घर की छत पर खड़ी मानव की तस्वीर देखकर ऐसा सोच ही रही होती है कि उसे एक जानी पहचानी आवाज़ आती है। जिसे सुनते ही वो पलटकर पीछे देखती है और हैरान हो जाती है। ​

​​देविका: तुम? तुम क्यों आए? मेरा मतलब है...तुम कब आए?”​

​​देविका के सामने उसके कॉलेज का एक दोस्त शिवम खड़ा है, जो उसे अजीब सी नजरों से देखता है। देविका को उसका साथ कभी पसंद नहीं आता। शिवम उसका पड़ोसी भी है और इसी वजह से वो बेधड़क कभी भी उसके घर किसी भी बहाने से पहुँच जाता है। हालांकि, देविका न अपने घर वालों से शिवम के लिए कई बार मना किया है, मगर वो बहुत स्मार्ट है। वो देविका के घरवालों को अपने जॉली नेचर से एनर्टैन करता है और उनका भरोसा जीत लेता है। इसी वजह से जब भी उसका मन करता है, वो देविका से मिलने के लिए आता है। देविका के पूछने पर कि वो वहां क्यों आया है, शिवम अपनी भौंहें चढ़ाता और आँखों को मटकाता हुए उससे कहता है: मम्मी ने कोई स्पेशल डिश बनाई थी! तुम्हारे घर पर देने के लिए कहा...तो मैं देने के लिए आ गया! क्या कर रही थी तुम?​

​​अपनी बात पूरी होते ही शिवम देविका के प्रति इंटेरेस्ट दिखाता हुए उससे उसके बारे में पूछता है। सामने खड़ी देविका, जिसको शिवम या उसकी बातों में कोई इंटेरेस्ट नहीं है, वो चुपचाप उसे देखती है मगर उसकी बात का कोई जवाब नहीं देती। दरअसल, वो हमेशा उसे परेशान करने के बहाने ढूंढता है, इसलिए इस तरह की हरकतें करता रहता है। थोड़ी देर तक जब देविका की तरफ से कोई जवाब नहीं आता और शिवम भी कभी उसे तो कभी उसकी छत के चारों कोनों को देखता है, तब झल्लाते होते हुए देविका शिवम से कहती है: ​

​​देविका : ओह अच्छा! तो तुम नहीं जानते तुम्हारे घर क्या बना है! बस तुम्हारी मम्मी जो कहती है तुम वो अच्छे बच्चों की तरह मान जाते हो! है न?​

​​इस पर शिवम शर्माते हुए उसकी तरफ देखता है और हाँ में सिर हिलाता है। उसकी इस हरकत पर देविका को और ज़्यादा गुस्सा आता है, मगर वो उसे कंट्रोल करते हुए कहती है: ​

​​देविका: मगर पिछली बार याद है तुम्हें...जब तुमने ऐसा कहा था तो तुम्हारे घर पर हुए कलेश की आवाजें मोहल्ले के हर कोने तक पहुँच गई थीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि आज भी तुम्हारे घर पर ऐसा कुछ होने की संभावना है?​

​​देविका की ये बात शिवम को अच्छी नहीं लगती। इस पर वो मुंह बनाते हुए उससे कहता है, "क्या मतलब?" ​

​​देविका: अब इसमें मतलब क्या है...सिम्पल सी बात है...तुम्हारी मम्मी को पता है न कि तुम यहाँ हमारे घर उनके हाथ का बना खाना देने आए हो?​

​​शिवम देविका की आँखों में आँखें डालते हुए उससे कहता है: हाँ, वो जानती है...और ये जो तुम पुरानी बात कर रही हो...उस समय मम्मी ने मेरी पसंद का खाना नहीं बनाया था और जो बनाया था, वो मुझे पसंद नहीं था। इसलिए...​

​​ये सुनते ही देविका के चेहरे पर स्माइल आ जाती है और मन ही मन में कुछ बड़बड़ करने लगती है, जिसे देखकर शिवम दांत पीसते हुए उससे कहता है: "किसी का ऐसे मजाक नहीं बनाना चाहिए देवू! मैं कितनी प्यार से तुम्हारे लिए...मेरा मतलब है तुम्हारी फॅमिली के लिए इतना अच्छा खाना लाया था! ठीक है...अगर तुम्हें पसंद नहीं है तो आज के बाद नहीं लाऊंगा!"​

​​इतना कहकर वो जैसे ही वहां से जाने लगता है, उसकी नज़र देविका के हाथ में उस तस्वीर पर पड़ती है जिसे वो उससे कब से छुपा रही थी। देविका जैसे ही देखती है कि शिवम उसके हाथों में मानव की तस्वीर को बहुत ध्यान से देखने की कोशिश कर रहा है, तब वो तस्वीर दूसरे हाथ में लेकर उसे वहां से जाने के लिए कहती है।  शिवम रुककर देविका की तरफ देखता है और उससे कहता है, "काम नहीं था देविका!" तभी वो अपनी बात को सही करते हुए उससे कहती है कि उसका मतलब था कि वो जो कुछ भी उसके घरवालों को देने आया था, उन्हें देकर जा सकता है।​

​​शिवम एक अजीब प्राणी है, जिसे देखकर समझ पाना मुश्किल है कि आखिर उसके दिल और दिमाग पर चल क्या रहा है। देविका खुद उसको अभी तक ठीक से पहचान नहीं पाई है और यही एक वजह है कि वो उससे दूर रहना पसंद करती है। यहाँ सुरु एक बार फिर से जीत जाती है, और तभी क्रिकेट समाप्ति की घोषणा होती है। सुरु आज बहुत खुश है। वो दिया को देखते हुए उससे धन्यवाद कहती है। तब दिया, जिसके चेहरे पर बड़ी सी स्माइल है, वो भी सुरु को गले लगाते हुए कहती है, "सुरु मुझे पता है तुझे पैसों की कितनी ज़रूरत है और सच कहूं तो मैं तेरे लिए बहुत खुश हूँ।" ऐसा कहते हुए दिया एकदम शांत हो जाती है। तब सुरु उससे कहती है: ​

​​सुरु: क्या हुआ दिया?​

​​देख, सुरु, मुझे गलत मत समझना...मगर हम सब जानते हैं कि तेरे पापा इस समय हॉस्पिटल में हैं और तुझे इस समय पैसों की बहुत ज़रूरत भी है, मगर जब मैंने तेरे हाथ में वो 10 हज़ार देखे थे, तो मैं सच में बहुत हैरान हो गई थी...तुझे यहाँ आने के लिए इतने पैसों का इंतजाम कैसे किया?” सुरु इस बात का जवाब देने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी, मगर जैसे ही दिया उससे ऐसा पूछती है, सुरु के चेहरे का रंग उड़ जाता है और वो दिया की बात को काटते हुए कहती है: ​

​​सुरु: यार...देख, मैंने ये कैसे मैनेज किया ये सब ज़रूरी नहीं है, मगर तू ये देख न कि मेरा नॉलेज  कितना काम आया और मैं यहाँ जितने पैसे लेकर आई थी, उसके 4 गुना लेकर जा रही हूँ!​

​​दिया उसकी बात सुनकर मुस्कुराती है, मगर कन्विन्स नहीं होती। इतना कहकर सुरु अपने स्कूल बैग में पैसे भरती है और वहां से निकल जाती है। रास्ते में सुरु को कुछ लोग घूरते हैं। वो वैसे तो हमेशा लोगों को इग्नोर करती है, मगर आज उसे लगता है जैसे सारी दुनिया उसकी तरफ ही देख रही है। एक छोटी सी स्कूल जाने वाली लड़की, जिसने सट्टे में हज़ारों रुपये जीते हैं, वो इन्हें अपने स्कूल बैग में भरकर अकेले तंग गालियों से चलती हुई अपने घर की ओर लौट रही है। ये बात अपने आप में बहुत डरावनी लगती है।​

​​सुरु बहुत तेज़ रफ्तार के साथ अपने कदमों को बढ़ाते हुए अपने घर के पास पहुँचती है। गली की आंटियां अभी भी वहीं बैठी हैं। इस बार सुरु उन्हें अनदेखा करते हुए सीधा अपने घर पर जाती है, जहाँ जाकर उसे पता चलता है कि उसकी मम्मी अभी तक नहीं आई हैं और वो राहत की सांस लेती है। आदि, सुरु से उसके पापा के बारे में पूछता है, तब सुरु उन्हें याद करते हुए कहती है: ​

​​सुरु: आदि...पापा अभी ठीक हैं और देखना, वो बहुत जल्दी हमारे साथ होंगे।​

​​तुम्हें कैसे पता? ये सुनते ही सुरु उसके पास बैठकर उसे समझाते हुए कहती है: ​

​​सुरु: वो ऐसे...कि जो लोग कभी किसी का बुरा नहीं करते, किसी का दिल नहीं दुखाते, भगवान हमेशा उनका और उनके परिवार का ध्यान रखते हैं। हमारे पापा ने कभी किसी के साथ कुछ भी गलत नहीं किया है आदि...तुम देखना, वो जल्दी से वापस आ जाएंगे और सब कुछ फिर से पहले की तरह चलने लगेगा...​

​​सुरु के ऐसा कहते ही आदि के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ पड़ती है। सुरु अपनी बात कहने के बाद उसे मन ही मन में दोहराते हुए अंदर कमरे में जाती है: ​

​​सुरु: सब कुछ पहले की तरह चलेगा...नहीं, सुरु, अब कुछ भी पहले की तरह नहीं चलेगा! अब सब बदल जाएगा।​

​​ऐसा कहते हुए वो कमरे का दरवाजा बंद करती है और उन पैसों को छूती है, जो उसने सट्टे में कमाए हैं। तभी उसके घर की डोर बेल बजती है  जिसे सुनते ही सुरु चौंक जाती है और वो जल्दी से उन पैसों को समेटती है।  सुरु के चेहरे पर जहाँ खुशी है, वहीं एक डर भी कि आखिर वो इस बारे में अपने घर में कैसे और क्या बताएगी...दरवाजे तक पहुँचते हुए उसके मन में ढेरों बातें चल रही होती हैं कि तभी एक झटके में वो जैसे ही दरवाजा खोलती है, चौंक जाती है। उसके ठीक सामने मानव खड़ा है। वो उसे देखकर उससे पूछती है:​

​​सुरु: तुम...तुम यहाँ?​

​​उसके पूछने पर मानव उसे बताता है कि उसके पापा की दवाइयों के लिए उसे उन पैसों की ज़रूरत है। सुरु ये सुनते ही मानव से अंदर आने के लिए कहती है। मानव जैसे ही अंदर आकर उसके पीछे चलता है, वो उसे आदि के साथ बैठने के लिए कहती है। उसके ऐसा कहने पर मानव वहीं आदि के पास बैठ जाता है। टीवी में चल रही कार्टून की आवाज बहुत तेज है। मानव जैसे ही उसे कम करने के लिए रीमोट उठाता है, आदि बिना उसे देखे उसके हाथ से रीमोट लेकर जोर से हँसता है जैसे उसने टीवी में कोई बहुत फनी चीज़ देख ली हो।​

​​वहां कमरे में जैसे ही सुरु अंदर जाती है, वो आदि के बैग में पैसे भरकर बाहर ला रही होती है कि उसका बैलेंस बिगड़ जाता है और वो अपने स्कूल बैग से उलझ कर गिर जाती है, जिससे उसके बैग में भरे पैसे बाहर गिर जाते हैं। वहीं बाहर बैठे मानव को जैसे ही सुरु के गिरने की आवाज आती है, वो भागकर अंदर जाता है। वो जैसे ही अंदर जाता है, हैरान हो जाता है। वहीं पैसों के ढेर में गिरी सुरु जैसे ही मानव को देखते ही सुरु के पसीने छूटने लगते हैं।​

​​सुरु के पास मानव के पैसों के अलावा वो रकम भी है, जो उसने सट्टे में जीती है। मानव ने जो रुपये उसे दिए थे, वो 500 रुपये की बंडल थे, जबकि इस जीते हुए पैसों में हर तरह के नोट हैं। सुरु इस समय एक ऐसी उलझन में फंस गई है, जहाँ से उसका निकलना नामुमकिन लग रहा है। क्या मानव सुरु के ऊपर किसी तरह का शक करेगा और उसका प्यार उसके लिए डगमगाएगा? या वो सुरु से सच जानने की कोशिश करेगा कि आखिर उसके पास इतने पैसे आए कहाँ से और अगर उसके पास इतने रुपये थे तो उसने अपने पापा के इलाज के लिए क्यों नहीं दिए? क्या जवाब देगी सुरु इन सवालों का? जानने के लिए पढ़ते रहिये।​

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