​​मानव जैसे ही मीनू को गले लगाता है, मीनू बेहोश होकर गिर जाती है। जिसे देखकर डर के मारे मानव की चीख निकल जाती है। मानव की माँ दौड़कर आती हैं और मीनू को देखते ही उनके भी होश उड़ जाते हैं। वो मानव से तुरंत ही डॉक्टर को बुलाने के लिए कहती हैं। मीनू का चेकअप करने के बाद डॉक्टर मानव से कहते हैं कि वो बहुत स्ट्रेस में हैं, जिस वजह से उसका शुगर लेवल एकदम ड्रॉप हो गया और वो बेहोश होकर गिर गई।​

​​माँ और मानव को ये बात डरा देती है। माँ जानती है कि मीनू मानव को लेकर स्ट्रेस में हैं, वहीं मानव इस बात के लिए खुद को दोषी ठहराता है। डॉक्टर मानव से मीनू का ध्यान रखने के लिए कहते हैं। वो कहते हैं कि मीनू की उम्र में ये सब नहीं होना चाहिए! अगर अगली बार ऐसा हुआ तो मामला सीरियस भी हो सकता है। वो कुछ दवा देकर मानव से कहते हैं कि अगले हफ्ते चेकअप के लिए उसे मीनू को उनके क्लिनिक ले जाना होगा।​

​​मानव हाँ में सर हिलाता है, तब डॉक्टर वहां से जाते हैं। उनके जाने के बाद मानव के घर में तनाव का माहौल है। मीनू बिस्तर पर आँख बंद करके लेटी है, जिसके होश में आने का माँ और मानव बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। वहीं माँ की एक नज़र मानव पर है, जिसमें ढेरों सवाल नजर आ रहे हैं। मानव अपनी माँ से नज़र चुराता हुआ मीनू के बिस्तर पर उसके साथ बैठता है और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बहुत प्यार से कहता है:​

​​मानव: मुझे माफ कर देना दीदी...मेरी वजह से आज आपका ये हाल हुआ है। मैं इस दुनिया का सबसे बुरा इंसान हूँ।​

​​ये सुनते ही पास खड़ी माँ की आँखों से आँसू की एक बूँद टपकती है। तभी मीनू की आँख खुलती है। वो ठीक अपने सामने मानव को बैठे देख मुस्कुराने की कोशिश करती है, जिसे देखकर मानव भी अपने चेहरे पर एक बनावटी मुस्कान लेकर आता है। मीनू इशारे से उसे बैठाने के लिए कहती है, तब मानव झट से मीनू को उठाकर बैठाता है। और अब वो उसके सामने हाथ जोड़कर कहता है:​

​​मानव: दीदी...सॉरी!​

​​मीनू, जिसे कुछ आइडिया नहीं है कि हुआ क्या है, वो उससे पूछती है कि उसे क्या हुआ था। तब जैसे ही मानव उसे बताने जाता है कि डॉक्टर ने क्या कहा है, कि तभी माँ बीच में आ जाती हैं और मीनू से कहती हैं, "कुछ नहीं बेटा! तुम बेवजह इतना काम करती रहती हो! बस उसी थकान के कारण तुम बेहोश हो गई थी। डॉक्टर ने कहा है ठीक से खाओगी पियोगी तो सब ठीक हो जाएगा। कोई घबराने वाली बात नहीं है।"​

​​मीनू माँ की बात मानना चाहती है, मगर पता नहीं क्यों उसे ऐसा लग रहा है कि माँ और मानव उसे सही बात नहीं बता रहे हैं। ऐसा सोचते हुए वो जैसे ही किसी गहरी सोच में जाती है, कि तभी माँ मानव को इशारा करती है और मानव माँ से हंसकर कहता है:​

​​मानव: दीदी की कोई गलती नहीं है। आप इतना काम करवाती हो मेरी बहन से कि वो बिचारी काम ही करती रहती है। वो इतनी बिजी रहती है कि उसे आपसे शिकायत करने का मौका भी नहीं मिलता।​

​​ये सुनकर माँ मुँह बनाकर बैठ जाती है। मीनू, जैसे ही माँ को बच्चों की तरह मुँह बनाए देखती है, उसको हंसी आ जाती है और तब वो मानव से कहती है: "क्या है मानव? बेवजह मम्मी को क्यों परेशान कर रहा है?" मानव और माँ जैसे ही मीनू के चेहरे पर हंसी देखते हैं, तो उनके चेहरे भी खिल उठते है। और तीनों हंसकर बातें करने लगते हैं। तभी पड़ोस वाली वो आंटी धनधनाते उनके घर में घुसी चली आती है। उन्हें देखते हैं माँ और मीनू के होश उड़ जाते हैं। वो दोनों एक दूसरे को देखती हैं, मगर उन आंटी की नज़र मानव पर पड़ती है। वो मानव को देखते ही, उसे बधाई देते हुए कहती हैं, "बहुत-बहुत बधाई हो बेटा! मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूँ...वैसे तो मैं जानती ही थी कि तुम..."​

​​मानव उन्हें बीच में ही टोकते हुए कहता है:​

​​मानव: बधाई? किस चीज़ की आंटी?​

​​आंटी जैसे ही बोलती चली जाती हैं, तब मीनू माँ को इशारा करके उन्हें चुप रहने के लिए कहती है। माँ बहुत ही समझदारी से आंटी की बात को बीच में ही काटते हुए कहती हैं, "अरे तुम्हें किसने बताया कि मीनू की तबियत ठीक नहीं है?" माँ की बात सुनते ही आंटी को याद आता है कि वो यहाँ मीनू का हाल ही तो पूछने आई थी। तब वो अपनी बात बीच में ही रोकते हुए मीनू से पूछती है: "बेटा, कैसा लग रहा है अब?"​

​​जिसके जवाब में मीनू कहती है, "आंटी, मैं ठीक हूँ...थैंक यू!" आंटी की इनक्वायरी जारी रहती है और वह फिर कहती है, "मगर तू तो एकदम ठीक थी? तो तुझे अचानक से क्या हो गया कि डॉक्टर को बुलाना पड़ गया?" पास बैठा मानव अभी तक यही सोच रहा है कि आखिर मीनू से मिलने आई आंटी उसे किस चीज़ की बधाई दे रही थी! वहीं माँ मानव से कान में धीरे से कहती है, "उसे जाने के लिए कहो, इन्हें मीनू से कुछ सवाल करने हैं...तुम्हारे सामने नहीं कर पाएंगी।"​

​​ये सुनते ही मानव समझ जाता है और वो अपनी दुकान पर जा रहा है, ऐसा कहकर वहाँ से निकल जाता है। उसके जाते ही माँ राहत की साँस लेती है। वहाँ मीनू भी मानव को जाता देख आंटी की बात में कोई इंटरेस्ट नहीं लेती और नींद के बहाने से लेट जाती है। आंटी को उनकी बातों का जवाब नहीं मिलता, तब वो जैसे ही पलटकर मानव की तरफ देखती हैं, अब वहाँ मानव नहीं है। ये देखते ही उनका मुँह बन जाता है और वो माँ की तरफ देखते हुए कहती हैं, "ये क्या हो रहा है बहन जी? मीनू अचानक बीमार हो गई...मानव का कुछ अता-पता ही नहीं है। ऐसा लगता है शास्त्री जी का पूरा ठेका उसने ही उठा लिया है।"​

​​मीनू, जो बहाने से लेट गई थी, आंटी के मुँह से ये सुनते ही उसका खून खौल उठता है। और वो इधर-उधर करवट लेने लगती है। वहीं उनकी इस बात से माँ को बहुत दुख होता है। आंटी को आज मानव के घर सब कुछ बहुत अजीब लगता है, मगर वो इस पर ज्यादा कुछ रिएक्ट नहीं करती और वहाँ से सड़ा हुआ सा मुँह बना कर निकल जाती हैं। वहां अस्पताल में जीत सुरु को लेकर बहुत दुविधा में है, तभी सुरु आदि के साथ अपने पापा से मिलने के लिए पहुँचती है। किस्मत से सुरु के पापा अभी होश में हैं और वो सुरु और आदि को देखते ही खुश हो जाते हैं और उन्हें गले लगाने के लिए अपने पास बुलाते हैं।​

​​सुरु उनके पास जाते ही रोने लगती है। तब उसके पापा उसके कान के पास बहुत धीरे से बोलते हैं, "चिंता मत करो बेटा, मैं बिल्कुल ठीक हूँ।" अपने पापा की आवाज़ सुनते ही सुरु की आँखों से आँसू बहने लगते हैं। तब डॉक्टर आकर उन्हें जनरल वार्ड में शिफ्ट करने के लिए कहते हैं। जीत उनको शिफ्ट करवाते हुए मन में सोचता है:​

​​जीत: मेरी मानव से बात नहीं हो पा रही है। मुझे लगता है, मुझे सीधे-सीधे सुरु से ही पूछ लेना चाहिए कि आखिर वो वहाँ उन गलियों में सुनसान रास्तों पर चलते हुए कहाँ जा रही थी।​

​​ऐसा सोचते हुए जैसे ही जीत सुरु की तरफ बढ़ता है, सुरु जो कि अपनी माँ के साथ खड़ी थी, वो जीत को अपने पास आता देख अपनी माँ से थोड़ी दूरी पर जाने लगती है। जाते हुए उसके मन में घबराहट है और वो खुद से कहती है:​

​​सुरु: लगता है ये मुझसे पूछताछ करने के मूड में है। मगर मैं इसे क्या बताऊँगी? पता नहीं ये भी कहाँ आवारा की तरह घूमता रहता है, जो इसे मैं ही मिली थी उन गलियों में दिखने के लिए। हे मातारानी बचा लो! यहाँ मम्मी के सामने क्या कहूँगी इसे? कैसे रोकूँ!​

​​सुरु खुद के साथ बातें कर रही होती है कि तभी जीत उसके सामने आकर खड़ा हो जाता है और उसे देखते हुए पूछता है:​

​​जीत: क्या तुम खुद से बात कर रही हो?​

​​सकपकाते हुए सुरु उसे मना करती है और कहती है:​

​​सुरु: पागल हो क्या! मैं ऐसा क्यों करूंगी?​

​​जीत जानता है कि सुरु झूठ बोल रही है और कुछ छुपा भी रही है, इसलिए वो उससे कहता है:​

​​जीत: ठीक है अगर तुम खुद से बातें करने में बिजी नहीं हो तो मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।​

​​सुरु अपना माथा चढ़ाते हुए उससे कहती है:​

​​सुरु बोलो क्या बात है?​

​​जीत जैसे ही उससे पूछने लगता है कि वो राम गली से निकल कर गली नंबर 7, उसके बाद 12 से 13 फिर उसके भी आगे कहाँ जा रही थी, कि सुरु उसकी बात बीच में काटते हुए कहती है:​

​​सुरु: तुम्हारा दिमाग तो ठीक है न जीत! मैं यहाँ हॉस्पिटल में किसी शौक से नहीं आई हूँ। यहाँ मेरे पापा की हालत देखो और तुम्हें लगता है कि मैं यहाँ वहाँ घूमती हूँ।​

​​​​जीत को सुरु से इस बात की उम्मीद नहीं थी, जिस पर सफाई देते हुए वो उससे कहता है:​

​​जीत: मगर सुरु मेरा कहने का वो मतलब नहीं था!​

​​सुरु जानती है कि जीत उस पर शक कर रहा है, मगर वो किसी भी तरह से इस बात से बाहर निकलना चाहती है, इसलिए वो बहुत ही समझदारी के साथ इस बात को घुमा कर उल्टा जीत पर ही डाल देती है और उसके बाद उसकी एक भी नहीं सुनती और उसके सामने से निकलते हुए कहती है:​

​​सुरु: तुम्हारा जो भी मतलब था मुझे उससे कोई भी मतलब नहीं है, मगर तुम इतना समझ लो कि आज जो हरकत तुमने की है, वो मैं दुबारा बर्दाश्त नहीं करूंगी।​

​​सुरु को बेवजह गुस्से में देख जीत का दिमाग खराब हो जाता है, अब उससे रुका नहीं जाता और वो मानव को एक बार फिर से फोन लगाता है। वहाँ मानव आज दुकान में बहुत दिनों बाद पहुंचा है। इतने दिन से बंद पड़ी इस पुरानी खस्ता दुकान में जगह-जगह दीमक लगी है। वो जैसे ही अंदर आता है, उसे दीमक द्वारा खाई गई लकड़ी से उठा धुआँ नजर आता है। वो तुरंत ही अपना मुँह बंद करता है और एक कपड़ा लेकर सफाई में लग जाता है। उसके आते ही कुछ लोग उसकी दुकान में आते हैं, जिन्हें देखकर मानव मुँह बनाता है। वो सब दुकान में एक साथ अंदर आते हैं और शास्त्री जी के बारे में पूछताछ करते हैं।​

​​ये सभी लोग शास्त्री जी के मंडली में काम करने वाले लोग हैं, जिनमें से कुछ लोग अस्पताल गए तो थे, मगर किसी कारण वश उनकी मुलाकात शास्त्री जी से नहीं हो पाई। तब मानव उन्हें समझाते हुए कहता है कि शास्त्री जी ठीक हैं और बहुत जल्द ही वो उन सबके साथ होंगे। ये सुनते ही सब वहाँ से राहत की साँस लेकर एक-एक करके जाते हैं। सबके जाने के बाद मानव फिर से अपनी दुकान को व्यवस्थित करने में बिजी हो जाता है। तभी उसकी दुकान पर एक क्लाइंट आता है। मानव ये देखते ही बहुत खुश हो जाता है कि इतने दिन बाद उसकी दुकान खुली और कोई क्लाइंट उसके साथ डील करने आया है। मानव जैसे ही उससे बात करना शुरू करता है, कि तभी जीत का फोन आता है। वो जीत का नाम देखकर फोन कट करता है और अपने सामने खड़े उस व्यक्ति से बात करता है। यहाँ जीत, जिसका पारा हाई है, वो गुस्से में अपने फोन को देखकर बड़बड़ाते हुए कहता है:​

​​जीत: तू अपने आपको समझता क्या है? मैं कब से तुझसे बात करने की कोशिश कर रहा हूँ, मगर तुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। ठीक है, मत कर मुझसे बात। शास्त्री अंकल के अगर मुझ पर एहसान नहीं होते तो इस बत्तमीज़ लड़की के यहाँ होते में एक मिनट भी नहीं रुकता। मैं बस अंकल और आंटी की वजह से यहाँ पर हूँ मानव।​

​​जीत को गुस्से में देख, सुरु समझ जाती है कि वो ज़रूर कुछ गड़बड़ कर देगा और तब वो जैसे ही जीत के पास जाने लगती है, कि आदि उसके पास आकर उसे बुलाता है। यहाँ दुकान पर, मानव जैसे ही उस आदमी से बात करके जीत को फोन लगाता है, जीत झट से उसका फोन उठाते ही उससे कहता है:​

​​जीत: कहाँ है तू? मिल गई फुर्सत तुझे!​

​​ये सुनते ही मानव मुँह बनाते हुए उससे सबसे पहले एक ही सवाल करता है:​

​​मानव: अंकल ठीक हैं न जीत!​

​​जीत हाँ में सिर हिलाते हुए उससे कहता है:​

​​जीत: हाँ वो एकदम ठीक हैं। उन्हें जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया है। आंटी और सुरु यहीं पर हैं। एक बस तू है जो गायब है।​

​​ये सुनकर मानव को थोड़ा अटपटा लगता है और वो उससे कहता है:​

​​मानव: क्या हुआ यार? ये कैसे बात कर रहा है?​

​​जीत: जैसे तू डिजर्व करता है।​

​​जीत की भागदौड़ और उसका उससे बात न कर पाना, मानव की समझ में आ जाता है और तब वो उससे कुछ न कहना ही ठीक समझता है। वहाँ जीत गुस्से में मानव को उल्टी सीधी बातें कहकर फोन कट करने लगता है। तब बस एक वाक्य में मानव “मैं अभी आता हूँ” कहकर फोन रख देता है। फोन कट होते ही मानव एक बार फिर से जैसे ही अपनी दुकान बंद करने लगता है, कि तभी उसके फोन पर दोबारा से बेल बजती है। ये एक अननोन नंबर है, जिसे उठाते ही मानव दूसरी तरफ से एक जानी पहचानी आवाज़ सुनता है और उसके चेहरे का रंग बदलने लगता है।​

​​मानव पर जो बीत रही है, उसे बस वो ही समझ सकता है। उसे शास्त्री जी की तरफ से थोड़ी राहत मिली ही थी कि वो मीनू के लिए परेशान हो गया। वहाँ मीनू की तबियत संभली तो वो अपनी दुकान में हो रहे नुकसान को कैलकुलेट करने लगा। अस्पताल की तरफ से निश्चिंत मानव के पास एक लंबे समय बाद डील आई थी, जिसे लेकर वो खुश था, मगर जीत के फोन ने उसे परेशान कर दिया। जीत की परेशानी समझने वाला मानव जैसे ही उसे हल करने चला, कि उसे किसी ऐसे व्यक्ति का फोन आया, जिसे सुनते ही उसके चेहरे का रंग बदल गया। आखिर इतनी मुसीबतों को झेलता मानव कहाँ तक पहुँच पाएगा? उसकी बिखरी जिंदगी में कभी कोई शांति आएगी या नहीं? जानने के लिए पढ़ते रहिए।​

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