सुनील का चेहरा धीरे-धीरे हैरानी से खुशी में बदलने लगा था और उसकी आँखों में एक चमक आ गई थी। जैसे ही उसने दोबारा खबर पढ़ी, उसको यकीन पक्का हो गया कि ये सचमुच हो रहा था - बॉलीवुड के सुपरस्टार सलीम खान बरेली आने वाले थे। सुनील ने जल्दी से अपना मोबाइल बगल में रखा और खुशी से कमरे में इधर-उधर उछलने लगा। उसका मन जैसे हवा में उड़ रहा था। अचानक उसने अपनी बाजू फैलाकर खुशी में गोल-गोल घुमना शुरू कर दिया, जैसे कोई बच्चा पहली बार मेला देखने जा रहा हो।

सुनील : सलीम खान! यहाँ, बरेली में! मेरे अपने शहर में!

उसकी आवाज में खुशी झलक रही थी। उसने अपने तकिए को उठाकर हवा में उछाला और खुशी से नाचने लगा। उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं,  उसके कदम थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उसने जल्दी-जल्दी अपने बालों को ठीक किया, जैसे वो आज ही सलीम खान से मिलने जा रहा हो। उसके कमरे में हर तरफ सलीम ख़ान के पोस्टर्स ही पोस्टर्स लगे हुए थे। ऐसा लग रहा था जैसे सलीम ख़ान की तस्वीरें हर दीवार से सुनील को पुकार रही थी। एक कोने में एक पुराना डीवीडी प्लेयर रखा था और उसके साथ सलीम की फिल्मों के ढेर सारे डीवीडीज। सुनील, अब शीशे के सामने खड़ा था। वो सलीम ख़ान के हर डायलॉग को बोलने की कोशिश कर रहा था, पूरी शिद्दत के साथ। सुनील अभी भी शीशे में खुद को देख रहा था और फिर खुद को सही करने की कोशिश कर रहा था। उसके चेहरे पर वही मासूमियत और जज़्बा था जो हर बार सलीम के डायलॉग्स बोलते वक्त झलकता था।

सुनील : मुझे यकीन था की एक दिन मेरा सपना जरूर पूरा होगा।

इसके बाद वो थोड़ा सा मुस्कुराया और फिर वो कमरे में लगे सलीम के एक बड़े पोस्टर की तरफ देखने लगा

सुनील: (पोस्टर से जैसे बात कर रहा हो)

मैंने कहा था ना एक दिन, एक दिन ऐसा आएगा जब मैं आपसे मिलूंगा, मै भी बॉलीवुड का हिस्सा बनूंगा। मैं भी आपकी तरह लाखों दिलों पर राज करूंगा। लोग मुझे पागल कहते हैं, हंसते हैं मुझ पर। पर एक दिन, मैं उन्हें दिखा दूंगा कि मेरे इस सपने में कितनी ताकत है। वो एक दिन जल्दी आएगा, जब आपसे मिलूंगा। क्योंकि आपने ही कहा है ना की “अगर किसीको दिल से चाहो तो पूरी दुनिया उसे तुमसे जरूर मिलाती है।”

सुनील इसके बाद एकदम से रुका, उसने खुद को एक बार फिर से देखा, और फिर सलीम खान की तरह कहा,

सुनील : कह दिया न, बस कह दिया!

सुनील का चेहरा खुशी से चमक रहा था। उसकी आँखें अब भी इस खबर पर यकीन करने की कोशिश कर रही थीं, वो बेड के पास जाकर बैठ गया, लेकिन बैठने के कुछ ही पलों में फिर से उठ खड़ा हुआ। सुनील की धड़कनें अब तेजी से दौड़ रही थीं,  उसने खुद को शीशे में फिर देखा और अपने बालों को जल्दी-जल्दी संवारने लगा, जैसे कि वो सचमुच अभी सलीम खान से मिलने वाला हो। मन ही मन उसने कई बार अपने आपसे कहा,

सुनील : सलीम खान! मेरे अपने शहर बरेली में! ये सच में हो रहा है! मुझे तो अभी भी यकीन नही हो रहा।

अब उसकी आँखों में एक नई चमक आ गई थी, और उसके चेहरे पर एक अलग ही भाव था। उसको जो सुबह भूख लगी थी, वो भी अब सलीम खान की इस खबर को सुनकर मिट गई थी। फिर उसे ख्याल आया कि इस खुशी को वो अकेले कैसे सेलिब्रेट कर सकता है। उसने मोबाइल उठाया, धनंजय का नंबर मिलाया और जल्दी से उससे मिलने के लिए बाहर निकल पड़ा। धनंजय, जिसे वो प्यार से 'धन्नो' बुलाता है, उसका बचपन का दोस्त था। दोनों ने हमेशा साथ में छोटे-बड़े सपने देखे थे, लेकिन ये सपना सच होने जैसा था।

सुनील कंपनी पार्क में अपने दोस्त धनंजय से मिलने पहुँच गया था। ये पार्क बरेली का एक ऐसा कोना था जहाँ हर उम्र और हर मिजाज़ के लोग अपनी-अपनी वजहों से आते थे। पार्क का नाम तो कंपनी पार्क था, लेकिन उसका माहौल बिलकुल एकदम रंगीन था। यहाँ दूर-दूर से कपल्स आकर गुपचुप बातें करते और हँसते-खिलखिलाते दिखाई देते थे। पास में बच्चे झूले पर अपनी हंसी के साथ हवा में झूलते हुए मानो ज़िन्दगी का हर पल जश्न में जी रहे हों। फैमिली वाले कुछ लोग हरी घास पर चादर बिछाकर पिकनिक का मज़ा लेते हुए खाना खा रहे थे, तो कुछ बुज़ुर्ग लोग सूरज की हल्की-हल्की गर्मी में बैठे पुराने दिनों की बातें कर रहे थे। पार्क की हरियाली और बिखरे हुए फूल, हवा में बहती गंध के साथ मानो कभी-कभी किसी पेड़ की डाली से तोता या गिलहरी छलांग लगाते हुए भागते नजर आ जाते। पार्क के बीचों-बीच एक बड़ा सा फव्वारा था, जिसमें से पानी के बारीक बूँदें उड़कर सूरज की रोशनी में इंद्रधनुष की तरह चमकती थीं। बच्चों की टोली उस फव्वारे के पास पानी से खेल रही थी। सुनील और धनंजय भी पार्क की हरी घास पर बैठे हुए थे, आसमान में बिखरे बादलों को देख रहे थे। दोनों ने अपने हाथ पीछे ज़मीन पर टिकाए हुए थे और आसमान की ओर निहारते हुए खुली हवा में गहरी साँस ली। हवा में एक हल्की ठंडक थी, लेकिन धूप की नरम किरणें उस ठंड को मीठी सी गर्मी में बदल रही थीं। इस समय यहाँ का नज़ारा सुकून और ताजगी से भरा हुआ था। किसी ने आसपास रेडियो बजा रखा था, जिसमें सलीम खान का ही एक फिल्मी गाने बज रहा था। पास के पेड़ के नीचे एक बुजुर्ग जोड़ा हँसी-मज़ाक कर रहा था, उनकी नोक-झोंक सुनकर सुनील और धनंजय भी हँसने लगे।  सुनील ने कुछ पल के लिए अपने हाथों में घास के तिनके लिए और जमीन पर अपने कदमों को महसूस किया। उसने अपनी आँखों को कुछ देर के लिए बंद किया, मानो सपनों की ओर अपना पहला कदम बढ़ा रहा हो।

धनंजय : अरे वाह, सलीम खान! तो अब बरेली में ही तेरा उससे मिलने का सपना पूरा होगा।

सुनील : धन्नो अब कुछ भी हो जाए, मुझे सलीम खान से मिलना है। चाहे कैसे भी! मैं उससे मिलूंगा और बताऊंगा कि मैं उसका सबसे बड़ा फैन हूँ, और एक दिन उसकी तरह हीरो बनने का सपना देखता हूँ।

धनंजय(हंसते हुए) :   ये सब ठीक है लेकिन भाई, तू अब 22 साल का होने वाला है। कब तक यूं ही सपनों में खोया रहेगा? तेरे पापा भी चाहते हैं कि तू उनकी दुकान पर बैठना शुरू कर दे। आखिर कब तक उन्हें मना करता रहेगा?

सुनील(थोड़ा हिचकिचाते हुए) :  पता है यार, पर मेरी समझ में ये नहीं आता कि मैं अपनी जिंदगी एक दुकान में कैसे बिता दूं। मेरे सपने उससे बहुत बड़े हैं, धन्नो। मैं सलीम ख़ान से मिलना चाहता हूँ, उनकी तरह बनना चाहता हूँ। एक दिन मैं मुंबई जाऊंगा और अपना नाम बनाऊंगा।

धनंजय : देख, मुझे पता है कि तेरा सपना बड़ा है। पर एक बात बता, कभी तूने अपने पापा से बात की इस बारे में? उन्हें ये सब समझाने की कोशिश की ?

सुनील(थोड़ा उदास होते हुए) :   पापा से बात? अरे, वो तो सिनेमा को बकवास समझते हैं। उनका मानना है कि फिल्मों में दिखाया जाने वाला सब कुछ फालतू है, उनके डर से मैं चोरी छिपे सलीम खान की फिल्मे देखने जाता हूं। वो तो ये तक कहते हैं, सिनेमा इंसान को चुटिया बनाता है। अब ऐसे में मैं कैसे उनसे कहूं कि मुझे सलीम खान से मिलना है? वो तो मेरी बात को कभी नहीं मानेंगे। उनके लिए मैं बस उनके जय माता दी स्टोर पर बैठूं और उनका गल्ला संभालूं।

ये सुनकर धनंजय एक पल के लिए सोचने लगा, फिर थोड़ी सीरियसनेस से सुनील की तरफ देखने लगा और बोला,

धनंजय :  लेकिन एक कोशिश करने में क्या जाता है? एक बार मन की बात कहकर तो देख। हो सकता है कि वो तुझे सुन लें।

सुनील(हल्की हंसी के साथ) : धन्नो, तुझे मेरे पापा की सोच का अंदाज़ा नहीं है। वो सोचते हैं कि सिनेमा बस लोगों को गुमराह करता है। उनके लिए यह सब बस दिखावा है, और मुझे लगता है कि अगर मैं उनसे इस बारे में बात भी करूं तो वो कभी नहीं समझेंगे।l

धनंजय सुनील की उदासी को समझ रहा था, लेकिन वो ये भी जानता था कि सुनील का सपना उसके लिए कितना खास था। वो तभी एक पल के लिए रुका और फिर बात को हल्का करने की कोशिश करते हुए बोला,

धनंजय (मुस्कुराते हुए) : ठीक है, अगर पापा नहीं माने तो फिर अपनी कॉलेज वाली सिमरन के बारे में क्या ख्याल है? वो लड़की कैसी है, जिससे तेरी नज़रें मिलती थी? लगता है उससे भी कुछ बात बन नहीं रही थी? अब क्या अपडेट है?

सुनील(थोड़ा झिझकते हुए) :  अरे यार, उसे तो शायद ये भी नहीं पता कि मैं कौन हूँ। कॉलेज के टाइम पर वो तो हमेशा बस अपने दोस्तों के साथ रहती है। वैसे उसका नाम सिमरन नही रिया है।

धनंजय : रिया तो वो दुनिया के लिए है लेकिन मेरे सलीम खान तेरी तो सिमरन ही है ना वो?

सुनील : यार पता नहीं, मुझे लगता है कि हमारे जैसे छोटे शहर के लड़कों का उसके जैसी लड़की से कोई मेल नहीं।

धनंजय (हंसी रोकते हुए) : अरे, तू क्यों इतना शक्ति कपूर जैसा फील करता है? भाई, सलीम खान के फैन हो तो थोड़ा सलीम जैसा कॉन्फिडेंस भी दिखा। उसको सब बॉलीवुड का romantic King बोलते है। जब वो एक्टर बनने की सोच सकता है तो तू अपनी सिमरन से दोस्ती करने की क्यों नहीं सोच सकता?

सुनील (हंसते हुए) : भाई, रिया कोई फिल्म का किरदार नहीं है, वो असल जिंदगी में है। और मैं उसके सामने जाते ही पसीना-पसीना हो जाता हूँ। तुझे पता है, एक बार उससे टकरा गया था गलती से, और उसने मुझे ऐसे देखा जैसे मैं किसी दूसरी दुनिया से आया हूँ।

धनंजय(शरारत से) : तू सही कह रहा है तू वैसे भी शक्ल से दूसरी दुनिया का ही लगता है, पर देखना एक दिन उसे तेरे इस जुनून का पता चलेगा और वो तेरी दीवानी हो जाएगी। पर भाई उसके लिए, तुझे अपनी जिंदगी में कुछ बड़ा करना पड़ेगा। बस ऐसे सपने देखकर जिंदगी नहीं कटेगी।

सुनील(गंभीर होते हुए) :  मुझे पता है, पर यार, समझ नहीं आता कैसे शुरू करूं। मैं बस यही सोचता हूँ कि एक दिन ऐसा आएगा जब मैं अपने पापा को अपनी मेहनत से कुछ बनकर दिखाऊंगा। और रिया… वो भी एक दिन देखेगी कि मैंने अपने सपनों को पूरा किया। लेकिन अभी के लिए, सब कुछ बहुत मुश्किल लग रहा है।

धनंजय :  अरे, सुनील, ये सब तो ठीक है, पर तूने अपने करियर के बारे में क्या सोचा है? क्या तेरा वाकई ये सपना है, या बस फिल्में देखकर तुझे लगने लगा है कि तू भी हीरो बन सकता है?

सुनील : धन्नो, मुझे नहीं पता कि मैं हीरो बन पाऊँगा या बस जीरो बनकर ही रह जाऊंगा। लेकिन मेरे अंदर एक आग है, एक ख्वाहिश है। जब भी सलीम खान की फिल्में देखता हूँ, मुझे लगता है जैसे वो मेरे अंदर की आवाज़ हैं। मैंने भले ही कभी किसी से नहीं कहा, लेकिन मुझे हमेशा से ही एक्टिंग का जुनून रहा है। और अब जब सलीम खान खुद हमारे शहर आ रहे हैं, तो ये मेरे लिए भगवान का इशारा ही है।

धनंजय : यार, मैं जानता हूँ कि तू कितना passionate है। लेकिन ये रास्ता इतना आसान नहीं है, सुनील। तेरे सामने कई challenges आएंगे, rejection भी होंगे। क्या तू तैयार है इन सबके लिए?

सुनील : धन्नो, मैं हर चुनौती के लिए तैयार हूँ। अगर सलीम खान दिल्ली से निकलकर मुंबई जाकर फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बना सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं? मैं कोशिश करना चाहता हूँ, भले ही रास्ता कितना भी मुश्किल क्यों न हो। मैं कम से कम अपने आपको ये तसल्ली तो दे सकूंगा कि मैंने अपने सपनो का पीछा किया। मैं भले ही जीरो बन जाऊं लेकिन अपने हीरो सलीम खान से मिलकर ही रहूंगा।

धनंजय : अगर तेरे अंदर सच में ये जुनून है, तो मैं तेरे साथ हूँ, दोस्त। चल, अभी सलीम खान के आने की तैयारियाँ शुरू करते हैं। और अगर तू उनसे मिल सका, तो मैं सबसे पहले वहीँ रहूँगा, तेरा हौसला बढ़ाने के लिए।

दोनों दोस्तों ने एक-दूसरे को गले लगाया, जिससे सुनील का दिल अब और भी मजबूत हो गया था। उसने अपने सपनों की दिशा में पहला कदम बढ़ाने की ठान ली थी, और वो जानता था कि चाहे कितना भी मुश्किल सफर हो, धन्नो उसके साथ रहेगा। अब सुनील ने धनंजय से विदा ली और कंपनी पार्क से बाहर निकलने लगा। मगर जैसे ही वो घर की ओर कदम बढ़ाने लगा, तभी उसकी नजर पार्क के गेट पर खड़े एक अनजान आदमी पर पड़ी। वो आदमी सुनील को ध्यान से देख रहा था, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी और उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान। सुनील ने सोचा कि शायद वो उसके पापा का कोई जान पहचान का आदमी होगा, लेकिन जैसे ही वो आगे बढ़ा, वो अनजान इंसान उसके करीब आया

अजनबी : सपनों के पीछे दौड़ना अच्छी बात है, लेकिन हर सपने की एक कीमत होती है। आखिर तुम अपने सपनों को कितना बड़ा दांव लगाने को तैयार हो? फैसला तुम्हे करना है की हीरो बनोगे या जीरो।

सपनों के पीछे दौड़ना अच्छी बात है, लेकिन हर सपने की एक कीमत होती है। आखिर तुम अपने सपनों को कितना बड़ा दांव लगाने को तैयार हो? फैसला तुम्हे करना है की हीरो बनोगे या जीरो।

सुनील चौंककर रुक गया। उसके चेहरे पर हैरानी और उलझन थी। उस अनजान इंसान की आँखों में एक गहरी चमक थी, मानो वो सुनील के हर इरादे को पढ़ सकता हो। सुनील ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला, लेकिन उसके शब्द मानो गले में ही अटक गए। और तभी वो इंसान भीड़ में कहीं गायब हो गया, आखिर वो इंसान कौन था? क्या सुनील का सलीम खान से मिलने का सपना पूरा हो पाएगा? आगे क्या होगा ?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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