शिवम देविका के घर पर है कि तभी वहां किसी का फोन आता है। वो जैसे ही आस-पास देखता है और उसे कोई नहीं दिखता, तब वो सामने टेबल पर रखे फोन को उठाता है। हेल्लो, कौन? यहाँ फोन पर दूसरी ओर बैठी आंटी बिना यह सोचे-समझे कि देविका के घर पर फोन किसने उठाया है, वो अपनी बात कहती है: बेटा, मैं करोल बाग़ खुशबू मेट्रीमोनियल से खुशबू आंटी बोल रही हूँ। मुझे बस इतना कहना था कि आपके घर में जो कोई भी बड़ा है, उससे कहना कि देविका और मानव का रोका करवाने के लिए शुभ मुहूर्त पता करके मुझे जल्दी से जल्द बताए।
यह सुनते ही शिवम के होश उड़ जाते हैं और वो उनसे पूछता है: कब का मुहूर्त है आंटी? इस पर आंटी उससे कहती है: अरे बेटा, मुहूर्त तो है भी और नहीं भी। तुम बस इतना समझ लो कि यहाँ मानव के घर इसी मुहूर्त को लेकर थोड़ा कंफ्यूजन हो रहा है, तो उन्होंने कहा है कि जो भी देविका के घर वाले डिसीजन लेंगे, वो उसके साथ हैं। यह सुनते ही शिवम का माथा चढ़ जाता है और चेहरे पर गुस्सा नजर आने लगता है। वो फोन कट होते ही सोचता है:
यह सब क्या हो रहा है! मतलब देविका शादी करने जा रही है। मुझे इस बारे में किसी ने बताया क्यों नहीं? ओह! अब समझ आया कि अब वो मुझसे इतनी दूर-दूर क्यों रहती है। नहीं! मैं ऐसा नहीं होने दूँगा! यह शादी किसी भी हाल में नहीं होगी। देविका सिर्फ मेरी है। करोल बाग़ का मानव! मैं भी देखता हूँ, यह है कौन जो मेरी देविका से शादी करने की हिम्मत कर रहा है।
शिवम के चेहरे को देखकर साफ है कि उसका खून उबल रहा है और वो किसी भी कीमत पर इस शादी को नहीं होने देगा। वो ऐसा सोचकर देविका के घर से जाने ही लगता है कि तभी वहां देविका अपने फोन पर किसी से बात करते हुए घर के अंदर आती है। शिवम जैसे ही देविका को देखता है, वो अपने इमोशन्स को कंट्रोल करता है और ऐसे बिहेव करता है जैसे कुछ हुआ ही नहीं है। वहीं देविका जैसे ही शिवम को अपने घर पर देखती है, उसका मूड खराब हो जाता है। वो उसे इग्नोर करते हुए अंदर जाती है।
यहाँ शिवम जैसे ही देविका को उसे इग्नोर करते हुए देखता है, उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँचती है और वो वहां से दांत पीसते हुए चला जाता है। यहाँ शास्त्री जी की तबियत में सुधार होता है और मानव ने जो पैसा राजू भाई से लिया था, उसका एक बड़ा हिस्सा उनके इलाज में लग जाता है। अभी तक सब कुछ मानव की कैल्कुलेशन के हिसाब से ही चलता है। उसी को ध्यान में रखते हुए, मानव अपनी दुकान चलाने के साथ-साथ दो पार्ट टाइम जॉब करता है और राजू भाई का हर महीने ब्याज चुकाता है।
सुरु के स्कूल के आखिरी दिनों में वो अपने पेपर्स की तैयारी पर ध्यान देने की कोशिश कर रही होती है कि रह-रह कर उसके दिमाग में सट्टेबाजी आती है। तब वो और पैसा कमाने के लिए दिया से बात करती है। दिया उसे बताती है कि क्रिकेट का एक बड़ा मुकाबला होने जा रहा है, जिसके लिए बहुत बड़ी-बड़ी बोलियाँ लगेंगी। यहाँ पर अगर सुरु अपनी किस्मत आज़माना चाहती है तो वो इस सट्टेबाजी का हिस्सा बन सकती है। मगर इसकी एक शर्त है।
सुरु: और वो क्या शर्त है?
इस पर दिया उसे बताती है: यह मुकाबला बड़े लेवल पर होने वाला है, तो पहली बात इसकी एंट्री फीस थोड़ी ज्यादा होगी और दूसरी यह कि...दिया बात पूरी कर रही होती है कि तभी सुरु कुछ सोचकर दिया को बीच में ही रोकते हुए उससे पूछती है:
सुरु: थोड़ी ज्यादा मतलब? कम से कम कितने पैसों से शुरुआत होगी?
तब दिया सुरु को देखते हुए उससे कहती है: 50 हजार! यह सुनते ही सुरु का मुँह खुला का खुला रह जाता है, तब वो मन ही मन सोचती है:
सुरु: पचास हजार! यह थोड़ी कहाँ यार, यह तो बहुत बड़ी रकम है! मैंने तो अभी तक जो इसमें कमाया है, वो इससे कम है। तो क्या इसमें पार्ट नहीं ले पाऊँगी...क्या यार! कुछ कर सुरु! ज़रा सोच, अगर तू इतना पैसा लगाएगी तो कितना कमाएगी! हाय...काश यार! मगर क्या करू?
दिल और दिमाग के इस द्वंद में सुरु को समझ नहीं आता है कि उसे क्या करना चाहिए, तब एक बार फिर से उसके दिमाग में वो पैसा आता है, जिससे उसने शुरुआत की थी। वो फिर एक बार सोचती है:
सुरु: हाँ, यह ठीक है! जब मेरे पास कुछ नहीं था, तब भी तो मैंने रिस्क लिया था न! हाँ, इस बार अगर मुझे जीतना है तो यह रिस्क तो लेना ही होगा! मुझे मानव के पैसों को यूज़ करना होगा।
ऐसा कहते हुए सुरु के चेहरे पर स्माइल आ जाती है और वो तब सामने खड़ी दिया से कहती है:
सुरु: और दूसरी? दूसरी क्या शर्त है दिया?
यही कि इस मुकाबले में थोड़ा रिस्क होगा! यह सुनते ही सुरु का माथा चढ़ जाता है और वो दिया से पूछती है:
सुरु: रिस्क? इसका क्या मतलब है?
सुरु के इस सवाल से दिया समझ जाती है कि सुरु को बैटिंग के बारे में ज़्यादा नहीं पता। तब वो उससे कहती है: देख सुरु! यह बात मैं मानती हूँ कि मैंने तुझे इस खेल के बारे में बताया था। मगर मुझे मौका ही नहीं मिला यह बताने का कि यह खेल जब तक छोटे पैमाने पर है, ठीक है, मगर जैसे ही इसमें पैसा इन्वॉल्व होता है, यह कानूनी रूप से गलत हो जाता है। यह सुनते ही सुरु के पैरों तले ज़मीन निकल जाती है और उसके माथे पर पसीने की बूँदें उभरने लगती हैं, जिन्हें देखकर दिया उससे कहती है: अरे तू डर मत यार, तूने कुछ गलत नहीं किया है। यह सुनते ही सुरु उसकी आँखों में आँखें डालकर कहती है:
सुरु: क्या मतलब है कि मैंने कुछ गलत नहीं किया दिया? यार, यह बात तुझे सबसे पहले बतानी चाहिए थी न!
अपनी ऊपर ब्लेम लगता देख, दिया अपनी सफाई में सुरु से कहती है: अच्छा! तू कह तो ऐसे रही है जैसे मैं अगर तुझे बता देती, तो तू नहीं खेलती? यह सुनकर सुरु चुपचाप दिया को देखती है, मगर कुछ नहीं कहती। तब दिया अपनी बात पूरी करते हुए कहती है: सुरु देख, मैं तेरी कंडीशन और सपने दोनों को ही समझती हूँ क्योंकि मेरे साथ भी किस्मत ने वैसा ही खेल खेला है जैसा तेरे साथ। इसलिए मैंने तुझे इसके बारे में बताया था। हाँ, मैं सच कहूँ तो मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि तू इसे इतनी जल्दी समझ जाएगी और शायद यह एक बड़ी वजह थी कि मैं तुझे यह बताना ही भूल गई कि इसमें रिस्क भी इनवॉल्व है। मेरी बात मान, सुरु, मैं तेरे साथ कभी गलत नहीं कर सकती, न ही तुझे कभी किसी गलत जगह जाने की सलाह दे सकती हूँ।
सुरु को दिया की बातों में सच्चाई दिखती है और वो उससे कहती है:
सुरु: सॉरी यार, मेरा कहने का मतलब तुझे हर्ट करने का नहीं था। खैर, वो सब छोड़, अब यह बता कि अब क्या कर सकते हैं? तुझे क्या लगता है कि मुझे इसे आगे खेलना चाहिए? अगर कोई प्रॉब्लम हुई तो?
दिया उससे कहती है: देख, सुरु, भले ही इसमें रिस्क इनवॉल्व है, मगर यह बहुत बड़ा नेटवर्क होता है। बहुत ऊपर तक। पुलिस अपना रोल निभाती है, मगर उसे आराम से संभाल लिया जाता है। सुरु उसकी बात को समझते हुए हाँ में सिर हिलाती है। तब वो अपनी बात पूरी करते हुए कहती है: तो कहने का मतलब यह है कि तू इसे खेल सकती है। सुरु गहरी सांस लेते हुए हाँ में सिर हिलाती है और उससे कहती है:
सुरु: ठीक है, अगर तू कहती है कि सब कुछ संभाल लिया जाता है, तो मैं इस रिस्क को लेने के लिए तैयार हूँ दिया!
यह सुनते ही दिया के चेहरे पर स्माइल आ जाती है और दोनों एग्जाम की तैयारियों में लग जाती हैं। शास्त्री जी की उनके परिवार और मानव की तरफ से बहुत अच्छी केयर की जाती है और वह जी पहले से बहुत बेहतर कंडीशन में आ जाते हैं। यहाँ देखते ही देखते जो पैसा मानव ने सुरु के पास रखवाया था, वो भी खत्म होने लग जाता है। अस्पताल के आखिर दिन जब मानव शास्त्री जी को डिस्चार्ज करने के लिए फॉर्मलिटी पूरी करता है, तब उसके सामने आखिर में एक लंबा चौड़ा बिल आता है। वो उस बिल के पैसे भरकर शास्त्री जी को उनके घर लेकर जाता है।
शास्त्री जी का घर लौटकर आना किसी त्योहार के जैसा लगता है। उनसे मिलने के लिए सभी लोग आते हैं। तभी सुरु की माँ के फोन पर दिया का फोन आता है। सुरु इस फोन के आते ही उसे पिक करने के लिए एक कोने में जाकर बात करती है। यहाँ शिवम को देविका की शादी के बारे में जानने के बाद जैसे एक झटका लगता है। वो बिना समय गंवाए करोल बाग़ के लिए निकलता है। हाथ में सिगरेट, गले में मोटी सोने की चेन, और काला चश्मा लगाए शिवम करोल बाग़ की तंग गलियों में अपनी बाइक लेकर इधर-उधर घूमता है और हर एक नौजवान को रोककर उसका नाम पूछता है।
सुबह से शाम हो जाती है, मगर उसे कोई मानव नाम का शख्स नहीं मिलता। गुस्से में बौखलाया शिवम यह सोचकर वापस जाने लगता है कि वो कल फिर आएगा...कल ही क्यों, वो यहाँ तब तक आएगा जब तक वो उस मानव से मिलकर उसे देविका से शादी करने के लिए मना नहीं कर देगा। शिवम जैसे ही वापस जाने लगता है कि उसकी बाइक एक नौजवान से जा टकराती है। वो नौजवान जैसे ही शिवम को गुस्से में देखता है, शिवम उससे सॉरी कहता है और आगे बढ़ने लगता है। मगर सामने खड़ा शख्स शिवम का रास्ता रोकता है और उससे इस हरकत के लिए कान पकड़ कर माफी मांगने के लिए कहता है।
शिवम से ऐसे कभी किसी ने बात नहीं की थी। शिवम उसका कॉन्फिडेंस देखकर इम्प्रेस हो जाता है और उससे एक बार फिर से माफी मांगता है। उसके सामने खड़ा हुआ यह नौजवान उसे माफ कर देता है और वहाँ से जाने के लिए कहता है।
शिवम इस शख्स से मिलकर जा ही रहा होता है कि उसके मुंह से मानव का नाम सुनकर यह शख्स उसे रोकता है। वो पूछता है कि क्या उसने मानव कहा! शिवम हाँ में सिर हिलाता है और सामने खड़े शख्स को अब वो एक अलग नजर से ऊपर से नीचे तक देखता है और पूछता है: क्या तू मानव है?
शिवम के ऐसा पूछने पर सामने खड़ा शख्स हाँ में जवाब देता है। उसके हाँ करते ही शिवम अपनी बाइक साइड में लगाता है और उतर कर उसके पास जाता है। यहाँ देविका अपने घर पर अपनी माँ के साथ बैठी बात कर रही होती है कि तभी उसकी नजर उनके फोन के कॉल लॉग पर जाती है। जिसे देखते ही वो शर्मा जाती है। उसके सामने बैठी उसकी माँ उसके शर्माने की वजह पूछती है, तो देविका उनसे कहती है:
देविका: यह खुशबू आंटी क्या कह रही थी मम्मी?
देविका की माँ उससे कहती हैं: कौन खुशबू आंटी बेटा?
देविका: अरे वो...वो करोल बाग़ वाली आंटी मम्मी।
देविका की माँ का ध्यान कहीं और होता है और वो कुछ और सोचते हुए उसे कहती हैं: कौन सी करोल बाग़ वाली खुशबू आंटी बेटा? किसके बारे में बात कर रही है? यह सुनते ही मुंह बना लेती है और उनसे कहती है:
देविका: अरे वो जो रिश्ते करवाती हैं यार मम्मी! आप भी न ऐसे बात कर रहे हो जैसे आपने यह नाम पहली बार सुना हो! आज ही तो बात हुई है आपकी उनसे! वही पूछ रही हूँ कि वो क्या कह रही थी?
देविका की माँ अब उसकी बात को ध्यान से सुनती है और उससे अपना फोन लेते हुए कहती है: एक मिनट बेटा, मेरा फोन दिखा! वो अपना फोन देखती हैं और तभी उन्हें याद आता है कि देविका उन खुशबू आंटी की बात कर रही है जिन्होंने देविका और मानव का रिश्ता करवाया है। वो देविका से कहती है: अच्छा तो तू इनकी बात कर रही है? इनका फोन तो कुछ दिन पहले आया था बेटा! वो कह रही थी कि वो मानव की माँ से रोके की तारीख पता करके हमें बताएंगी, उसके बाद मेरी उनसे कोई बात नहीं हुई। सच कहूं तो मैं कब से उनके फोन का ही तो इंतजार कर रही हूँ।
यह बात देविका को चौका देती है और वो देखती है कि उसकी माँ के फोन पर खुशबू आंटी का फोन आया था और कुछ सेकंड्स बात भी हुई है, मगर उसकी मम्मी कि उनसे कोई बात नहीं हुई। तब देविका अपनी मम्मी से कहती है:
देविका: मम्मी, आज आपका फोन आपके पास ही था न?
माँ हाँ में सिर हिलाती है। देविका समझ नहीं पाती कि अगर यह कॉल उसकी मम्मी के लिए इतनी ज़रूरी थी, तो आखिर उसकी मम्मी को याद क्यों नहीं आ रही है! वो इस उधेड़बुन में होती है कि तभी उसकी मम्मी अचानक ही उससे कहती है: अरे बेटा, वो मैं थोड़ी देर के लिए पड़ोस वाली आंटी से बात कर रही थी और मेरा फोन अंदर टेबल पर ही रखा था। तब शिवम आया हुआ था घर पर। कहीं उसने तो मेरा फोन नहीं उठाया? नहीं, नहीं वो ऐसा क्यों करेगा! इतना शरीफ बच्चा है। यह सुनते ही देविका का दिमाग चकरा जाता है, क्योंकि वो जानती है कि शिवम उससे एकतरफा प्यार करता है और अगर उसकी बात खुशबू आंटी से हुई होगी, तो वो समझ गया होगा कि उसकी शादी मानव के साथ फिक्स हो गई है। तब देविका खुद से कहती है:
देविका: अरे नहीं, यह क्या हो गया! यह नहीं होना चाहिए था! क्या मम्मी, कितनी बार कहा है फोन अपने पास ही रखा करो! अब अगर यह पागल शिवम ने कुछ उल्टा-सीधा कर दिया, तो? मैं जानती हूँ कि वो मेरे लिए किसी भी हद तक चला जाएगा! क्या यार....
वो ऐसा सोच ही रही होती है कि तभी उसकी मम्मी के फोन पर शिवम का फोन आता है, जिसे देखते ही देविका के चेहरे की हवाइयाँ उड़ने लगती हैं। आखिर शिवम देविका की माँ को क्यों फोन लगाता है? क्या वो वही मानव है जिसे शिवम तलाश रहा था? अगर हाँ, तो क्या रिएक्शन होगा उसका जब शिवम उसे उसकी शादी के बारे में बताएगा? जानने के लिए पढ़ते रहिए!
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