जुहू बीच में लहरों के साथ कबड्डी खेलना, मरीन ड्राइव पर गर्लफ्रेंड का हाथ थाम कर बैठना, नरीमन पॉइंट पर अपने सपनों को लेकर नया आशियाँ बनाना, अरब सागर में उठ रहे हाई टाइड को देखकर हर बार चौंकना। मुंबई एक माया नगरी है, यहाँ हकीकत का थप्पड़ बहुत ज़ोर से पड़ता है। मुंबई कई सालों से लोगों के सपने सच कर रहा है, कच्चे खिलाड़ियों को पक्का कर रहा है। एक तरफ बड़े-बड़े बंगले हैं, दूसरी तरफ चाली में कई सपने पड़े हैं। कोई चार बजे मेहनत करने को उठता है, कोई चार बजे मेहनत करके सोता है। यह शहर पिछले कई सालों से आराम करना भूल चुका है। इस पर करोड़ों लोगों के सपनों का बोझ है, लेकिन इन करोड़ों के बीच में कुछ ही हैं जो सितारा बनते हैं और इन गिने-चुने सितारों में कोई एक ही होता है जो किसी भी तरह आसमान को अपनी मुट्ठी में करना चाहता है।
इतनी पोएटिक और स्लो लाइफ किसको चाहिए? दुनिया 5G में आ चुकी है। स्ट्रॉन्ग नेटवर्क के ज़माने में लोग रिश्ते बनाने से ज़्यादा नेटवर्किंग में बिज़ी हैं। ये ज़माना तो घर बैठे दुनिया जीतने का है, चाहे सच्चाई से या ठगी से। हर जगह मारा-मारी है, चोरी है, लूट है। सामानों की चोरी हो तो माल बरामद होने की उम्मीद होती है, मगर कोई दिल, भरोसा और एहसास ही लूट ले तो? ऐसे लुटेरे को तो पहचान पाना भी मुश्किल है। ऐसे लुटेरे सच्चाई का चोला पहने, अपनी झूठी रूह लिए फिरते हैं। ये आपसे कब, कहाँ, कैसे मिलेंगे, इसका कोई अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता, मगर मिलेंगे ज़रूर, इस बात पर यकीन किया जा सकता है। ऐसे लुटेरे, कहानी बहुत अच्छी बनाते हैं। एक कहानी तो आप अब सुनने वाले हैं।
ये कहानी है सौरभ रॉय की, जो कलकत्ता में पैदा हुआ, वहीं पला-बढ़ा और 18 साल की उम्र में मुंबई आ गया। हर इंसान की तरह, मुंबई ने भी सौरभ को अपनी माया में फंसा लिया और कुछ माया में वो पहले से ही फंसा हुआ था। सौरभ ने इन 10 सालों में अपने ऊपर खूब मेहनत की। इतनी मेहनत की कि महज़ 28 साल में ही बांद्रा में अपने नाम का फ्लैट ले लिया, 30 लाख की कार ख़रीद ली, बड़े-बड़े ब्रांड्स के कपड़े और जूतों से खुद का लाइफस्टाइल मेनटेन कर लिया।
इसके वीकेंड्स की सुबह होती बियर से, दोपहर बीतती रम में, शाम ढलती वोडका में और रात ख़त्म होती व्हिस्की में। इतनी इज़ी गोइंग लाइफ यूँ ही नहीं मिली है सौरभ को। ये तो उसकी ऑब्ज़र्वेशन स्किल्स का कमाल है। इस स्किल के चलते ही कभी डॉक्टर, कभी राइटर, तो कभी प्रोफेसर बनकर उसने कई दिलों को लूटा है। नहीं! नहीं! ये कोई रील एक्टिंग नहीं, बल्कि रियल लाइफ थ्योरी है, जो सौरभ ने अपने मज़े के लिए बनाई है।
सौरभ के लिए लड़कियां सिर्फ एक इमोशनल डॉल्स हैं, जिन्हें वह जब चाहे जैसे चाहे वैसे इस्तेमाल करता है। सौरभ लड़कियों की नब्ज़ समझ चुका था। उसे पता चल चुका था कि लड़कियों को कोई भी इमोशनल स्टोरी सुनाकर अपने प्यार में फँसाया जा सकता है। सौरभ का मानना था कि लड़कियों के लिए शुरूआती दिनों में थोड़े एफर्ट्स ले लो, तो उसके बाद वो अपने-आप ही सामने वाले शख्स के लिए खुद को न्योछावर कर देती हैं।
सौरभ एक अच्छा कहानीकार भी है, जिसे मालूम है, कब अपनी कहानी में झूठ को सच दिखाना है। सौरभ ने अपना एक पैटर्न बना लिया था। जैसे वह पहले किसी भी लड़की को स्टॉक करता, फिर एक महीने उसके पीछे घूमकर, उस लड़की का डेली रूटीन समझता, उसकी पसंद-नापसंद का अंदाज़ा लगाता और जब उसके पास पूरी जानकारी आ जाती, तब वह अपना गेम शुरू करता। जिसमें वह कभी खुद को यश बताता, कभी कार्तिक, कभी अमान, तो कभी हरमन।
सौरभ इन सभी लड़कियों को शादी के सपने दिखाता और फिर "फैमिली नहीं मानेगी" का बहाना देकर अलग हो जाता।
इस बीच, सौरभ कभी अपनी माँ को बीमार बताता, तो कभी अपने बाप को। हर बार लड़कियां सौरभ के बिछाए जाल में फंसकर, उसे अपनी सेविंग्स, अपनी ज्वेलरीज़, यहाँ तक कि अपना ATM और UPI पिन तक दे देतीं।
इंसान अच्छा हो या बुरा, उसकी कोई न कोई कमज़ोरी ज़रूर होती है। वैसे ही सौरभ की कमज़ोरी उसकी बहन श्रुति थी। सौरभ कोई मसीहा नहीं था, जो अपनों की ज़रूरत पर खड़ा हो, बस उसके दिल का कोना अपनी बहन के लिए नर्म था और बाकी लड़कियों के लिए उतना ही पत्थर।
सौरभ खुद को एक सुलझा हुआ लड़का बताता, जो सिंपल लिविंग और हाई थिंकिंग की फिलॉसफी में यकीन करता था। लड़कियां उसे ऐम्बिशस लड़का समझती थीं। हर रोज़ किसी न किसी लड़की को चीट करता।
एक शाम, सौरभ बंबई शहर के सबसे बड़े क्लब में क्रिकेट में सट्टा लगा रहा था, तभी उसका फोन बजा।
सौरभ ने जैसे ही फोन में नाम देखा, वह जल्दबाज़ी में क्लब से बाहर निकला और एक लंबी, गहरी सांस लेने के बाद फोन उठाया। कॉल पिक करते ही सामने से तुरंत सवाल आया।
श्रुति : तुमी कोथाय दादा? मैं कब से तुम्हारा फोन ट्राय कर रही हूँ।
यह है श्रुति, सौरभ की छोटी बहन, जिसकी शादी के दो साल बाद ही उसका डिवोर्स हो गया। अपने भाई पर बोझ न पड़े, इसलिए उसने कलकत्ता में रहकर नौकरी की। श्रुति, सौरभ पर अपनी जान छिड़कती थी। हर वक्त बस उसके बारे में सोचती रहती।
श्रुति ने कई बार सौरभ से कहा कि उसे बंबई आने दे, मगर सौरभ हर बार यह कहकर मना कर देता कि उसका घर बहुत छोटा है। श्रुति आसानी से उसकी बात पर यकीन कर लेती। हालांकि, सौरभ एक भाई होने के नाते, श्रुति को हर महीने पैसे भेजता था, मगर खुद यह भूल जाता कि रिश्तों में पैसे नहीं, प्यार की ज़रूरत होती है।
सौरभ की ज़िंदगी में प्यार तो दूर-दूर तक नहीं था और वह प्यार को अपनी ज़िंदगी में आने देना भी नहीं चाहता था। सौरभ श्रुति के सवाल का जवाब सोच ही रहा था कि श्रुति ने उसे आवाज़ देकर कहा, ‘’दादा! कहाँ खो गए?''
सौरभ: कहीं नहीं, किसलिए फोन किया? सब ठीक है?
श्रुति: हाँ, सब ठीक है। आज तुम्हारा बर्थडे है, तो तुम्हारी पसंद का मूंग दाल का हलवा बनाया है। तुम तो याद रखोगे नहीं अपना बर्थडे।
सौरभ: ठीक है। वहाँ किसी चीज़ की कोई कमी तो नहीं है?
श्रुति (प्यार से): है ना, दादा! बस तुम्हारी। इस दुर्गा पूजा घर आ जाओ।
सौरभ: अगर कंपनी से छुट्टी मिली, तो ज़रूर। अच्छा कुछ काम है, मैं बाद में बात हूँ।
इंसान अच्छा हो या बुरा, उसकी कोई न कोई कमजोरी ज़रूर होती है। वैसे ही सौरभ की कमजोरी उसकी बहन श्रुति थी। सौरभ कोई मसीहा नहीं था, जो अपनों की ज़रूरत पर खड़ा हो। बस उसके दिल का एक कोना अपनी बहन के लिए नर्म था और बाकी लड़कियों के लिए उतना ही पत्थर।
इन दिनों सौरभ बांद्रा के फ्लैट में बैठा अपने अगले टारगेट को देख रहा था, जो पेशे से इंटीरियर डिज़ाइनर थी! नाम शिखा था। सौरभ ने पहले उसका पूरा शेड्यूल ऑब्ज़र्व किया।
शिखा को कॉन्टेम्परेरी हाउस पसंद थे। इसलिए उसने अपने घर का इंटीरियर डिज़ाइन बदलने के लिए उसे हायर कर लिया। यहीं से शुरू हुआ सौरभ का खेल। शिखा रोज़ उसके घर अपने कारपेंटर्स के साथ जाती, ताकि उन्हें सबकुछ समझा कर, अपनी आँखों के सामने काम करवा सके और मिसटेक की कोई गुंजाइश न रहे। सौरभ, शिखा को इम्प्रेस करने के लिए अकेले में कॉन्टेम्परेरी डिज़ाइन्स दिखाकर, जिससे उसे लगे कि उन दोनों का टेस्ट सेम ही है।
कुछ ही दिनों में शिखा उसके चार्म में फंस भी गई और जब सौरभ ने उसे डेट पर चलने को कहा, तो वो मना नहीं कर पाई। डेट नाइट वाली शाम शिखा, अपने डिजाइनर ड्रेस में तैयार होकर पहुँच गई।
शिखा वाइन्स की दीवानी थी, यह सौरभ को उसके साथ इतना वक्त बिताने के बाद समझ आ चुका था। इसलिए उसने एक सेवन-स्टार होटल में कैंडल लाइट डिनर अरेंजमेंट करवाया। सौरभ की एक और ट्रिक काम आ गई।
आज तक उसका पासा कभी उल्टा नहीं पड़ा। उसने शिखा के लिए Monte Bello—दुनिया की तीसरी बेहतरीन वाइन—ऑर्डर की। सौरभ उस पर एक के बाद एक सरप्राइज़ देकर अपना चार्म चलाने में कामयाब रहा ।
शिखा 2 ग्लास वाइन पीने के बाद थोड़ा बहक गई और सौरभ इसका फायदा उठाते हुए उसे होटल के एक प्री-बुक्ड रूम में ले गया। दोनों पर वाइन का सुरूर था, तो उसके बाद वही हुआ, जिसकी प्लानिंग सौरभ ने तो की थी, लेकिन इसकी कल्पना शिखा ने कभी नहीं की थी।
एक बेहतरीन डेट नाइट के बाद शिखा, सौरभ के साथ सुबह उसके घर आ गई और दोनों ने फिर से घर डिज़ाइन करने का काम शुरू किया। थोड़ी देर में दोनों के फोन पर एक साथ नोटिफिकेशन में आया। शिखा ने मैसेज ओपन किया और फोन उसके हाथ से छूटकर फ्लोर पर गिर गया। सौरभ भागकर शिखा के पास आया और उसका फोन देखा। उसके पास भी वही मैसेज आया था, जो शिखा को मिला था। उसमें उनके इंटीमेट मोमेंट्स का वीडियो एक प्राइवेट नंबर से भेजा गया था। साथ ही एक और मैसेज आया: “10 लाख रेडी रखो, अगर चाहते हो कि यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल न हो।”
सौरभ और शिखा दोनों घबरा गए। सौरभ ने शिखा को पुलिस कंप्लेंट करने कि सलाह दी, पर वह नहीं मानी। उसे लगा कि पैसे देकर ब्लैकमेलर को शांत करना ही बेहतर होगा.. लेकिन इतनी बड़ी रकम न तो सौरभ के पास थी और न ही शिखा के पास। सौरभ ने कहा कि उसके अकाउंट में इस वक्त सिर्फ 5 लाख हैं, पर ब्लैकमेलर ने उन्हें सिर्फ 4 घंटे का समय दिया था इतनी बड़ी रकम जुटाने के लिए। इसलिए शिखा ने तुरंत सौरभ के अकाउंट में 5 लाख रुपये ट्रांसफर कर दिए।
5 मिनट बाद एक और मैसेज आया: "पैसे लेकर मालाड स्टेशन पहुँचो। वहाँ उसल पोहे वाले के पास हरा-नीला कचरे का डब्बा होगा। नीले वाले में बैग डालकर निकल जाना। पैसे मिलते ही कल उसी जगह पर वीडियो की हार्ड ड्राइव डाल दी जाएगी।"
मैसेज मिलते ही सौरभ, शिखा के साथ बैंक भागा और फिर मालाड के लिए निकल गया। शिखा ने सौरभ को सख्त हिदायत दी थी कि ब्लैकमेलर ने जैसा कहा है, वैसा ही करना। रिस्क लेने की कोई जरूरत नहीं है। सौरभ ने ब्लैकमेलर के कहे मुताबिक बैग उसी जगह पर डाल दिया, लेकिन आधा घंटा वहीं पास के ही चाय पॉइंट पर छिपकर ब्लैकमेलर्स इंतजार करता रहा। जैसे ही एक लड़का बैग लेने आया, सौरभ ने उसे पकड़ने की कोशिश की और ड्राइव छीनने में कामयाब रहा, पर पैसों से भर बैग वो लेकर भागने में कामयाब रहा। उस लड़के के साथ इस झड़प में उसे काफी चोट लग गई थी। जब सौरभ वापस कर के पास गया तो, शिखा उसकी चोट देखकर घबरा गई और घर आकर उसकी पट्टी की।
कुछ देर साथ में रहने के बाद सौरभ ने शिखा से कहा कि वह घर जाकर आराम करे और यह भी कहा कि वह हार्ड ड्राइव को ठिकाने लगा देगा।
शिखा इस पूरी घटना से दिमागी तौर पर बहुत थक चुकी थी। उसने सौरभ की बात मानकर घर जाकर आराम करने का फैसला किया। शिखा के जाते ही सौरभ के पास एक नोटिफिकेशन आया: "9 लेक्स क्रेडिटेड।"
इस पूरे प्रपंच के पीछे कोई और नहीं, खुद सौरभ ही था और उसका साथ दिया था उसी वेटर ने, जो उन्हें वाइन सर्व कर रहा था। उसी ने ब्लैकमेलर का रोल भी प्ले किया था।
शिखा को विश्वास में लेने के लिए सौरभ ने एक फेक हार्ड ड्राइव जलाकर उसकी कुछ तस्वीरें शिखा भेज दीं। इसके बाद सौरभ के खेल का पार्ट 2 शुरू हुआ।
अब उसने अपना टॉक्सिक बिहेवियर शिखा पर थोपना शुरू किया। यह कहकर कि जो भी हुआ उसके बाद उसे उसकी फिक्र रहने लगी है। उसने शिखा से पल-पल की खबर लेना शुरू कर दिया। सौरभ उसे उसके पसंद के कपड़े पहनने से रोकने लगा। दोस्तों के बीच रहने से मना कर दिया। यहाँ तक कि अपने घरवालों के साथ कहीं आने-जाने पर भी पाबंदी लगा दी।
कुछ दिन तो शिखा ने सहा, फिर उसने सौरभ से खुद ही ब्रेकअप कर लिया। सौरभ के ऐसे बहुत से ब्रेकअप हो चुके थे, इसलिए उसे इस बात से कोई खास फर्क नहीं पड़ा।
अपने इस टारगेट को लूटने के बाद, सौरभ एक बार फिर अपने दोस्तों के साथ क्लबिंग के लिए गया। वहाँ जाते ही उसने बार काउन्टर पर व्हिस्की ऑन द रॉक्स ऑर्डर की। अचानक उसके बाजू में खड़ी एक लड़की ने हिमालयन टोडी का ऑर्डर दिया जिसे सुनकर सौरभ ने कहा, '"अहह, नाइस चॉइस! आई मस्ट से, खूबसूरत लड़कियों की चॉइस उन्हीं की तरह यूनीक होती है।"
ऋतिका: "क्या मैं आपको जानती हूँ?"
सौरभ: "अभी तक तो नहीं, पर आपकी चॉइस की दाद देना चाहता था। वैसे, आप पर यह मेसी हेयरस्टाइल काफी सूट करता है। एनिवे, इंजॉय योर ड्रिंक।"
सौरभ ने एक बार फिर अपना टारगेट तलाश लिया था पर क्या हिमालयन टोडी पीने वाली लड़की को सौरभ अपने जाल में फंसा पाने में कामयाब होगा? उनके बीच यह बातचीत आगे कैसे बढ़ेगी? और सौरभ का अगला पाँसा क्या होगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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