मानव जैसे ही सुरु के पास आता है, वो हैरान हो जाता है। वहीं ज़मीन पर पड़ी सुरु, बहुत ही फुर्ती से अपने बैग से गिरे पैसों को सामने के बेड के नीचे खिसका देती है। वो जैसे ही ऐसा करती है कि मानव की नज़र उस पर पड़ती है और वो मानव को देखते ही डर जाती है। मानव जैसे ही उस बैग की बेल्ट को सुरु के पैरों से हटाने की कोशिश करता है, तभी सुरु उस पर भड़कते हुए कहती है:
सुरु: मेरे पास आने की कोशिश भी मत करना!
यह बात मानव को बहुत अटपटी लगती है और वो दो कदम दूर जाकर सुरु से कहता है:
मानव: ये क्या कह रही हो सुरु? मैं तो बस तुम्हारे पैरों से उलझी इस बेल्ट को...
सुरु: हाँ, पता है, रहने दो तुम...
इतना कहते हुए सुरु बहुत समझदारी के साथ उस बैग को वहीं ज़मीन से सटा कर रख देती है और खड़े होकर मानव का बैग उसके हाथों में थमाते हुए कहती है:
सुरु: ये लो, तुम्हारे पैसे!
सुरु के चेहरे के बदले भाव मानव को यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि वो हो न हो, उससे कुछ छुपा रही है। वो जैसे ही उससे कुछ कहने लगता है, तभी सुरु अपनी बात पूरी करते हुए उससे कहती है:
सुरु: देखो, मानव, तुम मेरे पापा के लिए बहुत कुछ कर चुके हो, मगर अब हमें तुम्हारे एहसान की ज़रूरत नहीं है। मैं सब कुछ संभाल सकती हूँ और संभाल लूंगी।
सुरु मानव को बिल्कुल भी पसंद नहीं करती। यह बात मानव शुरू से जानता है, मगर पैसों के कारण आई परेशानी से निकलना किसी के लिए भी साधारण बात नहीं हो सकती। मानव जानता है उसने खुद कितनी मुश्किलों से उसके पापा के लिए यह रकम का इंतजाम किया है। ऐसे में सुरु के चेहरे पर इतना कॉन्फिडेन्स मानव को हिला देता है और वो अब चुप नहीं रहता और उससे कहता है:
मानव: सुरु...सब ठीक है न?
सुरु जो लगातार अपनी बात कहती जाती है, वो मानव की इस बात को सुन नहीं पाती। तब मानव एक बार फिर से उसे रोकते हुए पूछता है कि वो ठीक तो है न! इस पर सुरु उससे नज़रें छुपाते हुए कहती है:
सुरु: हाँ, सब ठीक है मानव, ये लो पैसे! और जाओ यहाँ से!
यह सुनकर मानव उससे कहता है:
मानव: कमाल है सुरु...मैं जब से आया हूँ तुम सिर्फ पैसों की बात कर रही हो...तुमने अपने पापा के बारे में नहीं पूछा! कैसे हो वो? सर्जरी कैसी रही? डॉक्टर क्या कह रहे हैं?
ऐसा कहते हुए वो उसके चेहरे के भावों को नज़रअंदाज करता है। सुरु यह सुनते ही आत्मग्लानि में चली जाती है और मन ही मन में सोचती है:
सुरु: ये कह तो सही रहा है, मैं न जाने ऐसे किन कामों में उलझी हूँ कि अपने पापा के बारे में सोच तक नहीं रही। हे भगवान, ये क्या हो रहा है! कहीं इसे मेरे ऊपर शक तो नहीं हो जाएगा न? कहीं यह मेरे घरवालों से तो कुछ नहीं कह देगा?
इसी सोच में डूबे हुए जब सुरु कुछ कहने लगती है, तब मानव उससे कहता है:
मानव: रहने दो, इतना सोचने की ज़रूरत नहीं है सुरु...मैं ही बता देता हूँ कि अब अंकल ठीक हैं। डॉक्टर ने उनकी सर्जरी कर दी है और अब जल्द ही उन्हें जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाएगा। आंटी अभी वहीं हैं अंकल के पास!
सुरु यह सुनते ही कहती है:
सुरु: मम्मी वहीं हैं?
मानव: हाँ, वो वहीं हैं। मैंने जीत से कहा है उसके पास जाने के लिए। मैं यहाँ बिल भरने के लिए पैसे लेने आया था और तुमसे यह भी कहने आया था कि अंकल को अब कभी भी होश आ सकता है, तुम चाहो तो आदि को लेकर हॉस्पिटल जा सकती हो। उन्हें तुम सबको देखकर अच्छा लगेगा।
मानव की बात सुनकर सुरु हाँ में सर हिलाती है और वो उस बैग को मानव की तरफ बढ़ाती है, मगर इस बार वो कुछ नहीं कहती। हालांकि वो अभी भी किसी बात की जल्दी में लग रही है, जिसे देखते हुए अब मानव को दोबारा उससे कुछ कहना या पूछना अच्छा नहीं लगता और वो उन रुपयों में से कुछ पैसे निकालकर वहां से जाने लगता है। तब सुरु उसे वो सारे पैसे ले जाने के लिए कहती है, मगर अब वो उसकी एक नहीं सुनता और वहां से कुछ पैसों के साथ चला जाता है। मानव के जाते ही सुरु राहत की साँस लेती है और अंदर कमरे में जाकर उन पैसों को इकट्ठा करते हुए अपने बैग में भरते हुए मन ही मन में सोचती है:
सुरु: बाल-बाल बच गई सुरु! अगर ये इन पैसों को देख लेता तो पक्का पापा को बता देता। पापा! ओह शिट, मुझे हॉस्पिटल जाना चाहिए!
ऐसा सोचते हुए सुरु आदि को लेकर अस्पताल के लिए निकलती है। वहां दूसरी ओर मानव की माँ, जो देविका के घर वालों को अपनी तरफ से हाँ कह चुकी है, वो देविका के परिवार से एक फॉर्मल हाँ आने का इंतजार करती है। तभी रिश्ता पक्का करवाने वाली आंटी मानव के घर आती है और उसकी माँ को देविका के घरवालों के साथ हुई चैट पढ़वाते हुए कहती है: लो जी बहनजी! अब तो इस रिश्ते पर मुहर भी लग गई! मेरा यकीन मानो बहन जी, मैंने अपनी जिंदगी का सबसे अच्छा रिश्ता करवाया आपके बेटे के साथ...अरे वो सब छोड़िए, कहाँ है हमारे दुल्हे राजा, जल्दी से बुलवाइए!
यह सुनते ही जैसे मानव की माँ का मुंह बन जाता है और वो उनकी बात काटते हुए कहती है: अरे, होगा यहीं कहीं...आप उसकी छोड़िए और मुझे बताईए, कैसे क्या करना होगा? मानव की माँ के चेहरे की खुशी साफ़ बता रही है कि वो इस रिश्ते से बहुत खुश हैं। उन्हें देखते हुए आंटी उनसे कहती हैं: अरे, आपको कुछ नहीं करना है! जो करना है, वो लड़की वाले करेंगे। आप तो बस शगुन के नाम का लिफाफा तैयार रखिए। पास खड़ी मीनू ये सब तमाशा होते देखती है और अपनी माँ को इशारा करके अंदर कमरे में बुलाती है। माँ की नज़र मीनू पर पड़ते हुए, वो वहां से उठकर जैसे ही कमरे में आती है, मीनू उनसे मानव का नाम लेकर जैसे ही कुछ कहने लगती है कि माँ उसे चुप करवाते हुए कहती हैं: मीनू, तुझे नहीं पता है, मैं इस समय कितने मानसिक तनाव में हूँ। मानव जैसा लड़का मेरे हाथ से निकल गया है। वो अपनी जिंदगी पूरी तरह से बर्बाद कर ले, इससे अच्छा है मैं उसकी डोर किसी के हाथ में थमा दूं, ताकि वो ये सब उल्टी-सीधी हरकतें करना बंद कर दे। समझ आया तुझे?
मीनू यह सुनते ही जवाब देती है: मगर माँ, उसकी शादी हो रही है और वो इस बात से बेखबर है। अब ये भी तो छोटी बात नहीं है। आज नहीं तो कल, उसे ये बताना तो होगा ही! तो ये सब करने से पहले क्यों नहीं? जिसके जवाब में माँ उसे कहती है: बिल्कुल नहीं! तू जानती है, अगर उसे ये सब पता चला तो वो इस रिश्ते के लिए कभी नहीं मानेगा! माँ की बात सुनते ही मीनू फिर से कहती है: तो क्या गारंटी है कि वो इस रोके के बाद इस रिश्ते के लिए मान जाएगा? जिसे सुनते ही माँ उसे कहती है: समाज का दबाव सब कुछ करवा देता है बेटा!
मीनू माँ की बात सुनकर बिल्कुल भी खुश नहीं है। वो किसी भी तरह से मानव को इस रिश्ते से बचाना चाहती है। मगर माँ उसकी बात नहीं सुनती और वहाँ से जाने लगती हैं, कि तभी मीनू बड़बड़ाते हुए कहती है कि अब वो ये सब नहीं बर्दाश्त कर सकती, इसलिए मानव को फोन करके सब बता देगी। यह सुनते ही माँ पलट कर आती हैं और उससे कहती हैं: मीनू! तुम मानव से बड़ी हो! और हमारी घर की परिस्थिति को बेहतर समझती भी हो। तुम्हारे पापा के जाने के बाद, मैंने तुम दोनों को कैसे पाला है, ये सिर्फ मैं जानती हूँ। मैंने बहुत मुश्किलों से तुम्हारी शादी के लिए थोड़ा बहुत पैसा जमा किया था। कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरा मानव उस शास्त्री के लिए अपनी बहन की जिंदगी दाव पर लगा देगा। तुम्हें पता है, बेटा, कहते हैं बेटी हाथ से जाती है तो बदनामी होती है, और अगर बेटा हाथ से जाता है तो इंसान की जिंदगी जीने का कोई मकसद ही नहीं बचता।
माँ यह सब कहते हुए बहुत भावुक हो जाती हैं, जिन्हें देखते हुए मीनू की आँखें भी भर आती हैं। एक तरफ उसकी माँ हैं और दूसरी तरफ उसका भाई। तब वो मानव के बचाव में आखिरी बार कहती है: मगर मम्मी, मानव ने कभी कोई गलती नहीं की...अगर नासमझी में वो कुछ ऐसा कर बैठा है तो उसे बात करके सुलझाया जा सकता है। इसका ये मतलब तो बिल्कुल नहीं है न कि हम उसे सबक सिखाने के लिए, उसकी मर्जी के बिना किसी से भी उसकी शादी करवा दें!
माँ मीनू की बात पर सहमति दिखाते हुए उससे कहती हैं कि वो जानती हैं कि मानव एक अच्छा बच्चा है, उसने उन्हें कभी परेशान नहीं किया, मगर उसने पहली बार ही इतनी बड़ी गलती की है जिसे माफ नहीं किया जा सकता। और उम्र के जिस पड़ाव में वो है, उसके लिए शादी ही एक ऐसा सोल्यूशन है जिससे वो जिम्मेदारियों को समझ पाएगा और फिर कभी इस तरह से कोई गलती नहीं करेगा। हालाँकि मीनू माँ की बात से अभी भी सहमत नहीं है, मगर वो उनकी बात सुनने के बाद मानव को फोन नहीं लगाती। माँ मीनू के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए उससे बाहर आंटी के लिए चाय और मिठाई लाने के लिए कहती हैं।
यहाँ जीत हॉस्पिटल पहुँचता है और उसे पता चलता है कि मानव यहाँ नहीं है। वो सुरु की माँ से पूछता है कि अगर उन्हें कोई ज़रूरत है तो वो उसे बता सकती हैं। वो जीत का धन्यवाद करते हुए कहती हैं कि वो और मानव जो कुछ भी उनके लिए कर रहे हैं, उसके लिए धन्यवाद बहुत ही छोटा शब्द है। जिसे सुनकर जीत उनके गले लगाते हुए कहता है कि दिल्ली शहर की अगर कोई बात उसे अच्छी लगती है तो वो ये कि यहाँ भले ही विचारों में मतभेद होता है, मगर दिल बहुत पास होते हैं। और यही कारण है कि वो सब एक परिवार की तरह रहते हैं। जब परिवार पर कोई मुसीबत आती है, तो वो सब उसका डटकर मुकाबला करते हैं, कोई भी मुड़कर पीछे नहीं देखता है। वो जो कुछ भी शास्त्री जी के लिए कर रहे हैं, उसमें उन्हें अपने खुद के पापा की फीलिंग आ रही है और वो ये सब अपनी खुद की खुशी के लिए कर रहे हैं।
यह सुनते ही सुरु की माँ की आँखों से आंसू बहने लगते हैं, और वो जीत को आशीर्वाद देते हुए कहती हैं कि वो हमेशा खुश रहे और स्वस्थ रहे। जीत मुस्कुराकर उन्हें देखता है और उनसे कहता है कि उसे कुछ काल्स करनी हैं, इसलिए वो आस-पास ही है। इतना कहकर वो वहाँ से थोड़ी दूरी पर जाकर जैसे ही मानव को फोन लगाने लगता है, वो अपने सामने आते हुए सुरु को देखता है और देखता ही रहता है। सुरु बहुत ही नॉर्मल ढंग से अपने भाई के साथ बातें करते हुए हॉस्पिटल में आती है, जिसे देखते ही जीत का माथा चढ़ जाता है और वो मन ही मन में सोचता है:
जीत: ऐसा कैसे हो सकता है...यह तो ऐसे बिहैव कर रही है जैसे सब कुछ एकदम ठीक है! मैं नहीं मान सकता। इसकी कोई तो ऐसी कहानी है जो ये सबसे छुपा रही है। मुझे मानव से इस बारे में बात करनी ही होगी।
जीत लगातार सुरु को देखते हुए ऐसा सोच ही रहा होता है कि तभी सुरु की नज़र उस पर पड़ती है और वो आदि को आगे जाने के लिए कहती है और खुद जीत के पास जाकर उससे पूछती है:
सुरु: क्या हुआ जीत? कुछ कहना चाहते हो?
जीत हाँ में सिर हिलाता है और फिर नहीं में हिलाते हुए उसे मना करता है। तब सुरु उसकी आँखों के आगे अपने हाथों की उंगलियों को हिलाते हुए दिखाती है और पूछती है:
सुरु: जीत? मैंने कहा, तुम मुझे ऐसे देख रहे हो जैसे तुमने कोई भूत देख लिया हो! कुछ पूछना चाहते हो तो पूछ सकते हो!
जीत इस बात पर सीधे नहीं में सिर हिलाते हुए उसे मना कर देता है और कहता है कि उसे उससे कोई बात नहीं करनी है। जीत के दो बार मना करने के बाद, सुरु अपने बालों में हाथ फिराते हुए मुंह घुमाती है और आगे की ओर चलने लगती है। सुरु की बदली चाल देखकर जीत का शक यकीन में बदलने लगता है कि कुछ तो गड़बड़ है।
यहाँ मानव कुछ दिन बाद जब अपने घर आता है, उसकी माँ उससे बात नहीं करती। मगर मीनू उसे देखते ही गले से लगा कर खूब रोती है। मानव मीनू को देखकर भावुक हो जाता है और उससे पूछता है कि क्या हुआ है! मीनू अपनी भावनाओं को दबाने की कोशिश करती है, मगर तभी कुछ ऐसा हो जाता है कि मीनू बेहोश होकर गिर जाती है। जिसे देखते ही मानव की चीख निकल जाती है। मीनू एकदम सही थी। अब जब से उसकी माँ से उसकी बात हुई है, वह बहुत हल्का महसूस कर रही थी। हालाँकि वो मानव से सब कुछ कहना चाहती थी, मगर उसे समझ आ चुका था कि उसका चुप रहना ही ठीक रहेगा। अचानक ऐसा क्या हुआ कि वो बेहोश हो गई? क्या वह किसी गंभीर बीमारी की चपेट में है, या फिर ये किसी तरह की मानसिक पीड़ा का असर है? या फिर मीनू शायद ये सब अपने भाई का अटेन्शन पाने के लिए ऐसा कर रही है? आखिर ये माजरा है क्या, जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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