सौरभ अपने चार्म का इस्तेमाल करके, स्ट्रॉन्ग और इंडिपेंडेंट लड़कियों को अपने प्यार में इमोशनली कमज़ोर बना देता है। सौरभ हर बार नई लड़की के साथ नए पैंतरे आज़माता है। सौरभ के चार्म को देखकर लड़कियां भी अपना दिल हार बैठती हैं। सौरभ जब भी किसी लड़की से मिलता, अपना कैरेक्टर बदल लेता। वह जो भी कैरेक्टर प्ले करने के लिए चुनता, उसकी प्रिपरेशन में कोई कमी नहीं छोड़ता। वह चाहे बाहरी तौर पर खुद को कितना ही बदल ले, उसकी नीयत वैसी की वैसी ही रहती—मक्कारों और धोखेबाजों वाली।

सौरभ को देखकर यह अंदाज़ा लगाना आसान था कि किस्मत अच्छे के साथ अच्छा और बुरे के साथ बुरा तो कभी नहीं करती। पिछले दस सालों में सौरभ का ट्रैक रिकॉर्ड 100% रहा था। वह जिस लड़की को चाहता, उसे फंसा लेता, जैसे इस काम के लिए कोई उसे मेडल दे रहा हो। सौरभ मोह से नहीं, मगर माया से पूरी तरह जकड़ा हुआ था।

सौरभ कभी 5-स्टार होटल में अपना दिन गुज़ारता, तो कभी सापूतारा के रिज़ॉर्ट में अपनी हसीन रातें जवां करता। सौरभ की दसों उंगलियां घी में और सिर कढ़ाई में था।

एक शाम वह मुंबई के सबसे बड़े क्लब “कोलंबिया” में एक लड़की से टकराया और मन ही मन उसे अपना अगला टारगेट बनाने की ठान बैठा। एक छोटी सी कन्वर्सेशन के बाद, सौरभ अपनी ड्रिंक लेकर अपने दोस्तों के पास आ गया। अपने फोन पर डेटिंग ऐप निकालकर उस लड़की को सर्च करने लगा। पहली बार इस काम में वह नाकामयाब रहा, क्योंकि वो लड़की “नियरेस्ट डेट एप” पर थी ही नहीं।

सौरभ बांद्रा की नाइटलाइफ एंजॉय करने के बाद—जैसे ही अपने घर आया, उसे वह घर बिल्कुल अपने मन की तरह खोखला लगने लगा। जिसमें इनसिक्योरिटी, अनसर्टेनिटी और जलन के अलावा कुछ नहीं था। उस बड़े से आलीशान फ्लैट में सौरभ को कोई पानी तक पूछने वाला नहीं था।

सौरभ खुद किचन में गया, फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और पानी पीने लगा। उसे इतनी थकान थी कि वह अपने हॉल के काउच पर ही लेट गया। जैसे ही उसने आंखें बंद कीं, वह अपने बचपन में जा पहुंचा।

 

सौरभ अब अपने ख्यालों में 18 साल पीछे चला गया था, जहां वह श्रुति के साथ मिलकर पतंग बनाता, अपने बाबा के साथ रोज़ सुबह म्यूजिक की क्लास के लिए जाता और जब लौटता, तो नाश्ते में अपना पसंदीदा पोरोठा, आलू भाजा और मिष्टी दोई खाता।

हर दिन स्कूल के लिए जाने से पहले, सौरभ अपनी ठाकुमा के हाथ का बना मालपुआ खाकर ही निकलता। स्कूल की मस्ती, फिर छुट्टी के वक्त का खेल और रिक्शा का इंतज़ार।

सौरभ की आंखों में यह सब झूल गया। उसने तुरंत ही इन यादों को झुँझला कर झटक दिया और अपने बेडरूम में चला गया, मगर उसके आंसुओं की बूंद वहीं काउच पर ही जम गई।

हालात से वक्त रहते न लड़ा जाए, तो हालात सबसे पहले हमारे जज़्बातों का क़त्ल करते हैं। सबका एक डार्क पास्ट होता है, सौरभ का भी था, जिसे वह सबसे छुपा रहा था या यूं कहें कि सब पर, खासकर लड़कियों पर, अपना गुस्सा निकाल रहा था।

सौरभ की एक आदत अच्छी थी कि वह अपने बीते कल में ज़्यादा देर तक नहीं रह पाता था। उसका दिमाग जैसे-जैसे बीते कल की यादों में खोता जाता, वह खुद को वहां से निकाल लाता। यही वजह थी कि वह काउच से उठकर सीधे अपने बेडरूम गया और सो गया।

सौरभ ने अपनी लाइफ का एक फंडा क्लियर कर रखा था—उसे अपनी लाइफ में किसी तरह का कोई टेंशन नहीं चाहिए, जिसे बंबईया भाषा में लोचा कहते हैं।

अगली सुबह जैसे ही सौरभ उठा, उसने अखबार में होटल मुमताज़ में होने वाले फंडरेज़र इवेंट के बारे में पढ़ा और फिर उसके मन में ख्याल आया कि इस इवेंट में कुछ न कुछ बेहतर तो मिल ही जाएगा।

सौरभ ने तैयार होना शुरू किया और 11 बजे सीधे होटल मुमताज़ पहुंच गया।

 

सौरभ अपने महंगे सूट और शूज़ पहने, पूरी प्लानिंग के साथ होटल मुमताज़ में एंटर करता है। होटल में घुसते ही उसे खुद में बहुत स्पेशल फील होने लगा। हो भी क्यों न? 1903 से इस इमारत ने अपनी पहचान अब तक लोगों के दिलों में बना रखी है।

सौरभ को अपना नेक्स्ट टारगेट मिलना आसान लग रहा था। आफ्टर ऑल, उसकी लाइफ का फंडा क्लियर था—"अय्याशियां न रुके, नेक्स्ट टारगेट मिलते रहें।"

सौरभ यह बात अच्छे से जानता था कि होटल मुमताज़ में हो रहे इस इवेंट में ज़्यादातर लड़कियां और महिलाएं ही होंगी।

सौरभ जैसे ही प्रोग्राम में पहुंचा, उसके शातिर दिमाग ने अपना काम शुरू कर दिया।

वह अपने टारगेट पर फोकस करने के लिए हमेशा पीछे बैठता था, ताकि उसकी नज़र सब पर रहे।

सौरभ बार-बार अपना सूट ठीक कर रहा था, कभी रेस्ट रूम में जाकर खुद को निहार रहा था, तो कभी फेक स्माइल करने की प्रैक्टिस कर रहा था।

जैसे ही वह रेस्ट रूम से लौटकर अपनी सीट पर बैठने वाला था, स्टेज पर एक नाम अनाउंस हुआ—मिस रितिका सेन।

जैसे ही यह नाम अनाउंस हुआ, सौरभ की नज़र स्टेज पर गई। उसने रितिका को देखा और बुदबुदाया—"मुंबई मेरी जान।"

सौरभ, रितिका को देखते ही समझ गया कि ये वही लड़की है, जिससे वो कल रात क्लब में टकराया था। रितिका ने अपना इंट्रोडक्शन देना शुरू किया, और जैसे ही उसने अपना प्रोफेशन फाइनेंस एक्सपर्ट बताया, सौरभ के कान और ज्यादा खड़े हो गए। उसे अपनी किस्मत पर भरोसा हो गया कि चाहे कुछ भी हो जाए, इसको वो अपने जाल में फंसाकर रहेगा।

रितिका, सौरभ के लिए एक फ्रेश और इन्टरेसटींग टारगेट थी। सौरभ ने फौरन रितिका का सोशल मीडिया अकाउंट सर्च किया और उसकी हर एक फोटो, वीडियो और सोशल मीडिया हाइलाइट्स को चेक किया, फिर इस नतीजे पर पहुंचा कि रितिका इस वक्त अकेली है, और अकेलापन सिर्फ एक साथ खोजता है, चाहे वह सच्चा हो या झूठा।

सौरभ, रितिका की प्रोफाइल देखने के बाद अपने अंदर के साइकोलॉजिस्ट को जगा लेता है। जैसे ही रितिका स्टेज से उतरती है, उसकी नजर सौरभ पर पड़ती है और वह कहती है, ‘’तुम यहाँ? मेरा पीछा कर रहे हो?''

SAURABH: यह फंडरेज़र इवेंट है मैडम, यहाँ मेरा आना ज़रूरी था।

RITIKA: तो आप स्पॉन्सर में से एक हैं?

SAURABH: नहीं, मैं साइकोलॉजिस्ट हूँ। मेरा एक एनजीओ है, जो मानसिक रूप से विक्षिप्त बच्चों और ऐसे बच्चों की केयर करता है जिनके पेरेंट्स उन्हें नशे में मारते-पीटते हैं।

RITIKA: ओह, दिस इज़ फैंटास्टिक। नाइस टू मीट यू, मिस्टर... (अटकते हुए)

SAURABH: श्रवण घोष।

RITIKA: तो तुम बंगाली हो।

SAURABH: जी हाँ, बोंग ब्यूटी।

RITIKA: वैसे आपको अपने एनजीओ के लिए कोई स्पॉन्सर मिला कि नहीं?

SAURABH: इस बार तो नहीं मिला। मैं कल ही इस इवेंट के बारे में सुनकर यहाँ आया हूँ। मैं कुछ काम के सिलसिले में बाहर था।

RITIKA: अगर आप चाहें तो मैं आपके लिए किसी स्पॉन्सर से बात कर सकती हूँ यहाँ।

SAURABH: वेल, सो स्वीट ऑफ यू! पर मुझे लगता है कि अगर आप मेरे लिए कुछ करना ही चाहती हैं, तो मुझे एक अच्छी सी कॉफी पिला सकती हैं। लगातार ट्रेवल के कारण मुझे बहुत तेज़ सिरदर्द हो रहा है।

RITIKA: आपको नहीं लगता, थोड़ी जल्दी है कॉफी पर जाना?

SAURABH: फंड्स नहीं मिले तो क्या हुआ? कॉफी पर हम बच्चों के बारे में बात कर सकते हैं और आप, मुझे स्पॉन्सर्स से कैसे डील करना है, ये भी समझा सकती हैं।

RITIKA: मेक सेंस! तो चलिए होटल के कैफे चलते हैं।

SAURABH: वेल, मैं इस होटल से बेहतर एक जगह जानता हूँ। वहाँ की कॉफी इस 7-स्टार होटल से कही ज़्यादा अच्छी है।

RITIKA: ओके, चलिए फिर।

सौरभ इस बात से खुश था कि इस बार अँधेरे में छोड़ा गया तीर भी निशाने पर लग चुका है। सौरभ बिना समय गवाएं, रितिका को अपनी कार से उसी जगह ले गया, जो अक्सर उसके लिए लड़कियों को इम्प्रेस करने का अड्डा थी।

SAURABH: सो, यह है वह जगह, जहां की कॉफी वर्ल्ड बेस्ट है।

जैसे ही सौरभ कैफे में इंटर करता है, एक वेटर उसके पास आकर उसे ग्रीट करता है और कहता है, "भैया, आप गुड़िया की शादी में क्यों नहीं आए? वो आपका इंतज़ार करती रह गई।"

सौरभ ने अपने ट्रैवलिंग प्लान के बारे में बताते हुए कहा कि वह बहुत बिज़ी था। वेटर ने उससे वादा लिया कि वह इस वीकेंड घर आएगा और गुड़िया से मिलेगा। साथ ही वेटर ने कन्फर्म किया, "आपके लिए वही वाली कॉफी लाऊँ, ना? और मैडम के लिए?"

SAURABH: रितिका, बताइए आपको कौन सी कॉफी पसंद है और आप खाने में क्या लेंगी?

RITIKA: वेल, इवेंट में मैंने हेवी लंच किया था, तो खाने में कुछ नहीं और कॉफी आपकी वाली ही।

ऑर्डर मिलते ही वेटर चला गया। इतने में एंट्री होती है मिस्टर सुभाष की—मिडल-एज्ड मैन, थोड़ा चबी चेहरा, पेट बाहर निकला हुआ, लेकिन बातों के मज़ाकिया अंदाज वाले।

उन्होंने सौरभ को आवाज़ लगाई, "और भाई सौरभ, बहुत दिन हो गए! न कैफे में दिखे, न ही गोल्फ क्लब में। कब आ रहे हो भाई, बता भी दो? इतनी खूबसूरत लड़की के साथ हो, अब ये मत कहना कि पहचान नहीं!"

इतना कहकर उन्होंने सौरभ के कंधे पर जोरदार हाथ मारा और हंस दिए।

सौरभ ने भी उनके मज़ाकिया अंदाज में ही उन्हें जवाब दिया, "सर, आपसे खूबसूरत इस दुनिया में कोई नहीं। मिलिए इनसे, ये हैं रितिका, फाइनेंशियल एक्सपर्ट और ये मेरे एनजीओ के स्पॉन्सर्स ढूंढने में मेरी हेल्प कर रही हैं।"

मिस्टर सुभाष ने रितिका से हाथ मिलाया और सौरभ को ऑफिस आकर मिलने के लिए कहा। साथ ही यह भी बताया कि कुछ बच्चों को उसकी मदद की ज़रूरत है। इतना कहकर उन्होंने दोनों को सी ऑफ किया।

रितिका यह देखकर थोड़ी इम्प्रेस हो गई कि सौरभ बिना किसी एटिट्यूड के सबसे घुल-मिलकर बात करता है। उसके लिए न कोई बड़ा था, न कोई छोटा।

कॉफी का सिप लेते ही रितिका ने कहा, ‘’उम, अमेज़िंग! मैंने आज तक ऐसी कॉफी नहीं पी। यू वर राइट। यू हैव अ गुड टेस्ट।''

SAURABH: वो तो मुझे शक ही नहीं था तभी तो आप मेरे साथ यहाँ बैठी हैं।

RITIKA: ओह, फ्लर्टिंग!

SAURABH: नहीं, सच कह रहा हूँ। आप जैसी स्ट्रॉन्ग, इंडिपेंडेंट लड़की, जो मेरे बच्चों की फंडिंग के लिए इतनी कन्सर्न है। वो वह दिल से कितनी अच्छी होगी, यह तो मैं अब स्टाम्प पे लिखकर दे सकता हूँ।

 

रितिका, सौरभ की बातें सुनकर उसकी तरफ अट्रैक्ट होने लगती है। सौरभ, रितिका के इस अट्रैक्शन को समझता है और उसे इसमें और डूबने देता है।

दोनों एक-दूसरे की आँखों में देखते रहते हैं, तभी तीन-चार लड़के झुंड बनाकर आते हैं और कैफे के बाहर खड़ी एक लड़की को छेड़ने लगते हैं।

सौरभ यह सब देखकर तुरंत उनकी तरफ बढ़ता है। मगर वे लोग सौरभ को देखकर कटर निकाल लेते हैं।

सौरभ, फिर भी उस लड़की की इज्जत के खातिर अपनी जान जोखिम में डालता है। बाकी पब्लिक भी यह देखकर सौरभ के साथ होने लगती है।

सौरभ की हिम्मत और लड़कियों के लिए इज्जत देखकर रितिका और भी ज्यादा इम्प्रेस हो जाती है।

RITIKA: तुम्हें अपनी डेस्टिनी से डर नहीं लगता है?

SAURABH: नहीं, मुझे मालूम है, डेस्टिनी धोखा देती है, मगर आज तक मुझे नहीं दिया।

RITIKA: कॉन्फिडेंस अच्छा है तुम्हारा। खैर, चलो चलते हैं। घर जाकर मुझे काम करना है।

SAURABH: ठीक है, फिर मैं छोड़ देता हूँ तुम्हें।

RITIKA: आर यू सीरियस?

SAURABH: हाँ, 100%।

सौरभ की "हाँ" सुनकर, रितिका ब्लश करने लगी। रितिका और सौरभ पूरे रास्ते बंगाली गाने सुनते जाते हैं। रितिका अपनी प्रोफेशनल लाइफ की स्टोरी सौरभ को बताती है, और आदतन, सौरभ उसे अपनी बनाई हुई प्रोफेशनल लाइफ की स्टोरी सुनाता है।

बात करते-करते, रितिका का घर आ जाता है। दोनों एक-दूसरे को बाय कहते हैं।

सौरभ, रितिका का घर देखकर सोचता है कि इस बार उसका बैंक बैलेंस तीन गुना ज़्यादा बढ़ेगा। साथ ही यह भी तय करता है कि रितिका के साथ वह कोई जल्दबाज़ी नहीं करेगा।

जैसे ही सौरभ, रितिका को छोड़कर निकलता है, उसके फोन पर कॉल आता है। कॉलर का नाम देख कर, वह गुस्से में आग बबूला हो जाता है।

आखिर किसका था यह कॉल, जिसने सौरभ के हैप्निंग मूड को बदलकर रख दिया था? 

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग। 

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