उत्तर प्रदेश के इस छोटे से शहर बरेली में, जहाँ सपने देखना मानो एक अपराध था, वहां सुनील रमेश कर्णिक का एक सपना था, उसे SRK जैसा बनना था। वो SRK यानी सलीम रमीज़ खान से मिलना चाहता था, उनके साथ काम करना चाहता था और उन्हें बताना चाहता था की वो उसके लिए क्या मायने रखते थे। उसके लिए सलीम खान सिर्फ एक एक्टर नहीं था, बल्कि एक उम्मीद, एक सितारा था। एक ऐसा सितारा जिसे देखकर उसे लगता था कि वो भी कुछ बन सकता है। आज बरेली के इस सिनेमा हॉल में वो इस बड़े परदे पर अपने सपनो को देख रहा था। बरेली में बने इस सिनेमा हॉल का नाम था सपना टॉकीज। ये जगह भले ही पुरानी थी, लेकिन बॉलीवुड के किंग सलीम खान की आइकॉनिक फिल्म पिछले 15 साल से यहां चल रही थी। इसी हॉल, तीसरी लाइन की एक सीट पर बैठा था 23 साल का सुनील कार्णिक। सुनील की आंखों में चमक ऐसी थी जैसे किसी बच्चे को पहली बार उसका पसंदीदा खिलौना मिल गया हो। सुनील सलीम का इतना बड़ा फैन था कि शायद ही किसी और को उसकी बराबरी करने का मौका मिले। फिल्म शुरू होते ही हॉल में हलचल मच गई थी, पर जैसे ही सलीम खान की एंट्री हुई, सुनील ने अपनी सीट पर खड़ा हो गया,
सुनील : यही है असली बादशाह!
वैसे तो सुनील इस फिल्म को सौ से भी ज़्यादा बार देख चुका था, लेकिन उसकी आँखों में वही जोश और वही चमक आज भी थी जैसे कि वो इसे पहली बार देख रहा हो। आसपास का माहौल हालांकि अलग था, कुछ कपल कुर्सियों पर एक-दूसरे में खोए हुए थे,वहां से अजीब-अजीब आवाजें आ रही थीं, मानो उनका ध्यान फिल्म से ज्यादा अपने ही किसी अलग 'सिनेमा' में हो और हॉल में कुछ रिक्शेवाले और कारीगर भी थे, जो अपनी सीटों पर शाम की नींद ले रहे थे। कुल मिलाकर हॉल का केवल 40 प्रतिशत हिस्सा ही भरा हुआ था, और ज्यादातर लोग फिल्म की जगह अपने ही दुनिया में खोए हुए थे। लेकिन सुनील को इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ा। उसकी नज़र तो बस स्क्रीन पर टिकी थी, जहां उसके हीरो सलीम खान का हर एक गाना, हर एक डायलॉग और हर एक सीन उसकी धड़कनो को बढ़ा देता था। जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ रही थी, सुनील की आंखों में वही पुराने सपने फिर से जाग उठ रहे थे। हर सीन उसमें फिर से जोश से भर देता, मानो सलीम खान की ये कहानी उसकी अपनी ही ज़िंदगी हो। सलीम का हर डायलॉग, हर सीन सुनील के लिए एक अलग ही नशा था। उसने फिल्म को शायद पहले भी कई बार देख रखा था, इसलिए जैसे ही कोई डायलॉग आता, सुनील बिना रुके उसी अंदाज में, उसी जोश में उसे दोहराने लगता।
सुनील : बड़े-बड़े देशों में ऐसा होता रहता हैं।
जैसे ही सलीम के मुंह से ये डायलॉग निकला, सुनील ने उसी दमदार आवाज़ में उसे दोहराया। उसके आसपास बैठे लोग चौंक गए, कोई हंस पड़ा तो कोई झुंझला उठा।सुनील का ये अंदाज़ देखकर उसके बगल में बैठा एक आदमी चिढने लगा।
आदमी : अरे भाई, फिल्म देखने आए हो कि सुनाने?
सुनील ने उस आदमी की बात को जैसे अनसुना कर दिया, क्योंकि उसकी दुनिया उस वक्त सलीम खान के डायलॉग्स में ही डूबी थी। उसने फिर से सलीम का एक दमदार डायलॉग दोहराया,
सुनील : बड़े-बड़े देशों में ऐसा होता रहता है।
आदमी : अरे भाई, हम फिल्म देखने आए हैं, न कि तुम्हारा रेडियो सुनने।
सुनील को अभी भी किसी चीज की परवाह नहीं थी। वो पूरी तरह फिल्म में डूबा हुआ था। उसके लिए ये पल किसी सपने से कम नहीं थे। हर डायलॉग पर वो ऐसे reaction देता जैसे सलीम खान उसके दिल की बात कह रहा हों। तभी सलीम का एक इमोशनल डायलॉग आया –
सलीम खान : तो क्या हुआ अगर मैंने सिर्फ तुम्हें पाने के लिए झूठ कहा था? तो क्या हुआ अगर तुम्हारे चेहरे के सिवा मुझे कुछ नजर नही आता? तो क्या हुआ अगर तुम्हारे नाम के सिवा मुझे कोई और नाम याद नहीं रहता? तो क्या हुआ?
ये डायलॉग सुनते ही सुनील की आंखों में थोड़ी नमी आ गई। ये शब्द जैसे सीधे उसके दिल पर असर कर रहे थे। उस पल में हॉल की सारी आवाज़ें, सारे लोग, सब कुछ गायब हो गए थे, बस वो और सलीम खान के शब्द थे। कुछ देर बाद एक और दमदार डायलॉग आया,
सलीम खान : अगर वो मोहब्बत करती है तो इस तरफ जरूर देखेगी…
सुनील का दिल जोरों से धड़कने लगा। उसकी आवाज़ मे एक अजीब सी एनर्जी थी, लेकिन उसके आस-पास के लोग परेशान हो गए थे। हॉल में धीरे-धीरे कानाफूसी बढ़ रही थी, पर सुनील पर इसका कोई असर नहीं हो रहा था।
आखिरकार, जब फिल्म खत्म हुई और क्रेडिट्स रोल होने लगे, सुनील ने सीट पर खड़े होकर ज़ोर ज़ोर से तालियां बजाईं। हॉल के कुछ लोग उसकी इस अजीब हरकत पर हंस पड़े, तो कुछ उसे देखकर बड़बड़ाने लगे। मगर सुनील के चेहरे पर एक सुकून था, जैसे उसने दुनिया का सबसे बड़ा खज़ाना पा लिया हो। वो हॉल से बाहर निकला और तुरंत टिकट काउंटर की तरफ बढ़ा। काउंटर पर खड़े आदमी ने सुनील को देखा और अपने आप ही मुस्कुरा दिया। उसने सुबह से सुनील को कई बार टिकट लेते देखा था,
सुनील : भाई, एक और टिकट दे दे, सलीम खान को फिर से देखना है!
काउंटर वाला : अरे भाई, सुबह से ही देख रहे हो, अब तो रात हो गई है! कितनी बार देखोगे ये फिल्म?
सुनील : तुम्हे क्या मतलब? तुम तो टिकट काटो , वैसे भी पिछले कुछ सालों से मेरी वजह से ही तुम्हारा ये हॉल चल रहा है, वरना कब का बंद हो गया होता। इसलिए अब चुपचाप टिकट दो।
काउंटर वाला : अरे पागल हो क्या? अब कहां से टिकट दे दे। ये आज का लास्ट शो था। अब घर जा, कल सुबह फिर देख लेना।
सुनील : ठीक है, कोई बात नहीं। कल सुबह सबसे पहले आऊंगा। तुम टिकट तैयार रखना।
काउंटर वाला : पक्का तू ही सलीम खान का सबसे बड़ा फैन है। चल, कल सुबह की पहली टिकट तेरे लिए पक्की!
ये सुनकर सुनील बहुत खुश हुआ और वहां से घर की तरफ चल दिया। रात का समय था। सुनील अपने कमरे में लौटा। कमरे की दीवारों पर सलीम खान का पोस्टर उसे जैसे बुला रहा था। वो एक तस्वीर के पास जाकर रुका और उससे जैसे बात करने लगा, उसकी आवाज में जोश था पर कहीं न कहीं एक दर्द भी झलक रहा था।
सुनील (सलीम की तस्वीर को देखते हुए ) : आप तो बॉलीवुड के किंग हो, किंग खान। आपको देखकर मुझे लगता है कि सबकुछ मुमकिन है। मैं भी अपनी एक पहचान बना सकता हूँ, बस मुझे थोड़ी हिम्मत और दे दीजिए। लोग हंसते हैं, मजाक उड़ाते हैं, कहते हैं कि मैं सिर्फ ख्वाब देख रहा हूँ। लेकिन मैं ये जानता हूँ कि ये ख्वाब मेरे लिए सिर्फ एक ख्वाब नहीं है, ये मेरा जीने का सहारा है। आप मेरी दुनिया हो।
वो तस्वीर के सामने बैठ गया, जैसे किसी अपने से बातें कर रहा था। उसके चेहरे पर एक अजीब सा सुकून था।
क्योंकि सुनील की ज़िन्दगी में सिर्फ एक ही इंसान का सहारा था - वो था सलीम रामीज़ ख़ान। सुनील इसी ख्यालों में कब सो गया उसे पता ही नहीं चला, जब अगली सुबह सुनील उठा। उसकी आंखों में पिछली रात की फिल्म का खुमार अब भी बाकी था। उसने बिस्तर से उठते ही सबसे पहले सलीम खान के पोस्टर के सामने हाथ जोड़े और पोस्टर पर हल्का-सा किस किया, मानो अपने हीरो को गुड मॉर्निंग बोल रहा हो। वैसे सलीम खान का ये पोस्टर उसकी दीवार का सबसे प्यारा हिस्सा था, उसे देखकर ही उसका हर दिन शुरू होता था। थोड़ी देर बाद वो कमरे से बाहर निकला, तो उसने देखा कि मम्मी किचन में नाश्ता बना रही थीं और उसके पापा कुर्सी पर बैठे थे। सुनील भी टेबल के पास लगी कुर्सी पर बैठ गया,
सुनील : माँ, नाश्ते में क्या है?
शांति (मुस्कुराते हुए) : बेटा, परांठे हैं। पर पहले मुंह तो धो लेता, फिर नाश्ता करना।
सुनील : माँ, भूख लगी है। पहले परांठे दे दो।
पापा : उठ गए हीरो? वैसे आपके कॉलेज का रिजल्ट कब आएगा?
सुनील : वो... दो हफ्ते में आ जाएगा।
पापा : और आगे क्या सोचा है?
सुनील इस सवाल पर कुछ नहीं बोला। उसे पता था कि उसके पापा का मतलब क्या है। लेकिन पापा ने फिर अपना सवाल दोहराया
पापा : आगे क्या करने का सोचा है?
सुनील : पापा, अगर ज़िंदगी में कुछ बनना है, कुछ हासिल करना है, तो हमेशा दिल की सुननी चाहिए।
पापा : तो महाराज, आपका दिल क्या कहता है
सुनील : यही कि मैं जल्दी अपने सपने पूरे कर लूंगा।
पापा : सपने तो मैं पूरे करवाऊंगा, अगर इस बार रिजल्ट आने के बाद तूने कोई अच्छी नौकरी नहीं ढूंढी, वो भी किसी MNC या बड़ी कंपनी में, तो फिर तू हमारे जय माता दी स्टोर पर बैठना शुरू करेगा।
सुनील : पापा, मुझे उस किराने की दुकान पर लोगों को आटा-चावल नहीं बेचना।
पापा : वो डिपार्टमेंटल स्टोर है नालायक, तुझे पता भी है हमारा “जय माता दी स्टोर” पूरे बरेली में नंबर 1 है। बरेली का हर परिवार वहीं से सारा सामान लेकर जाता है, और ये जो तुम ग्रेजुएशन के बाद आराम से बैठकर अपने सपने देख रहे हो, ये सब उसी दुकान की मेहरबानी है। वरना मेरे टाइम पर मेरे बाबूजी ने मुझे इतना भी वक्त नहीं दिया था। जैसे ही 12वीं पास की, अगले दिन से ही दुकान पर बैठा दिया था। मैं कम से कम तुझे ग्रेजुएशन के बाद अपना करियर चुनने की आज़ादी तो दे रहा हूँ।
उन्होंने किचन में काम कर रही शांति की ओर देखा,
पापा : शांति, अपने बेटे को समझा दो कि इन फिल्मों और इस सलीम रहमान में कुछ नहीं रखा।
सुनील : पापा, वो सलीम खान है, रहमान नहीं।
पापा : हां, हां दोनों एक ही बात है! फिल्मों की दुनिया में कुछ नहीं रखा। दो हफ्ते का समय है तेरे पास। जैसे ही रिजल्ट आएगा, तू या तो कोई नौकरी करोगे या फिर जय माता दी स्टोर पर बैठोगे।
इतना कहकर उसके पापा कुर्सी से उठकर अपने जूते पहनने लगे। उनके चेहरे पर वही गुस्सा था, जो अक्सर सुनील को चुभता था। तभी उसके पापा ने अपना टिफिन वाला बैग उठाया और बिना पीछे देखे दरवाज़े की ओर बढ़ गए।
सुनील वहीं टेबल पर बैठा रह गया, उसकी नज़र अब भी दरवाज़े पर टिकी थी। उसे अंदर से कुछ टूटता हुआ महसूस हो रहा था, जैसे उसके सपनों के पंखों को किसी ने बेरहमी से कतर दिया हो। उसके मन में एक अजीब-सी खामोशी भर गई थी, लेकिन उसके दिल के अंदर गुस्सा भरा हुआ था।
शांति, उसकी मां, सब कुछ चुपचाप देख रही थीं। उन्होंने रसोई में जाकर गरम-गरम परांठे एक प्लेट में सजाए, साथ में मक्खन का एक टुकड़ा भी रखा, पर वो नहीं जानती थीं कि सुनील का मन अब खाने से कहीं दूर भटक चुका है।
शांति धीरे-धीरे सुनील के पास आईं, उनके हाथ में परांठों की प्लेट थी, जिनसे भाप उठ रही थी। उन्होंने प्यार से सुनील के कंधे पर हाथ रखा, लेकिन सुनील ने बिना उनकी तरफ देखे ही अपने हाथ से कंधे को झटका दिया। उसके चेहरे पर गुस्से की लकीरें थीं, आंखों में पानी भी, जो बाहर आने से डर रहा था। वो अचानक कुर्सी से उठा और बिना कुछ बोले अपने कमरे की तरफ बढ़ गया।
कमरे में घुसते ही उसने दरवाज़ा बंद कर लिया। वो तेज़ी से अपने बेड पर बैठ गया और अपने मोबाइल को उठा लिया—शायद खुद को बिज़ी रखने के लिए या फिर अपने मन की उथल-पुथल से बचने के लिए। उसकी उंगलियां स्क्रीन पर तेज़ी से स्क्रॉल करने लगीं, पर दिमाग कहीं और ही अटका था।
अचानक SRK की एक चमकदार हेडलाइन उसकी आंखों के सामने आई, सुनील की उंगलियां वहीं रुक गईं।
सुनील : सलीम खान...क्या ये... सच है?
उसके हाथ काँपने लगे, और मन में सवालों का तूफान उमड़ पड़ा? आखिर सुनील ने अपने फोन पर ऐसा क्या पढ़ा था? क्या सुनील का सपना चूर चूर होने वाला था? या फिर कोई और बात थी? आखिर आगे क्या होगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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