सुनील अपने कमरे में एक कुर्सी पर चुपचाप बैठा था, उसके दिमाग में बीती शाम की बातें घूम रही थीं। जब उस आदमी ने उससे कहा था कि “तुम अपने सपनों के लिए कितना बड़ा दांव लगाने को तैयार हो?”  उस इंसान की ये बाते सुनील के मन में एक बेचैनी छोड़ गई थी। उसकी धड़कनें तेज़ हो गई थीं, मानो किसी ने उसे चुनौती दे दी हो, या शायद एक चेतावनी। क्या सपनों की राह इतनी आसान नहीं थी जितनी वो समझ रहा था? अचानक बाहर से कुछ आवाज़ें आने लगीं। सुनील ने कमरे से बाहर देखा तो पाया कि उसके पापा, रमेश, दुकान से लौट आए थे और उसकी माँ से कुछ बातें कर रहे थे। उसने एक गहरी सांस ली, अपने ख्यालों को थोड़ी देर के लिए किनारे किया, और धीरे-धीरे कमरे से बाहर निकल आया। जैसे ही सुनील बाहर आया, उसने देखा कि उसके पापा उसे ही देख रहे थे। उनके चेहरे पर एक ठंडक भरी मुस्कान थी जो मानो हर बार उसे अपने सपनों की ओर बढ़ने से रोकने के लिए ही थी। सुनील ने एक पल के लिए अपने पिता की ओर देखा, लेकिन फिर तुरंत ही अपनी नज़रें नीचे कर लीं। वो जानता था कि उसके पापा को उसके सपनो से नफरत थी। उनके लिए सपने और हकीकत में कोई मेल नहीं था। तभी सुनील अपनी माँ, शांति के पास गया

सुनील : माँ, मुझे एक सूट पैंट खरीदना है, वो भी बढ़िया वाला।

उसकी आवाज में एक नया आत्मविश्वास था जो उसके पिता के सामने भी नहीं डगमगाया। उसके पापा, जो अब तक माँ-बेटे की बातचीत को सुन रहे थे, वो तुरंत बोल पड़े,

पापा : सूट पैंट? वो भी बढ़िया वाला? हां, हां, जरूर खरीद लो। आखिर कौन सी बड़ी नौकरी मिली है तुझे, जो अब सूट में घूमेगा?

उनकी आवाज में वो कड़वाहट थी, जो सुनील के आत्मविश्वास को ठेस पहुंचाने के लिए काफी थी। तभी उसके पापाने आगे कहा,

पापा : कभी दुकान में तो आकर देख कि मेहनत क्या होती है, बस दिन-रात सपने ही देखता रहता है!

सुनील ने अपने पापा की बातों पर कुछ नहीं कहा। वो जानता था कि अगर उसने कोई रिएक्शन दिया, तो ये बहस लंबी खींच सकती है। वहीं उसकी माँ शांति ने भी उसे इशारे से चुप रहने को कहा, मानो वो खुद भी अपने पति की बातों से सहमत हों, या फिर शायद लड़ाई से बचना चाहती हों। लेकिन सुनील का चेहरा गंभीर था। उसकी आँखों में एक नई चमक थी, जो उसके पापाके तानों के बावजूद बुझ नहीं रही थी। उसने अपनी माँ की ओर देखा

सुनील : बस मुझे चाहिए माँ। और कुछ नहीं।

उसके पापाने उसकी बात सुनकर एक लंबी सांस ली और उसकी तरफ गुस्से से देखा

पापा :  तू कब समझेगा कि ये सब दिखावे की चीजें तेरे किसी काम की नहीं हैं? ये सपने… ये सिर्फ फालतू के ख्याल हैं। ये हकीकत नहीं हैं, सुनील। जितना जल्दी समझ जाए, उतना बेहतर होगा।

सुनील : मुझे जल्दी ही वो सूट पैंट खरीदनी है। और मैं पैसे का    इंतजाम खुद कर लूंगा।

पापा :   खुद इंतजाम करेगा? अच्छा, ये तो बता, ये पैसे आएंगे कहां से? किसी सपने में से निकलकर?

शांति : अरे जाने दीजिए, बच्चे को जरूरत है, तो ले ही लेते हैं। आखिर अब बड़ा हो रहा है, उसकी भी कुछ इच्छाएं हैं।

पापा : हां, हां, इच्छाएं तो जैसे हमारे ज़माने में किसी के पास नहीं थीं। हमारी इच्छाओं का क्या हुआ? इसकी उम्र तक तो जिम्मेदार बन गए थे, ताकि जिंदगी चल सके।

सुनील को ये शब्द अब अंदर तक चुभ गए थे, लेकिन वो चुप रहा। उसने उसके पापाकी बातों का जवाब नहीं दिया, बस एक कड़ी नजर डालकर सुनील अपने घर से बाहर निकल गया। उसका मन अब और मजबूत हो गया था। वो जानता था कि सपने देखना आसान नहीं था, पर उसने ठान लिया था कि वो हर मुश्किल का सामना करेगा। उसके पापाकी नफरत भरी मुस्कान, और उस अजनबी का सवाल—ये सब उसे और मजबूत बना रहे थे। लेकिन उसके पापा के साथ साथ बरेली शहर के लोग भी उसके सपनो का मजाक उड़ाते थे। सुनील अपने घर से बाहर निकलकर चाय की दुकान पर पहुंचा, वहां पहले से मोहल्ले के लड़के बैठे थे। जो सुनील को जानते थे,

लड़का (हंसते हुए) : अरे सुनील भाई, तुम तो बॉलीवुड के असली हीरो हो! कब ले जा रहे हो हमें मुंबई घूमाने? एक बार तुम्हारे साथ सलीम के घर के बाहर फोटो खिंचवानी है !

लड़का 2 : अरे छोड़ यार, ये बस बातों का बादशाह है! ये खुद के मोहल्ले की रामलीला में भी टिक नहीं पाता, और चला है सलीम खान बनने!

ये बोलकर दोनों लड़के ज़ोर से हंसने लगे। सुनील को ये बात थोड़ी सी बुरी लगी, पर वो मुस्कुरा रहा था। उसके चेहरे पर जुनून और अपने सपने के लिए लगन दिख रही थी,

सुनील : हंस लो, जितना हंसना है हंस लो। जल्दी ही वो दिन आएगा जब तुम लोग मुझसे मिलने के लिए तरसोगे. जल्दी ही मैं सलीम खान से मिलूंगा, और तब तुम देखोगे कि मेहनत और जुनून क्या कर सकते है।

लड़का : अरे भाई, ये फिल्मी ख्वाब छोड़। यहाँ असली जिंदगी में लोग सरवाइव करने के लिए स्ट्रगल कर रहे हैं। ऐसे सपनों में डूबा रहेगा तो सिर्फ धोखा ही मिलेगा।

उन दोनो की बातों के बीच सुनील थोड़ी देर के लिए चुप हो गया था। वो लड़के उससे मजाक कर रहे थे और उसका मजाक उड़ा रहे थे, पर सुनील के चेहरे पर अब भी कॉन्फिडेंस था। क्योंकि उसे पता था की सलीम खान अब जल्दी बरेली आने वाला है। लेकिन वो इन लड़को के सामने वो बात नही करना चाहता था,

सुनील  : शायद तुम लोग सही कह रहे हो। पर मैं ये सपना नहीं छोड़ सकता। सलीम खान भी तो दिल्ली से ही गए थे। किसी ने सोचा था कि वो दिल्ली से मुंबई जाकर 'दिलवाले' बन जाएंगे? वो भी अपने सपने लेकर मुंबई गए थे और लोग उन पर भी हंसे थे। लेकिन उनकी मेहनत और जुनून ने उन्हें वहां तक पहुँचाया जहाँ आज वो हैं। मैं भी कोशिश करूंगा, चाहे मुझे कितना भी वक्त लगे।

शायद उन लड़को के इन तानों ने सुनील की हिम्मत को और बढ़ा दिया। उसकी आँखों में एक नई चमक थी, एक नया विश्वास। उसने अपने आपसे वादा कर लिया था कि वो इस सपने को सच्चाई में बदलेगा। इसके बाद सुनील सीधा धनंजय से मिलने उसके घर की छत पर पहुंच गया, जहां पर धनंजय आधी नींद में खड़ा था।

धनंजय : क्या हुआ भाई, इतनी रात में?

सुनील : अरे वही मेरे पापा 

धनंजय : अब क्या किया उस खडूस दुकानदार ने।

सुनील : वही हर दिन के ताने उनके। 

धनंजय : अच्छा तू ये सब छोड़, तू ये बता की सलीम खान से मिलने का क्या प्लान है? कुछ सोचा तूने?

सुनील : यार, प्लान तो था कि जब मैं सलीम खान से मिलूं, तो पूरी तरह जेंटलमैन बनकर मिलूं। मैंने सोचा था कि अपने लिए एक बढ़िया सा पैंट-सूट सिलवाऊं। लेकिन... एक दिक्कत है।

धनंजय : क्यों, क्या हुआ? पैंट-सूट सिलवाने में क्या दिक्कत है?

सुनील : यार, मैंने जब पापा से बात की तो उन्होंने साफ मना कर दिया। बोले कि ये सब फिजूल का खर्च है। और फिर उनके हिसाब से मैं उनके किराने की दुकान पर बैठकर काम करना शुरू करूँ, पैसे वैसे कमाऊँ। लेकिन मैं सलीम खान से मिलने के लिए कुछ अलग करना चाहता हूँ। मैं ये सूट पैंट लेकर रहूंगा, चाहे मुझे इसके लिए कुछ भी करना पड़े!

धनंजय : अरे, इसमें टेंशन की क्या बात है! अगर तुझे पैसे चाहिए तो एक आसान तरीका है। तू थोड़े दिन के लिए अपने पापा की दुकान पर बैठना शुरू कर दे। वहाँ से जो पैसे मिलेंगे, वो तेरे काम आ जाएंगे।

सुनील : नहीं यार, मुझे नहीं बैठना उस किराने की दुकान पर! मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है वहाँ पर बैठने में। मैं बस सलीम खान जैसा बनना चाहता हूँ।

धनंजय : ठीक है, अगर किराने की दुकान पर नहीं बैठना, तो चल हम मिलकर कुछ और आइडिया सोचते हैं। आखिरकार, तुझे तेरे सपने तक पहुँचाने में मैं तेरे साथ हूँ। लोग भी तुझे सूट पैंट में देखकर बोलेंगे की देखो” अपना सुनील बन गया जेंटलमैन” 

सुनील : तू सही कह रहा है। कुछ ऐसा करना पड़ेगा जिससे मैं खुद ही पैसे कमा सकूं।

धनंजय : ठीक है तो हम दोनों मिलकर कोशिश करेंगे। वैसे, बरेली में इस समय लोगों की क्या जरूरतें चल रही हैं? कोई ऐसा काम ढूंढें जिससे तू आसानी से पैसे कमा सके।

ठीक है तो हम दोनों मिलकर कोशिश करेंगे। वैसे, बरेली में इस समय लोगों की क्या जरूरतें चल रही हैं? कोई ऐसा काम ढूंढें जिससे तू आसानी से पैसे कमा सके।

चल, मैं तुझे कुछ आइडिया देता हूं, जो शायद तुझे हिलाकर रख दें!

सुनील ने बिना किसी जोश के सिर हिलाया।  

धनंजय : मान ले, शादी-ब्याह का सीजन आ गया है,हम एक छोटी-सी टीम बनाते हैं। सजावट का काम करते हैं। फूलों की झालरें, लाइटिंग, मंडप डेकोरेशन… और थोड़ा क्रिएटिव भी रहेंगे—जैसे थीम बेस्ड सेटअप!

सुनील : मतलब... मैं शादी में फूल सजाऊं? 

धनंजय : अबे फूल सजाना मतलब क्या? ये भी एक आर्ट है। और पैसे भी तगड़े मिलते हैं। सोच, एक शादी में कितना खर्च होता है। हमारा हिस्सा भी मोटा होगा। या फिर

अबे फूल सजाना मतलब क्या? ये भी एक आर्ट है। और पैसे भी तगड़े मिलते हैं। सोच, एक शादी में कितना खर्च होता है। हमारा हिस्सा भी मोटा होगा। या फिर

सोच, DJ का काम। छोटे-मोटे इवेंट्स में। बर्थडे पार्टी हो, कॉलेज फेस्ट हो या फिर किसी की इंगेजमेंट। स्पीकर, लाइटिंग, म्यूजिक… ताबड़तोड़ धमाल!

सुनील : ये ठीक है यार, लेकिन फिर भी ये सब काम थोड़ा सा अजीब लग रहा है। मैं कुछ ऐसा करना चाहता हूँ जो मेरे बस में हो और कुछ नया हो।

धनंजय ने फिर एक और आइडिया दिया,

धनंजय : अच्छा सुन, एक और आइडिया है, आजकल ऑनलाइन मार्केटिंग का जमाना है। हम एक छोटा-सा सोशल मीडिया पेज बना सकते हैं, जहां पर हम फैशन से जुड़े सामान को बेच सकते हैं। तेरी पसंद अच्छी है, तुझे फैशन की समझ है। हम छोटे-छोटे टी-शर्ट्स, जीन्स, कैप्स जैसी चीजें लेकर आएंगे और उसे बेचेंगे। मुनाफा होगा तो तेरे सूट का खर्चा निकल आएगा।

सुनील : अरे वाह! ये तो सच में बढ़िया आइडिया है। हम कुछ अच्छी चीजें चुन सकते हैं, हम सलीम खान के स्टाइल वाले कपड़े बेच सकते है और सोशल मीडिया पर बेच सकते हैं। मैं लोगों से बात भी कर सकता हूँ, मेरी सलीम खान के फैशन के मामले में थोड़ी समझ तो है।

धनंजय : बस यही जज़्बा चाहिए था मुझे तुझसे! अब हम मिलकर काम शुरू करेंगे। मैं कुछ पुराने कनेक्शंस से बात करूंगा और सामान लाने का इंतजाम करूँगा। तू सोशल मीडिया का पेज देख लेना।

इस तरह दोनों ने मिलकर अपने नए काम की योजना बनाई। इसके बाद धनंजय आसमान की ओर इशारा करते हुए हँसने लगा

धनंजय :  यार, देख, ये तारे भी हमारे जैसा ही आलसी और नल्ले है, एक जगह टिके हैं और कहीं जाने का नाम ही नहीं ले रहे!

सुनील : हाँ, लेकिन मैं तो यहाँ बस बैठे रहने नहीं आया। मैं तो सलीम खान से मिलने का सपना पूरा करने की तैयारी में हूँ। ये आसमान की ऊंचाइयों में जाने का इरादा है मेरा।

धनंजय : तो फिर सोच ले, सुनील मियाँ, आसमान में उड़ना जितना आसान लगता है, उतना होता नहीं। पर देखो, अगर तू सच में अपने सपनों का पीछा करना चाहता है, तो मैं तेरे साथ हूँ।

सुनील : भाई लेकिन ये सब बहुत मुश्किल है, मुझे कभी कभी लगता है की क्या मैं अपने सपने पूरे कर भी पाऊंगा?

धनंजय  :   भाई मुझे पता है, तेरे लिए ये सब आसान नहीं है, पर मैं हमेशा तेरे साथ हूँ। तुझे जो भी करना है, कर। पर एक बात याद रखना, अपने सपनों के लिए कुछ रिस्क लेना पड़े तो ले लेना। क्योंकि यही वक्त है, अगर अब कुछ नहीं किया तो फिर जिंदगी बाप की दुकान के अंदर ही कट जाएगी।

सुनील : धन्नो यार, तेरी ये बातें सुनकर थोड़ा हौसला मिला। तू सच में मेरा सच्चा दोस्त है। एक दिन जब मैं मुंबई जाकर अपना नाम बनाऊंगा, तो ये सब बातें याद करूंगा। मैं सलीम खान से जब सूट पैंट पहनकर मिलूंगा तो उन्हें तेरे बारे में भी बताऊंगा।

धनंजय :  अच्छा चल, अब तू घर जा, रात हो गई है। कल सुबह चलेंगे।

सुनील बाहर निकलकर घर की तरफ जाने लगा, तभी उसको दूर से वही अजनबी इंसान दिखा, जो उसे पार्क के बाहर दिखा था। आखिर वो इंसान था कौन? सुनील से उसका क्या कनेक्शन था? क्या सुनील सलीम खान से मिलने के लिए सूट पैंट ले पाएगा?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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