​​मानव जैसे ही उस अंजान नंबर से आए फोन को पिक करता है कि तभी उसे दूसरी तरफ से एक जानी पहचानी आवाज़ आती है, जिसे सुनते ही उसके चेहरे का रंग बदल जाता है। दूसरी तरफ से बोलने वाला एक आदमी अपनी भारी-भरकम आवाज़ में मानव से कहता है: मानव, आज 19 तारीख है। 1 तारीख या उससे पहले भाई का ब्याज आ जाना चाहिए।​

​​यह सुनते ही मानव के चेहरे का रंग बदलने लगता है और उसके माथे पर चमकता पसीना उसके डर को साफ-साफ दिखाता है। मगर वो हार नहीं मानता और उस शख्स से बहुत ही कॉन्फिडेंस के साथ कहता है कि वो पैसों का इंतजाम कर देगा। राजू भाई को उसकी तरफ से कभी कोई परेशानी नहीं होगी। सामने वाला व्यक्ति इस बात पर कुछ रिएक्ट नहीं करता, वो बस अपनी अगली बात कहता है: ये मेरा पहला फोन है, मैं 1 तारीख से पहले एक बार फिर से फोन करूंगा।​

​​इतना कहकर वो आदमी फोन रख देता है। यहाँ मानव के पसीने छूटने लगते हैं और वो वहीं एक कुर्सी पर बैठ जाता है और सोचता है:​

​​मानव: इस भागदौड़ में इतना टाइम निकल गया, मुझे तो याद ही नहीं रहा कि मुझे महीने की 1 तारीख को राजू भाई का ब्याज देना है। मुझे कुछ न कुछ करना होगा। मुझे अपने काम को बढ़ाना होगा।​

​​ऐसा सोचते हुए जैसे ही वो अपनी दुकान को चारों तरफ से देखता है, उसका कॉन्फिडेंस डगमगाने लगता है और वो निराश होकर सोचता है:​

​​मानव: नहीं! मैं राजू भाई का पैसा इतनी जल्दी नहीं चुका पाऊँगा! पर...मैं ऐसा नहीं कर सकता! मैंने उनसे वादा किया था! दुकान का इतने दिन बंद रहना भी ठीक नहीं है। क्या यार! क्या करूँ मैं?​

​​मानव इसी उधेडबुन में बैठा ऐसा सोच रहा होता है कि तभी उसकी दुकान के सामने वाली दुकान में एक डिलीवरी बॉय कुछ डिलीवरी देता है, जिसके बदले में उसे दुकान का मालिक खुश होकर कुछ एक्स्ट्रा पैसे देता है। जिसे देखकर मानव मन में सोचता है:​

​​मानव: सिर्फ दुकान के भरोसे मैं राजू भाई का पैसा नहीं चुका पाऊँगा। मुझे कुछ और भी करना होगा। ऐसा सोचकर मानव दुकान से अस्पताल के लिए निकलता है।​

​​यहाँ मानव की माँ मीनू के नॉर्मल होने तक उसका ध्यान रखती है और वो इस बात का भी खास ख्याल रखती है कि मीनू को किसी भी बात का कोई स्ट्रेस नहीं होना चाहिए। ऐसा सोचते हुए अब वो देविका के साथ मानव की शादी की तैयारियों के लिए खुद सब कुछ करने की ठानती हैं और पंडित जी को फोन लगाती हैं: "हेलो पंडित जी!" दूसरी तरफ से पंडित जी जो किसी के घर हवन की तैयारी कर रहे हैं, वो उनसे बात करते हैं: "जी कहिए बहन जी, आज कैसे याद किया?" यहाँ माँ उनसे पूछती हैं कि जल्द से जल्द कोई शुभ मुहूर्त हो तो वो उन्हें बताए। ये सुनते ही पंडित जी उनसे पूछते हैं कि किस अवसर के लिए वह ऐसा पूछ रही हैं। पंडित जी के ऐसा पूछते ही माँ मन ही मन में सोचती हैं: "पंडित जी मानव के बहुत करीबी हैं। अगर मैंने इन्हें मानव का नाम लेकर कुछ कहा तो ये सीधा उससे बात करेंगे और फिर...नहीं नहीं मैं इन्हें सच नहीं बता सकती।"​

​​तब उनके दिमाग में एक आइडिया आता है और वो पंडित जी से कहती हैं: "पंडित जी, मेरी एक सहेली है, उनके पंडित जी का स्वास्थ्य अभी ठीक नहीं है और उसके बेटे के लिए अच्छा रिश्ता आया है, तो वो जल्द से जल्द रोका करना चाहते हैं। क्या आप बता सकते हैं कि कौन सा मुहूर्त ऐसे काम के लिए शुभ रहेगा?" दूसरी तरफ से पंडित जी उनसे कहते हैं: "अगले 3 महीनों तक तो कोई शुभ मुहूर्त नजर नहीं आ रहा है, मगर फिर भी वो स्पेशल पूजा के साथ रोका करवा सकते हैं।"​

​​ये बात सुनकर माँ जितना खुश होती हैं, उतना ही परेशान भी होती हैं। अब वो सोचती हैं कि वो अगर रोका करती हैं, तो उन्हें स्पेशल पूजा के लिए पंडित जी को बुलाना होगा, जिससे उनका सारा प्लान बिगड़ जाएगा। ऐसा सोचते हुए माँ पंडित से दोबारा बात करने के लिए कहकर फोन रख देती हैं और वो उन आंटी के घर की तरफ जाती हैं, जिन्होंने इस रिश्ते के लिए हाँ कहा था। यहाँ अस्पताल में सुरु अपने पापा के सामने वार्ड में बैठी है। उसकी माँ आदि को लेकर घर गईं हैं, कि तभी उसके दिमाग में वो पैसा घूमने लगता है, जो उसने सट्टे  से कमाया है।​

​​सुरु के चेहरे पर मुस्कुराहट है, और वो बहुत संतुष्टि भरे भाव से सोचती है:​

​​सुरु: काश मैंने ऐसा पहले सोचा होता तो बेवजह ऐसी जिंदगी तो नहीं जीती। मगर नहीं, मुझे दिया ने पहले कभी इसके बारे में बताया भी तो नहीं था न! इस बार मैं उससे पूछूँगी कि आखिर उसने मुझे इसके बारे में पहले क्यों नहीं बताया, जबकि वो ये जानती थी कि मुझे क्रिकेट की अच्छी समझ है। खैर, कोई बात नहीं...देर आए दुरुस्त आए। अब अपने पापा का सारा बिल मैं चुका दूँगी, नहीं चाहिए हमें किसी का एहसान। अब हमारा भी एक बहुत बड़ा आलीशान घर होगा, नौकर-चाकर, गाड़ी होगी। मैं शहर के सबसे बड़े कॉलेज में जाऊँगी। आदि भी एक बड़े से स्कूल में पढ़ेगा। अब मैं वो जिंदगी जियूँगी, जो मुझे जीनी चाहिए, जिसके लिए मैंने जन्म लिया है।​

​​ऐसा सोचते हुए उसका चेहरा खिल उठता है, कि तभी वहाँ डॉक्टर चेकअप के लिए आते हैं। उनके आते ही जीत भी वहाँ आ जाता है। तब डॉक्टर मानव के लिए पूछते हैं कि तभी वहाँ मानव भी आ जाता है। मानव वहाँ जैसे ही डॉक्टर को देखता है, उन्हें अलग ले जाकर पूछता है कि अब शास्त्री जी कैसे हैं और उनकी आवाज़ वापस आने के कितने चांस हैं! इस पर डॉक्टर उससे कहते हैं: "मानव, शास्त्री जी की हालत अभी बेहतर है, मगर..."​

​​मानव: मगर क्या डॉक्टर?​

​​"मगर उनकी वो आवाज़, जिससे वो गा पाए, उसे लौटने में थोड़ा समय लग सकता है।"​

​​मानव: थोड़ा मतलब कितना?​

​​"ये तो कहना मुश्किल है, देखो जैसे कि मैंने पहले कहा था, कि जहाँ दवा काम नहीं करती, वहाँ दुआ काम करती है। शास्त्री जी अभी काफी बेहतर कंडीशन में हैं, हो सकता है कि जल्दी उनकी आवाज़ लौट आए या फिर ये भी हो सकता है कि कुछ महीने लग जाएँ।" ये सुनते ही मानव के होश उड़ जाते हैं और वो सोच में पड़ जाता है कि अगर कुछ महीने लगे, तो आखिर वो अकेला सब कुछ कैसे संभालेगा। यहाँ डॉक्टर मानव से शास्त्री जी के कुछ और टेस्ट करवाने के लिए कहकर जाते हैं। मानव गहरी सोच में डूबा है, कि तभी वहाँ जीत आता है और मानव से पूछता है कि डॉक्टर क्या कह रहे हैं। इस पर मानव उसे सब बताता है। जिसे सुनते ही जीत भी बुरी तरह से टेंशन में आ जाता है।​

​​जीत: अरे यार, ये क्या हुआ मानव! मुझे तो लगा था, सर्जरी के बाद अंकल जल्दी ही ठीक हो जाएंगे।​

​​मानव हाँ में सिर हिलाते हुए जीत से हिम्मत बनाए रखने के लिए कहता है, कि तभी वहाँ सुरु भी आ जाती है और पूछती है कि क्या बात है। सुरु को देखते ही जीत को गुस्सा आ जाता है, जबकि मानव सुरु से कहता है कि डॉक्टर ने कहा है कि शास्त्री जी बहुत जल्दी गाने लगेंगे। ये सुनते ही सुरु बहुत खुश होती है। वो जीत को देखती है, मगर उसे इग्नोर कर देती है। जीत को उस पर और ज्यादा गुस्सा आता है, तब जैसे ही जीत मानव को कोने पर बुलाकर सुरु के बारे में बताने लगता है, सुरु किसी न किसी बहाने से उन्हें डिस्टर्ब करती है। वो मन ही मन सोचती है:​

​​सुरु: जीत का बच्चा पागल हो गया है। अब ऐसा भी क्या हुआ है, जो वो सबको बताना चाहता है। उसे पता ही क्या है? ये ही न कि मैं तंग गलियों से जा रही थी। उसे क्या लगता है, उसकी इस छोटी सी बात को सब बहुत तूल देंगे। ठीक है, कर ले, तुझे जो करना है। अब मैं भी देखती हूँ कि आगे क्या होगा।​

​​ऐसा सोचकर सुरु वापस अपने पापा के पास जाकर बैठ जाती है। यहाँ जीत उसे जाता हुआ देख राहत की साँस लेता है और मानव को उस दिन की सारी बात बताता है। जीत उससे कहता है:​

​​जीत: मानव, उसके पास स्कूल का बैग था यार...भरा हुआ...वो कभी इतनी दूर नहीं जाती। वो भी तब जब वो बिल्कुल अकेली थी। उसके साथ आदि भी नहीं था यार। उसका कोई ट्यूशन भी नहीं है। देख मानव, बुरा मत मानना! सुरु को मैं बचपन से जानता हूँ! वो भले ही तेरी पसंद है, तुझे बहुत अच्छी लगती है, मगर मेरी नजर में वो एक स्मार्ट लड़की है, जिसे बड़े लोगों के साथ उठना-बैठना, दोस्ती करना, महंगे शॉक पूरे करना पसंद है। ऐसे में तूने उसके हाथ में इतनी बड़ी रकम थमा दी।"​

​​मानव: जीत...तू जो कुछ भी कह रहा है, वो मुझे समझ नहीं आ रहा है, प्लीज साफ-साफ बता क्या कहना चाहता है।​

​​जीत: मुझे सुरु पर शक है!​

​​मानव: शक? कैसा शक?​

​​इस पर जीत मानव को बताता है कि सुरु की चाल-ढाल बदली हुई थी जब उसे उसने देखा था। इतना ही नहीं, कोई भी देखकर कह सकता था कि वो सबसे छुपते-छुपाते कहीं जा रही थी।​

​​मानव: कहाँ जा रही थी?​

​​जीत: ये मुझे कैसे पता होगा यार! मैं तो बस इतना जानता हूँ कि अगर मैं एक मिनट के लिए ये मान भी लूं कि मैं गलत था, तो उसने जिस ढंग से मेरे साथ यहाँ हॉस्पिटल में बात की, उससे मेरा शक यकीन में बदल गया कि सुरु या तो किसी गलत संगत का हिस्सा है, या फिर...!​

​​मानव: या फिर? या फिर क्या जीत?​

​​जीत: या फिर उसने तेरे पैसों को उड़ा दिया है।​

​​ये सुनते ही मानव जीत पर बरस पड़ता है और बैग में से उन बंडल को निकालकर जीत को दिखाता है, जो वो राजू भाई के यहाँ से लाए थे। इन पैसों को देखकर जीत हैरान हो जाता है, मगर कुछ कह नहीं पाता। तभी मानव उससे ऊँची आवाज़ में कहता है:​

​​मानव: जीत, तू मेरा बहुत अच्छा और सच्चा दोस्त है, जिस पर मैं आँख बंद करके भरोसा करता हूँ। तू जानता है, तू किस पर उंगली उठा रहा है। जो कुछ भी तूने कहा, तू ही बता, ये देखने के बाद तुझे लगता है, जो कुछ भी तूने देखा, वो सही था?​

​​जीत: मगर फिर भी वो सब नॉर्मल नहीं था, मानव! मेरी बात तो समझ!​

​​मानव: देख जीत, अब बहुत हो गया यार! मैंने तेरी हर बात को चुपचाप शांति से सुना था, मगर अब मैं तेरी ये बकवास और नहीं सुन सकता।​

​​सुरु दूर से बैठे हुए सब देखती है और उसे मानव का उसके लिए बोलना बहुत अच्छा लगता है। वो इस बात को लेकर अब पूरी तरह से निश्चिंत हो गई थी कि जीत उसके बारे में क्या सोचता है और वो सबको उसके बारे में क्या बताएगा। यहाँ जैसे ही मानव जीत पर गुस्सा होता है, जीत मन ही मन में सोचता है:​

​​जीत: कोई बात नहीं मानव! अभी तेरी आँखों पर इसके प्यार की पट्टी चढ़ी हुई है, अभी तुझे कुछ दिखाई नहीं देगा। मगर मैं जानता हूँ, कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ है, जिसे मैं ढूंढ निकालूँगा। मैं अब उस दिन का इंतजार करूंगा, जब तू मुझे अपने आज के बर्ताव के लिए सॉरी कहेगा।​

​​ऐसे सोचकर जैसे ही जीत वहाँ से जाने लगता है, कि मानव उसे रोकने के लिए जाता है, तभी सुरु मानव को आवाज़ देकर बुलाती है और उससे पूछती है कि आखिर जीत से ऐसी क्या बात कर रहा था, कि उन दोनों को कॉर्नर में जाकर बात करनी पड़ी। मानव के पास इस बात का कोई जवाब नहीं होता, तब वो सुरु से इधर-उधर की बात करते हुए टॉपिक बदल देता है।​

​​यहाँ दिया को आगे होने वाली नई चैंपियनशिप का पता चलता है। जब उसकी टीम इस होने वाली क्रिकेट चैंपियनशिप में दिया को कहती है कि उसे सुरु को बुलाना चाहिए, तब दिया थोड़ा हैरान होती है। तब ही उसे पता चलता है कि इस बार बड़ी संख्या में लोग बैटिंग करने वाले हैं। दिया कुछ सोचती है और सुरु से बात करने के लिए सही टाइम का इंतजार करती है। यहाँ मानव की माँ उन आंटी के पास जाकर अपनी समस्या के बारे में बात करती है। जिसे सुनते ही वो भी सोच में पड़ जाती है और उनसे कहती है: "देखिए बहन जी....मैं आपकी बात मानती हूँ, मगर आप मेरी बात समझिए! आप इतने अच्छे रिश्ते को इन रीति-रिवाजों के चक्कर में छोड़ तो नहीं सकती न!"​

​​ये सुनकर मानव की माँ उससे कहती है: "अरे नहीं बहनजी, मैं तो ऐसा सोच भी नहीं सकती। इसलिए तो आपके पास आई हूँ... मगर इसमें मैं क्या कर सकती हूँ? देखिए, वैसे भी इस धर्म-कर्म के काम में इंसान न ही बोले तो अच्छा है। एक यही तो कारण है, जिसके कारण कितने बड़े-बड़े कांड हो जाते हैं।" आंटी की ऐसी बातें सुनकर मानव की माँ का मुँह बन जाता है और वो अब उसे समझाने की कोशिश नहीं करती, बल्कि खुद ही किसी सोच में डूब जाती हैं, कि तभी उनके दिमाग में एक बात आती है और वो उनसे कहती हैं: "आप मेरा एक काम कीजिए न! प्लीज देविका के घर तक ये बात पहुँचा दीजिए। मुझे भरोसा है कि वो भी मानव जैसे हीरे को खोना नहीं चाहेंगे और कोई न कोई बीच का रास्ता जरूर निकल आएगा।"​

​​यहाँ देविका अपने घर पर नहीं है, मगर शिवम को ये बात नहीं पता। वो देविका के घर बहाने से आता है, ताकि उससे मिल सके, मगर जैसे ही उसे पता चलता है कि देविका घर पर नहीं है, वो मुँह बनाते हुए वहाँ से जाने लगता है, कि तभी उसके सामने टेबल पर देविका की मम्मी का फोन बजता है।​

​​वो देखता है, आस-पास कोई नहीं है। तब वो फोन उठाकर जैसे ही ये बात सामने वाले इंसान को बताने लगता है, कि फोन की दूसरी तरफ से कही गई बात शिवम के होश उड़ा देती है।​

​​आखिर ये किसका फोन है जिसे शिवम उठाता है? क्या ये उन आंटी का फोन है जिन्होंने रिश्ता करवाया है और वो रोका के लिए देविका के घर पर फोन करती है, मगर ये फोन शिवम उठा लेता है और उसे पता चल जाता है कि देविका की शादी किसी मानव के साथ होने वाली है? जानने के लिए पढ़ते रहिए!​

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