धूप हल्की हो चुकी थी, और हवा में ठंडक की एक मीठी परत घुल गई थी। सुनील और धनंजय ने सोचा, आज कुछ अलग किया जाए!" दोनों के चेहरे पर एक खास किस्म का जोश था, जैसे कोई बड़ा मिशन हाथ में लिया हो।
धनंजय ने आंखें चमकाते हुए कहा,
धनंजय : भाई, आज ऐसी चाय बनाएंगे कि लोग भूल जाएंगे चायवाले के ठेले को!
सुनील : सही कहा! आज तो चाय में जादू घोल देंगे!
दोनों ने खुद को एकदम प्रोफेशनल चायवाले की तरह समझते हुए काम शुरू किया। धनंजय ने रुमाल गले में डाला, जैसे किसी चायवाले की पहचान हो, और सुनील ने कलाई मोड़ते हुए चायपत्ती के डिब्बे को ऐसे उठाया जैसे वो कोई ट्रॉफी हो।
सुनील : सबसे पहले अदरक!
सुनील बड़े जोश से अदरक को कूटने लगा। पर जोश इतना था कि अदरक के टुकड़े इधर-उधर उड़ने लगे।
धनंजय : थोड़ा धीरे कर, भाई! अदरक चाय में जाएगी न की हवा में?
धनंजय ने तेजी से पतीली में पानी डाला और बिना वक्त गंवाए चायपत्ती ज्यादा डाल दी। फिर इलायची को मसल-मसलकर ऐसे डाला जैसे वो कोई खास मसाला हो।
सुनील : अरे रुक-रुक! लौंग भी डालो, इससे फ्लेवर आएगा!
धनंजय : बिल्कुल, और थोड़ा काली मिर्च भी—कड़क चाय बनानी है ना!
दोनों ने मसाले डाले तो डाले ही चले गए—अदरक, इलायची, लौंग, काली मिर्च, दालचीनी... जैसे कोई चाय नहीं, बल्कि कोई जड़ी-बूटी वाला काढ़ा तैयार कर रहे हों। पतीली से उठती भाप में मसालों की गंध इतनी तेज़ थी कि खुद सुनील और धनंजय को छींक आ गई। उसने अपनी छींक रोकते हुए।
धनंजय: वाह! क्या खुशबू है!
सुनील : ये चाय नहीं, मास्टरपीस है!
थोड़ी देर में चाय तैयार हो गई। दोनों ने बड़े गर्व से कप में चाय डाली और बिना खुद चखे ही चायवाले को पकड़ा दी। चाय वाले ने एक घूंट ली और उसे थूक दिया
चायवाला (चीखते हुए) : ये चाय है या सब्जी? तुमने सारे मसाले इसमें ही डाल दिए! इतनी तीखी चाय तो बरेली में किसी ने नहीं पी होगी!
धनंजय(हंसते हुए) : वो हम मसाला चाय बना रहे थे।
इस बात को दोनों दोस्तों ने हंसी में बात टालने की कोशिश की, लेकिन दुकानदार ने चाय का पूरा पतीला उन्हें थमा दिया
चायवाला : जाओ, यहां से और आगे से यहां दिख मत जाना!
इसके बाद दोनों दोस्तों ने अगली मंज़िल की ओर रुख किया। अब वो एक मिठाई की दुकान के पास पहुंचे, जहां पर काम करने के लिए आदमियों की जरूरत थी।
सुनील : भैया, अगर आपको कोई हेल्प चाहिए, तो हम मिठाई बनाने में मदद कर सकते हैं।
दुकानदार : तुम लोग मिठाई बना सकते हो?
धनंजय : बिलकुल! हम दोनों तो लड्डू और जलेबी बनाने में माहिर हैं। इसके तो परदादा अंग्रेजो के पर्सनल हलवाई थे।
ये सुनकर दुकानदार ने सोचा कि आज नए लोगो के साथ ही कोशिश कर ही लेते हैं, तो उसने लड्डू बनाने का काम उन्हें दे दिया। सबसे पहले धनंजय ने बेसन को थोड़ा ज्यादा गीला कर दिया, और जैसे ही लड्डू को आकार देने की कोशिश की, वो हाथ में चिपकने लगे। सुनील ने सोचा कि थोड़ी और चीनी डालने से शायद स्वाद बढ़ जाएगा, तो इसलिए उसने ढेर सारी चीनी डाल दी। आखिर में लड्डू इतने मीठे हो गए कि दुकान वाले ने जैसे ही उसे चखा, उसकी चीख निकल गई। मालिक ने गुस्से से लड्डू हाथ में पकड़ लिया
मालिक : ये लड्डू हैं या डायबिटीज़ का गोला? इससे तो पूरा बरेली मीठा हो जाएगा और मेरे सारे कस्टमर्स भाग जाएंगे!
ये सुनकर धनंजय और सुनील ने वहां से तुरंत निकलने में ही भलाई समझी। अब दोनो को सुबह से ही कोई काम नही मिल रहा था और दोनों को भूख भी लगने लगी थी, साथ ही कुछ पैसे कमाने की चिंता भी सताने लगी थी। तभी धनंजय ने एक शादी के मंडप के बाहर एक पोस्टर देखा जिसमें साफ-सफाई के काम के लिए किसी को रखने का जिक्र था। दोनों ने सोचा कि साफ-सफाई का काम तो हम आराम से कर सकते हैं। वो तुरंत वहां पहुंचे और काम मांगने लगे। दोनो को आसानी से वो काम मिल भी गया। दोनो ने शादी में सफाई का काम मिलने पर जोश से झाड़ू को उठाया, लेकिन सफाई करने के बजाय उनके अंदर का बचपना जाग उठा। झाड़ू हाथ में आते ही उन्होंने सफाई छोड़ एक-दूसरे को झाड़ू से मारना शुरू कर दिया। कभी सुनील धनंजय को हल्का-सा झाड़ू मारता, तो कभी धनंजय पलटकर सुनील को हंसी-मजाक में छेड़ता। इस तरह वो सफाई करने के बजाय एक छोटे से खेल में खो गए। इतने में, धूल उड़ते-उड़ते एक मेहमान पर जाकर पड़ गई। वो मेंहमान अचानक गुस्से में उठ खड़ा हुआ और चिल्लाया,
मेहमान : ये क्या कर रहे हो तुम लोग! सफाई करने आए हो या तमाशा करने?
दोनों घबराए और सकपका गए, पर अब बहुत देर हो चुकी थी। सुनील और धनंजय को शादी में से झाड़ू-पोछा करने के काम से भगा दिया गया, दोनों निराश होकर बाहर की ओर निकल आए। सुनील ने गहरी सांस ली
सुनील : यार, धनंजय, लगता है अब वाकई कुछ नहीं हो सकता। हर जगह से तो हमें निकाल दिया गया।
धनंजय : हाँ भाई, ये सफाई का काम तो हमसे नहीं होना था, लेकिन अब क्या करें? पैसों का इंतज़ाम कैसे करेंगे?
दोनों सिर झुकाए सोच में डूबे खड़े थे कि तभी सुनील की नज़र सामने वाले गेट पर गई। वहाँ से रिया अंदर आ रही थी। रिया, जिसे सुनील कॉलेज के दिनों से पसंद करता था। उसका नाम सुनते ही सुनील का चेहरा चमक उठता था, लेकिन आज तो वो सच में उसके सामने थी। रिया नीले रंग के खूबसूरत सूट में हल्की मुस्कान लिए उनकी तरफ आ रही थी। उसकी नज़र जैसे ही सुनील पर पड़ी, वो थोड़ी हैरानी से रुक गई। सुनील के कदम वहीँ ठहर गए, जैसे उसकी दुनिया अचानक रुक गई हो। उसकी धड़कनें तेज़ हो गईं, और वो एकदम से मूर्ति बन गया, मानो साँस लेना भी भूल गया हो। धनंजय ने उसकी तरफ देखा
धनंजय : अरे भाई, कुछ बोल ना! मूर्ति क्यों बन गया?
लेकिन सुनील ने कुछ नहीं सुना। उसकी निगाहें रिया पर ही टिकी रहीं। रिया की आँखों में एक हल्की चमक थी, जैसे वो कुछ कहने वाली हो, या शायद उसे देखकर मुस्कुरा रही हो। पर सुनील के दिमाग में जैसे हलचल मच गई थी—वो बस खड़ा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करना चाहिए। रिया का अचानक सामने आना सुनील के लिए किसी सपने से कम नहीं था। वो नीले रंग के सूट में बेहद खूबसूरत लग रही थी, उसकी मुस्कान में एक चमक थी जो सीधे सुनील के दिल को छू रही थी। जैसे ही वो उनकी ओर आई, सुनील का दिल धड़कने लगा, उसकी आँखों में हल्का सा डर था, पर चेहरे पर एक नई चमक।
रिया (मुस्कराते हुए) : अरे सुनील! कितने दिन हो गए मिले हुए, अब कॉलेज के बाद क्या सोचा है? कुछ बिजनेस सोचा है या अभी भी सपने ही देख रहे हो?
सुनील की जुबान जैसे बंद हो गई। सामने खड़ी रिया को देखकर वो सोच भी नहीं पा रहा था कि क्या जवाब दे। उसे तो इस पल पर यकीन ही नहीं हो रहा था। उसके मन में हज़ारों सवाल उठ रहे थे, क्या रिया उससे सच में बात कर रही है? क्या वो भी उसे जानती है? लेकिन उसकी घबराहट में छिपा प्यार उसकी ज़ुबान को रोक रहा था। रिया ने बात आगे बढ़ाई
रिया : मैं तो सोच रही हूँ कि एक थिएटर ग्रुप जॉइन करूँ, बरेली में ही। मैंने सुना है यहाँ एक अच्छे थिएटर ग्रुप की शुरुआत हो रही है। और अगर एक्टिंग करनी है तो सीखना तो जरूरी है, है न?
सुनील उसकी बाते सुनकर भी नही सुन पा रहा था, वो बस उसकी आँखों में खोया हुआ था। रिया की बातों की हर एक लाइन मानो उसके दिल के किसी कोने को गुदगुदा रही थी। उसका सपना था कि कभी रिया के साथ ऐसी बातें करे, उसकी हर इच्छा पूरी करे। लेकिन आज, जब रिया इतनी करीब थी, सुनील कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। रिया की आवाज में एक जोश था, मानो वो अपने सपनों को लेकर बहुत सीरियस थी। सुनील को लग रहा था कि शायद रिया उसकी जिन्दगी में कोई नई रोशनी लेकर आई है, और वो भी उसकी तरह सपनों की दुनिया में जीती है। लेकिन वो इतना खोया हुआ था कि उसकी एक भी बात का सही से जवाब नहीं दे पा रहा था। रिया ने उसकी खामोशी देखकर हल्का सा मुस्कुराया
सुनील : अरे! तुम तो जैसे पुराने ज़माने के हीरो बन गए हो, चुपचाप सिर्फ देख रहे हो। वैसे कोई प्लान तो है न तुम्हारा भी?
इसपर सुनील बस हल्का सा मुस्कुराया और सिर हिला दिया, मानो कह रहा हो कि हां, शायद कुछ तो सोचा है, लेकिन तुम्हारे सामने कहना मुश्किल है। रिया हंस पड़ी, उसकी हंसी जैसे सुनील के दिल की हर धड़कन को तेज कर रही थी। वो चाह कर भी अपनी feelings को छिपा नहीं पा रहा था।
रिया : अच्छा, मुझे जाना है। मेरी मम्मी मेरा इंतजार कर रही होंगी। तुमसे मिलकर अच्छा लगा, सुनील। अपना ख्याल रखना।
जैसे ही रिया ने वापस मुड़कर जाने के लिए कदम बढ़ाया, अचानक उसका दुपट्टा सुनील के हाथ में पहने कड़े में फंस गया। रिया चौंकी और वापस मुड़कर देखी। सुनील की हालत देखकर वो हल्का सा मुस्कुरा दी और धीरे-धीरे दुपट्टा निकालने लगी। उसके हाथों की हल्की सी छुअन ने सुनील के दिल में एक हलचल पैदा कर दी। उसकी सांसें तेज हो गईं, और दिल की धड़कनें इतनी जोर से धड़कने लगीं कि मानो अब वो बेहोश होने ही वाला था। वो एकदम गहरे ख्यालों में डूब गया, उसे लगा जैसे वो सलीम खान की फिल्म “ओम शांति शांति ओम” का हीरो ओम बन गया हो, और रिया उसकी शांति।
तभी रिया उसके कड़े से अपना दुपट्टा निकालते हुए मुस्कुराई
रिया : अच्छा सुनील, फिर मिलते हैं। बाय।
उसके शब्दों की मिठास और उसकी मुस्कान से सुनील का दिल पूरी तरह से पिघल गया। जैसे ही रिया मुड़ी,एकदम से सुनील की आँखों के सामने एक धुंध छा गई। उसकी टांगों ने अचानक साथ छोड़ दिया, और वो धीरे-धीरे लड़खड़ाता हुआ बेहोश होने लगा। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान और आँखों में एक ख्वाब था। धनंजय, जो ये सब देख रहा था, एकदम से सुनील की तरफ भागा और उसे गिरने से पहले ही थाम लिया। बस रिया का चेहरा उसकी आँखों में बसा हुआ था, और उसके कानों में रिया के कहे शब्द गूंज रहे थे, खुद दोहरा रहा था
सुनील : बाय सुनील, फिर मिलते हैं। बाय सुनील, फिर मिलते है
धनंजय : अरे भाई! ये क्या हाल बना लिया तूने?
सुनील : धन्नो, ओम को उसकी शांति मिल गई। मेरी फिल्म भी पूरी हो गई, सलीम खान ने अपनी फिल्म में कहा था ना की “ अगर किसी को पूरे दिल से चाहो तो उसको तुमसे मिलाने में पूरी दुनिया लग जाती है”
उसने सलीम खान के रोमांटिक अंदाज़ में कहा, लेकिन उसके चेहरे पर एक हल्की चिंता भी थी। सुनील ने धनंजय की आवाज सुनी, लेकिन उसकी हालत ऐसी थी कि वो कुछ बोल ही नहीं पा रहा था।
तभी धनंजय ने उसे हल्का सा हिलाया
धनंजय : अबे उठ! हीरो बनने का सपना बाद में देखियो, पहले यहाँ से चल. तुझे जेंटलमैन बनाना है।
लेकिन सुनील की हालत ऐसी थी मानो वो किसी और ही दुनिया में खो गया हो। उसके चेहरे पर एक सपना जैसा भाव था। धनंजय ने उसे उठाया और धीरे से थपकी दी,
धनंजय : चल, हीरो, हिम्मत रख! मुझे तो लग रहा है, जितना तू उसके पीछे पागल है, एक दिन वो भी तेरे प्यार में पागल हो जाएगी।
सुनील ने हल्की सी मुस्कान दी और धनंजय का सहारा लेते हुए वापस चलने लगा। उसकी आँखों में अब भी रिया की छवि थी, उसकी मुस्कान, उसकी बातें। आज का दिन मानो उसकी ज़िन्दगी का सबसे हसीन दिन बन गया था।
सुनील : लगता है यार, हमसे ये काम भी नहीं हुआ। सूट-पैंट के पैसे कमाना कितना मुश्किल है।
धनंजय : अरे यार, तू चिंता मत कर। अभी सलीम खान को आने में टाइम है। हम कल फिर से कोशिश करेंगे, कोई और काम ढूंढ लेंगे। वैसे भी, मेरी मां बार-बार फोन कर रही है, तो अब घर चलना ही पड़ेगा।
इसपर भी सुनील ने एक हल्की मुस्कान दी, लेकिन उसकी आंखों में निराशा साफ झलक रही थी। धनंजय उसे हौसला देकर चला गया, और सुनील अपने घर की ओर बढ़ गया। रास्ते में वो चुपचाप सोच रहा था कि आखिर इतने सारे कामों की कोशिश करने के बाद भी वो एक सूट-पैंट के पैसे नहीं कमा पाया, अब आगे क्या होगा? क्या सुनील सलीम खान से मिलने के लिए सूट पैंट ले पाएगा? या फिर खुद एक जीरो बनकर रह जाएगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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