अपने छोटे-से कमरे में पहुंचते ही वो बिस्तर पर बैठ गया और गहरी सांस लेते हुए दीवार पर लगे सलीम खान के बड़े पोस्टर को देखने लगा।

सुनील : सलीम साहब, आप बरेली आ रहे हो। मुझे याद है कि आपने अपनी एक फिल्म में कहा था की हार कर जीतने वाले को ही असली सिकंदर कहते है। मैं भी हार नही मानने वाला, मैं आपसे सूट-पैंट में मिलना चाहता हूं, लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं। फिर भी, आपके ही शब्दों से हिम्मत मिली है कि हार कर जीतने वाला ही असली सिकंदर कहलाता है और मैं सिकंदर बनकर ही रहूंगा, भले ही मुझे कितनी ही मुश्किलों का सामना क्यों न करना पड़े।

वो कुछ देर यूं ही बैठा रहा, अपने सबसे बड़े आइडल से बातें करता रहा। उसकी आंखों में वो सपनों का संसार तैर रहा था जहां वो सलीम खान से मिल रहा था, एकदम सज-धजकर, सूट-पैंट में, और सलीम खान उसकी मेहनत की सराहना कर रहे थे। पोस्टर के सामने बैठे हुए ही सुनील ने कई ख्वाब देख डाले। कभी वो सलीम खान के साथ एक फिल्म की शूटिंग में होता, तो कभी उनकी फिल्मों के सेट पर उनके साथ मस्ती करता। उसकी आंखों में वो चमक लौट आई जो दिनभर की मेहनत और निराशा के बीच कहीं खो गई थी।

सुनील : देखना, सलीम साहब। मैं आपसे मिलने आऊंगा, वो भी अपने सपनों के सूट-पैंट में। और एक दिन आप खुद मुझसे कहेंगे कि सुनील, तुमने सही में खुद को असली सिकंदर साबित किया है।

सुनील का दिल आज भी उम्मीद से भरा हुआ था, और उसने एक बार फिर से खुद से वादा किया कि वो हार नहीं मानेगा। पोस्टर को निहारते हुए उसने धीरे-धीरे आँखें बंद की और सो गया, जैसे अपने सपनों में ही सलीम खान से मिलने की योजना बना रहा हो।

सुनील अपने छोटे से कमरे में सलीम खान के पोस्टर से बातें करते-करते ही खो गया था। उसकी आंखों में वो सपनों का संसार तैर रहा था जिसमें वह सूट-पैंट पहनकर अपने आदर्श सलीम खान से मिल रहा था। इसी बीच अचानक दरवाज़े पर हल्की दस्तक हुई। सुनील ने चौंककर देखा तो उसकी मां, शांति, मुस्कुराते हुए दरवाज़े पर खड़ी थीं। वो थोड़ा हैरान गया और सीधे होकर बैठ गया। शांति धीमे कदमों से कमरे में आईं, और उसके पास आकर बैठ गईं। उनके चेहरे पर एक प्यार भरी मुस्कान थी, जिसे देख सुनील की सारी निराशा जैसे गायब हो गई। शांति ने अपने हाथ में रखे कुछ रुपये उसकी ओर बढ़ाए,

शांति : ये ले, और जा जाकर अपने लिए सूट-पैंट खरीद ले। अगर कम पड़ जाएं तो मुझसे मांग लेना, घबराना मत।

सुनील ने मां के हाथ से नोट लिए तो उसकी आंखों में हल्की सी चमक लौट आई। वो चुपचाप पैसों को देखता रहा, जैसे उसकी मेहनत और सपनों का सबूत उसके हाथ में हो। इतने दिनों से वो एक-एक पैसा जुटाने की कोशिश कर रहा था, और अचानक इन पैसों को देखकर उसका दिल भर आया। उसने एक पल के लिए मां की ओर देखा और बिना कुछ कहे ही उन्हें कसकर गले लगा लिया।

शांति ने भी उसे अपने प्यार भरे हाथों से सहला दिया। उनकी आंखों में अपने बेटे के लिए जो प्यार था, वो सुनील को महसूस हो रहा था। उन्होंने हल्के-से उसकी पीठ थपथपाई

शांति : अरे, ये सब तेरे पापा ने ही दिए हैं। पर देख, उनको थोड़ा अपने तरीके से चलना पसंद है। पहले तुझे थोड़ा डांट देंगे, लेकिन फिर खुद ही तुझे प्यार से पैसे भी दे देंगे। ऐसा ही है उनका प्यार, थोड़ी डांट और ढेर सारा दुलार। तू इतना मत सोचा कर।

सुनील : मां, क्या पापा को सच में बुरा नहीं लगेगा कि मैं इतनी छोटी-छोटी चीजों के लिए उनसे पैसे मांगता हूं?

शांति : अरे पगले, मां-बाप को कब बुरा लगता है कि उनका बेटा उनसे मदद मांगता है? उन्हें तेरी हर ख्वाहिश का पता है, बस तुझे कुछ सिखाने का तरीका थोड़ा अलग है। और क्या तूने सलीम खान की फिल्मों में नहीं देखा? जीत हासिल करने के लिए हौसला चाहिए, पर साथ ही अपने परिवार का सहारा भी जरूरी होता है। ये तो बस तेरा पापा अपने तरीके से तुझे मजबूत बना रहे हैं।

सुनील : मां, मुझे सलीम खान से मिलने की ख्वाहिश है, लेकिन मुझे अब ये भी समझ आ गया कि आप और पापा के बिना मैं कुछ भी नहीं हूं।

शांति : सपने देखना और उन्हें पूरा करना अच्छी बात है, बेटा। पर ये याद रखना कि चाहे कुछ भी हो, तेरा परिवार हमेशा तेरे साथ रहेगा। सलीम खान को देखकर तूने जो सीख लिया है, उसे अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए इस्तेमाल कर। और जो भी करना है, अपने पापा और मुझे गर्व महसूस कराने के लिए करना।

सुनील ने सिर हिलाया और मुस्कुराते हुए मां को गले लगा लिया। उसके दिल में अब पहले से ज्यादा हौसला और आत्मविश्वास था।

हर रोज़ वह इसी उम्मीद से जीता था कि एक दिन वो अपनी मेहनत से इस छोटे से शहर से निकलकर बड़े पर्दे तक पहुंचेगा। और शायद यही उम्मीद उसे हर ताने, हर हंसी का सामना करने की ताकत देती थी। अगली सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ही सुनील अपने दोस्त धनंजय के साथ टेलर की दुकान पर जा पहुंचा। उसकी आंखों में उत्साह और चेहरे पर मुस्कान थी। धनंजय ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में पूछा,

धनंजय : भाई, आज तो बड़ा हीरो बनकर निकला है घर से। सलीम खान के जैसा सूट सिलवा कर ही दम लेगा, लगता है।

ये सुनकर सुनील ने हल्की हंसी के साथ जवाब दिया,

सुनील : बिलकुल यार। अगर सलीम खान से मिलना है, तो उनके जैसा सूट पहनकर ही मिलूंगा। वरना क्या फायदा?

धनंजय ने हंसते हुए सुनील की पीठ थपथपाई

धनंजय : चल भाई, अब देखते हैं तेरे फैशन के सपने कैसे पूरे होते हैं!

दोनों धीरे-धीरे चलते हुए "मोडर्न टेलरिंग" की दुकान में दाखिल हो गए।  

दुकान बाहर से देखने में नॉर्मल सी थी, मगर अंदर कदम रखते ही दोनो को एक अलग ही दुनिया में आ जाने का एहसास हुआ। दीवारें हल्की-हल्की पीली पड़ी हुई थीं, जिन पर पुराने जमाने के हीरो—राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र—के पोस्टर बड़े करीने से लगे थे। पोस्टरों में वे सब अपने ज़माने के शानदार सूट पहने हुए थे, जो अब भले ही पुराने लगते हों, पर उनकी चमक अब भी दुकान की दीवारों पर बरकरार थी।  

दुकान के एक कोने में लकड़ी का पुराना काउंटर रखा था, जिसके पीछे ढेर सारी सिलाई की पर्चियां, रंग-बिरंगे धागों की रीलें और कपड़ों के नमूने बिखरे हुए रखे थे। मशीनों के धीमे-धीमे चलने की आवाज़ और कपड़ों के काटने की आवाज़ पूरे माहौल में गूंज रही थी।  

सुनील ने एक नजर घुमाई और सामने टेलर को देखा। एक दुबला-पतला आदमी, जिसकी मूंछें हल्की ऊपर को मुड़ी हुई थीं और आंखों पर मोटे फ्रेम का चश्मा चढ़ा था। उसके चेहरे पर काम के प्रति गंभीरता झलक रही थी। वो अपने कस्टमर्स की पर्चियों और कपड़ों को उलट-पलट कर ध्यान से देख रहा था, जैसे हर धागे की कहानी पढ़ रहा हो।  

टेलर का नाम था हरिप्रसाद। जैसे ही उसकी नज़र सुनील और धनंजय पर पड़ी, उसने चश्मे के ऊपर से झांकते हुए धीमे-से सिर उठाया। उसके चेहरे पर हल्की सी झुंझलाहट थी, शायद काम के बीच खलल डालने की वजह से। मगर सुनील और धनंजय के चेहरे पर फैली मासूमियत और उत्साह को देखकर वो थोड़ा खुश हो गया।  

हरी प्रसाद : हाँ भाई साहब, आज क्या हुक्म है? रमेश जी को कुछ सिलवाना है क्या?

सुनील : नही, इस बार पापा का नही, मेरा काम है। मुझे एकदम SRK जैसा सूट चाहिए। वो जो वो फिल्मों में पहनते हैं, वैसा ही बनाना।

हरी प्रसाद : अरे वाह! SRK जैसा सूट! भाई, वो तो बॉलीवुड के हीरो हैं। मगर तुम भी क्या किसी हीरो से कम है? देखो भाई, तुम जैसा बोलोगे, वैसा सूट सिलेंगे। रंग-रूप, स्टाइल सब सलीम खान जैसा ही होगा।

सुनील : बस, यही चाहिए। आप नाप ले लो। मैं बरेली के सबसे अच्छे सूट में मिलना चाहता हूँ उनसे।

हरिप्रसाद अपनी कुर्सी से उठा, कपड़ों के ढेर को साइड में रखते हुए एक फीता निकाला और कहा,

हरी प्रसाद : आइए, माप लेते हैं। हीरो से मिलना है तो हीरो बनकर मिलना पड़ेगा, उसके लिए माप भी परफेक्ट होना चाहिए!

सुनील थोड़ा संकोच करता हुआ आगे बढ़ा। फिर हरिप्रसाद ने पूरी गंभीरता से सुनील की माप लेनी शुरू की—कंधे, छाती, कमर, बाजू। माप लेते वक्त वह हर जगह पर थोड़ी टिपण्णी भी करता जाता, "कमर थोड़ी ज्यादा है... लेकिन ठीक है, फिट कर देंगे।" या फिर, "कंधे मजबूत हैं, अच्छा लगेगा सूट में।"  तभी

धनंजय ने बीच में टोकते हुए कहा,

धनंजय : अरे हरिप्रसाद जी, एकदम स्टाइलिश डिजाइन बनाना। ऐसा लगना चाहिए कि मॉडल रैम्प से सीधा मोहल्ले में उतर आया हो!

हरिप्रसाद : रैम्प पर चलने वालों के कपड़े तो दिखावे के होते हैं, पर जो कपड़े मैं सिलता हूँ, वो दिल जीत लेते हैं!  

यह सुनकर सुनील और धनंजय दोनों हंस पड़े। माप लेने के बाद हरिप्रसाद ने कुछ कपड़े दिखाए—गहरे नीले, भूरे, और काले रंगों में। सुनील ने एक हल्के ग्रे रंग का कपड़ा पसंद किया, जिसमें हल्की चमक थी, पर ओवरड्रेस नहीं लगता था।  

सुनील : बस यही चाहिए

बस हरिप्रसाद जी, ये सूट एकदम परफेक्ट होना चाहिए। सलीम खान मुझसे मिलेंगे तो उन्हें लगे कि मैं कोई हीरो ही हूं।

हरी प्रसाद : अरे भाईसाब, देखना ऐसा सूट बनाऊंगा कि खुद सलीम खान तुमसे मिलकर कहें कि क्या बढ़िया सूट पहना है! मुझे भी एक सिलवाकर दो। तब आप जरूर हमारी दुकान का नाम बताना उनको।

ये सुनकर सुनील की आँखें चमक उठीं। वो सपनों में खो गया, जैसे सलीम खान से मिलना ही उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा मकसद हो।  इसी दौरान हरिप्रसाद ने माप का काम पूरा किया और उसे एक पर्ची थमा दी

हरिप्रसाद : परसों आकर सूट ले जाना, और हाँ, पहनकर दिखा देना, एक बार मैं भी देखना चाहता हूँ कि तुम इस सूट पैंट में कैसे लगोगे?

सुनील ने खुशी-खुशी पर्ची ली और धन्यवाद कहकर जाने ही वाला था कि तभी दुकान के कोने में लगे छोटे से टीवी पर एक खबर चलने लगी। स्क्रीन पर सलीम खान की एक झलक दिखाई दी, और सुनील का ध्यान टीवी की ओर चला गया। उसने फौरन टीवी की आवाज़ बढ़ाई, ताकि पूरी खबर सुन सके।

टीवी एंकर : बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता सलीम खान की अगली फिल्म की शूटिंग जो बरेली में होनी थी, उसे टाल दिया गया है। कुछ प्रोडक्शन कारणों के चलते सलीम खान फिलहाल बरेली नहीं आएंगे। अगली खबर मुंबई में…

ये सुनकर सुनील का दिल जैसे धड़कन छोड़कर थम गया हो। उसे एक पल के लिए यकीन नहीं हुआ कि जो उसने सुना, वो सच है। उसने धनंजय की ओर देखा, और उसकी आंखों में निराशा साफ झलक रही थी। धनंजय भी समझ गया कि ये खबर सुनील के लिए कितना बड़ा झटका है। सुनील धीरे-धीरे टीवी के पास गया और स्क्रीन पर सलीम खान की तस्वीर को देखता रहा। उसकी आंखों में अब वो चमक नहीं थी, जो कुछ पल पहले थी। हरिप्रसाद ने सुनील की हालत देखी और हल्के से उसकी पीठ पर हाथ रखा

हरी प्रसाद : अरे भाईसाब, ये तो बस एक फिल्म की बात है। कल नहीं आएंगे, तो परसों आएंगे। किसी दिन तो मिलना होगा ना?

सुनील : लेकिन हरिप्रसाद जी, मैं इतने दिनों से इसी दिन का इंतजार कर रहा था। मैंने अपने सारे सपनों को सलीम खान से मिलने के लिए ही बुना था और आज जब सब कुछ पास था, तो ये खबर सुनने को मिल गई। मेरा luck ही खराब है।

हरी प्रसाद : बेटा, सपने तो ऐसे ही होते हैं। कभी-कभी टूट जाते हैं, कभी कभी आप उसमे हार जाते हो, लेकिन ये भी याद रखो कि जो हार कर भी जीतता है, वही तो असली सिकंदर होता है। जैसे सलीम खान ने अपनी एक फिल्म में कहा था ना, हार कर जीतने वाला ही असली सिकंदर होता है। तो क्या हुआ अगर आज सलीम खान नहीं आ रहे? ये सपना तुमने देखा है, और इसे पूरा करने के लिए खुद को इतना मजबूत बनाओ कि एक दिन सलीम खान खुद तुमसे मिलने आएं।

आखिर अब आगे क्या होगा? क्या सुनील का सलीम खान से मिलने का सपना, सपना ही रह जाएगा? या फिर सुनील कोई और रास्ता निकालेगा? आगे क्या होगा?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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