सुनील का सलीम खान से मिलने का सपना भले ही टूट गया था, लेकिन उसके दिल में एक्टिंग का जुनून अब पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गया था। उसने अपने आप से वादा किया था कि चाहे कोई भी हालात हों, वो अपने इस जुनून को जिंदा रखेगा और अपने सपने को हकीकत में बदलकर दिखाएगा। इसी सोच के साथ उसने तय किया कि वो एक थिएटर ग्रुप जॉइन करेगा ताकि उसे अपनी एक्टिंग को सुधारने का मौका मिले। इसके अलावा एक और बात ये थी की क्योंकि सलीम खान ने भी बॉलीवुड में जाने से पहले एक थिएटर ग्रुप में एक्टिंग सीखी थी। सुनील भी चाहता था की वो भी सलीम खान के नक्शे कदम पर चले। इसलिए उसने इस बारे में अपने सबसे करीबी दोस्त, धनंजय से बात करने की सोची। शाम ढल रही थी, और सुनील तेजी से कदम बढ़ाते हुए धनंजय के घर पहुंचा। धनंजय का घर बड़ा था और बाहर से देखने में बेहद सुंदर भी लगता था, लेकिन अंदर का माहौल अक्सर तनाव से भरा होता था। उसकी माँ और पिता के बीच आए दिन झगड़े होते रहते थे। उनके झगड़े की वजह से घर का माहौल हमेशा भारी रहता था, लेकिन धनंजय ने इन हालातों में भी अपने लिए और अपने छोटे भाई संजय के लिए एक अलग ही दुनिया बना रखी थी। तभी सुनील ने दरवाज़े पर दस्तक दी, सामने धनंजय खड़ा था, जो उसे देखकर मुस्कुराया।

धनंजय : अरे, सुनील! ये शाम के वक्त इधर कैसे आना हुआ?

सुनील (मुस्कुराते हुए) : सोचा तुझसे कुछ खास बात कर लूं। अंदर आने देगा या यहीं पर खड़े-खड़े चर्चा करनी है?

धनंजय ने उसे अंदर बुला लिया, और दोनों कमरे में जाकर बैठ गए। कमरे में बैठते ही सुनील ने महसूस किया कि धनंजय के माता-पिता के बीच एक बार फिर बहस चल रही थी। उनकी ऊंची आवाजें पूरे घर में गूंज रही थीं। तभी अंदर से धनंजय के पापा की आवाज़आई, जो गुस्से में उसकी मम्मी से बात कर रहे थे।

धनंजय के पापा : तुम्हें हर बात पर बहस करनी है, ना? हर बार बस लड़ाई! कभी तो चैन से बैठो। क्या घर-घर की बात करती रहती हो दिनभर!

धनंजय की मां (गुस्से में) : मुझे नहीं सहना तुम्हारा ये रवैया। हर दिन बस यही होता है, मैं बच्चों के लिए ही रुकी हूं यहां। वरना मैं कब का छोड़कर जा चुकी होती इस घर को≠

धनंजय ने खीज कर सिर झुका लिया। सुनील ने उसके कंधे पर हाथ रखा, और दोनों ने बिना कुछ कहे ही उस माहौल को समझा। तभी संजय, जो 9 साल का था, आकर सुनील के पास बैठ गया।

धनंजय : सुनील, चल छोड़ इन सब बातों को। मुझे अपने प्लान के बारे में और बता। क्या सोचा है आगे?

सुनील : यार, मुझे तुझसे कुछ जरूरी बात करनी है।

धनंजय : बता न, क्या बात है? वैसे, तेरा वो सलीम खान से मिलने का प्लान तो गया हाथ से, अब क्या करने का सोच रहा है?

सुनील : यार, सपना टूट गया, लेकिन जुनून अब भी कायम है। मैंने सोचा है कि मैं रिया के थिएटर ग्रुप को जॉइन कर लूं।

धनंजय(चिढ़ाते हुए) : अरे वाह, रिया का थिएटर ग्रुप जॉइन करेगा! लगता है, भाई, तेरी एक्टिंग के साथ-साथ प्रेम कहानी भी इसी बहाने शुरू होने वाली है। सही जा रहा है तू।

सुनील (मुस्कुराते हुए) : अरे, ऐसा कुछ नहीं है। मैं वहां सिर्फ एक्टिंग सीखने जा रहा हूं।

धनंजय  : भाई, ये एक्टिंग के बहाने कुछ ज्यादा ही एक्टिंग मत कर! मैं तुझे अच्छी तरह से जानता हूं। वैसे अच्छा ही है, इसी बहाने तेरी प्रेम कहानी तो शुरू हो पाएगी। तू उसका सूरी और वो तेरी पार्टनर। अच्छा है, नहीं तो सलमान बनकर रह जाएगा। तुझे सलमान नही, सलीम खान बनना है, समझा कर!

धनंजय की बातों पर दोनों ठहाके मारकर हंस पड़े। उनके हंसी की आवाज़सुनकर, उनका छोटा भाई संजय खेल छोड़कर उनके पास आ गया और पूछने लगा कि वो किस बात पर इतनी जोर-जोर से हंस रहे हैं।

संजय : भैया, आप लोग किसकी बात कर रहे हो? मुझे भी बताओ न!

धनंजय : तेरा बड़ा भाई है ना, अब हीरो बनने का सपना देख रहा है। जल्द ही ये सलीम खान की तरह फिल्मी दुनिया में छाने वाला है!

संजय : भैया, मुझे भी बड़ा होकर हीरो बनना है!

धनंजय : लो आ गई एक और नई मुसीबत

धनंजय और सुनील हंस ही रहे थे कि तभी धनंजय की मम्मी, जो अंदर की बहस से खफा होकर बाहर आईं थीं, उन्होंने सुनील को देखा और प्यार भरी मुस्कान दी। उनकी आंखों में प्यार और एक हल्की सी शिकायत झलक रही थी।

धनंजय की मम्मी : अरे सुनील बेटा! कब आए? घर में सब ठीक-ठाक है न? तुझे देखकर बड़ा अच्छा लगा, धनंजय तो बस फालतू की बातें करता रहता है। कोई तेरा जैसा समझदार और मेहनती हो, तो उसे देखकर दिल को सुकून आता है।

धनंजय की मम्मी का ये कहना सुनकर धनंजय के पापा ने आंखें हल्की सी तिरछी कीं, मानो ये बोलकर वो उन पर ही ताने कस रही थी। इसपर सुनील ने प्यार से सिर हिलाया  

सुनील : हां आंटी जी, सब अच्छा है। बस थोड़ी सी उलझन में था, सोचा धनंजय से कुछ बातें कर लूं

धनंजय की मम्मी : देखो बेटा, मेहनत करने से ही सब कुछ मिलता है। ये नहीं कि बस घर में बैठकर हुक्म चलाते रहो और उम्मीद करो कि सब अपने-आप हो जाएगा। जो लोग अपने पैरों पर खड़े होते हैं, मेहनत का मोल जानते हैं।

धनंजय के पापा, जो अब तक एक कोने में खड़े होकर उनकी बातें सुन रहे थे, उनके चेहरे पर थोड़ी नाराजगी थी, लेकिन भीतर से वो सुनील की मेहनत और सच्चाई को पसंद भी करते थे। वो भी सुनील की ओर देखा

धनंजय के पापा : हां बेटा, बहुत मेहनत की जरूरत है और अनुशासन भी जरूरी है। देखो, सपने देखना और बातें बनाना आसान होता है, लेकिन असली चुनौती होती है, उन सपनों को सच कर दिखाना। धनंजय, तुझे भी ये बातें समझनी चाहिए, ये नहीं कि हमेशा हवा में बातें करता रहे, पूरा दिन बस घर में रह, कुछ करके भी दिखा ताकि हम तुझ पर भी गर्व करें।

धनंजय :  अरे मम्मी-पापा, आप अब यहां सुनील के सामने भी महाभारत मत शुरू कर दो। वो तो बस मुझसे मिलने आया है और पापा, आप चिंता मत करो। मैं और सुनील मिलकर एक दिन ऐसा नाम कमाएंगे कि आप और मम्मी को हम पर गर्व होगा। फिर आप सबके सामने कहोगे कि ये मेरे बेटे हैं।

धनंजय के पापा : हां हमे पूरा यकीन है। सुनील बेटा, अब आए हो तो खाना खाकर जाना

इसके बाद उसके मम्मी पापा वहां से अपने रूम में चले गए। धनंजय के मम्मी-पापा की बातें सुनकर सुनील को एहसास हुआ कि ये सिर्फ उसके अपने परिवार का support नहीं है जो उसे मजबूत बनाए हुए है, बल्कि धनंजय का परिवार भी उसे support दे रहा था। उसे अब लगने लगा था कि असली सपनों का रास्ता सिर्फ मंजिल तक नहीं जाता, उसमें दोस्त, परिवार और रिश्ते भी शामिल होते हैं।

तभी अचानक, सुनील का ध्यान रिया पर आ गया। उसे महसूस हुआ कि वो रिया से मिलने के लिए एक्साइटेड हो रहा था। धनंजय ने सुनील की ओर देखा

धनंजय : भाई, सच बता। रिया के ग्रुप में जाना बस एक्टिंग सीखने का बहाना है या कुछ और भी है?

सुनील : रिया एक अच्छी एक्ट्रेस है और उसका ग्रुप बहुत अच्छा है। सच में, मैं एक्टिंग सीखने के लिए ही वहां जाना चाहता हूं।

धनंजय : अच्छा, अच्छा! मैं समझ गया। एक्टिंग भी सीखना है और रिया से भी कुछ बातें करनी हैं। क्या बात है, भाई! पहले सलीम खान बनने का सपना था और अब रिया के साथ फिल्मी दुनिया में जाने की प्लानिंग है। अब तो मुझे भी लग रहा है की जैसे रब ने बना दी जोड़ी, पार्टनर

दोनों एक बार फिर ठहाके मारकर हंस पड़े। हंसी-मजाक और दोस्ती की इस मिठास में सुनील के मन में एक नई उम्मीद जगी। उसे यकीन हो गया कि चाहे उसके रास्ते में कितनी भी परेशानियां क्यों न आएं, वो खुद को पीछे नहीं हटने देगा।

अगले दिन, सुबह की हल्की धूप पूरे शहर पर एक नरम चादर सी बिछी थी। सड़कों पर हलचल कम थी, लेकिन सुनील के दिल में एक अलग ही हलचल थी—बेचैनी और एक अनजानी सी घबराहट। उसने जल्दी-जल्दी तैयार होकर अपना बैग उठाया और रिया के थिएटर ग्रुप की ओर बढ़ गया। उसके कदम तेज़ थे, मगर दिल की धड़कनें उससे भी तेज़।  

थिएटर ग्रुप का गेट पार करते ही सुनील के सामने एक नई दुनिया खुल गई। एक बड़ा हॉल, जिसकी दीवारें हल्की मटमैली सफेद थीं, पर हर कोना कला और पेंटिंग से भरा हुआ था। लकड़ी के पुराने फर्श पर जूतों की खुरचन के निशान थे, जो हर कलाकार के कदमों की कहानी बयां कर रहे थे। चारों ओर एक्टर्स अपनी-अपनी भूमिकाओं में डूबे हुए थे—कोई ज़ोर-ज़ोर से डायलॉग्स रट रहा था, तो कोई शीशे के सामने खड़ा होकर चेहरे के भावों पर काम कर रहा था।  

एक कोने में कुछ लोग ग्रुप बनाकर इम्प्रोवाइजेशन कर रहे थे। उनकी आवाज़ें गूंज रही थीं, "थिएटर में डर नहीं चलता!" और फिर अचानक हंसी के फव्वारे छूटते। इस माहौल में एक अजीब सी गर्मजोशी थी—कोई दिखावे की बात नहीं, बस सच्ची लगन और जुनून।  

सुनील ने हॉल में नज़र दौड़ाई और तभी उसकी आंखें रिया पर जाकर ठहर गईं। रिया हॉल के बीच में खड़ी थी, गहरे नीले रंग की कुर्ती और बंधे हुए बालों में वह बहुत सुंदर लग रही थी। सुनील के चेहरे पर अनजाने ही एक हल्की मुस्कान आ गई। उसकी आंखों में एक झलक थी—जैसे रिया को देखकर उसे यकीन हुआ हो कि वो सही जगह आया है। मगर उसी पल उसने झट से नज़रें हटा लीं, ताकि रिया को पता न चले कि वो उसे देख रहा था। वो नहीं चाहता था कि उसकी हल्की सी कमज़ोरी उसके आत्मविश्वास में दरार डाल दे।  

गहरी सांस लेकर उसने खुद को संभाला और हिम्मत जुटाकर थिएटर ग्रुप के टीचर, मिस्टर वर्मा के पास गया। मिस्टर वर्मा अधेड़ उम्र के थे, पर उनकी कद-काठी और पर्सनेलिटी में अब भी वही रौब था जो एक मंझे हुए एक्टर का होता है। वो एक कुर्सी पर बैठे थे, हाथ में एक नोटबुक और पेन लिए, जैसे हर किसी की परफॉर्मेंस को बारीकी से देख रहे थे।  

सुनील : सर, मुझे एक्टिंग करनी है। मैं आपके थिएटर ग्रुप को जॉइन करना चाहता हूँ।

मिस्टर वर्मा : अच्छा! अगर सच में दिल से एक्टिंग करना चाहते हो, तभी यहाँ ज्वाइन करने की परमिशन है। क्योंकि थिएटर सीखना आसान नहीं है, लड़के। यहाँ सिर्फ डायलॉग बोलना नहीं, बल्कि खुद को खोकर किसी और के जज़्बातों में ढलना होता है।

आओ पहले एक सीन करके दिखाओ। मैं तुम्हारे अंदर के उस जुनून और काबिलियत को देखना चाहता हूँ जो एक सच्चा एक्टर बनने के लिए चाहिए।

सुनील : हां, सर। मैं तैयार हूँ।

मिस्टर वर्मा के होंठों पर एक हल्की मुस्कान आई, वहीं

सुनील का दिल तेज़ी से धड़कने लगा, लेकिन अब पीछे हटने का कोई सवाल नहीं था। उसने हॉल के बीच में खड़े होकर गहरी सांस ली। वहां रिया भी थी, जो अब उसकी ओर देख रही थी, शायद सोच रही थी कि नया लड़का कैसा करेगा।  

और वो मिस्टर वर्मा की बात का इंतजार करने लगा कि वो उसे कौन-सा सीन करने को कहेंगे। तभी मिस्टर वर्मा रिया की तरफ देखा।

मिस्टर वर्मा : रिया सुनो, तुम इस सीन में सुनील के साथ एक्टिंग करो।

रिया उसकी तरफ बढ़ने लगी, तभी उसके दिमाग में धनंजय की बात घूमने लगी,सुनील का दिल तेजी से धड़कने लगा। अब आगे क्या होगा? क्या सुनील रिया के साथ मिलकर एक्टिंग कर पाएगा? क्या वो रिया को इंप्रेस कर पाएगा?
 

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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