शाम का साया मोहल्ले की तंग गलियों पर धीरे-धीरे उतर रहा था। सुनील अपनी सोच में डूबा, हाथ जेब में डाले, सिर झुकाए तेज कदमों से आगे बढ़ रहा था। तभी जैसे ही वो उस पतली सी गली में मुड़ा, उसकी नज़र अचानक दूर एक किनारे पर खड़े एक अजनबी पर पड़ी।
उसने एक लंबा ओवरकोट पहना हुआ था, जिसका कॉलर उठा हुआ था,
सुनील का दिल एक पल के लिए तेज़ धड़कने लगा। सुनील के दिमाग में बिजली-सी कौंधी। तब भी वो इंसान ऐसे ही खड़ा था—चुपचाप, बिना किसी हरकत के, जैसे किसी का इंतजार कर रहा हो।
सुनील : ये वही इंसान है... कल रात पार्क के बाहर देखा था।
पर इस बार सुनील के भीतर एक अलग सा जज़्बा जाग उठा। कल रात तो वो नजरअंदाज़ कर के निकल गया था, पर आज उसके कदम रुक गए। उसने गहरी सांस ली, जैसे अपने अंदर के डर को काबू में करने की कोशिश कर रहा हो।
सुनील : अरे सुनिए! आप कौन हैं?
उसकी आवाज़ गली की खामोशी को चीरती हुई गूंज गई।
अजनबी ने धीरे-धीरे सिर घुमाया। उसके चेहरे पर छाई परछाईं और भी गहरी हो गई। उसकी आंखें एक अजीब चमक से सुनील को घूर रही थीं, जैसे वो न केवल उसे देख रहा था, बल्कि उसके अंदर तक झांक रहा हो।
सुनील का गला अचानक सूखने लगा, पर उसने हिम्मत नहीं खोई। वो थोड़ा और आगे बढ़ा,
सुनील : सुना नहीं? मैं तुमसे बात कर रहा हूं!
अजनबी ने अब तक एक शब्द भी नहीं कहा था। उसने बस अपनी गर्दन हल्के से झुकाई, जैसे कोई पुरानी याद में खो गया हो, या शायद सुनील के सवाल का जवाब सोच रहा हो। फिर फिर वो अचानक एक कदम आगे बढ़ा।
सुनील का दिल ज़ोर से धड़का, पर उसने अपने पैरों को पीछे नहीं खींचा।
पर अजनबी जैसे उसकी बात सुन ही नहीं रहा था। उसकी आंखें अब भी सुनील पर जमी थीं, और वो एक अजीब मुस्कान के साथ धीरे-धीरे गली के साये में खोने लगा। तभी सुनील ने फिर से आवाज़ लगाई
सुनील : अरे रुको
वो तेजी से दौड़ा, लेकिन वो अजनबी पलटकर देखे बिना धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। सुनील ने कुछ तेज़ी से उसके पास जाने की कोशिश की और एक बार फिर ऊंची आवाज़ में पुकारा,
सुनील : सुनिए ना! आप कौन हैं? रुकिए!
अचानक, वो इंसान एक मोड़ पर मुड़ा और सुनील की नज़रों से गायब हो गया। सुनील जब उस जगह तक पहुंचा तो चारों ओर देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था। जैसे वो अजनबी हवा में घुल कर गायब हो गया हो। सुनील ने चारों ओर नज़र दौड़ाई, परंतु सन्नाटा ही उसे जवाब दे रहा था। उसे ये बात समझ में नहीं आ रही थी कि आखिर इंसान कौन था, और हर बार उसे देखकर इस तरह गायब क्यों हो जाता था। उसके मन में तरह-तरह के सवाल उठने लगे। क्या ये सिर्फ एक संयोग था, या फिर उसके पीछे कोई छिपा हुआ इशारा था? वो समझ नहीं पा रहा था। कुछ देर वहीं खड़ा रहकर उस अजनबी को ढूंढ़ने की कोशिश करने के बाद, सुनील ने गहरी सांस ली
सुनील : शायद मुझे ही कुछ गलतफहमी हुई होगी। शायद थकान से भी ऐसा लग सकता है।
फिर भी, सुनील के मन में थोड़ी बेचैनी थी। उसके दिल में उस अजनबी की बाते अब भी घूम रही थी, और कहीं न कहीं वो सोच रहा था कि क्या वो अजनबी उससे कुछ कहना चाहता था। सुनील जब घर वापस आया तो घड़ी आधी रात के आसपास का वक्त दिखा रही थी। पूरे घर में सन्नाटा था, लेकिन एक कमरे में हल्की-सी रोशनी जल रही थी। सुनील ने अंदर कदम रखा तो देखा कि उसकी माँ, शांति, इंतजार करती हुई बैठी थी। उसके चेहरे पर चिंता और प्यार का भाव साफ झलक रहा था। माँ को देख सुनील का दिल पिघल गया। उसने सोचा, माँ ने अभी तक खाना नहीं खाया होगा। शांति ने मुस्कुराते हुए सुनील की ओर देखा
शांति : कहाँ चला गया था बेटा? इतनी देर हो गई थी, मैंने सोचा तू आज शायद आना ही भूल गया।
सुनील : बस माँ, कुछ काम ढूंढ रहा था...अपने सूट पैंट के लिए पैसे इकट्ठा करने की कोशिश कर रहा हूँ। पापा का तो तुम्हें पता ही है, वो तो मेरी किसी भी बात को सुनने को तैयार ही नहीं हैं।l
बस माँ, कुछ काम ढूंढ रहा था...अपने सूट पैंट के लिए पैसे इकट्ठा करने की कोशिश कर रहा हूँ। पापा का तो तुम्हें पता ही है, वो तो मेरी किसी भी बात को सुनने को तैयार ही नहीं हैं।l
शांति : तू तो जानता है न बेटा, तेरे पापा दिल के बुरे नहीं हैं। वो सिर्फ ये नहीं चाहते कि तू भी वही सब मुश्किलें झेले जो उन्होंने अपनी जवानी में सही हैं। बस, इसी वजह से वो तेरे सपनों पर कभी-कभी रोक लगाने की कोशिश करते हैं।
सुनील ने एक गहरी सांस ली और सिर झुका लिया। माँ की बातें सुनकर उसकी आँखों में थोड़ी नमी आ गई थी, लेकिन वह उन्हें झट से छिपाने की कोशिश करने लगा। कुछ पलों की खामोशी के बाद उसने अपनी मां को देखा,
सुनील : माँ, मैं समझता हूँ कि पापा क्या चाहते हैं। लेकिन उनके तानों से कभी-कभी मेरा दिल बहुत दुखता है। बस, एक सूट पैंट ही तो चाहिए। क्या इतनी-सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकता?
शांति : तू चिंता मत कर, मैं सुबह तेरे पापा से बात करूंगी। अब चल, खाना खा ले, मैं भी तेरे साथ ही खा लूंगी।
लेकिन बेटा, ये सूट पैंट आखिर चाहिए किसलिए?
सुनील : माँ, पापा को मत बताना... लेकिन बॉलीवुड सुपरस्टार सलीम खान बरेली आने वाले हैं। मैं उनसे मिलने जाना चाहता हूँ। मेरा बचपन से यही सपना था कि मैं एक दिन उनसे मिलूं और उनसे कुछ सीख सकूं। माँ, मैं सलीम खान जैसा बनना चाहता हूँ।
शांति : अरे, तू सलीम खान से कम सुंदर थोड़ी है! तेरे चेहरे में तो चांद जैसी रौनक है। और हाँ, सपने देखना कोई गुनाह नहीं है, बेटा। जब से तू छोटा था, तुझे हमेशा ही बड़े-बड़े सपनों में खोया देखा है। मुझे तो भरोसा है कि एक दिन तू अपने सपने जरूर पूरे करेगा।
सुनील : माँ, तुम्हें पता है? जब भी सलीम खान की फिल्म आती थी, तो मैं सबसे पहले टिकट खरीदने की सोचता था। मेरे पास भले पैसे न हों, चाहे तुमसे झूठ बोलकर मांगे हो। लेकिन हर फिल्म देखी है। क्योंकि मैं सपनों में हमेशा उनकी तरह हीरो बनना चाहता था। मैंने उनकी हर फिल्म में उनके जैसा बनने का सपना देखा है। और अब, माँ, जब वो यहाँ आ रहे हैं, तो मैं बस इस मौके को गंवाना नहीं चाहता।
शांति : अरे बेटा, सपना देखना कोई गुनाह नहीं है। पर एक बात समझ ले, सलीम खान जैसा बनने के लिए केवल सूट पैंट की नहीं, बल्कि मेहनत और दिल से जुड़े रहने की भी जरूरत होती है। और हाँ, जब तू उनसे मिलने जाएगा, तो एक बात जरूर कहना कि उनकी तरह तुझे अपने अंदाज़ से कामयाबी हासिल करनी है, न कि उनके जैसा बनने की कोशिश में खुद को बदलना है।
सुनील : माँ, तुम्हारी यही बातें मुझे हर बार और हिम्मत देती हैं। पापा से बात करना मुश्किल हो जाता है, पर तुम्हें सब बताने में दिल को सुकून मिलता है।
शांति ने सुनील के सिर पर हल्के से हाथ फेरने लगी,
शांति : बेटा, मैं जानती हूँ कि तेरा सफर आसान नहीं होगा, पर तू कभी हार मत मानना। लोग चाहे जो भी कहें, ताने मारें या रोकें, लेकिन अपने सपनों की राह में चलते रहना। ये दुनिया चाहे जितनी भी मुश्किलें डाले, पर मेरी दुआएँ हमेशा तेरे साथ हैं।
सुनील ने मुस्कुराते हुए अपनी माँ को गले लगा लिया। उस पल, वो अपने सारे गम और संघर्ष भूल गया। माँ की गोद में जैसे उसे नई ताकत मिल गई हो। उसने एक बार फिर अपने सपने को पूरा करने की ठान ली। उसे पता था कि पापा से लड़ना मुश्किल है, लेकिन माँ का सहारा उसे हर मुश्किल से लड़ने की ताकत देता है। शांति ने सुनील को खाना परोसा
शांति : अब ये मत कहना कि तू भूखा है। इतने बड़े-बड़े सपने देखने वाला पेट खाली रखेगा तो कैसे चलेगा?
सुनील : माँ, मुझे पता है कि पापा को ये सब बेकार लगता है। लेकिन मैं हर हाल में अपने सपने को पूरा करूंगा। जब तक सलीम खान बरेली में हैं, मैं उनसे मिलने की कोशिश करता रहूंगा। और देखना, एक दिन पापा भी मुझ पर गर्व करेंगे।
शांति : तू जो ठान लेता है, उसे पूरा करने का दम भी रखता है, ये बात मैं जानती हूँ। और हाँ, तेरे पापा की नाराज़गी सिर्फ तुझे सही राह पर लाने के लिए है। जब तू अपनी मेहनत से कामयाब हो जाएगा, तो देखना वो खुद तुझे गले से लगा लेंगे।
सुनील : माँ, मैं मेहनत से पीछे नहीं हटूंगा। और सलीम खान से मिलने का सपना भी पूरा करूंगा। चाहे इसके लिए मुझे कितनी भी कोशिश क्यों न करनी पड़े।
दोनों माँ-बेटे की ये प्यारी बातचीत, जैसे सुनील के जीवन का नया chapter बन गया। उसे पता था कि आगे की राह मुश्किल है, लेकिन माँ के शब्दों ने उसके आत्मविश्वास को दोगुना कर दिया था। अब वो सिर्फ सपने देखने वाला लड़का नहीं था, बल्कि उन सपनों को सच करने के लिए तैयार एक योद्धा था। माँ का प्यार और support उसे हर मुश्किल से लड़ने की ताकत दे रहा था। सुनील का सपना अब केवल एक सूट पैंट खरीदने का नहीं रहा; वो अब अपने जीवन की बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए खुद को तैयार कर रहा था। माँ के आशीर्वाद और सच्चे प्यार के साथ वो खुद को पहले से ज्यादा मजबूत महसूस कर रहा था। इसलिए अगले दिन का सूरज उगते ही सुनील और धनंजय बरेली की सड़कों पर निकल पड़े, नए-नए काम ढूंढने की मुहिम में। दोनों ने फैसला कर लिया था कि आज कुछ भी हो जाए, एक ऐसा काम ढूंढेंगे जिससे कुछ पैसे कमा सकें। बरेली की गलियों में उनके कदम घूमते-घूमते कई अजीबो-गरीब experience का सामना करने वाले थे,
धनंजय : देख भाई,बरेली की हवा में व्यापार है। हम सबसे पहले दुकानों पर जाकर पूछते है। क्या पता किसी दुकान पर काम करने से दोनो को अच्छे पैसे मिल जाए।
सुनील : यार भाई, कुछ और काम ढूंढते है न।।
धनंजय : भाई अभी के लिए जो काम मिले वो कर लेते है। दोनो ने साथ में मिलकर काम किया तो हमारी 3- 4 दिन की दिहाड़ी से ही तेरा सूट पैंट आ जाएगा। उसके बाद हमे कौन सा जिंदगीभर करना है।बस कुछ दिनो की बात है।
सुनील : अच्छा ठीक है, वैसे भी मां कहती है की कोई भी काम छोटा या बड़ा नही होता।
पहले, वो दोनों एक चाय की दुकान के पास रुके। दुकान के मालिक को देखकर धनंजय ने एक सुझाव दिया,
धनंजय : क्यों ना हम चाय की दुकान पर काम करें? एक तो सारा दिन चाय मिलेगी और ऊपर से कुछ पैसे भी कमा लेंगे!
सुनील : वाह धन्नो, इसको बोलते है बनिए का दिमाग।
इसके बाद सुनील ने भी अब जोश में हामी भर दी और दोनों दुकान वाले के पास पहुंच गए।
सुनील : भैया, अगर आपको हेल्प की जरूरत हो तो हम चाय बनाने और बेचने का काम कर सकते हैं।
दुकानदार ने उनकी बातों को थोड़ा गंभीरता से लिया और पूछा,
दुकानदार : अच्छा? तो तुम चाय बना सकते हो?
धनंजय ने बिना सोचे-समझे कहा,
धनंजय : हाँ हाँ, हम तो एक्सपर्ट हैं चाय बनाने में!
दुकानदार ने झिझकते हुए चाय बनाने का काम उनको सौंप दिया। अब चाय बनानी थी, और दोनों दोस्तों ने कभी किसी के लिए चाय नहीं बनाई थी। लेकिन आत्मविश्वास में चूर दोनों ने मिलकर चाय के पतीले में ढेर सारी चायपत्ती डाल दी और खूब सारा अदरक, इलायची डालकर उसे उबालने लगे। जब चाय में दूध डालने का वक्त आया तो सुनील ने आधा किलो दूध डाल दिया। दुकानदार ने जब वो चाय का पहला घूंट लिया तो उसके चेहरे के भाव ऐसे बदल गए जैसे किसी ने जहर दे दिया हो।
दुकानदार : ये क्या बवासीर बना दिए हो।
ये सुनकर सुनील और धनंजय एक दूसरे की तरफ हैरानी से देखने लगे, आखिर अब आगे क्या होगा? क्या सुनील और धनंजय सूट पैंट खरीदने के लिए पैसे जोड़ पाएंगे? या सुनील का सलीम खान से मिलने का सपना सपना ही रह जाएगा।
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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